ओडिशा: विरोध प्रदर्शन में लाठी और कुल्हाड़ी लाने पर आदिवासियों पर लगा यूएपीए, गांव में डर का माहौल

रायगढ़ा। देश के पूर्वी घाट की शुरुआत उड़ीसा के दक्षिणी हिस्से से होती है। इस पूरे क्षेत्र में खनिज भंडार भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। कालाहांड़ी, रायगढ़ा जिले में भरपूर मात्रा में बॉक्साइट पाया जाता है। जिस पर कॉरपोरेट वर्ल्ड की लंबी समय से नजर है। दूसरी तरफ आदिवासी समुदाय के लोग जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जिसके कारण ओडिशा के इस क्षेत्र के लोगों को जेल भी जाना पड़ा है।

9 लोगों पर लगा यूएपीए

ताजा मामला ओडिशा के रायगढ़ा जिले के लखपदर गांव का है, जहां 9 लोगों पर यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967) लगाया गया है। कालाहांड़ी और रायगढ़ा जिले में बॉक्साइट की खदान के खिलाफ और नियमगिरि पहाड़ी को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे आदिवासी संगठन ने सरकार से 9 लोगों पर पर लगे यूएपीए हटाने के मांग की है।

‘जनचौक’ की टीम ने नियमगिरि सुरक्षा समिति के नेता (सलाहकार) लिंगाराज आजाद से इस घटनाक्रम के बारे में बात की। ‘जनचौक’ से बात करने से पहले उन्होंने राजधानी भुवनेश्वर में प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी बात रखी थी। जिसमें उन्होंने यह भी बताया कि जिस घटना के लिए उन पर यूएपीए की धारा लगाई गई, उसमें वह शामिल भी नहीं थे।

‘जनचौक’ से विस्तृत बातचीत में उन्होंने पूरे घटनाक्रम पर क्रमबद्ध तरीके से टिप्पणी से करते हुए कहा कि “हमने नौ अगस्त को होने वाले ‘विश्व आदिवासी दिवस’ की तैयारी के लिए तीन डंगरिया आदिवासी सदस्यों को लांजीगढ़ भेजा था। जहां यह लोग गांव के लोगों के साथ यह सलाह कर रहे थे कि नौ अगस्त को क्या-क्या कार्यक्रम करना है। इसी दौरान वहां एक बोलेरो गाड़ी आई और कृष्णा सिकोका और बारी सिकोका को किडनैप करके ले गई”।

लिंगाराज आजाद कहते हैं कि ‘इस घटना के बारे में हमने पुलिस से पूछा। इस पर लांजीगढ़ थाने के इंस्पेक्टर ने बताया कि उनके पास इस वक्त तक ऐसी किसी भी गिरफ्तारी की सूचना नहीं है। अगर कोई जानकारी मिलती है तो बताया जाएगा’।

लिंगाराज ने बताया कि ‘पुलिस द्वारा किसी तरह का सहयोग न मिलता देख संगठन की तरफ से किडनैपिंग को लेकर एक एफआईआर दर्ज कराई गई। इस पर भी पुलिस की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। यह सारी घटना पांच अगस्त की है’।

वहीं दूसरी ओर कल्याणपुरसिंह थाना जहां नौ लोगों के खिलाफ यूएपीए की धारा लगाई गई है। पांच अगस्त को वहां के इंस्पेक्टर ने भी इस बात से इंकार कर दिया कि दो लोगों की गिरफ्तारी हुई है। कालाहांड़ी जिले के एसपी ने भी कहा कि ऐसी कोई सूचना नहीं मिली है।

पुलिस ही किडनैप करके ले गई

लिंगाराज कहते हैं कि ‘हमारे साथियों ने हमसे पहले ही कहा था कि पुलिस ही उन दो लोगों को सिविल ड्रेस में आकर लेकर गई थी। पांच अगस्त का पूरा दिन बीतने के बाद लोग छह अगस्त को कल्याणसिंहपुर थाने में किडनैपिंग को लेकर पुलिस से बातचीत करने गए। जिसमें करीब 150 लोग शामिल थे।

लोग पुलिस से सवाल कर रहे थे कि दो लोग किडनैप हुए हैं इस पर उन्होंने क्या कार्रवाई की? अगर पुलिस ने गिरफ्तार किया है तो अभी तो किसी तरह की जानकारी परिवार वालों को क्यों नहीं दी गई?

