ग्राउंड जीरो से सैयदराजा: मृतक सैनिक की बुजुर्ग पत्नी का नहीं बना राशन कार्ड, लॉक-डॉउन में दाने-दाने को मोहताज रहीं लाखी

सैयदराजा (वाराणसी)। “का समय आ गईल। पहिले वाले परधान से बहुत कहली, गोड़ धइली, मिन्नत कइली लेकिन हमार राशन कार्ड नाहीं बनउलें। कहलन कि तोहके पेंशन मिलेला, एसे तोहार राशन कार्ड ना बनी।”

गवरुआं गांव निवासी लाखी और उनका आवास।

यह कहना था कवरुआं गांव निवासी पैंसठ वर्षीय बुजुर्ग लाखी का। वह बीते तीन मार्च की सुबह अपने खस्ताहाल आवास के सामने बैठकर धूप ले रही थीं। कवरुआं चंदौली जिले के बरहनी विकास खंड का गांव है जो तुलसी आश्रम रेलवे स्टेशन से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर है। जिला मुख्यालय से बर्थरा नहर के रास्ते इसकी दूरी बीस किलोमीटर के करीब है लेकिन इस रास्ते सार्वजनिक वाहन से वहां पहुंचने की कोई सुविधा नहीं है।

भाजपा की योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर का आवास यहां से महज ग्यारह किलोमीटर दूर है लेकिन पैंसठ वर्षीय बुजुर्ग महिला को राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा अधिनियम से बाहर कर दिया गया है। दिन-रात राष्ट्रवाद और देशभक्ति का ढिंढोरा पीट रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में शामिल केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय भी अपने संसदीय क्षेत्र की इस बुजुर्ग महिला की सुध अभी तक नहीं ले पाए हैं जबकि वह भारतीय सेना के मृतक जवान की पत्नी हैं।

पति हरिहर राम की फोटो दिखाकर अपना दर्द सुनातीं लाखी।

लाखी के पति हरिहर राम भारतीय सेना में सिपाही थे। पश्चिमी स्तर का उनका मेडल इसका बखूबी तस्दीक करता है। इस पर उनका नाम और नंबर लिखा है। इसके मुताबिक वह भारतीय सेना के आपूर्ति विभाग (सप्लाई कोर) में चालक थे। उन्होंने लड़ाई में भी हिस्सा लिया था। इसके लिए उन्हें मेडल भी मिला है। उन्हें ‘संग्राम मेडल’ से सम्मानित भी किया गया है।

मृतक हरिहर राम को मिले भारतीय सेना के मेडल।

सेवानिवृत्ति के बाद हरिहर राम गांव में ही पत्नी और बच्चों के साथ रहते थे। ग्राम प्रधानों ने उनका भी राशन कार्ड नहीं बनाया था जबकि उन्हें शुरुआत में हजार रुपये से भी कम पेंशन मिलती थी। करीब पांच साल पहले उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के बाद जानकारी के अभाव में लाखी देवी ने उनके बैंक खाता से पेंशन की धनराशि निकाल ली थी। हरिहर राम की मौत की जानकारी होने पर सरकार ने पेंशन बंद कर दी। उसे चालू कराने के लिए लाखी देवी को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। करीब साढ़े चार सालों तक उन्हें पेंशन नहीं मिली। उन्हें पैसा भरना पड़ा। वह बेबस एवं दबी आवाज में कहती हैं, “जब सरकार के पता चलल कि उनकर मौत हो गइल त, उ पेंशन बंद कर देलस। काफी दौउड़े क भयल। पइसा जमा करे के भयल। तब जाके तीन महीने से दस हजार क पेंशन मिलत बा।“

लाखी के आवास और उसमें रखा सामान।

अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल बिंद समुदाय से आने वाली लाखी रुंधे गले से बताती हैं, “हमार राशन कार्ड नाहीं बनल हउवै। राशन खरीद के खाई ला। चार साल से पेंशन भी नाहीं आवत रहल। लाक-डाउन हो गयल रहल। खाए के अनाज नाहीं रहल। लइका-पतोह और दमाद थोड़ा बहुत अनाज खाए के दहलन त काम चलल। उपर से बैंक क पइसा भरे क पड़ल। दमाद जब उ पइसा देहलन और दउड़लन त तीन महीना से पेंशन मिलत हव।”

लाखी पूर्व ग्राम प्रधान शिव शंकर पांडेय पर आरोप लगाती हैं कि उन्होंने बहुत मिन्नतें करने के बाद भी उनका राशन कार्ड नहीं बनाया। वह बताती हैं कि उन्हें आवास भी नहीं मिला है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत उन्हें एलपीजी गैस का कनेक्शन नहीं मिला है। वह मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी और उपली जलाकर खाना पकाती हैं। उनका हेल्थ कार्ड और कैंटीन कार्ड भी नहीं बना है।

