आरोप सिद्ध होने से पहले जेल भेजने वाली आपराधिक न्याय प्रणाली संविधान का अपमान

शरजील इमाम की रिहाई पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने देश की न्याय प्रणाली पर सवाल उठाया है। चिदंबरम ने कहा कि मुकदमे से पहले ही जेल भेजने वाली आपराधिक न्याय प्रणाली संविधान का अपमान है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से ‘कानून के आए दिन होने वाले दुरुपयोग’ को खत्म करने की अपील की है।

शरजील इमाम को कोर्ट ने बरी करते हुए अपने फैसले में कहा कि चूंकि पुलिस वास्तविक अपराधियों को पकड़ पाने में असमर्थ रही इसलिए उसने इन आरोपियों को ‘बलि का बकरा’ बना दिया। इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए पी. चिदंबरम ने ट्वीट करके पूछा कि क्या आरोपियों के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई सबूत था?

पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम ने कहा कि ‘अदालत का निष्कर्ष स्पष्ट रूप से ‘नहीं’ है। कुछ आरोपी करीब तीन साल तक जेल में बंद रहे। कुछ को कई महीनों बाद जमानत मिली। यह मुकदमे से पहले कैदी बनाना है।

उन्होंने सिलसिलेवार ट्वीट करते हुए कहा कि मुकदमे की सुनवाई पूरी होने से पहले नागरिकों को जेल में रखने के लिए एक अयोग्य पुलिस और अति उत्साही अभियोजक जिम्मेदार हैं। उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी? ’चिदंबरम ने पूछा कि आरोपियों ने इतने महीने या साल जेल में बिताए, वो उन्हें कौन लौटाएगा?

उन्होंने कहा कि ‘मुकदमे से पहले कैदी बनाने की हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली भारत के संविधान खासतौर से अनुच्छेद 19 और 21 का अपमान है। उच्चतम न्यायालय को कानून के आए दिन होने वाले इस दुरुपयोग पर रोक लगानी होगी। जितनी जल्दी हो, उतना अच्छा।

बता दें कि दिल्ली की साकेत कोर्ट ने जामिया हिंसा मामले में आरोपी छात्र और कार्यकर्ता शरजील इमाम को बरी कर दिया है। उनके खिलाफ नॉर्थ ईस्ट के असम सहित कई राज्यों में सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर लोगों को ‘भड़काने’ के लिए विवादित बयानबाजी करने के मामले दर्ज हैं।

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