लखीमपुर खीरी केस में यूपी सरकार ही आशीष मिश्रा को बचाने पर तत्पर

एक ओर देश के गृहमंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदम्बरम हों या उनके पुत्र कार्ती चिदम्बरम हों उनके विरुद्ध केस में सेंट्रल जाँच एजेंसियां जमानत की सुनवाई में उनके विदेश भाग जाने का तर्क भले न देती रही हों (जो जमानत पर छूटने के बाद आज तक नहीं भागे ) लेकिन दूसरी ओर लखीमपुर की घटना की जांच कर रही स्पेशल इंवेस्टिगेटिंग टीम ने आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने की अपील की तो योगी सरकार उच्चतम न्यायालय में कह आई कि न तो उसके भागने की कोई संभावना है और न ही वह कोई आदतन अपराधी है।

अब सरकार आशीष मिश्रा को कैसे बचाना चाहती है उसे भी समझ लें। लखीमपुर खीरी हिंसा की घटना की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एसआईटी हेड ने दो बार यूपी सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने के लिए उच्चतम न्यायालय में तत्काल अपील दायर करें,लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने आज तक अपील दाखिल नहीं किया ।

लखीमपुर खीरी मामले में उच्चतम न्यायालय में कल सुनवाई हुई। कोर्ट ने आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है। चीफ जस्टिस  एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। एसआईटी की निगरानी कर रहे हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज ने आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने की अपील करने की सिफारिश की थी। जज ने यूपी सरकार को चिट्ठी लिखी है। पीठ ने चिट्ठी पर यूपी सरकार से जवाब मांगा था। पीठ ने पूछा था कि आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने की अपील को लेकर यूपी का क्या रुख है? पीठ ने पंजाब और हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस राकेश कुमार जैन की चिट्ठी को राज्य सरकार और याचिकाकर्ता को देने को कहा था।

यूपी के लिए वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि हमने राज्य सरकार को रिपोर्ट भेज दी है कि क्या एसएलपी दाखिल करनी है? चीफ जस्टिस रमना ने यूपी सरकार को कहा कि हम आपको मजबूर नहीं कर सकते। चिट्ठी लिखे जाने पर आपने कोई जवाब नहीं दिया। यह कोई ऐसा मामला नहीं है जहां आपको महीने या सालों का इंतजार करना पड़े।

यूपी सरकार ने कहा कि हमारा स्टैंड वही है। हमने पहले ही अपनी स्थिति पर एक हलफनामा दायर किया था। हमने हाईकोर्ट में भी जमानत का विरोध किया था। हमारा रुख नहीं बदलेगा। राज्य सरकार ने गवाहों को व्यापक सुरक्षा प्रदान की है। गवाहों के लिए कोई खतरा नहीं है। वे कह रहे हैं कि हमें अपील दायर करनी चाहिए क्योंकि वे आरोपी गवाहों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं। हमने गवाहों से संपर्क किया है। उन्होंने कहा कि कोई खतरा नहीं है।

याचिकाकर्ता पीड़ित परिवारों के लिए दुष्यंत दवे ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जमानत देने के फैसले को रद्द किया जाए। हाईकोर्ट प्रासंगिक तथ्यों पर विचार करने में विफल रहा। फैसला देते समय विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया। फैसला उस एफआईआर पर ध्यान नहीं देता है जो कार से कुचलने की बात करती है। हाईकोर्ट केवल यह कहता है कि कोई गोली नहीं लगी है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि जज पोस्टमॉर्टम आदि में कैसे जा सकते हैं? हम जमानत के मामले की सुनवाई कर रहे हैं, हम इसे लंबा नहीं करना चाहते। प्रथम दृष्ट्या सवाल यह है कि जमानत रद्द करने की जरूरत है या नहीं। कौन सी कार थी, पोस्टमॉर्टम आदि जैसे बकवास सवालों पर सुनवाई नहीं करना चाहते? उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि जमानत के सवाल के लिए गुण-दोष और चोट आदि में जाने का तरीका गैर जरूरी है। मौत गोली से हुई या कार के कुचलने से ये सब बकवास है। ये सब जमानत का आधार नहीं हो सकता। खासकर जब ट्रायल शुरू ना हुआ हो।

