लद्दाख के लोग आज देश में खुद को सबसे अधिक ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं

मुंबई और साउथ की फिल्मों के मशहूर कलाकार प्रकाश राज का आज जन्मदिन है, लेकिन आज के दिन उन्होंने लद्दाख के लोगों और विश्व-विख्यात पर्यावरण-प्रेमी सोनम वांग्चुक के साथ अपनी एकजुटता को प्रदर्शित करने में गुजारा। पिछले 21 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे सोनम वांग्चुक के अनशन का पहला चरण आज पूरा होने जा रहा है। 

एक्टर प्रकश राज ने अनशन-स्थल से एक वीडियो अपने सोशल मीडिया अकाउंट X से जारी करते हुए लिखा है कि, “आज मेरा जन्मदिन है। और मैं इसे सोनम वांग्चुक और लद्दाख की जनता के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर करते हुए मना रहा हूं, जो हमारी खाति.. हमारे देश.. हमारे पर्यावरण और हमारे भविष्य की खातिर संघर्षरत हैं। हमें उनके साथ खड़ा होना चाहिए।”  

गुलाम भारत की आजादी के लिए महात्मा गांधी ने कई बार अनशन किये, लेकिन उनके द्वारा सबसे लंबे समय तक किये गये अनशन की अवधि 21 दिन थी। इसी को लक्ष्य बनाकर सोनम वांग्चुक ने भी अपने लिए 21 दिनों का लक्ष्य रखा था। उन्हें शायद उम्मीद रही होगी कि जब गुलाम भारत में अंग्रेज 21 दिनों के भीतर बापू के अनशन पर झुक गये तो अब तो अपने देश में राष्ट्रवादी सरकार है। 

इन 21 दिनों में सोनम वांग्चुक का स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। 4 मार्च से जारी इस अनशन को खुले असमान के नीचे -10 से लेकर -15 डिग्री सेल्सियस पर जारी रखना दरअसल अपनी मौत को दावत देने जैसा था। इस दौरान लद्दाख की ओर से प्रतिनिधिमंडल दिल्ली जाकर केंद्र सरकार से वार्ता तक कर चुका, जो पूरी तरह से बेनतीजा निकली। इस बीच रोजना हजारों की संख्या में लेह, लद्दाख और कारगिल क्षेत्र से आम लोगों का अनशन-स्थल पर क्रमिक धरना-प्रदर्शन जारी रहा। सैकड़ों की संख्या में स्थानीय लोगों ने सोनम वांग्चुक के साथ अपनी एकजुटता को जाहिर करते हुए एक दिवसीय अनशन भी किया। 

लेकिन सुदूर हिमालयी क्षेत्र में चल रहे इस विरोध प्रदर्शन की ओर केंद्र सरकार ने कोई ध्यान दिया हो, इसका कोई लक्षण इन 21 दिनों के दौरान देखने को नहीं मिला है। पिछले कुछ दिनों से भारतीय मीडिया का भी ध्यान इस ओर गया है, हालांकि किसी ने भी इसे अपनी प्रमुख खबर बनाना जरुरी नहीं समझा है। हालांकि देश से अधिक दुनिया के अन्य समाचार पत्रों ने सोनम वांग्चुक के अनशन, उनके पर्यावरणीय सरोकारों को अपनी खबर बनाया है। 

भाजपा अपने चुनावी वायदे से मुकर चुकी है 

देश की प्रमुख विपक्षी दल, कांग्रेस ने भी लद्दाख में जारी असंतोष को लेकर मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया है। पिछले दिनों कांग्रेस से वरिष्ठ नेता, जयराम रमेश ने एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा था, “प्रधानमंत्री मोदी के शासन के दौरान चीनी सेना के द्वारा देश की सीमा का अतिक्रमण किया गया। इसके चलते लद्दाख के उत्तर में चांगथांग मैदानों में हमने अपने प्रमुख चारागाह खो दिए हैं। आज हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा संकट में है, लेकिन इसके साथ ही इसके कारण लद्दाख के चरवाहा समुदाय के लिए एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक संकट भी उत्पन्न हो गया है। इसके बावजूद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून, 2020 को चीन पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में चीन को यह कहते हुए क्लीन चिट दे दी थी कि भारतीय क्षेत्र के भीतर एक भी चीनी सैनिक नहीं घुसा है।”

जयराम रमेश ने आगे कहा, “ऐसे में दो संभावनाएं बनी हुई हैं: या तो लद्दाख के लोग झूठ बोल रहे थे जब उन्होंने यह दावा किया कि उनकी भूमि पर चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के द्वारा अतिक्रमण किया गया है, या फिर भारत के प्रधान मंत्री देश से झूठ बोल रहे थे जब उन्होंने चीन को क्लीन चिट दे दी थी।”

इसके साथ ही जयराम रमेश ने सोशल मीडिया X पर केंद्र सरकार पर कुछ सवाल भी खड़े किये थे। इसमें कांग्रेस नेता का कहना था कि लद्दाख के लोग इस हिमालयी क्षेत्र के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं, जिसमें लद्दाख को राज्य का दर्जा सहित संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग भी शामिल है।

जयराम लिखते हैं, “संयोग से, भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव एवं 2020 के लद्दाख हिल काउंसिल चुनावों के दौरान अपने घोषणापत्र में लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा किया था। क्या प्रधानमंत्री अपनी “मोदी की गारंटी” को बरकरार रखने का कोई इरादा रखते हैं? अगर नहीं, तो उन्होंने यह वादा ही क्यों किया? उनके पीएम पद-भार ग्रहण करने के दस वर्ष बाद भी यह मुद्दा अभी तक लंबित क्यों है?” जाहिर सी बात है, भाजपा के लिए 2024 में लद्दाख संसदीय सीट पूरी तरह से छिटक चुकी है। 

