पत्रकारों के साथ गैंगस्टरों जैसा व्यवहार कर रही है उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार!

‘सच्ची पत्रकारिता करके दिखाओ’ – मानो उत्तराखंड सरकार ने स्थानीय पत्रकारों को खुली चुनौती दे रखा हो। डॉ. हरेंद्र रावत नामक व्यक्ति की शिकायत पर देहरादून पुलिस 31 जुलाई को आधी रात सांध्य दैनिक ‘क्राइम स्टोरी’ के संपादक राजेश शर्मा के घर रेड मारती है और उन्हें उठाकर पुलिस थाने ले जाती है। मानो वो पत्रकार नहीं कोई गैंगस्टर हों। देहरादून पुलिस की सारी हरकत सीसीटीवी कैमरे में क़ैद हो गई। 

कल कोर्ट में हुई पेशी के दौरान पत्रकार ने जेल में पुलिस कस्टडी में अपनी हत्या की आशंका भी जाहिर की है। जेल में एक पुलिस अधिकारी के कथन से उन्हें इसके संकेत मिले हैं। बकौल राजेश शर्मा गिरफ्तारी के बाद एक पुलिस अधिकारी ने उनको पिस्टल लगाते हुए यहाँ तक कहा कि “जब सरकार और पुलिस के बड़े अधिकारी हमारे साथ हैं तो किस बात की चिंता करनी है।”  

वहीं पत्रकार संपादक राजेश शर्मा का आरोप है कि उनकी गिरफ्तारी सरकार के इशारे पर की गई है। और उनके इस आरोप के पीछे ठोस आधार भी है। क्योंकि जिस डॉ. हरेंद्र रावत ने पत्रकार राजेश शर्मा के खिलाफ़ शिकायत दर्ज़ करवाया है वो न सिर्फ़ मुख्यमंत्री का करीबी है बल्कि पूर्व सलाहकार रह चुका है और उत्तराखंड सरकार में अच्छी दख़ल रखता है। राजेश शर्मा ने इसी सप्ताह क्राइम स्टोरी में सिडकुल घोटाले पर दो स्टोरी की थी। बता दें कि सिडकुल घोटाले की सारी फाइलें गायब करवा दी गई हैं। 

मुख्यमंत्री के करीबी की भ्रष्टाचार की पोल खोलने वाले चार पत्रकारों पर राजद्रोह का केस

उमेश शर्मा, राजेश शर्मा, एस पी सेमवाल और अमृतेश चौहान नामक चार पत्रकारों के खिलाफ़ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज़ किया गया है। आरोप पत्र में कहा गया है कि इन पत्रकारों ने झूठी ख़बर प्रकाशित करके सरकार को अस्थिर करने की साजिश की है। राजेश शर्मा को तो 31 जुलाई की आधी रात उनके घर से उठा लिया गया था। आरोप में कहा गया है कि राजेश शर्मा ने उमेश शर्मा को दस्तावेज मुहैया करवाए थे। 

पूरे मामले की विवेचना के लिए डीआईजी अरुण मोहन जोशी ने एसपी क्राइम लोकजीत सिंह के नेतृत्व में एसआईटी गठित की है। डीआईजी जोशी का कहना है कि 7 जुलाई को डॉ. हरेंद्र सिंह रावत ने एक तहरीर दी थी । तहरीर के मुताबिक़ कुछ समय पहले उनकी परिचित ज्योति विजय रावत ने उन्हें जानकारी दी थी कि पत्रकार उमेश शर्मा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट की है। वीडियो में बताया गया है कि डॉ. हरेंद्र रावत और उनकी पत्नी सविता रावत के बैंक खातों में नोटबंदी के दौरान झारखंड से अमृतेश चौहान नामक व्यक्ति ने स्वंय को झारखंड गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाने के एवज में रिश्वत की धनराशि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को देने के लिए भेजी थी।

