ग्राउंड रिपोर्ट: दशकों से सड़क का इंतजार कर रहे ग्रामीण

मिर्जापुर। किसी भी गांव-गिरांव की सड़कें और गलियां वहां के ‘विकास के पैमाने’ को तय करने के साथ-साथ वहां के हालात से भी रुबरू कराती हैं। यदि सड़क और मार्ग की स्थिति ठीक-ठाक नहीं रही तो ‘विकास’ को भी बखूबी आंका जा सकता है कि कितना और कैसा विकास हुआ है। इससे उस क्षेत्र इलाके के ‘विकास पुरुष’ कहे जाने वाले जनप्रतिनिधियों से लेकर उन नेताओं को भी आसानी से समझा और भांपा जा सकता है जो विकास करने और कराने का दावा करते नहीं थकते हैं।

उत्तर प्रदेश का मिर्ज़ापुर जनपद कभी नक्सलवाद के नाम पर सुर्खियों में हुआ करता था। नक्सलियों की धमक समाप्त हुई है, लेकिन इस जनपद से भ्रष्टाचार और विकास के नाम पर मची लूट-खसोट आज भी बदस्तूर जारी है। क्षेत्र का विकास हो या ना हो लेकिन विकास करने व कराने वालों की जरूर दीन-हीन दशा में भरपूर सुधार दिखाई देता है।

मिर्ज़ापुर जनपद का हलिया विकास खण्ड क्षेत्र सोनभद्र जनपद की सीमा से लगे होने के साथ-साथ प्रयागराज जनपद की सीमा से सटे मध्य प्रदेश राज्य से भी लगा हुआ है। जंगलों-पहाड़ों से घिरा हुआ हलिया विकास खण्ड कभी खनन माफियाओं से लेकर मनरेगा योजना में हुए घोटालों को भी लेकर सुर्खियों में बना रहा है। प्रदेश में हुए मनरेगा घोटाले की सूची में मिर्ज़ापुर का हलिया भी अव्वल में था। वहीं जब बात होती है विकास और पिछड़ेपन की तो ‘विकास’ पर ‘पिछड़ापन’ भारी पड़ता हुआ दिखाई देता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि विकास की सच्चाई कागजों में चाहे जिस भी अंदाज में दर्ज हो लेकिन हकीकत में जमीनी सच्चाई देख रोना आता है कि आजादी के साढ़े सात दशक से ज्यादा समय होने के बाद भी विकास की किरणें चहूंओर बिखरने से क्यों दूर हैं?

स्थानीय ग्रामीणों की माने तो यहां से चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने क्षेत्र के विकास से कहीं ज्यादा स्वयं के विकास पर जोर दिया है। तो विकास की लकीर खिंचने वाले उन सरकारी मुलाजिमों ने भी विकास के नाम पर जमकर स्वयं से लेकर अपनों को उपकृत करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखा।

मनरेगा योजना में हुए घोटाले से लेकर अन्य योजनाओं को लेकर समय-समय पर होती कार्रवाई शिकवा-शिकायतें बानगी मात्र हैं। स्थानीय पत्रकार राकेश पाण्डेय कहते हैं “हलिया विकास खण्ड क्षेत्र समस्याओं और उपेक्षाओं के भंवरजाल में फंसा हुआ, इससे बाहर निकलने के लिए तड़फड़ा रहा है, जिसे फिलहाल इस भंवरजाल से मुक्ति दिलाने वाला कोई उपयुक्त व्यक्ति नहीं मिल पाया है।”

वह कहते हैं कि “सरकार कहती हैं गांव से लेकर नगर तक की गलियों को आवागमन में सुगमकारी बनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी जायेगी, लेकिन यहां (हलिया) के हालात तो कुछ और ही कहानी कहते हुए नज़र आते हैं।

आजादी के 77 साल बाद भी हलिया विकास खण्ड क्षेत्र के कई गांव और मज़रे विकास की लकीर खिंचने की प्रतीक्षा में हैं। यहां सड़क, खड़ंजा और मार्ग का अभाव बना हुआ है। लोगों को आज भी पथरीली राहों पर चलकर आना जाना पड़ता है। बीमार हों या लाचार, पथरीली राहों से लेकर पगडंडियों के सहारे आवागमन करना मानों इनकी नियति बन चुकी है।

दशकों से 500 मीटर की सड़क को है पिच होने की दरकार

मिर्ज़ापुर के अंतिम छोर पर स्थित हलिया विकास खण्ड क्षेत्र का अमदह-गड़बड़ा धाम मार्ग दशकों से मरम्मत की बांट जोह रहा है। जानकर हैरानी होगी कि सड़क की दूरी भी कोई दो-चार दस किलोमीटर की नहीं है बल्कि महज पांच सौ मीटर की है, जो पिछले तीन-चार दशकों से जस की तस पड़ी हुई है। गिट्टी-मिट्टी डालने के बाद मानों इसे भुला दिया गया है। लोग मजबूर होकर इसी पथरीले रास्ते से आने जाने को विवश हैं।

गांव के राजकुमार बताते हैं “हलिया विकास खण्ड क्षेत्र के ग्राम अमदह मार्ग से गड़बड़ा धाम मार्ग को जोड़ने वाली तकरीबन 500 मीटर दूरी की सड़क को आज तक कोई भी जनप्रतिनिधि बनवाने का प्रयास नहीं किया है। जबकि समय-समय पर इस मार्ग की मरम्मत को लेकर आवाज उठाई जाती रही है। सड़क न बनने से पैदल भी चल पाना कठिन होता है।”