लिंगाराज का कहना है कि ‘हो सकता है कि इस बातचीत के बीच दोनों पक्षों के बीच कुछ न कुछ असहमति जरूर हुई होगी। इसी दौरान आंदोलन कर रहे लोगों में से एक व्यक्ति को पुलिस अंदर करना चाह रही थी। जिसका लोगों ने विरोध किया’।

उन्होंने कहा कि ‘इस बीच लोग अपने गांव वापस भी चले गए। इसी बात-चीत को संज्ञान में लेकर पुलिस ने कई लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर यूएपीए लगाया है। जिसमें कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसमें शामिल भी नहीं थे। जैसे मैं’।

वह बताते हैं कि “मैं उस दिन वहां मौजूद भी नहीं था। फिर भी मुझ पर यूएपीए का मुकदमा लगाया गया है”। 

थाना प्रभारी ने बात नहीं की

इस मामले में कल्याणसिंहपुर थाने में एफआईआर दर्ज की गई है। जिसमें लिडा सिकोका, द्रन्जु कृष्णा, सम्बा हुईका, मनु सिकोका, उपेद्र भोई, लेनिन कुमार, लिंगाराज आजाद, बिट्रिश नाइक और गोबिन्द बाग के नाम पर यूएपीए के साथ-साथ धारा 147, 294, 188, 353 के अलावा अन्य धाराओं के साथ मामला दर्ज किया गया है।

यह मामला रायगढ़ा जिले के कल्याणसिंह थाने की थाना प्रभारी सुमन्ति मोहन्ती द्वारा दर्ज करवाया गया है। शिकायत में थाना प्रभारी ने बताया कि “लगभग 200 लोगों की भीड़ लाठी और कुल्हाड़ी लेकर आंदोलन करने के लिए निकले थी। जो कह रह थे, अगर पुलिस ने हमारी बात नहीं मानी तो वह पुलिस स्टेशन में आग लगा देंगे। एफआईआर में यह भी बताया गया कि चूंकि लोगों के पास कुल्हाड़ी थी, पुलिस को इनसे जान का खतरा था, इसलिए पुलिस बल ने वहां से भागकर अपनी जान बचाई”।

इस एफआईआर के बारे में लिंगाराज का कहना है कि “पुलिस इस तरह के मामले बनाकर आदिवासियों को चुप कराना चाह रही है। जबकि सच्चाई यह है कि लाठी और कुल्हाड़ी आदिवासी समाज का पारम्परिक हथियार है। जिसे वह हमेशा अपने साथ लेकर चलते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि सिर्फ पारम्परिक हथियार रखने पर कैसे एफआईआर दर्ज कर यूएपीए लगाया जा सकता है”।

हमने इस बारे में थाना प्रभारी सुमन्ति मोहन्ती से फोन पर बात की। उन्होंने हमारे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया। बल्कि फोन ही बंद कर दिया।

वहीं दूसरी ओर इस मामले में जिन लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई है। उसमें उपेंद्र भोई को पुलिस ने उस वक्त गिरफ्तार किया जिस वक्त आंखों के इलाज के लिए रायगढ़ा गए थे।

लिंगाराज ने बताया कि ‘हमारे लोगों को तरह-तरह से परेशान किया जा रहा है’। वह कहते हैं कि नौ अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मानने के बाद उपेंद्र रायगढ़ा इलाज के लिए गए थे’।