राजेश शर्मा।

इस पैसे के लेन-देन से संबंधित कुछ दस्तावेज भी वीडियो में दिखाए गए हैं। साथ ही वीडियो में डॉ. हरेंद्र सिंह की पत्नी को मुख्यमंत्री की पत्नी की सगी बड़ी बहन होने का दावा किया गया है। आरोप है कि उमेश शर्मा व अमृतेश चौहान ने अपने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर साजिश के तहत उनकी निजी सूचनाओं को गौरकानूनी तरीके से हासिल करते हुए सार्वजनिक किया है। राजपत्रित अधिकारी की जांच में सभी तथ्य व दस्तावेज कूटरचित पाए गए हैं। आरोपित उमेश शर्मा ने अपने अन्य साथियों के साथ समाचार चैनल व पोर्टल पर भ्रामक ख़बरें चलाई। आरोपित उमेश ने अमृतेश चौहान, एस पी सेमवाल, राजेश शर्मा के साथ मिलकर सरकार को अस्थिर करने के उद्देश्य से कूटरचित दस्तावेजों के साथ भ्रामक वीडियो प्रसारित किया। 

पत्रकार दीप मैथानी इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं, “अजब गजब उत्तराखंड । आरोप उत्तराखंड के मुखिया जी पर लगा था 50 लाख रुपए में गौ सेवा आयोग में अध्यक्ष पद बांटने का। जिसने पैसे दिए उसने खुद लाइव वीडियो में कबूल भी किया और तो और उसने सभी को बताया भी कि कैसे उसने एक वरिष्ठ पत्रकार व समाजसेवी उमेश कुमार पर राजद्रोह का मुकदमा मुखिया जी के कहने पर दर्ज करवाया। इन सबके बाद मुखिया जी के सलाहकार के ऑडियो व अन्य सलाहकारों के वीडियो स्टिंग तक सोशल मीडिया में तैर रहे हैं। 

जिसमें साफ पता चलता है कि कैसे मुखिया जी के खास सलाहकार डील मैनेज कर पैसे देने वाले को संयम रखने की सलाह दे रहे हैं। मगर इतने सबूतों के बावजूद उल्टा इस घटना का खुलासा करने वाले पत्रकारों पर ही मुकदमा दायर कर दिया गया। वाट्सअप स्क्रीन शॉट से लेकर बैंक खातों की रसीद तक को फर्जी घोषित कर पत्रकारों को झूठा घोषित करने पर आमादा है वर्तमान सरकार। नैतिकता व आदर्शवाद का ढोंग रचने वाली इस सरकार की करनी व कथनी में बहुत बड़ा फर्क है। माफियाओं को बचाने से लेकर अपने खासम खास लोगों को पदों की मलाई बांटने तक के सरकार के हर कृत्य जनता के सामने आ चुके हैं। 

इस जनविरोधी सरकार का जाना तय है। यह सरकार जनता के लिए हानिकारक है! उत्तराखंड में अघोषित आपातकाल लगाया जा जा चुका है ! सच लिखना ,सच बोलना , अपराध हो गया है । निर्भीक बेबाक पत्रकारिता की आवाज दबाने के लिए जेल भेज देना ही अब एकमात्र रास्ता सरकार के पास बचा हुआ है? इस जनविरोधी तानाशाही के ख़िलाफ़ हमारा विरोध अंतिम साँस तक जारी रहेगा!”  

सरकार के करीबी खनन माफियाओं के खिलाफ़ रिपोर्टिंग करने पर दो पत्रकारों पर केस

पहाड़ टीवी के ब्यूरो चीफ ‘नवल खली’ फोन पर बात करते हुए जनचौक के संवाददाता से बताते हैं, “ कोटद्वार में नदी के किनारे अवैध खनन हो रहा था बिल्कुल मानकों के विपरीत। इससे वहां नदी के किनारे बसे लोगों के भवनों को किस तरह के ख़तरे हो रहे उन्हें तरह-तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा था इस पर रिपोर्ट करने वाले कर्मभूमि संदेश के मुख्य संपादक पत्रकारों राजीव गौड़ और मुजीब नैथानी के खिलाफ फर्जी केस दर्ज करके उन्हें परेशान किया जा रहा है।”

