सरकार अमीरों को मुफ्त में जहाज से घर पहुंचा आई और गरीब पैदल यात्रा पर

एक तिहाई आबादी सदा पाखंड यात्राओं और पाखंड के अड्डों पर भटकती रही। लाख समझाओ मगर बुद्धिहीनों की भीड़ कहां समझने वाली है। हर प्राकृतिक आपदा के समय लुटेरे मुनाफाखोरी, कालाबाजारी पर उतर जाते हैं और धर्मखोर हालात सुधरने पर दुबारा दुकानें कैसे सजें, उसकी तैयारी में लग जाते हैं।

आज कोरोना ने साबित कर दिया कि झूठे हैं तुम्हारे भगवान, ठगौरी है तुम्हारे सियासतदान और देश की व्यवस्था में तुम कहीं टिकते हो, नहीं। विदेशों में पढ़ने वाले लुटेरों के बच्चे बोइंग विमानों से निःशुल्क लाकर घर पहुंचा दिए गए और इलाहाबाद, पटना, भोपाल, जयपुर, मुखर्जी नगर में पढ़ने वाले गांव-देहात के, किसान-कमेरों के, भारत के बच्चे सड़कों पर रेलमपेल हुए जा रहे हैं।

जो विदेशों में इंडिया के लोग मोटा माल बना रहे थे उनको खुद सरकार विमानों में भर-भरकर ले आई और दिल्ली, सूरत, बैंगलोर, मुंबई, चेन्नई आदि स्थानों पर पहुंचा दिया। गांव-गरीब तबके के लोग जो दो जून की रोटी के लिए आज पीठ पर थैला लटकाए, सिर पर गठरी लिए पैदल जत्थों में चले जा रहे हैं। कोई 200 किमी, कोई 500 किमी, तो कोई 1000 किमी के सफर पर निकल चुका है।

जब यही गांव-गरीब तबके के लोग, किसान-कमेरे वर्ग के लोग पाखंड यात्राओं पर निकलते थे, लेकिन तुम्हारा यह रास्ता नहीं है। तुम्हारी यह मंजिल नहीं है। तुम गलत दिशा में जा रहे हो। आज कोरोना का कहर बरपा तो भी पैदल यात्रा पर यही तबका है। दुःखों की अनवरत यात्राओं का सैलाब है, कभी शौक से तो कभी मजबूरी में, मगर सिलसिला जारी है।

जब राजनेताओं के पीछे भीड़ के रूप में भटक रहे थे तब भेड़ें बन रहे थे! भेड़ों का नेतृत्व गधे करते हैं। आज भेड़ें भटक रही हैं और गधे मौज मार रहे हैं। महलों में मस्ती कर रहे हैं। उनके लिए होम आइसोलेशन ऐशो-आराम का नया प्रयोग है। तुम्हारे हिस्से भूख-भय का संयोग है।

खूब झुंड के रूप में उछल-उछलकर नेताओं को मजबूत कर रहे थे मगर अब मजबूत नेता आराम फरमा रहे हैं और तुम कंटेनर में, पानी के टैंकर में, दूध के टैंकरों में भेड़ों की मानिद ठूंस-ठूंसकर ठेले जा रहे हो।

जब समझाया गया था कि सियासत को धर्म का जहर मत पीने दो तब गुर्राते थे, धमकाते थे, गालियां देते थे। सियासत के माध्यम से धर्म को मजबूत करने की हुंकारे भर रहे थे। आज संकट की घड़ी में सबसे पहले धर्मखोर अपने अड्डों के ताला लगाकर भाग खड़े हुए। धर्म सियासत की हुंकारों से मजबूत नहीं हुआ करते बल्कि धर्मखोरों ने सियासत में आकर सियासत को ही निगल लिया।

भारत के गांव-देहात के युवा किसान कमेरे आज सड़कों पर हैं। वो सिर पर पोटली उठाए पैदल अपनी जड़ों की ओर चलता जा रहा है। आज भूखा प्यासा भारत रोटी मांग रहा है और इंडिया पोस्ट डेटेड पैकेज दे रहा है, आंकड़ों के हेरफेर में उलझा रहा है।

आज भारत गंभीर संकट में है। भूख-भय से तड़प रहा है और इंडिया वाले ढोंगी मंदिर निर्माण शुरू कर चुके हैं। जिस गोरखनाथ के लिए भरत जैसे महान राजा अपना राज सिंहासन त्याग देते थे उसी गौरखनाथ मठ से निकला ढोंगी राजसिंहासन पर बैठता है तो गरीबों के भोजन के लिए नहीं राम मंदिर के लिए चेक काट रहा है।

आज भारत रोटी मांग रहा है तो मंत्री महोदय कह रहे हैं कि भारत वाले रामायण मांग रहे हैं और सुबह नौ बजते ही सप्लाई कर दी जाएगी। नेपाल में भूकंप आया तो वेटिकन वाले बाबा बोले कि नेपाल बाइबिल मांग रहा है।

दुनिया के बुद्धिजीवियों ने लपेटा तो माफी मांग ली मगर इंडिया वालों में कोई शर्म नहीं है। कोई नैतिकता नहीं है। इंसाफ की तो बात ही मत करिए। भेदभाव, इंसानियत का कत्ल तो इंडिया का न्यायिक चरित्र है।

बस भारत के लोग अभी भी समझ लें। अब भी देर नहीं हुई है! हजारों सालों के कोरोना के साथ इस नव कोरोना को एक साथ भी हराया जा सकता है मगर सबसे पहले खुद पर भरोसा करना होगा। हौसला बुलंद करना होगा। वो चरित्र, वो बल, वो पुरुषार्थ, वो सामर्थ्य आज भी भारत के लोगों में है, जिसके बूते ऐसे 5-10 कोरोना से एक साथ लड़कर जीत सकते हैं।

मदन कोथुनियां

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