दवे ने कहा कि जब उन्होंने जल्दबाजी और लापरवाही से कार चलाई तो गोली की चोट के सवाल पर विचार करने में हाईकोर्ट गलत था। जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि क्या पीड़ितों की सुनवाई हाईकोर्ट में हुई? दवे ने कहा कि नहीं। हाईकोर्ट ने गवाहों के बयानों की अनदेखी की। इस बात को नजरअंदाज किया कि उच्चतम न्यायालय ने मामले का संज्ञान लिया था। एक हत्या के मामले में हाईकोर्ट केवल यह कहकर जमानत कैसे दे सकता है कि चार्जशीट पहले ही दायर की जा चुकी है। दवे ने कहा कि एसआईटी द्वारा दिए गए मौखिक सबूत, सामग्री सबूत, दस्तावेजी सबूतों और वैज्ञानिक सबूतों पर हाईकोर्ट ने विचार नहीं किया।

दवे ने कहा कि जमानत देने के सभी सामान्य सिद्धांतों को हाईकोर्ट ने पूरी तरह से नजरअंदाज किया। 200 से अधिक गवाहों के बयान लिए गए। वीडियो भी मिले हैं। एसआईटी द्वारा व्यापक जांच की जा रही है। उस सब को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नजरअंदाज किया। घटना से कुछ दिन पहले आशीष मिश्रा के पिता की किसानों को खुली धमकियों के बारे में बताए गए तथ्यों को नज़रअंदाज किया गया। एसआईटी  द्वारा दिए गए मौखिक सबूत, सामग्री सबूत, दस्तावेजी सबूतों और वैज्ञानिक सबूतों पर हाईकोर्ट ने विचार नहीं किया। ये मामला जमानत देने का नहीं है। आशीष मिश्रा की जमानत रद्द की जाए। हत्या की असली मंशा थी। एसआईटी ने पाया कि सब कुछ पहले से सोचा समझा गया गया था। जमानत रद्द करने के लिए यह एक उपयुक्त मामला है।

आशीष के वकील रंजीत कुमार ने कहा कि पुलिस को किसानों की तरफ से दी गई रिपोर्ट में ही कहा गया है कि गोली से एक किसान मरा। तभी हाईकोर्ट ने गोली न चलने की बात कही। लोगों ने यह भी कहा कि आशीष गन्ने के खेत में भाग गया। घटनास्थल पर गन्ने का खेत था ही नहीं, धान का था। हाईकोर्ट ने गोली की चोट पर विचार किया, क्योंकि एफआईआर में कहा गया है कि एक व्यक्ति गोली लगने से मरा था। हमें यह भी याद रखने की जरूरत है कि मंत्री को कुश्ती प्रतियोगिता के लिए हेलीकॉप्टर से आना था। प्रदर्शनकारियों ने हेलीकॉप्टर को उतरने नहीं दिया।

चीफ जस्टिस ने कहा कि आप कहते हैं कि रास्ता बदल दिया गया था क्योंकि यह प्रत्याशित था कि लोग विरोध करेंगे, लेकिन हम हेलीकॉप्टर आदि में नहीं जा रहे हैं। हम कह रहे हैं कि जमानत के चरण में हाईकोर्ट कैसे चोट आदि में जा सकता है। रंजीत कुमार ने कहा कि आप केस वापस हाईकोर्ट को भेज सकते हैं। चीफ जस्टिस  ने कहा कि हम तय करेंगे कि क्या करना है, अगर मुझे जमानत नहीं मिली तो मैं कहां से लाऊंगा, मैं कब तक सलाखों के पीछे रहूंगा ?

जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि आपको घटना के बाद जमानत अर्जी दाखिल करने की क्या जल्दी थी ? रंजीत कुमार ने कहा कि आशीष मिश्रा उस समय गाड़ी में नहीं था। एक जगह से दूसरी जगह इतनी जल्दी पहुंचना संभव नहीं है। यदि आप जमानत रद्द करते हैं तो कोई अन्य अदालत इसे नहीं छुएगी। चीफ जस्टिस ने कहा कि आपको जमानत पर बहस करनी चाहिए, मामले की मेरिट के आधार पर नहीं। क्या उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? लोगों को आजीवन जमानत मिलनी चाहिए?

यूपी सरकार ने कहा कि ये गंभीर किस्म का अपराध है। यूपी सरकार की ओर से महेश जेठमलानी ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है, जिसमें चार- पांच लोगों कि जान गई। वाहन के कुचलने से लोगों की मौत हुई। मुद्दा गोली से चोट का नहीं है। अपराध की निंदा करने के लिए पर्याप्त शब्द नहीं हैं। अपराध की मंशा एक सूक्ष्म मामला है, केवल ट्रायल चरण में ही चर्चा की जा सकती है। इस मुद्दे पर मिनी ट्रायल नहीं चलाया जा सकता। आशीष मिश्रा के बारे में फ्लाइट रिस्क नहीं है। आशीष मिश्रा गवाहों के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता, हमने हर गवाह को सुरक्षा प्रदान की है, हमने जमानत का पुरजोर विरोध किया था। जेठमलानी ने स्वीकार किया कि मामले की जांच कर रहे विशेष जांच दल ने राज्य को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए कहा था, लेकिन इससे सरकार प्रभावित नहीं हुई।

रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों के आधार पर एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा और अन्य की घटना स्थल पर उपस्थिति प्रमाणित है। इसके अलावा, एसआईटी के अनुसार यह भी प्रमाणित होता है कि जहां विरोध करने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ी थी वहीं 13 आरोपी (और तीन मृत आरोपी) एक काफिले में तीन वाहनों का उपयोग करके और उन्हें एक संकरी सड़क पर बहुत तेज गति से चलाकर पूर्व नियोजित तरीके से अपराध स्थल पर गए थे। यहां तक कि जिला प्रशासन ने भी विरोध को देखते हुए दंगल समारोह के मुख्य अतिथि का मार्ग बदल दिया था और मुख्य आरोपी मुख्य अतिथि के बदले हुए मार्ग से अच्छी तरह वाकिफ था। एसआईटी के मुताबिक, अपराध को अंजाम देने के बाद आरोपी प्रदर्शनकारियों को डराने के लिए हवा में हथियार दागकर फरार हो गए और एफएसएल की बैलिस्टिक रिपोर्ट से इन हथियारों के इस्तेमाल की पुष्टि होती है।

एसआईटी ने अदालत को सूचित किया है कि उसने उपलब्ध सभी तकनीकी सबूतों का इस्तेमाल किया और गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ जांच को तेजी से पूरा किया और 13 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया जो 03/01/2022 को न्यायिक हिरासत में थे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 167 के तहत अनुचित लाभ न मिले।

पिछले साल 3 अक्टूबर को, लखीमपुर खीरी में हिंसा के दौरान आठ लोग मारे गए थे, जब किसान अब निरस्त किए गए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे। प्रदर्शनकारियों ने उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की यात्रा में बाधा डाली थी, जो इलाके में एक कार्यक्रम में शामिल होने की योजना बना रहे थे। इसके बाद मिश्रा के एक चौपहिया वाहन को कथित तौर पर कुचल दिया गया और प्रदर्शनकारी किसानों सहित आठ लोगों की हत्या कर दी गई।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 10 फरवरी को मिश्रा को यह कहते हुए जमानत दे दी कि ऐसी संभावना हो सकती है कि विरोध कर रहे किसानों को कुचलने वाले वाहन के चालक ने खुद को बचाने के लिए वाहन की गति तेज कर दी हो।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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