श्रीधरन महज भाजपा विधायक बनकर रह गए तो देश को बहुत अफसोस होगा!

भारत में कुछ लोग मुंगेरीलाल के हसीन सपनों में हर वक्त खोए रहते हैं। मेट्रोमैन के नाम से मशहूर ई श्रीधरन की बीजेपी में आमद से केरल को छोड़ कर शेष भारत में लोग इतने खुश हैं, मानों रातों रात कुछ चमत्कार होने वाला है। यह बात अच्छी जरूर है कि अगर साफ सुथरी छवि के लोग राजनीति में प्रवेश करते हैं तो उससे बदलाव की उम्मीद बढ़ती है, लेकिन यह देश साफ सुथरी छवि के लोगों को राजनीति में गंदगी फैलाते हुए भी देख चुका है।

केरल की जरूरतें अलग हैं और सौ फीसदी साक्षरता वाले केरल के लोग बाकी देश से अलग सोचते हैं। ये तस्वीर बार-बार सामने भी आती रही है। शेष भारत जब आडवाणी की रथयात्रा और भाजपा-आरएसएस की देश को बांटने वाली राजनीति पर मगन होकर उसे वोट देता है तो केरल में भाजपा एक सीट पर भी अपनी जमानत नहीं बचा पाती। केरल से दूर रह कर जिंदगी भर इंजीनियरिंग ओढ़ने-बिछाने वाले ई श्रीधरन केरल में भाजपा की जड़ें कितना जमा पाएंगे, उसके लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

निकट भविष्य में संभावित केरल के अगले विधानसभा चुनाव में श्रीधरन नामक घोड़े पर लगाए गए दांव का रेट सामने आ जाएगा। हालांकि ई श्रीधरन को कांग्रेस ने खोजा था और मौका दिया था, लेकिन सिर्फ इस वजह से श्रीधरन कांग्रेस में क्यों जाते! किसी को उनके इस कदम का बुरा नहीं मानना चाहिए। भारतीय राजनीति में ऐसे प्रयोग जारी रहने चाहिए, तभी उसमें निखार आएगा।

भाजपा और आरएसएस ई श्रीधरन को कितना मौका देंगे, यह ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल हो सकता है। मोदी की राह आसान बनाने के लिए आरएसएस ने खुद तय किया था कि उसके राजनीतिक मुखौटे भाजपा में 75 साल से ज्यादा उम्र वाले नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया जाए। संघ ने रथयात्री आडवाणी और वैज्ञानिक दृष्टि वाले विद्वान डॉ. मुरली मनोहर जोशी समेत कइयों को नेपथ्य में भेज दिया, लेकिन अब 85 साल के श्रीधरन को संघ और भाजपा किस शुचिता के साथ स्थापित करेंगे, उसकी तस्वीर भी जल्द साफ होगी।

सेहत के हिसाब से ई श्रीधरन इन हालात में नहीं हैं कि भाजपा उन्हें केरल के सीएम के चेहरे के तौर पर पेश करे। अलबत्ता श्रीधरन की आमद यह जरूर बताती है कि बंगाल के बाद भाजपा केरल विधानसभा चुनाव को पूरी गंभीरता के साथ लेने जा रही है। हालांकि कुछ लोग श्रीधरन घटनाक्रम की आड़ में केरल में लेफ्ट और कांग्रेस के खात्मे का एलान कर बैठे हैं। मैं समझता हूं कि वो जरा जल्दी में हैं। केरल ने हमेशा शेष देश से अलग हटकर सोचा है।

सरकारी बजट के जिस ट्रैक पर मेट्रो रेल चलाई गई, जरूरी नहीं कि उसी ट्रैक पर राजनीति भी चले। भारत का कोई भी राजनीतिक दल पूरी तरह भ्रष्टाचार मुक्त नहीं है। उसमें भी भाजपा और कांग्रेस तो वैसे भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उसमें ईमानदार और साफ सुथरी छवि वाले ई श्रीधरन का दम कब घुटता है, यह देखने के लिए मैं और मेरे जैसे तमाम लोग बेताब हैं।

मैंने जैसा ऊपर लिखा है कि यह देश स्वच्छ छवि वालों को गंदगी फैलाते देख चुका है। यह देश अच्छी छवि वालों का राजनीति में दम घुटते भी देख चुका है। यह देश ईमानदारी का लबादा ओढ़कर पैदा हुए तमाम नौकरशाहों, कानूनविदों, पूर्व जजों को गिरगिट की तरह रंग बदलते भी देख चुका है। इसके सबसे बड़े उदाहरण अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल हैं। दोनों ने ईमानदारी और साफ सुथरी छवि का दावा पेश किया था।