दिल्ली छठी अनुसूची के लिए साफ मना कर चुकी है 

लेह से लद्दाख हिल काउंसिल के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता त्सेरिंग नामग्याल से जब फ्रंटलाइन पत्रिका के संवावदाता ने इन मुद्दों पर जानना चाहा तो उनका साफ़ कहना था कि, केंद्र सरकार छठी अनुसूची में शामिल करने के अपने वायदे से साफ़ मुकर रही है, लोग इस बार अपनी वोट की चोट से इसका जवाब देने के लिए तैयार हैं। 

उनका कहना था कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के द्वारा जब हमें वार्ता के लिए आमंत्रित किया गया था, तो हम बेहद आशान्वित थे। लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के सदस्यों के बीच उम्मीद जगी कि नई दिल्ली हमारी मांगों पर सकारात्मक विचार कर उन्हें हल करने की दिशा में ठोस कदम उठाएगी। इसमें लद्दाख के लिए छठी अनुसूची की गारंटी सबसे प्रमुख मांग थी, क्योंकि यहां की 97 प्रतिशत आबादी जनजाति है। लेकिन वार्ता का माहौल हमने शत्रुतापूर्ण पाया, गृह मंत्रालय की उच्चाधिकार प्राप्त समिति के सदस्यों ने कई तल्ख टिप्पणियाँ कीं। उनके हिसाब से लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया है, जिसके लिए लद्दाख के लोगों ने लंबे अर्से से लड़ाई लड़ी थी।

हाई लेवल कमेटी के साथ हमारी वार्ता पूरी तरह से विफल होने पर गृह मंत्री अमित शाह के साथ हमारी बात कराई गई। अपने इंटरव्यू में त्सेरिंग नामग्याल ने जो बताया वह हैरान करने वाला है। उनके अनुसार, “गृह मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक उन्हें छठी अनुसूची की मांग पर विचार करने का सुझाव देंगे, तो भी वे ऐसा नहीं करेंगे। यह नई दिल्ली की ओर से एक तरह का विश्वासघात है, जिसने पहले यह आभास कराया था कि वह आपसी सहमति के आधार पर सर्वसम्मत समाधान वाले मॉडल को तैयार करने के लिए तैयार है। हमारे नेताओं ने माननीय गृह मंत्री को 2019 के आम चुनाव और 2020 के लेह हिल काउंसिल चुनाव के दौरान भाजपा के घोषणापत्र में किए गए छठी अनुसूची के वादों तक की याद दिलाई।”

आज लेह, लद्दाख और कारगिल के लोग खुद को पूरी तरह से ठगा महसूस कर रहे हैं। उनके हिसाब से 2018 में पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर की भाजपा-पीडीपी सरकार के विघटन के बाद से ही लद्दाख के लोगों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार द्वारा लद्दाख को एक अलग केंद्रशासित प्रदेश में तब्दील कर दिया गया, जिसकी कमान एलजी जैसे अनिर्वाचित नौकरशाह के हाथ में है। इस प्रकार लद्दाख की आम अवाम के पास अब किसी भी प्रकार के स्वशासन की संभावना ही खत्म हो चुकी है। 

शाम 7 बजे तक सोनम वांग्चुक की ओर से कोई संदेश नहीं आया है। कल 27 मार्च 2023 को प्रस्तावित चीन की सीमा तक 10,000 लोगों के मार्च को लेकर कोई घोषणा नहीं आई है। सोनम बिला नागा हर रोज अपने स्वास्थ्य और मौसम के बारे में आवश्यक अपडेट देने के साथ-साथ भारत सरकार के प्रति अपने विश्वास को दोहराना नहीं भूलते हैं। उन्हें पूरी उम्मीद रही होगी कि 21 दिन बीतने से पहले ही केंद्र की मोदी सरकार अवश्य लद्दाख के लोगों की भावनाओं का सम्मान करेगी। शायद उन्हें लगा हो कि उनकी अंतर्राष्ट्रीय छवि, शांतिपूर्ण अनशन और सत्याग्रह की ताकत को ऐन 2024 आम चुनाव के दौरान अनसुना करना असंभव होगा। सोनम वांग्चुक का स्वास्थ्य उन्हें कल के लिए प्रस्तावित भारत-चीन बॉर्डर तक मार्च करने की इजाजत नहीं देगा। ऐसे में क्या वे 21 दिनों के आमरण अनशन के अपने अगले चरण की ओर बढ़ने का मन बना रहे हैं? 

देश के तमाम हिस्सों से पर्यावरण-प्रेमी, ब्लॉगर, नागरिक संगठन और सिविल सोसाइटी ने समर्थन में आवाज उठानी शुरू कर दी है। हिंदी ब्लॉकबस्टर ‘3 इडियट्स’ फिल्म में उन्हें ही आधार बनाकर स्टार कलाकर आमिरखान का किरदार तैयार किया गया था। इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा इतिहास में अपने झंडे गाड़ दिए थे। लेकिन सामजिक सरोकारों में बढ़चढ़कर भूमिका निभाने वाले आमिरखान तक ने उनके समर्थन में अभी तक एक शब्द न लिखा और न ही बोला है। सोशल मीडिया पर अब आमिरखान को भी टैग कर सवाल किये जा रहे हैं, लेकिन उन्हें समझना होगा कि आमिर के मुहं खोलते ही देश में धर्म के नाम पर नफरत का बाजार खड़ा कर चुकी ट्रोल आर्मी हरकत में आ जायेगी, और इसके साथ ही सोनम वांग्चुक और लद्दाख के लोगों की लड़ाई पीछे छूट जायेगी। कल का दिन इस आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण होने जा रहा है। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

रविंद्र पटवाल
Published by
रविंद्र पटवाल