बेरोजगार आंदोलन पर उत्तराखंड सरकार का नकारात्मक रवैया

देहरादून। देहरादून में चल रहे बेरोजगार युवाओं और छात्रों के आंदोलन को लेकर राज्य सरकार की रणनीति बता रही है कि सरकार गुमराह हो गई है। समझदार अधिकारियों की बात सुनने के बजाए मुख्यमंत्री कुछ ऐसे अधिकारियों की सलाह ले रहे हैं जो उन्हीं की फजीहत कराने पर तुले हैं।

आंदोलन के दौरान देहरादून में तैनात कुछ अधिकारियों को लोग लगातार देख रहे हैं, जिनका रवैया आंदोलनकारियों के प्रति ही नहीं, उन्हें समर्थन देने के लिए आने वाले अभिभावकों और अन्य लोगों के प्रति भी बेहद अनुचित और कई बार हिंसक है।

इस आंदोलन के दौरान शुरू से लेकर अब तक राज्य सरकार और प्रशासन की ओर से जो भी कदम उठाये गये हैं, उससे साफ है कि सरकार समाधान का रास्ता तो तलाशना ही नहीं चाहती। वह गतिरोध बनाये रखने और दमनात्मक कार्रवाई पर अडिग है।

यह सवाल बार-बार उठाया जा रहा है कि आखिर सरकार इस तरह की दमनात्मक कार्रवाई करने पर क्यों उतारू है। समझौते के बावजूद गिरफ्तार छात्रों की जमानत में लगातार सरकार की ओर से अड़ंगा लगाया जा रहा है और देहरादून में कचहरी स्थित शहीद स्मारक पर धरना दे रहे युवाओं को लगातार डराया-धमकाया जा रहा है।

कभी देहरादून के एसएसपी तो कभी एसडीएम वहां पहुंचकर कई तरह से इन युवाओं को मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे हैं। धरना दे रहे युवा पहले ही कह चुके हैं कि साथियों को जमानत मिलने के साथ ही वे यहां से चले जाएंगे और प्रशासन द्वारा दी गई जगह पर धरना देंगे। इसके बावजूद जमानत होने नहीं देना और कोर्ट में हर दिन नये-नये बहाने लगाना, बताता है कि सरकार की मंशा हर हाल में टकराव का रास्ता बनाये रखने की है।

9 फरवरी को हुए लाठीचार्ज के बाद युवाओं ने 10 फरवरी को शहीद स्मारक पर धरना शुरू किया था। उस दिन उत्तराखंड बेरोजगार संघ के 5 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने पहले अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी से बातचीत की थी और देर शाम डीएम सोनिका के साथ हुई बातचीत में प्रशासन के बीच समझौता किया गया था।

इस समझौते के अनुसार गिरफ्तार किये गये 13 युवकों पर लगाई गई हत्या के प्रयास की धारा 307 वापस ली जानी थी और 11 फरवरी को उनकी जमानत करवाई जानी थी। इस समझौते के साथ ही युवाओं ने ऐलान किया था 11 फरवरी को जमानत होने के बाद वे अपने साथियों के साथ यहां से चले जाएंगे।

लेकिन, 11 फरवरी को जमानत नहीं हुई। कोर्ट में यह कहकर जमानत का विरोध किया गया कि 12 फरवरी को पटवारी-लेखपाल भर्ती परीक्षा है और ये युवक जमानत पर बाहर आकर इस परीक्षा को पूरे राज्य में प्रभावित कर सकते हैं।

जमानत पर अगली सुनवाई 13 फरवरी को हुई। लेकिन, सरकारी पक्ष ने एक बार फिर यह कहकर जमानत नहीं होने दी कि अभी कुछ साक्ष्य जुटाने हैं। सरकारी वकील ने साक्ष्य जुटाने के लिए 5 दिन का समय मांगा। लेकिन, अदालत ने सिर्फ एक दिन का समय दिया और 14 फरवरी को फिर से सुनवाई करने की तिथि तय कर दी।

14 फरवरी को फिर सुनवाई शुरू हुई तो सरकारी पक्ष ने अप्रत्याशित रूप से पैंतरा बदला और कह दिया के इस मामले में जो धारा 307 हटाई गई है, उसे लगाना जरूरी है, क्योंकि मामला बहुत जघन्य है। यानी कि जमानत न होने देने के लिए सरकारी पक्ष की ओर से एक और पैंतरा अपनाया गया और यह कामयाब रहा। जिस तरह से सरकारी पक्ष कोर्ट में पैंतरे बदल रहा है, उससे यह साफ है कि आने वाले दिनों में सरकार जेल में बंद 13 युवकों को छोड़ने के पक्ष में नहीं है।