भ्रष्टाचार से त्रस्त भारत में फर्जी गांधीवादी अन्ना हजारे रामलीला मैदान पर गरीबों, मजदूरों, मध्यम वर्ग की आवाज बनकर प्रकट हुए, लेकिन अपना इलाज वो गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में कराते हैं। आरटीआई एक्टिविस्ट से नेता बने केजरीवाल के कई रूप हमारे सामने हैं। उनके द्वारा चलाई जा रही दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार भ्रष्ट नहीं है, ऐसा दावा आज कौन कर सकता है। आम आदमी पार्टी सेकुलर भी नहीं रही, ऐसा दावा उस पार्टी के लोग भी अब नहीं करते।

छात्र नेता उमर खालिद पर यूएपीए जैसे काले कानून की अनुमति देना केजरीवाल सरकार का काम है। दिल्ली नरसंहार 2020 में भी इस पार्टी की भूमिका देखी जा चुकी है। ब्लैक मनी समेत न जाने क्या-क्या भारत में वापस लाने वाला योग गुरु बिजनेसमैन के रूप में सामने आ गया, जिसके प्रोडक्ट में नकली और मिलावटी शहद से लेकर फटी जींस तक शामिल है।   

बहरहाल, कुछ पत्रकारों ने श्रीधरन और रंजन गोगोई की तुलना करने की कोशिश की है, लेकिन ईमानदारी नहीं बरती है। आइए उस पर भी ई श्रीधरन के संदर्भ में बात करते हैं। मुझे याद है कि वह 12 जनवरी 2018 में सर्दियों की सुबह थी। धूप खिली हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के लॉन में अचानक जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन लोकूर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाते हैं और कहते हैं कि तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा है।

जजों की सुनवाई का रोस्टर सिस्टम इतना गलत बनाया गया है कि सारे महत्वपूर्ण केस या तो दीपक मिश्रा की कोर्ट या उनकी पसंद की जजों के पास जा रहे हैं। एक तरह से सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट में फैले भ्रष्टाचार की तरफ इन चार जजों ने इशारा कर दिया। इसके बाद तहलका मच गया, लेकिन कुछ भी बदला नहीं। दीपक मिश्रा रिटायर हो गए। रंजन गोगोई अगले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बन गए। गोगोई की ईमानदारी के इतने कसीदे पढ़े गए कि सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र भी स्वर्गलोक में शरमा गए होंगे, लेकिन इस शख्स ने अयोध्या विवाद पर विवादास्पद फैसला देकर अपना भविष्य सुरक्षित करने की कोशिश शुरू कर दी।

अयोध्या पर जब रंजन गोगोई सुनवाई कर रहे थे तो सुप्रीम कोर्ट में कुछ और भी घटित हो रहा था, जिसकी तरफ मीडिया का ध्यान या तो नहीं था या जानबूझकर नहीं था। अदालत की एक महिला कर्मचारी गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगातार लगा रही थी, लेकिन आमतौर पर ऐसे मामलों को ब्लैकमेलिंग से जोड़ कर खारिज कर दिया जाता है। मीडिया ने भी वही किया। फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने कथित महानता दिखाते हुए इस मामले की जांच के लिए जजों की एक कमेटी बना दी, जिसकी अगुआई मौजूदा चीफ जस्टिस बोबडे साहब को सौंपी गई, लेकिन इसके बाद हुआ क्या।

रिटायर होने के बाद जस्टिस रंजन गोगोई भाजपा में शामिल हो गए और राज्यसभा में पहुंच गए। उधर सुप्रीम कोर्ट में रंजन गोगोई यौन उत्पीड़न केस में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम की बेंच ने 18 फरवरी 2021 को अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘दो साल बीत चुके हैं और इलेक्ट्रॉनिक सबूत मिलने की गुंजाइश न के बराबर है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी पहले ही अपनी रिपोर्ट दे चुकी है। स्वत: संज्ञान लेकर दर्ज किया गया ये केस बंद किया जाता है। इस केस को जारी रखने की कोई ज़रूरत नहीं है।’

तो इस तरह 2018 में जो शख्स हमें विद्रोही जज दिख रहा था और सुप्रीम कोर्ट में फैले कथित भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए राबिनहुड बनकर आया था, वो दरअसल राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखता था या राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने के लिए मजबूर किया गया। आज रंजन गोगोई की क्या हैसियत है। वह मात्र राज्यसभा के एक सदस्य भर हैं, लेकिन विश्व ज्यूडीशियल सिस्टम में उनकी इज्जत का जनाजा निकल चुका है। अयोध्या पर विवादास्पद फैसला देकर उन्होंने उस पार्टी को राजनीतिक फायदा पहुंचाया जो अयोध्या के जरिए केंद्र की सत्ता तक पहुंची है।  

उम्मीद है ई श्रीधरन दूसरे रंजन गोगोई नहीं बनेंगे। अगर वो भी केरल विधानसभा के मात्र भाजपा विधायक बनकर रह गए तो इस देश को बहुत अफसोस होगा।

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

यूसुफ किरमानी
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