हाय रे, देश तुम कब सुधरोगे!

आज़ादी के 74 साल बाद भी अंग्रेजों द्वारा डाली गई फूट की राजनीति का बीज हमारे भीतर अंखुआता -अंकुरित होता रहता है। खास कर भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच में यह फसल दोनों ही देशों में अपने-अपने स्तर पर लहलहा उठती है। हद है जिस तरह कल मोहम्मद शमी को उनके ही देश भारत में इस कदर ट्रोल किया गया कि धीरे-धीरे एक तिहाई सोशल मीडिया शमी को शत्रु देश का साथी समझ बैठी!! मानो उन्होंने भारत का होते हुए भी पाकिस्तान को जीत दिला दिया!! जैसे उनके खिलाड़ी खिताब के योग्य ही नहीं ! यह है बैर का बैरोमीटर जो अनजाने हुई चूक को भी जानबूझ कर तैयार किया गया, साबित करने में लग जाते हैं हम। उससे ज़्यादा अफसोस कि जनता भी इस बहकावे में आ जाती है। ऐसी घृणा को हवा देना क्या उचित है? जिस ‘शमी’ के अब तक खेले गए मैचों में कोई खामी नहीं थी,बस पाकिस्तान की जीत क्या हुई,शमी को नायक से खलनायक का बैज पकड़ा दिया गया।

यह तो रहा शमी अध्याय जिसकी जनता द्वारा बनाई गई “कालिमा कहानी” से कोई अछूता नहीं रहा। वास्तव में इस कहानी को अफसोस और हिकारत नाम के अध्यायों के सिवाय और कुछ नहीं कहा जाता सकता। दूसरी ओर रोहित शर्मा जैसे दिग्गज बैट्समैन के लिए, विराट कोहली से ‘एक पत्रकार महोदय’ द्वारा यह सवाल पूछना -रोहित शर्मा की जगह ईशान किशन को टीम में रखना उचित होता?” विराट कोहली ने जवाब भी दिया,साथ ही उस पत्रकार से कोहली खुद ही एक सवाल पूछ बैठे “आपका यह सवाल बहुत बहादुरी भरा है,लेकिन आप बताइए कि आप क्या करते? क्या आप रोहित शर्मा को International T20 से बाहर रखते?” बदले में दागे गए सवाल का पत्रकार के पास कोई जवाब नहीं था। विराट कोहली ने यह भी कहा -“आपने देखा कि पिछली बार रोहित कितना अच्छा खेले थे।”

जैसा कि हर जीत, हार के बाद भूतपूर्व क्रिकेटरों की समीक्षात्मक टिप्पणी आती है,उसी तरह आस्ट्रेलियाई किक्रेटर Brad Hogg की टिप्पणी आई “हार्दिक पंड्या को टीम में नहीं रखना था।” हम समझ रहे हैं,समझ सकते हैं कि Hogg ने,पंड्या को11खिलाडियों वाली टीम में रखने का विरोध इसलिए किया क्योंकि वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं थे।उनका कंधा चोटिल था। इंजमाम-उल-हक का तो यह कहना है “बाबर को पता था कि उन्हें क्या करना है। विराट को नहीं पता था। यह हुआ क्रिकेटरों के हार जीत का विवरण।

इसके विपरीत भीड़ की अलग-अलग ही तल्ख़ और घृणास्पद टिप्पणी होती है, जैसा कि हुआ भी..
यह भी बेहद ही है कि एक बड़ा बैट्समैन यदि तुरंत आउट हो गया तो तुरंत ही सवालिया निशान लगा दिया जाता है। लेकिन लेकिन लेकिन हमारा देश इतना कुंठित क्यों है? आखिर खेल को एक स्वस्थ राजनीति भी नहीं, बल्कि सस्ती राजनीति का जामा पहना कर बहस तलब हो जाना, किस नियम के अंतर्गत आता है?

वास्तव में मोहम्मद शमी और रोहित शर्मा नाम का अध्याय खेल का है। वह भी क्रिकेट नाम के खेल का,जहां कभी भी पासा पलट सकता है। फिर भी भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपनी कुंठा की गगरी इन खिलाड़ियों पर फोड़ने लगते हैं। भारत के खिलाफ पाकिस्तान की world cup में पहली जीत पर इतना हंगामा बरपा। इसके पहले भारत ने 12 में से बारह बार पाकिस्तान को world cup में शिकस्त दिया उसको एक हार के बाद ही भूल गए हम। हद है! हाय रे देश तुम दोनों कब सुधरोगे? कब खेल को सस्ती राजनीति का अध्याय बनाने से बाज़ आओगे ?

(आभा बोधिसत्व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और आजकल मुंबई में रहती हैं।)

आभा बोधिसत्व
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