बेरोजगारों के आंदोलन के मामले में उत्तराखंड सरकार की साजिश को कोर्ट ने नाकाम किया 

देहरादून में चल रहे बेरोजगार युवाओं और छात्रों के आंदोलन को लेकर राज्य सरकार की युवाओं के खिलाफ साजिश कोर्ट ने न सिर्फ नाकाम कर दिया, बल्कि इससे पुलिस और प्रशासन की षडयंत्रकारी नीति भी सामने आ गई। जिन 13 युवकों को पुलिस ने 9 फरवरी को लाठीचार्ज के बाद गिरफ्तार किया था, उन सभी को कोर्ट ने जमानत दे दी।

साथ ही इस आरोप को भी कोर्ट ने नकार दिया कि इन युवाओं ने पुलिस पर जानलेवा हमला किया था, पुलिस की वर्दी फाड़ दी थी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था। पुलिस इन आरोपों के समर्थन में कोई भी साक्ष्य अदालत में प्रस्तुत नहीं कर पाई। इस आंदोलन के दौरान शुरू से लेकर अब तक राज्य सरकार और प्रशासन की ओर से जो भी कदम उठाये गये हैं, उनसे साफ है कि सरकार समाधान का रास्ता तलाशना ही नहीं चाहती। वह गतिरोध बनाये रखने और दमनात्मक कार्रवाई पर अडिग है।

यह सवाल बार-बार उठाया जा रहा है कि आखिर सरकार इस तरह की दमनात्मक कार्रवाई करने पर क्यों उतारू है। समझौते के बावजूद गिरफ्तार छात्रों की जमानत में लगातार सरकार की ओर से अडंगा लगाया जा रहा है और देहरादून में कचहरी स्थित शहीद स्मारक पर धरना दे रहे युवाओं को लगातार डराया-धमकाया जा रहा हैं।

कभी देहरादून के एसएसपी तो कभी एसडीएम वहां पहुंचकर कई तरह से इन युवाओं को मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे हैं। धरना दे रहे युवा पहले ही कह चुके हैं कि साथियों को जमानत मिलने के साथ ही वे यहां से चले जाएंगे और प्रशासन द्वारा दी गई जगह पर धरना देंगे। इसके बावजूद जमानत होने नहीं देना और कोर्ट में हर दिन नये-नये बहाने लगाना बताता है कि सरकार की मंशा हर हाल में टकराव को रास्ता बनाये रखने की है।

9 फरवरी को हुए लाठीचार्ज के बाद युवाओं ने 10 फरवरी को शहीद स्मारक पर धरना शुरू किया था। उस दिन उत्तराखंड बेरोजगार संघ के 5 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने पहले अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी से बातचीत की थी और देर शाम डीएम सोनिका के साथ हुई बातचीत में प्रशासन के बीच समझौता किया गया था।

इस समझौते के अनुसार गिरफ्तार किये गये 13 युवकों पर लगाई गई हत्या के प्रयास की धारा 307 वापस ली जानी थी और 11 फरवरी को उनकी जमानत करवाई जानी थी। इस समझौते के साथ ही युवाओं ने ऐलान किया था 11 फरवरी को जमानत होने के बाद वे अपने साथियों के साथ यहां से चले जाएंगे। लेकिन, 11 फरवरी को जमानत नहीं हुई।

कोर्ट ने यह कहकर जमानत का विरोध किया गया कि 12 फरवरी को पटवारी-लेखपाल भर्ती परीक्षा है और ये युवक जमानत पर बाहर आकर इस परीक्षा को पूरे राज्य में प्रभावित कर सकते हैं।

जमानत पर अगली सुनवाई 13 फरवरी को हुई। लेकिन सरकारी पक्ष ने एक बार फिर यह कहकर जमानत नहीं होने दी कि अभी कुछ साक्ष्य जुटाने हैं। सरकारी वकील ने साक्ष्य जुटाने के लिए 5 दिन का समय मांगा। लेकिन अदालत ने सिर्फ एक दिन का समय दिया और 14 फरवरी को फिर से सुनवाई करने की तिथि तय कर दी।

14 फरवरी को फिर सुनवाई शुरू हुई तो सरकारी पक्ष ने अप्रत्याशित रूप से पैंतरा बदला और कह दिया के इस मामले में जो धारा 307 हटाई गई है, उसे लगाना जरूरी है, क्योंकि मामला बहुत जघन्य है। यानी कि जमानत न होने देने के लिए सरकारी पक्ष की ओर से एक और पैंतरा अपनाया गया और यह कामयाब रहा। 

युवकों को जेल में बंद रखने के लिए पुलिस और प्रशासन की ओर से कई प्रयास किये गये। कुछ पुलिस वालों के मेडिकल कोर्ट में रखे गये और कहा गया कि इन पर जान लेने की नीयत से हमला किया गया था। लेकिन, बचाव पक्ष ने कहा कि यदि इतना भारी हमला हुआ था और वे बुरी तरह घायल हो गये थे तो इसके बावजूद कैसे ड्यूटी करते रहे।

अदालत ने भी माना कि पुलिस वालों को हल्की-फुल्की चोटें आई हुई हैं। पुलिस की वर्दी फाड़ दिये जाने का भी कोई साक्ष्य अदालत में पेश नहीं किया गया और न ही सरकारी संपत्ति को हुए नुकसान का कोई ब्योरा दिया गया।

छात्रों के इस आंदोलन का समाप्त करने की दिशा में कोई कदम उठाने के बजाय प्रशासन की ओर से लगातार गतिरोध बनाने के प्रयास किये जाने के बाद अब अभिभावक, सामजिक कार्यकर्ता, विपक्षी दलों से जुड़े लोग और जन सरोकारों से जुड़े पत्रकार आगे आये हैं। इन तमाम लोगों ने एक बैठक पर मुख्यमंत्री से बातचीत के लिए समय मांगा है।

बैठक में कहा गया कि मुख्यमंत्री केवल अपने कुछ चहेते अधिकारियों और अपने खास लोगों की ही बातें सुन रहे हैं और ये लोग उन्हें गुमराह कर रहे हैं। अभिभावकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से 7 सुझाव मुख्यमंत्री को देने के लिए तैयार किये गये है, जिससे युवाओं और प्रशासन की बीच गतिरोध खत्म हो सके। यदि मुख्यमंत्री की तरफ से कोई बुलावा नहीं आता तो 16 फरवरी को बैठक कर आगे की रणनीति तैयार की जाएगी।

इस बैठक में मुख्यमंत्री से बातचीत के जिन बिन्दुओं पर सहमति बनी उनमें बेरोजगारों पर लाठीचार्ज के दोषियों एसएसपी देहरादून, एसडीएम सदर को हटाना, सभी आन्दोलकारियों पर दर्ज मुकदमे वापस लेना,  यूकेएसएसएससी के अध्यक्ष जीएस मार्तोलिया को उनके पद से हटाना, भर्तियों में धांधलियों की सीबीआई जांच के आदेश देना और जोशीमठ आपदा पीड़ितों को समुचित मदद करना जैसे मुद्दे शामिल हैं।

( त्रिलोचन भट्ट वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

त्रिलोचन भट्ट
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