इस एफआईआर के बारे में लिंगाराज का कहना है कि “पुलिस इस तरह के मामले बनाकर आदिवासियों को चुप कराना चाह रही है। जबकि सच्चाई यह है कि लाठी और कुल्हाड़ी आदिवासी समाज का पारम्परिक हथियार है। जिसे वह हमेशा अपने साथ लेकर चलते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि सिर्फ पारम्परिक हथियार रखने पर कैसे एफआईआर दर्ज कर यूएपीए लगाया जा सकता है”।लिंगाराज ने बताया कि ‘हमारे लोगों को तरह-तरह से परेशान किया जा रहा है’। वह कहते हैं कि ‘नौ अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मानने के बाद उपेंद्र रायगढ़ा इलाज के लिए गए थे। उसी दौरान पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। लेकिन किसी को इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई।’

लिंगाराज ने कहा ‘हमने उपेंद्र को खोजने की कोशिश की लेकिन असफल रहे। उसे चार दिन तक पुलिस कस्टडी में बिना किसी जानकारी के रखा गया। अंत में 14 अगस्त को उसे जेल भेज दिया गया। उन चार दिनों में पुलिस द्वारा उसे प्रताड़ित किया गया। उपेंद्र भी उन लोगों में है, जो छह अगस्त को आंदोलन में शामिल नहीं थे’।

गांव में डर का माहौल

फिलहाल लोगों के बीच डर का माहौल है। इस घटना के बाद मूलनिवासी समाजसेवक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता मधुसूदन सेठी ने उस लखपदर गांव का दौरा किया है। जहां के आदिवासियों पर यूएपीए की धारा लगाई गई है।

गांव के माहौल के बारे में वह बताते हैं कि ‘फिलहाल गांव में पुलिस का पहरा है। लोगों के बीच डर का माहौल है कि उन्हें भी पुलिस गिरफ्तार कर जेल में बंद न कर दें’।

गांव में डर का माहौल

फिलहाल लोगों के बीच डर का माहौल है। इस घटना के बाद मूलनिवासी समाजसेवक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सामजिक कार्यकर्ता मधुसूदन सेठी ने उस लखपदर गांव का दौरा किया है। जहां के आदिवासियों पर यूएपीए की धारा लगाई गई है।

गांव के माहौल के बारे में मधुसूदन सेठी बताते हैं कि फिलहाल गांव में पुलिस का पहरा है। लोगों के बीच डर का माहौल है कि उन्हें भी पुलिस गिरफ्तार कर जेल में बंद न कर दे।

उन्होंने बताया कि ‘लेनिन कुमार जो एक कवि हैं। फिलहाल गांव में ही रह रहे हैं। वह तो सिर्फ नौ अगस्त के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए थे। अब वह गांव में ही कैद हो चुके हैं। अगर वह बाहर निकलते हैं तो पुलिस उन्हें किसी भी वक्त गिरफ्तार कर सकती है। ऐसा डर फिलहाल गांव के सभी लोगों में है’।

वह कहते हैं कि ‘यह पूरी तरह से सरकार की मिलीभगत है। जिसमें दलित आदिवासियों की जमीन को हड़पने की कोशिश की जा रही है। अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में सरकार को चुनाव के लिए पैसे चाहिए। इसलिए सरकारें जमीन और खनिज संपदा कॉरपोरेट को देना चाहती हैं। आदिवासियों को ऐसी धाराओं से डराया जा रहा है’।

गिरफ्तारी है राजनीतिक

वहीं दूसरी ओर नियमगिरि सुरक्षा समिति के नेता (सलाहकार) लिंगाराज आजाद से हमने इसके पीछे किसी राजनीतिक कारण के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ‘इसमें कोई संदेह नहीं है। हम लोग पिछले लंबे समय से नियमगिरि पहाड़ी को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सरकार और कॉरपोरेट की इस पर नजर है। ऐसे में लोगों के खिलाफ ऐसी सख्त धाराएं लगाई जा रही है। हमें दबाने की कोशिश की जा रही है’।

(पूनम मसीह की रिपोर्ट।)

पूनम मसीह
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