कोरोना से लड़ने वाली सरकार ही बन गयी उसकी प्रसारक!

देखिये साहब भरोसा वरोसा आपको करना हो तो करते रहिये, हम तो करते नहीं साफ़ कहना सुखी रहना। एक घर की ओर जाते मजदूर से एक पत्रकार ने जब पूछा कि अब तो प्रधानमंत्री की ओर से 20 लाख करोड़ रूपये का कोष बनाया जा रहा है, देश के लिए तो उसका एक ही जवाब था, “हम सबके लिए एक बस का जुगाड़ तो सरकार कर नहीं पाई, हम क्या जानें 20 लाख करोड़ क्या होता है?”

असल सवाल जो आपके दिमाग में नहीं लाने दिया जा रहा है वो क्या हो सकता है? मेरी समझ से अब हम अगले हफ्ते तक चीन के मार्च वाली गति को पहुँचने जा रहे हैं। 75 हजार मामले हो चुके हैं, 2200 तक तो मारे ही जा चुके होंगे। मुंबई देश का वुहान करीब-करीब बन ही चुका है और महाराष्ट्र हुबेई प्रान्त। कोरोना वायरस से महाराष्ट्र में कुल संक्रमित लोगों की संख्या 25000 को पार कर चुकी है। कल महाराष्ट्र में 1495 नए मामले सामने आये हैं। मुंबई में 20000 केस हैं।

लेकिन मुझे डर उससे भी अधिक यूपी, बिहार को लेकर है। पता नहीं क्यों?

आप कह सकते हैं आँख के सामने तो महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली घूम रहा है, बेवकूफ होगा जो यूपी बिहार में अपनी नाक घुसेड़ रहा है। 

लेकिन मन बार-बार यही कहता है कि जब 24 मार्च को लॉकडाउन लगाया गया था, उसे यदि 10 दिन बाद भी घोषित किया जाता और देश के करोड़ों लोगों को जहाँ जाना था, जाने दिया गया होता तो वे स्वस्थ्य भी होते, ठीक से खान पान भी होता।

सरकार भी अनुमान लगा पाती कि शहरों के अंदर किस वर्ग के कितने लोग हैं? कितनों के पास अगले 5 महीने के लिए शहरों में रहने की व्यवस्था ध्वस्त हो सकती है, और उनके लिए सरकारी अनाज के गोदामों से हर जिले में पर्याप्त कितना माल पहुंचवा देना चाहिए।

स्वयंसेवी समूहों को आह्वान कर गली, मोहल्लों को जिला अनुसार कैसे जोन के अनुसार बांटना था। अपनी ओर से स्वास्थ्य सेवाओं में क्या तैयारी करनी है, फिर लॉकडाउन लगाते, तो इस आपदा से हम काफी हद तक बच सकते थे।

लेकिन यहाँ तो बचाना सबसे पहले इलीट वर्ग को था। मात्र 600 मामलों में लॉकडाउन, वो भी दुनिया की सबसे बड़ी आबादी के लिए बिना कोई इंतजाम किये 21 दिन का लॉकडाउन? सारी कड़ी ही तोड़ डाली।

अब लॉकडाउन में ही छूट, और रेड जोन, फिर काम, फिर कड़ाई। मतलब न जीने देना है और न मरने ही देना है। या तो सरकार के पास कोई समझ ही नहीं है, या वह इसे अब लाखों लोगों को आधे पेट रख अब कह रही है, आ कोरोना आ बजाय कि गो कोरोना गो।

मतलब मन्त्र तो मारे गए गो गो कोरोना के, लेकिन मूर्खता में आमंत्रित कर दिया, और अब धान तो हर तरफ छींट दिया जा रहा है।

यकीं नहीं तो पूछ लीजिये किसी भी गरीब राज्य से, सिवाय केरल के। जिसकी स्वास्थ्य मंत्री अगर जनवरी से ही सावधान न रहतीं, और अपने राज्य के मुख्यमंत्री सहित प्रदेश को संवेदनशील नहीं बनातीं तो इतने शानदार परिणाम वहाँ से नहीं मिलते।