लाखी के दो बेटे और चार लड़कियां हैं। चारों लड़कियों की शादी हो चुकी है। उनके दोनों बेटे शिव कुमार और रजिन्दर अपने परिवार के साथ अलग रहते हैं और मजदूरी कर जीवन-यापन करते हैं। लाखी के पास एक बीघा कृषि योग्य भूमि है जिस पर उनके दोनों बेटे बराबर हिस्सों में खेती करते हैं। इसके बावजूद वे उन्हें अनाज नहीं देते हैं।

कवरुआं तालाब

कवरुआं गांव में ही तालाब के भीटे पर सत्तर साल की बुजुर्ग अशरफी मड़ई लगाकर रहती हैं। उनके पति शिव दास लोगों के खेत में मजदूरी कर अपना और अशरफी का पेट भरते हैं। उन्हें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सरकारी राशन तो मिलता है लेकिन उन्हें अभी तक आवास नहीं मिला है। उन्हें प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी गैस का कनेक्शन भी नहीं मिला है। उनकी झोपड़ी के पास ही उनका शौचालय बना है। प्रधानमंत्री आयुष्मान योजना के तहत उनका हेल्थ कार्ड भी नहीं बना है। उन्हें वृद्धा पेंशन भी नहीं मिलती है। उनके पास एक बीघा कृषि योग्य भूमि है लेकिन लड़की की शादी में उन्होंने उसको साठ हजार रुपये में रेहन रख दिया है।

अशरफी और उनकी झोपड़ी।

बिन्द समुदाय से आने वाली अशरफी के दो बेटे रामायण और छोटक हैं। दोनों अलग रहते हैं और मजदूरी करते हैं। पचास वर्षीय रामायण ने अपना आवास बनवा लिया है लेकिन पैंतालिस वर्षीय छोटक अपनी मां की तरह छप्पर में ही अपने परिवार के साथ रहते हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी संतीर के अलावा सात बेटियां और एक बेटा है। उनकी बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। वह अपने ससुराल में ही रहती है। उससे छोटी नीतू उन्नीस साल की हो चुकी है। उसने नौवीं तक की पढ़ाई की है। अब उसकी शादी होने वाली है। अन्य बच्चे उनके साथ ही रहते हैं।

छोटक की झोपड़ी और उनका आवास।

छोटक बताते हैं कि पूर्व प्रधान गिरजा प्रसाद बिन्द पांच साल पहले तक प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों की सूची में उनका नाम होने की बात कहते रहे। बाद में पता चला कि उनकी पत्नी संतरी के नाम से आवास बन चुका है जबकि हम झोपड़ी में रह रहे हैं। उन्होंने फोन से इसकी शिकायत अधिकारियों से की थी। जांच करने के लिए अधिकारी भी आए। वीडियो रिकॉर्डिंग कर ले गए लेकिन आगे क्या कार्रवाई हुई, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है।

कवरुआं बिन्द बस्ती में हैंडपंप पर कपड़ा धो रही महिलाएं।

बिन्द बस्ती में गांव की सकरी गलियों के किनारे लगे हैंडपंप पर कुछ महिलाएं कपड़ा धो रही थीं। इनमें से एक लीलावती देवी ने बताया कि मिट्टी की दीवार के सहारे खपरैल का बना उनका कच्चा मकान गिर गया है लेकिन अभी तक उन्हें सरकार की किसी योजना के तहत आवास नहीं मिला है। वह क्षेत्रीय विधायक सुशील सिंह से भी गुहार लगा चुकी हैं लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

कवरुआं गांव निवासी लीलावती देवी का गिरा हुआ कच्चा मकान। साथ में खड़ी उनकी बहुएं।

वह अपना गिरा हुआ घर दिखाते हुए कहती हैं कि उन्हें लॉक-डाउन के दौरान केवल एलपीजी गैस भराने के लिए पंद्रह सौ रुपये मिले थे। इसके अलावा उन्हें कोई पैसा नहीं मिला था। वह बताती हैं कि वह और उनके पति किशोर बिन्द मजदूरी का काम करते हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत थोड़ा बहुत काम मिल जाता है लेकिन समय पर मजदूरी नहीं मिलती है। ग्राम पंचायत के कर्मचारी जॉब कार्ड पर काम को चढ़ाते ही नहीं हैं। इससे हमारे पास कोई सुबूत भी नहीं होता है। लीलावती को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सरकार से राशन मिलता है। वह बताती हैं कि बिजली विभाग ने कुछ महीनों पहले मीटर लगाया। मीटर लगाते ही बिजली का बिल अट्ठारह सौ आ गया। हम लोगों ने अभी तक बिजली का कोई बिल जमा नहीं किया है। लीलावती के पास ई-श्रम कार्ड और हेल्थ कार्ड दोनों है लेकिन वह अभी तक इसका कोई लाभ नहीं ले पाई हैं।

