योगी के ‘भयमुक्त समाज’ में बेखौफ हुए बलात्कारी! महिला उत्पीड़न का टूटा रिकॉर्ड

बेखौफ बलात्कारियों ने योगी सरकार की ठोक दो की राजनीति को धता बताते हुए उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में नाबालिग लड़कियों को अपना शिकार बनाया है। भयमुक्त अपराधियों ने लखीमपुर में 15 दिन के अंदर एक और बच्ची को शिकार बना डाला। पूरे प्रदेश से लगातार यौन हिंसा की रिपोर्ट आ रही हैं- हापुड़, बुलंदशहर, जालौन, जौनपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, गोरखपुर और भदोही आदि।

इन सभी घटनाओं में अपराधियों ने न सिर्फ बलात्कार किया है, बल्कि क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं। लखीमपुर की पीड़िता की जीभ काट दी तथा आंखें भी निकाल लीं। गोरखपुर की पीड़िता को सिगरेट से जलाया गया। भदोही में तो पीड़िता के चेहरे को तेज़ाब से इस कदर जलाया गया था कि उसको पहचानना ही मुश्किल हो गया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि मौत डूबने से हुई है, सवाल यह उठता है कि उसका चेहरा तेजाब से कैसे जला।

वैसे ये चंद घटनाएं हैं जो किसी तरह से अखबारों की सुर्खियां बनीं, वरना ऐसी न जाने कितनी घटनाएं होती हैं, जिसके बारे में हमें पता भी नहीं चलता है क्योंकि भारतीय समाज में इज्जत चली जाने के डर से लोग जहर का घूंट पी कर रह जाते हैं, लेकिन ऐसी घटनाओं को बाहर नहीं आने देते।

इस सबके लिए कहीं न कहीं वे लोग भी जिम्मेदार हैं जो लड़कियों के पहनावे पर सवाल करते हैं। उनके बाहर निकलने पर सवाल करते हैं। उनके हंसने-बोलने पर सवाल करते हैं। उनकी दोस्ती-मित्रता पर सवाल करते हैं। कुल मिलाकर बलात्कार के लिए उन्हें ही जिम्मेदार साबित कर देते हैं और असली बलात्कारियों, बलात्कार की संस्कृति को संरक्षण देने वाली विचारधारा और राजनीतिक ताकतों को बचा ले जाते हैं।

बलात्कार का कारण लड़कियों/महिलाओं के चाल चलन में ढूंढने वालों के पास क्या जवाब है जब छह साल की बच्ची से बलात्कार होता है। हापुड़ की घटना इसका ताजा उदाहरण है। क्या ऐसे अपराधियों का सामाजिक बहिष्कार नहीं होना चाहिए?

दरअसल बलात्कार की घटनाओं में आई इस बाढ़ के पीछे बलात्कारियों को सत्ता द्वारा मिलने वाला संरक्षण तथा बलात्कार की संस्कृति को दी जा रही वैधता जिम्मदार है।

हम देखते हैं कि आजाद भारत में पहली बार किसी बलात्कारी को बचाने के लिए भारत के झंडे के साथ रैली निकाली गई। उन्नाव की एक महिला जब न्याय पाने में असफल हुई तो उसने मुख्यमंत्री आफिस के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की थी, जिसमें उसको जलने से तो बचा लिया गया, लेकिन पीड़िता के बाप को गिरफ्तार करके थाने ले जाया गया और उन्हें पुलिस लॉकअप में पीट-पीट कर मार डाला गया था।

केस भाजपा विधायक के खिलाफ था, इसलिए न्याय मिलना काफी दूर की कौड़ी  था। पूरा महकमा अपराधी को बचाने में लगा हुआ था, इनको बचाने के लिए भी रैली निकाली गई, जिसका नारा था कि हमारा विधायक निर्दोष है। पूरा देश जब पीड़िता के साथ खड़ा हुआ तब जाकर केस दर्ज हुआ और अपराधी जेल गया।

इसी तरह अभी कुछ महीनों पहले की ही बात है, जब एक लॉ की छात्रा ने भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद के खिलाफ यौन शोषण का मुकदमा दर्ज कराया था। सुबूत के बतौर इस केस से जुड़ी 49 CD प्रशासन को दी थी, लेकिन इस केस में पीड़िता को ही जेल भेज दिया गया, साथ ही परिवार के लोगों पर दबाव बनाया गया कि केस वापस ले लो नहीं तो अंजाम अच्छा नहीं होगा, लेकिन परिवार पीछे नहीं हटा। कोर्ट और समाज के दबाव बनाने पर चिन्मयानंद जेल गए, लेकिन कुछ समय बाद ही बाहर आ गए।

आश्चर्य इस बात का नहीं है कि वे बाहर आ गए बल्कि इस बात का है कि लड़कियों को देवी बनाकर पूजने वालों ने उनका फूल मालाओं से स्वागत किया! खबर ये भी है कि योगी सरकार चिन्मयानंद केस को वापस लेने की तैयारी में है।

आशाराम, राम रहीम के प्रति इनके प्रेम से सभी वाकिफ़ हैं। जून 2019 को रामरहीम को बेल देने की तैयारी थी, लेकिन जनमत के दबाव में सरकार पीछे हट गई।

भाजपा सांसद और फ़िल्म कलाकार किरण खेर  तो फरमा चुकी हैं कि भारत में बलात्कार संस्कृति रही है। ये उदाहरण है कि किस तरह से देश और खासतौर पर उत्तर प्रदेश में बलात्कार की संस्कृति बनाई जा रही है और उसे वैधता दी जा रही है। इसी का परिणाम है कि आज उत्तर प्रदेश में न सिर्फ महिलाओं बल्कि छोटी-छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, जिसमें हापुड़, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, भदोही समेत मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर की घटना अभी हमारे सामने है।

हापुड़ में छह साल की बच्ची के साथ भयमुक्त अपराधी ने इतनी बर्बरता की कि उसके तीन ऑपरेशन हो चुके हैं और बच्ची जिंदगी और मौत से जूझ रही है। इन सारी घटनाओं में पुलिस प्रशासन का रवैया भी बहुत खराब रहा है, गोरखपुर पीड़िता,  जिसको अपराधियों ने सिगरेट से जलाया भी था, उसे गोरखपुर पुलिस ने 24 घंटे बाद मेडिकल के लिए भेजा। भदोही की घटना में अपराधियों ने क्रूरता की सारी हद पार कर पीड़िता के चहेरे को तेजाब से इस क़दर जला दिया कि उसकी पहचान कर पाना ही मुश्किल हो गया। परिवार वालों ने कपड़े से उसकी शिनाख्त की। इसके बाद भी इस घटना की छानबीन करने के बजाय यह कह कर केस को रफादफा कर दिया गया कि उसकी मौत डूबने से हुई है।

गाजियाबाद में तो एक पत्रकार को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, क्योंकि उन्होंने मनचलों के खिलाफ FIR करने की जुर्रत की थी। मनचले उनकी भांजी को परेशान कर रहे थे। एक बलात्कारी के हौसले तो इतने बुलंद थे कि उसने जेल से छूटने के बाद पीड़िता और उसकी मां को ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला।

उत्तर प्रदेश महिला विरोधी अपराधों का गढ़ बनता जा रहा है! काश हम भी गाय होते!

  • मीना सिंह

(लेखिका ऐपवा की संयोजक हैं।)

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