बिहार-यूपी में यह एक दो महीने बाद जो बढ़ना है, उसे किसी ताकत से लाठी से, या धमकी से नहीं रोक सकते। आज अकेले मुंबई शहर वुहान और न्यूयॉर्क को टक्कर देने जा रहा है। हम 20 लाख करोड़ में अपने लिए कचरा ढूँढने में व्यस्त हैं। यह त्रासदी है। जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं। और जो बरसते हैं, वे गरजते नहीं।

50 दिन के लॉकडाउन से हमें 600 पॉजिटिव केस के बदले में 70 हजार का सिला मिला है। अब नौकरी, आने जाने में ढील, दुनिया भर से लोगों को देश में लाने की देशभक्ति की मुहिम और देश के अंदर लाखों लोगों को पहले लॉक करने और अब भूखे प्यासे, संक्रमित लोगों को ग्रामीण, कस्बों में भेजने की समझदारी? यह एक फेल राज्य की मानसिकता के साथ लाखों करोड़ के बजट का हिसाब किताब बनाने की कवायद, जिसे अभी जनता से ही वसूल कर फिर कॉर्पोरेट और विदेशी पूंजी के लिए मेक इन इंडिया टाइप शोशेबाजी में खर्च करने से अधिक कुछ नहीं है।

यूपी में कुछ हजार और बिहार में अभी आंकड़ा 1000 को पार नहीं कर सका है। लेकिन दिल्ली जैसे राष्ट्रीय राजधानी में कोरोना मरीजों का इलाज का स्तर बेहद असंतोषजनक है। एक रिटायर्ड सज्जन के बारे में जानता हूँ, जो पिछले 4 दिनों से LNJP अस्पताल में भर्ती हैं। उनकी उम्र 85 वर्ष है, और उन्हें भी अवश्य गुमान रहा होगा कि वे दिल्ली में अच्छी पैठ रखते हैं। लेकिन कल तक कोई डॉक्टर देखने तक नहीं आया। अस्पताल के 9वें माले पर हैं, और पंखा तक नहीं है।

मैंने खुद दिल्ली सरकार को और मुख्यमंत्री को पचासों ट्वीट किये, कई लोगों को टैग भी किया। लेकिन कोई फायदा नहीं। सब अपनी रौ में बहे जा रहे हैं। वैसे भी 85 वर्षीय व्यक्ति के शरीर में और भी कई रोग हैं, इसलिए उम्मीद वैसे भी नहीं कर रहे होंगे डॉक्टर और शायद नौजवानों को बचाने में लगे होंगे, या शायद ज्यादा VIP को? पता नहीं। लेकिन कम से कम यूरोप के डॉक्टरों की तरह ईमानदारी तो दिखानी चाहिए। इटली में कहा भी गया था कि हम नई पीढ़ी को पहले बचाने को लेकर प्राथमिकता देंगे।

दिल्ली, मुंबई की तुलना अब आप यूपी और बिहार से करेंगे तो मुझे ज़्यादा समझाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ये दो राज्य खासतौर पर इसलिए, क्योंकि यहाँ आबादी और गरीबी का घनत्व बाकी के प्रदेशों से काफी अधिक है। आंकड़े भी यहाँ से भयानक निकलेंगे, और डंडे के जोर से कोरोना को कोई फर्क नहीं पड़ता। बाकी छोटे और गरीब राज्य पहले से सहमे हैं।

शहर आज भी सस्ती सब्जी इसलिए खा रहा है, क्योंकि जो मजबूर किसान हैं, वे औने पौने दामों में बेच रहे हैं, और शहरों में सभी गरीब आजकल सब्जी विक्रेता बन चुके हैं। बाकी आने वाले सीजन में न किसानों के पास बीज है, न खाद और न उसे खरीदने के पैसे। समय बीत रहा है, हम अच्छे मनमोहक भाषण के इंतजार में घर में लड़ झगड़ रहे हैं।

(रविंद्र सिंह पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

रविंद्र पटवाल
Published by
रविंद्र पटवाल