कर्मभूमि संदेश के संपादक राजीव गौड़।

नवल खली बताते हैं कि “30 मई को खनन माफियाओं के खिलाफ़ मीडिया में रिपोर्ट आने के बाद उसी शाम बीजेपी नेता शैलेंद्र बिष्ट गढ़वाली के पाले गुंडों ने कर्मभूमि टीवी के संपादक राजीव गौड़ पर जानलेवा हमला करके उनका सिर फोड़ दिया। वो अपनी शिकायत लेकर थाने पहुँचे तो पता लगा कि उनके खिलाफ़ पहले ही एफआईआर दर्ज़ हो चुकी है। और फिर थाने में भी पत्रकारों के बरक्श खनन माफियाओं की ही सुनी गई। हालाँकि 21 जुलाई को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अरेस्ट वारंट पर स्टे लगा दिया।”

नवल खली आगे बताते हैं कि “ रिपोर्टिंग के चलते ही पत्रकार दीप मैथानी गुणानंद जखमोला के खिलाफ़ भी एफआईआर दर्ज़ करवाई गई है। ज़्यादातर मामलों में 467, 460, 469 की धाराएं लगायी जा रही हैं। अब कोई पत्रकार दिन भर में 10 ख़बरें चलाएगा और 9 लोग एफआईआर करेंगे तो पत्रकार उन चीजों को देखेगा या क्या करेगा।”

सिंगताली पुल का मसला उठाने पर पर्वतजन के संपादक के खिलाफ 6 केस

गढ़वाल और कुमायूँ शहरों की दूरी कम करने वाला, टिहरी और पौड़ी को जोड़ने वाला सिंगताली पुल। ये पुल भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन भूतल परिवहन मंत्री जनरल खंडूरी का ड्रीम प्रोजेक्ट था। लंबे संघर्ष के बाद सिंगताली पुल का प्रोजेक्ट केंद्र और राज्य से पास हो गया। इसके बाद पुल बनाने के लिए टेंडर होना था। लेकिन भाजपा समर्थक बाबा राम देव आश्रम खोलते हैं। और योगा क्लास लगाने की बात करते हैं। मुख्यमंत्री उद्घाटन करते हैं । सरकार कहती है अब 2-3 किलोमीटर आगे वो स्थान तय करेगी। जबकि 2-3 किलोमीटर आगे फ्रेक्चर पहाड़ है और वहां पर कोई संरचना नहीं बन सकती। अगर बनता है तो पूरा पहाड़ नीचे आ जाएगा। प्रमुखता से इस ख़बर को उठाया गया तो पर्वतजन के पत्रकार के खिलाफ रंगदारी और ब्लैकमेलिंग का झूठा आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पिछले साल वो 2 महीने जेल में रहे।

‘पर्वतजन’ के संपादक शिव प्रसाद सेमवाल पर 6 केस दर्ज हैं। उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट लगाकर पुलिस उनकी तलाश में जगह जगह छापेमारी कर रही है। नतीजतन पर्वतजन के संपादक शिव प्रसाद सेमवाल फिलहाल अंडरग्राउंड हैं।  

नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट ने लिखा प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को पत्र 

नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) ने 1 अगस्त को पत्र लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से कार्रवाई करने की मांग की है। पत्र में कहा गया है कि उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में समाचार प्रकाशित करने वाले पत्रकारों को फर्जी मुकदमों में फँसाकर उन्हें गिरफ्तार करके प्रताड़ित किया जा रहा है। जबकि कोरोना महामारी के प्रकोप के दौरान डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस और प्रशासन के अन्य सरकारी विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों की तरह ही मीडियाकर्मी भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। अख़बार और चैनल जनता को महामारी से बचने के उपायों की जानकारी देने के साथ ही तमाम सूचनाएं उपलब्ध करा रहे हैं। मीडिया की भूमिका के कारण कोरोना महामारी के बारे में जानकारी से जनता में जागरुकता बढ़ी है। इस कारण महामारी से पीड़ित लोगों की संख्या सीमित रही। 

