शर्तिया इलाज के बेलगाम झूठे विज्ञापनों का फैलता मायाजाल

अपने औषधीय उत्पादों के अतिशयोक्तिपूर्ण प्रचार को लेकर जादुई उपचार के मामले में बाबा रामदेव की पतंजलि की आयुर्वेद फार्मेसी और उसके प्रमुख आचार्य बालकृष्ण को सुप्रीमकोर्ट के अवमानना नोटिस ने एक बार फिर केन्द्र एवं राज्य सरकारों की ऐसे भ्रामक प्रचार को रोकने में लाचारी को उजागर कर दिया।

दरअसल सवाल केवल एक पतंजलि का नहीं है। एक से अनेक नियमों के बावजूद शर्तिया और जादुई इलाज के विज्ञापन अखबारों, पत्रिकाओं और अन्य मीडिया में भरे पड़े रहते हैं। जिन बीमारियों या शारीरिक कमियों के विज्ञापनों पर पूर्ण प्रतिबंध है, उनके विज्ञापन अपेक्षतया अधिक नजर आते हैं। जबकि इन विज्ञापनों को रोकने की जितनी जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है उतनी ही केन्द्र की एंजेंसियों की भी है।

भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) ने मार्च 2016 में कहा है कि पतंजलि के दावे उपभोक्ताओं को गुमराह कर रहे हैं। सीएनबीसी आवाज की एक खबर के मुताबिक एएससीआई की मार्च 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक 90 ऐसे विज्ञापन हैं जिन्हें मानकों का उल्लंघन करता पाया गया है। इसमें सबसे अधिक विज्ञापन पतंजलि के ही हैं। पतंजलि के केश कांति, कच्ची घानी सरसों का तेल, हर्बल वॉशिंग पाउडर और टिकिया तथा बर्तन धोने की टिकिया के विज्ञापनों पर काउंसिल ने आपत्ति जताई गयी थी और ये विज्ञापन वापस लेने को कहा था।

एएससीआई ने पतंजलि के कई विज्ञापनों को गलत बताते हुए कहा था कि पतंजलि बिना आधार के दूसरे ब्रांड को गलत बताता है। पतंजलि के दावे उपभोक्ताओं को गुमराह कर रहे हैं। काउंसिल ने जिन अन्य कंपनियों के विज्ञापनों पर आपत्ति जताई है उनमें कैस्ट्रॉल, कल्याण ज्वेलर्स, आईटीसी, जॉनसन एंड जॉनसन आदि शामिल हैं।

माकपा की वरिष्ठ नेत्री बृन्दा करात ने 2005 में रामदेव की औषधियों में मानव हड्डियों का चूर्ण मिला होने का अरोप लगाते हुये दो सैम्पल जांच के लिये केन्द्रीय आयुष मंत्रालय को सौंपे थे। जनता दल यूनाइटेड के सांसद के.सी. त्यागी ने भी 23 अप्रैल 2015 को राज्यसभा में रामदेव की फार्मेसी की ‘पुत्र जीवक बीज’ नाम की औषधि का मामला उठाते हुये आरोप लगाया था शर्तिया बेटा होने के नाम पर यह दवा बेच कर गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम (पीसीपीएनडीटी) का खुला उल्लंघन कर रही है।

मामला संसद में उठने पर मोदी सरकार ने जांच के लिये मामला उत्तराखण्ड सरकार को भेज दिया था। उस समय राज्य में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने जांच के लिये एक समिति गठित करने के साथ ही महानिदेशक स्वास्थ्य को भी आरोपों की जांच सौंपी। इस जांच में दिव्य फार्मेसी द्वारा प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम का उल्लंघन पाया गया। चूंकि केन्द्र से जांच के निर्देश आये थे, इसलिये जांच रिपोर्ट केन्द्र को ही भेजी गयी जिस पर आज तक कार्यवाही नहीं हुयी।

इससे पहले 16 मई 2015 को कराई गयी जांच में भी लाइसेंस की शर्तों का उल्लंघन पाया गया था। बाबा के सहयोगी बालकृष्ण ने भी एक बार ऐसा ही दावा नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व से लक्ष्मण की जान बचाने वाली संजीवनी बूटी को ढूंड निकालने का किया था। इस दावे की पुष्टि तो नहीं हो पायी मगर पासपोर्ट के लिये फर्जी शैक्षिक प्रमाणपत्र देने के मामले में गिरफ्तार 10 जुलाई 2012 को अवश्य हुये। यही नहीं विजय बहुगुणा सरकार ने 11 अक्टूबर 2013 को रामदेव के गुरु स्वामी शंकरदेव की जुलाइ 2007 में रहस्यमय गुमशुदगी की जांच की संस्तुति भी सीबीआइ से कर दी थी। इधर 26 मई 2014 को केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार की स्थापना के साथ ही सीबीआइ भी रामदेव के प्रति नरम पड़ती गयी।

केन्द्र में नयी सरकार बनने के 4 महीने बाद ही सीबीआइ ने शंकरदेव गुमशुदगी मामले में देहरादून की विशेष अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दे दी। बालकृष्ण का फर्जी पासपोर्ट मामला भी रफादफा हो गया। बाबा ने 23 जून 2021 को पतंजलि में आयोजित सार्वजनिक समारोह में विश्व में सबसे पहले कोविड-19 की दवा बनाने की घोषणा और लांचिंग कर दी थी। वह वीडियो फुटेज भी अदालत गया जिसमें रामदेव ने इस नयी दवा से 3 से लेकर 7 दिन के अंदर कोविड मरीज को बीमारी से शत-प्रतिशत मुक्त करने का दावा किया था। जबकि उत्तराखण्ड के तत्कालीन आयुष मंत्री डॉ हरक सिंह ने स्पष्टीकरण दिया था कि उक्त फर्मेसी को कोविड की दवा बनाने का नहीं बल्कि केवल इम्यूनिटी बूस्ट करने वाली औषधि का लाइसेंस दिया गया था।

औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 और उसके तहत नियमों में आयुष सहित दवाओं और औषधीय पदार्थों के भ्रामक विज्ञापनों और अतिरंजित दावों पर रोक लगाने के प्रावधान शामिल हैं। औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और नियम 1945 और औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के अनुसार संबंधित राज्य सरकार के पास उक्त अधिनियम और नियमों के तहत प्रावधानों को लागू करने की शक्तियां हैं। औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 170, दवाओं के गलत लेबलिंग और झूठे विज्ञापन के लिए सजा से संबंधित है।

धारा निर्दिष्ट करती है कि यदि कोई व्यक्ति किसी दवा पर लेबल लगाता है या उसे इस तरह से पैकेज करता है जो गलत या भ्रामक है या धोखा देने या अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने की संभावना है, तो उन्हें तीन साल तक की कैद की सजा या जुर्माना हो सकता है। सजा की गंभीरता अपराध की प्रकृति और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर भिन्न हो सकती है।

इन नियमों के तहत किसी भी परिसर में प्रवेश करने, तलाशी लेने या कथित भ्रामक या अनुचित विज्ञापनों से संबंधित किसी भी रिकॉर्ड की जांच करने या जब्त करने और डिफॉल्ट के मामलों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति के लिए राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश जारी किए जाते हैं। इन तमाम नियमों के बावजूद अखबारों, इलैक्ट्रानिक मीडिया और अब सोशियल मीडिया पर चमत्कारी दवाओं के विज्ञापन भरे पड़े रहते हैं।

सवाल केवल बाबा रामदेव की पतंजलि फार्मेसी का नहीं है। औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 की धारा 3 के अन्तर्गत जिन रोगों और विकारों के उपचार के लिए कुछ दवाओं के विज्ञापन पर प्रतिबंध है उन्हीं के विज्ञापन अखबारों या मीडिया में सबसे अधिक नजर आते हैं। इस धारा के तहत महिलाओं में गर्भपात या महिलाओं में गर्भधारण की रोकथाम, यौन सुख के लिए किसी व्यक्ति की क्षमता का संरक्षण या वृद्धि या महिलाओं के मासिक धर्म संबंधी विकारों का उपचार या अनुसूची के निदान, इलाज, शमन, उपचार या रोकथाम में इंगित कोई भी बीमारी के विज्ञापन पर प्रतिबंध है। इस प्रतिबंध की सच्चाई जानना हो तो किसी भी दिन का अखबार खोल कर उसका विज्ञापन या क्लासिफाइड वाला पन्ना देखा जा सकता है।

औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 (डीएमआरए.1954) की धारा 4 उन भ्रामक दवा विज्ञापनों पर भी रोक लगाती है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दवा की वास्तविक प्रकृति या मिश्रण के बारे में सही जनकारी नहीं देते हों या दवा का कपटपूर्ण दावा करते हों। इस बारे में भी नुस्खे की नकल के डर से निर्माता अक्सर सही जानकारी को गोलमोल कर देते हैं। डीएमआरए की धारा 5 उन बीमारियों के इलाज के लिए जादुई इलाज के विज्ञापन पर रोक लगाती है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धारा 3 में सूचीबद्ध किसी भी उद्देश्य के लिए प्रभावकारी होने का दावा करते हैं।

आयुर्वेद की जन्मस्थली भारत ही है और अपने औषधीय गुणों के कारण ऐलोपैथी की जन्मस्थली के लोग भी आयुर्वेद की ओर काफी आकर्षित हो रहे हैं या यूं कहें कि वैश्विक स्तर पर आयुर्वेद के प्रति विश्वास बढ़ रहा है। लेकिन दुर्भाग्य से जादुयी उपचार के सर्वाधिक भ्रामक विज्ञापन आज हमें आयुर्वेद और देशी उपचार की विधियों के नजर आते हैं। ये शिकायतें गाहे बगाहे देश की संसद तक पहुंचती रहती हैं।

लोक सभा में 17 दिसम्बर 2021 को आयुष मंत्री सर्वदानन्द सोनवाल द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार अगस्त 2018 से जून 2021 की अवधि के दौरान, फार्माकोविजिलेंस केंद्रों द्वारा आयुष दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों के 14876 मामले सामने आए हैं, जिन्हें निषेधात्मक और नियामक कार्रवाई करने के लिए संबंधित राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों, मीडिया चैनलों और निर्माताओं को भेज दिया गया था।

आयुष मंत्रालय की केंद्रीय योजना के तहत देश के विभिन्न हिस्सों में स्थापित आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी दवाओं के फार्माकोविजिलेंस केंद्रों को भ्रामक विज्ञापनों की निगरानी करने और संबंधित राज्य अधिकारियों को रिपोर्ट करने का काम सौंपा गया है। इन फार्माकोविजिलेंस केंद्रों ने अगस्त 2018 से मार्च 2019 तक आयुष के भ्रामक विज्ञापनों के 1127 मामले दर्ज किए गये।

(जयसिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं और देहरादून में रहते हैं।)

जयसिंह रावत
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