लोकतंत्र बचाओ सम्मेलन रद्द कर सूबे को पुलिस राज की तरफ ले जा रही है योगी सरकार

29 फरवरी के लिए लखनऊ में तय “लोकतंत्र बचाओ” सम्मेलन की अनुमति शासन ने रदद् कर दी है।

इस सम्मेलन में प्रदेश की तमाम लोकतांत्रिक शख़्सियतें, प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले लोग किसान, आदिवासी, मेहनतकश, युवा, छात्र, बुद्धिजीवी प्रदेश में लोकतंत्र के लिए बढ़ती चुनौतियों, उस पर होने वाले हमलों और उससे निपटने के उपायों पर विचार-विमर्श करने वाले थे।

वे इस विषय पर भी विचार करने वाले थे कि प्रदेश में इन चुनौतियों से निपटने के लिए सुसंगत लोकतांत्रिक राजनैतिक विपक्ष कैसे खड़ा किया जाय क्योंकि ये चुनौतियां मूलतः राजनीतिक हैं और इस दिशा में नागरिक समाज की पहलकदमियां स्वागत योग्य व आवश्यक तो हैं, पर पर्याप्त नहीं हैं, वे राजनीतिक Response का विकल्प नहीं हो सकतीं।

लेकिन लखनऊ के प्रशासन ने कार्यक्रम की अनुमति रदद् कर दी है ।

क्या यह शासन के इशारे पर किया गया है ?

आखिर सरकार-प्रशासन को लोकतंत्र की रक्षा के लिए हाल के अंदर किये जानेवाले कार्यक्रम से क्या भय हो सकता है ?

सरकार आखिर चाहती क्या है ? 

क्या वह शांतिपूर्ण तरीकों से जनता को लोकतंत्र के पक्ष में बात भी नहीं करने देना चाहती ?

क्या वह अपने से असहमत हर आवाज़ को  कुचल देना चाहती है ?

क्या देश का संविधान इसकी इजाजत देता है ?

यह तो एक आज़ाद लोकतंत्र में नागरिकों का न्यूनतम, बुनियादी हक़ है। 

हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने, अनेक उच्च न्यायालयों ने, तमाम विधिवेत्ताओं ने यह observe किया कि असहमति का अधिकार, विरोध व्यक्त करने का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है और अनवरत 144 लगाकर या अन्य तरीकों से इसे छीना नहीं जा सकता है !

लेकिन यह सब करके प्रदेश में क्या सरकार लोकतंत्र खत्म करना चाहती है ?

क्या प्रदेश को पुलिस राज बनाना चाहती है, जहां व्यक्ति की गरिमा, सम्मान व नागरिक अधिकारों के लिए कोई जगह नहीं होगी ?

असहमति, विरोध, जन अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने के सभी शांतिपूर्ण,  लोकतांत्रिक रास्तों को बंद कर क्या सरकार अराजकता को दावत देना चाहती है ?

यह तो विनाश का रास्ता है, विकास और प्रगति की सारी बातें तो बेमानी हो जाएंगी। फिर नौजवानों की रोजी-रोटी, किसानों की खेती-किसानी, मेहनतकशों के काम धंधे, कारोबार की बेहतरी की लड़ाई का क्या होगा ?

यह तय है कि जनता पुरखों की अकूत कुर्बानी के बल पर हासिल आज़ादी और लोकतांत्रिक अधिकारों का अपहरण स्वीकार नहीं करेगी और जनांदोलन के माध्यम से इसका प्रतिकार करेगी !

लोकतंत्र के रक्षा की लड़ाई ज़िंदाबाद !

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं।)

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