भृगुनाथ सपा उम्मीदवार मनोज सिंह ‘डबलू’ के समर्थकों से बात करते हुए।

लीलावती देवी के पांच बेटे हैं। बड़ा बेटा राजा ढोलन पैंतीस साल का है। उसकी शादी हो चुकी है और वह अपने परिवार के साथ जर्जर कच्चे मकान में अलग रहता है। उससे छोटे भृगुनाथ की भी शादी हो चुकी है। वह अपनी मां के साथ ही रहता है। वह स्नातक उपाधि धारक है लेकिन मजदूरी करने को मजबूर है। उनका तीसरे बेटे धर्मराज की भी शादी हो चुकी है और वह उनसे अलग रहता है। उनका चौथा बेटा चंदन सकलडीहा स्थित राजकीय महाविद्यालय में स्नातक प्रथम वर्ष का छात्र है जबकि उसका सबसे छोटा बेटा बिरजू नौंवी में पढ़ता है।

प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना और मुख्यमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिलने से नाराज सुनीता देवी ने बताया कि गांव में ऐसे बहुत से लोगों को आवास मिला है जिनके पास अच्छे-खासे पक्के मकान और कृषि योग्य भूमि है लेकिन हम गरीबों का कोई सुनने वाला नहीं है। बस्ती निवासी आशा, सुनीता, निर्मला, मंगीता और फुलगेनी देवी को आवास नहीं मिला है और ना ही उन्हें लॉक-डॉउन के दौरान सरकार की ओर से कोई आर्थिक सहायता मिली है।

क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ चुके नरेंद्र बिन्द ने बताया कि कवरुआं गांव में बिन्द समुदाय के 108 परिवार हैं। 15 घर चमार समुदाय के लोगों का है। 60 परिवार कुम्हार समुदाय का है। गांव में चार घर ब्राह्मण और तीन घर ठाकुर भी हैं। राजभर का एक घर है। गोंड़ जाति के 22 वोट हैं। इतना ही वोट लोहार जाति के लोगों का भी है।

कवरुआं गांव की हरिजन बस्ती की महिलाएं।

दलित बस्ती में जाने पर मिन्ता, बिन्दो, निर्मला और अनीता मिलीं। बिजली कनेक्शन और मीटर को लेकर उनकी भी समस्याएं लीलावती जैसी ही थीं। उन्होंने बिजली का बिल जमा करने से साफ मना कर दिया है। मिन्ता ने बताया कि लॉक-डॉउन के दौरान उन्हें आठ सौ रुपये मिले थे। अनीता और निर्मला ने बताया कि उनका कागज पर कनेक्शन हो चुका है लेकिन उन्हें अभी तक ना ही गैस चूल्हा मिला है और ना ही एलपीजी गैस का सिलेंडर। रिनू ने बताया कि उन्हें भी आवास नहीं मिला है।

नोनार (तुलसी आश्रम) निवासी लक्ष्मण प्रजापति

करीब तीन किलोमीटर दूर तुलसी आश्रम रेलवे स्टेशन के पास नोनार गांव की दलित बस्ती को जाने वाला रास्ता पानी और कीचड़ से डूबा मिला। उस रास्ते से दो पहिया वाहन से जाने पर कोई भी व्यक्ति कभी भी गिर सकता था। रास्ते के पास सड़क किनारे स्थित एक आवास में बैठे लक्ष्मण प्रजापति बताते हैं कि यह रास्ता आज से करीब पंद्रह साल पहले बना था। पिछले करीब दस सालों से इसी हालत में है। बरसात के दिनों में यहां घुटने तक पानी भर जाता है जिससे होकर लोगों को जाना पड़ता है। कुछ दूर पर एक गली में रिंकू और सोनू मिले। दोनों ने भी पानी निकासी को लेकर यही समस्या बताई।

नोनार गांव में दलित बस्ती को जाने वाला रास्ता।

तुलसी आश्रम से करीब 12 किलोमीटर दूर डिग्घी गांव की दलित बस्ती में पानी निकासी की ऐसी ही समस्या दिखी। बस्ती निवासी शिव दुलार का कहना था कि बरसात के दिनों में पूरी गली में पानी भर जाता है।

डिग्घी गांव की दलित बस्ती की नाली एवं रास्ता।

बस्ती निवासी राजकुमार और आरती का भी यही दर्द है। राजकुमार का कहना है कि अपनी मां से अलग रहते हैं लेकिन ग्राम प्रधान उनका अलग राशन कार्ड और जॉब कार्ड नहीं बना रहे हैं। इससे उन्हें सरकार की सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

(सैयदराजा से शिव दास प्रजापति की रिपोर्ट।)

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