अन्य ग्रामीणों का भी कहना है कि “हमने कई बार जनप्रतिनिधियों से शिकायत की पर कोई भी जनप्रतिनिधि हम लोगों की बातों को संज्ञान में नहीं लिया। परिणामस्वरूप आज भी हम लोग सड़क जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित होकर आवागमन की समस्या से जूझ रहे हैं।”

ग्रामीण कहते हैं कि “चुनावों के दौरान भी हम सड़क को लेकर दुहाई देते रहे हैं, फिर भी किसी ने चुनाव बीतने के बाद पलटकर इस ओर झांकने की बात तो दूर रही है कभी पलटकर ग्रामीणों की समस्या को जानने की जहमत नहीं उठाई है।”

सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र में समस्याएं हैं बेशुमार

हलिया विकास खण्ड मिर्ज़ापुर के छानबे विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत जिले के अंतिम छोर पर स्थित विकास खण्ड है। हलिया विकास खण्ड आदिवासी समाज के लोगों की बाहुल्यता वाला इलाका है। इसी के साथ ही सर्वण, मुस्लिम सहित अन्य जातियों के लोग भी रहते हैं। यहां का अधिकांश भू-भाग पथरीला है। ऐसे में यहां समस्याएं भी बेशुमार देखने को मिलती हैं।

सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र होने के बावजूद भरपूर विकास न होने से यह क्षेत्र विकास से महरूम पड़ा हुआ है। कहना ग़लत नहीं होगा कि हाल के दिनों में चुने गए जनप्रतिनिधियों ने क्षेत्र के विकास से कहीं ज्यादा स्वयं के विकास को ज्यादा महत्व दिया है।

इलाके की मीना देवी कहती हैं कि “यहां सड़कों मार्गों की हालत खराब है। कोई सड़क आजादी के बाद से ही नहीं बनी हुई है, तो कोई सड़कें बीस-तीस सालों से बनने की बांट जोह रही हैं।”

मीना देवी सवाल करती हैं कि “सरकार कहती हैं कि देश में सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। देश के विकास की लकीर गांवों के विकास से ही होते हुए आगे की ओर बढ़ती है, लेकिन यहां तो तस्वीर कुछ और ही कहानी कहते हुए नज़र आती है। उपेक्षा, पिछड़ेपन के आगे विकास मानों छुप सा गया है।”

अपने उम्र का हवाला देते हुए पप्पू तेली ‘जनचौक’ को बताते हैं कि “65 की अवस्था पार होने को हो गई है, लेकिन कभी इस सड़क को बनते हुए नहीं देखा हूं। कितने ही चुनाव बीते, कितने नेता वोट लेने के लिए आए और चले गए लेकिन किसी ने भी सड़क बनवाने की सुध नहीं ली है।”

पप्पू के शब्दों में दर्द और कसक के साथ उपेक्षा का भाव साफ झलकता है। वह उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि “आप लोग भी देख लीजिए कि हम लोग कैसे आते जाते हैं।” वह आश्चर्य जताते हुए कहते हैं, कि “यह 500 मीटर का मार्ग अमदह गांव से होते हुए गड़बड़ा धाम को जोड़ता है, बावजूद इसकी उपेक्षा समझ से परे दिखाई देती है।”

बता दें कि गड़बड़ा धाम हलिया क्षेत्र का विख्यात दार्शनिक स्थल है। जहां मिर्जापुर समेत पड़ोसी जनपद और पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश से वर्ष के प्रमुख पर्वों में लगने वाले मेले में लाखों की संख्या में भक्त उमड़ते हैं, लेकिन महज 500 मीटर की सड़क का हाल बदहाल बना हुआ है।

इलाके के लोगों की माने तो अन्य दिनों में तो किसी प्रकार आवागमन हो जाता है, लेकिन बरसात के दिनों में स्थिति बिगड़ जाती है। कीचड़ के साथ कंकड़ पत्थर पैरों को जख्मी कर देते हैं।

 ग्रामीण बोले अबकी सिखाएंगे सबक

अमदह-गड़बड़ा धाम मार्ग की बदहाली को लेकर ग्रामीणों में दिनों दिन आक्रोश गहराने लगा है। दूसरी ओर 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी भी होने लगी है। पक्ष और विपक्ष दोनों दलों के नेताओं की दौड़ धूप भी तेज हो गई है। मतदाताओं की खुशामत में नेता फ़िर से हाथ-पांव जोड़ते हुए चरण चापलूसी में जुट गए हैं।

वहीं ग्रामीण अबकी बाक इस बात को लेकर अड़े हैं कि वह भी “खेला होगा” की तर्ज पर वोट मांगने वाले नेताओं को जवाब देंगे और सवाल करेंगे कि आखिरकार उन्होंने इस सड़क के लिए क्या किया है? यह सड़क दशकों से यदि ऐसे ही पड़ी हुई है तो यह किसकी जिम्मेदारी बनती है कि इसकी मरम्मत कराई जाए?

(मिर्ज़ापुर से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

संतोष देव गिरी
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संतोष देव गिरी