चोटिल राजीव गौड़।

मीडियाकर्मी अपना दायित्व निभाते हुए प्रशासनिक खामियों को सरकार और जनता के सामने लाते हैं ताकि समय रहते हुए सुधार किया जा सके। हैरानी की बात है कि कई जिलों में प्रशासनिक अधिकारी अपनी कमियों को उजागर होने पर मीडियाकर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रहे हैं। मीडियाकर्मियों को समाचार लिखने या दिखाने पर मुकदमा दर्ज़ किए जा रहे हैं। कई जिलों में पत्रकारों ने अपना विरोध भी दर्ज़ कराया है। उत्तराखंड में सब कुछ सही नहीं है। हम आपको हाल ही में पत्रकारों पर किए गए कुछ फर्जी मुकदमों की जानकारी दे रहे हैं।

उत्तराखंड के पुराने अख़बार पर्वतजन के संपादक शिव प्रसाद सोमवाल पर धारा 268, 500, 503 और 504 और साथ ही 120बी भी लगा दी गई तथा रंगदारी समेत कई मामलों में फर्जी केस दर्ज किए गये हैं। लगभग डेढ़ महीने जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत मिली है। सरकार सेमवाल पर फिर से राजद्रोह का मामला दर्ज़ करने की तैयारी कर रही है। यह भी बताया गया है कि देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के धमकाने के बाद सेमवाल पिछले दो सप्ताह से गायब हैं।

पत्रकार राजीव गौड़ ने कोटद्वार में सरकार की खनन नीति को लेकर सवाल उठाए थे। खनन माफिया के बारे में ख़बरें दिखाने पर राजीव गौड़ पर हमला किया गया। पुलिस ने खनन के पैसे लूटने का केस बनाकर गिरफ्तारी के आदेश दिए थे। उनकी कुर्की की मुनादी सरे बाज़ार करवाई गई। सुप्रीम कोर्ट से ही उन्हें अग्रिम जमानत मिली है।

क्राइम स्टोरी के संपादक राजेश शर्मा और पत्रकार उमेश कुमार पर भी प्रदेश सरकार ने एफआईआर दर्ज़ कराई है। पत्रकार राजेश शर्मा की आधी रात गिरफ्तारी की गई। मुख्यमंत्री के नजदीकी और पूर्व सलाहकार रहे हरेंद्र रावत द्वारा एक कमजोर सा आधार बनाकर उन्हें गिरफ्तार करवाया गया। उमेश शर्मा की गिरफ्तारी के लिए अनेक टीम बनाकर दबिश दी जा रही है। पहाड़ टीवी के दीप मैथानी पर धारा 504 व 151 लगाकर फर्जी मुकदमा दर्ज़ किया गया।

लॉकडाउन के दौरान उत्तराखंड में अलग-अलग स्थानों पर पत्रकारों पर फर्जी मुकदमे दर्ज़ कर उत्तराखंड सरकार बार-बार मीडिया को धमका रही है और पत्रकारों को परेशान कर रही है। पत्रकारों के खिलाफ़ की गई कार्रवाई से उत्तराखंड में मीडिया की स्वतंत्रता को ख़तरा है। इस तरह की घटनाओं से मीडिया बिरादरी में नाराज़गी बढ़ रही है। आपसे अनुरोध है कि ऐसे मामलों में दखल देते हुए पत्रकारों को न्याय दिलाया जाए। आशा है कि आप हमारे अनुरोध पर राज्य सरकार को निर्देश देकर कि सभी पत्रकारों पर दर्ज़ फर्जी मुकदमे तुरंत वापस कराने का कष्ट करेंगे।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)     

सुशील मानव
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