इस बीच अपने साथियों की जमानत का इंतजार कर रहे करीब 60 से 65 छात्र-छात्राएं 10 फरवरी से ही शहीद स्मारक पर धरना दे रहे हैं। शहीद स्मारक पर एक वाॅशरूम के अलावा अन्य कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है। इस बीच दून का तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक गिरा, लेकिन इस ठंड के बावजूद और नहाने तक की सुविधा न होने के बावजूद यह छात्र-छात्राएं धरने पर डटे हुए हैं।

धरना पूरी तरह से शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है। तीन दिन तक प्रशासन ने शहीद स्मारक के गेट को भी पूरी तरह से बंद रखा। बाहर से किसी को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं दी गई। एक तरह से शहीद स्मारक को ही प्रशासन ने धरना दे रहे युवाओं के लिए जेल बना दिया था।

गेट 13 फरवरी को तब खुला, जब उत्तराखंड क्रांति दल के लोग बड़ी संख्या में धरना दे रहे युवाओं को समर्थन देने पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उन्हें अंदर जाने नहीं दिया। कार्यकर्ताओं ने हंगामा शुरू किया तब जाकर गेट खोला गया और युवाओं के समर्थन में शहीद स्मारक के बाहर जमा लोग अंदर जा पाये।

इस दौरान इन युवाओं को डराने-धमकाने और आतंकित करने का सिलसिला भी लगातार जारी रहा। एसएसपी देहरादून और एसडीएम सदर देहरादून इन युवकों को न सिर्फ धमकाया बल्कि उनका कैरियर खराब हो जाने, भविष्य में किसी भी काम के लिए पुलिस वैरिफिकेशन न होने की धमकी देते रहे।

इसके बाद भी युवा शहीद स्मारक छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए तो आखिकार उनके खिलाफ धारा 144 के उल्लंघन करने का मामला दर्ज कर दिया गया। पुलिस ने धरना दे रहे 64 छात्र-छात्राओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। कुल मिलाकर इस आंदोलन के दौरान अब तक कुल 5 मुकदमें दर्ज किये गये हैं। 9 फरवरी के प्रदर्शन के लिए गिरफ्तार किये गये 13 युवकों के साथ ही 4 हजार अन्य के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।

छात्रों के इस आंदोलन को समाप्त करने की दिशा में कोई कदम उठाने के बजाय प्रशासन की ओर से लगातार गतिरोध बनाने के प्रयास किये जाने के बाद अब अभिभावक, सामजिक कार्यकर्ता, विपक्षी दलों से जुड़े लोग और जन सरोकारों से जुड़े पत्रकार आगे आये हैं। इन तमाम लोगों ने एक बैठक कर मुख्यमंत्री से बातचीत के लिए समय मांगा है। बैठक में कहा गया कि मुख्यमंत्री केवल अपने कुछ चहेते अधिकारियों और अपने खास लोगों की ही बातें सुन रहे हैं और ये लोग उन्हें गुमराह कर रहे हैं।

इन तमाम प्रतिनिधियों ने कहा है कि वे 15 फरवरी तक मुख्यमंत्री के यहां से बुलावे का इंतजार करेंगे। यदि बुलावा आया तो वे 7 सुझाव मुख्यमंत्री को देंगे, जिससे युवाओं और प्रशासन की बीच गतिरोध खत्म हो सके। यदि मुख्यमंत्री की तरफ से कोई बुलावा नहीं आता तो 16 फरवरी को बैठक कर आगे की रणनीति तैयार की जाएगी।

इस बैठक में मुख्यमंत्री से बातचीत के जिन बिन्दुओं पर सहमति बनी उनमें बेरोजगारों पर लाठीचार्ज के दोषियों एसएसपी देहरादून, एसडीएम सदर को हटाना, सभी गिरफ्तार आन्दोलकारियों को बिना शर्त रिहाई रिहा करना और उन पर दर्ज मुकदमे वापस लेना,  यूकेएसएसएससी के अध्यक्ष जीएस मार्तोलिया को उनके पद से हटाना, भर्तियों में धांधलियों की सीबीआई जांच के आदेश देना और जोशीमठ आपदा पीड़ितों को समुचित मदद करना जैसे मुद्दे शामिल हैं।

( त्रिलोचन भट्ट वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

त्रिलोचन भट्ट
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