उत्तर प्रदेश में धान क्रय केंद्रों पर बिचौलियों का बोलबाला

जनचौक ब्यूरो

नई दिल्ली। किसानों की हितैषी होने का दावा करने वाली योगी सरकार की पोल धान क्रय केंद्रों पर खुलने लगी है। खरीद की शुरुआत में ही बिचौलियों का बोलबाला देखा जा रहा है। 22 अक्टूबर तक मात्र 744 क्रय केंद्रों पर 301 किसानों से 1808.899 मी. टन ही धान की खरीद हुई। यानी कि एक किसान से 6 मी. टन धान ख़रीदा गया। जबकि योगी सरकार ने एक अक्टूबर से 3000 केंद्रों पर धान खरीदने की बात की थी। स्थिति यह है कि खरीदारी के पहले महीने में ही किसान बिचौलियों के चंगुल में फंस गए हैं। यह तब है जब सरकार ने क्रय केंद्रों को बिचौलिए से मुक्त रखने के लिए हर जिले में क्रय अधिकारी नियुक्त किये हैं।

 प्रदेश सरकार ने जुलाई से ही धान खरीद के लिए तैयारी का दिखावा करना शुरू कर दिया था। गेहूं खरीद का काम समाप्त होने के बाद ही उत्तर प्रदेश ने धान खरीद को लेकर निर्देश जारी कर दिए थे कि इस बार धान खरीद एक अक्टूबर से ही शुरू हो जाएगी। इसको लेकर हर जिले में प्रशासन के सक्रिय होने की बात कही गई थी। धान की खरीद में कोई बाधा न आने पाए, इसके लिए 1 से 15 जुलाई के बीच प्रभारी अधिकारियों की नियुक्ति की बात कही गई थी।

30 अगस्त तक क्रय केन्द्रों का चयन कर लेने को कहा गया था। इसी तरह से 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच किसानों का पंजीकरण व पूर्व में पंजीकृत किए गए किसानों का नवीनीकरण भी करा लेने के निर्देश देने की बात प्रदेश सरकार ने कही थी। निर्देश में केन्द्रों का चयन करने के बाद धनराशि, बोरों, स्टाफ, किसानों के लिए सुविधाओं का चयन 15 दिन पहले ही कर लेने को कहा गया था। सरकार ने 50 लाख मीट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा है।

दरअसल प्रदेश सरकार ने क्रय के लिए ऑनलाइन पंजीकरण कराने की जो शर्तें रख दी थी उनके चलते भी बिचौलिए को सक्रिय होने का मौका मिला। यह किसान के धान की खरीदारी को प्रभावित करना ही था कि हर किसान को उत्तर प्रदेश ई-क्रय प्रणाली से किसान पंजीकरण की अनिवार्यता के निर्देश जारी कर दिए गए थे। इन शर्तों में अपनी जमीन का नया पर्चा, अपना आधार कार्ड, बैंक के पासबुक की प्रतिलिपि, अपनी पासपोर्ट साइज़ की फोटो देने की बात कही गई थी। जो किसान के लिए मुश्किल था। जिस किसान ने कम्प्यूटर तक नहीं देखा उस किसान को पंजीकरण के लिए प्रदेश सरकार के विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर पंजीकरण कराना था। यह सब बिचौलिए को किसान और कम्प्यूटर के बीच घुसने का स्पेस था। 

सरकार ने किसान की जमीन की जानकारी और पंजीकरण के लिए अपनी भूमि की जानकारी देना भी अनिवार्य किया था। भूमि विवरण के साथ खतौनी/खाता संख्या, प्लाट/खसरा संख्या, भूमि का रकबा, धान का रकबा भी भरना अनिवार्य था। सरकार की किसानों की उपेक्षा और इन्हीं सब तामझाम के चलते किसानों ने धान का रकबा कम कर दिया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार धान की खेती की उपज भी लगातार घट रही है। वर्ष 2020 तक सिंचित धान की उपज में लगभग चार, 2050 तक सात तथा वर्ष 2080 तक लगभग दस फीसद की कमी हो सकती है। वर्षा आधारित धान की उपज में 2020 तक छह फीसद की कमी होने की आशंका है।

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