बिहार: राजनीतिक वजहों से हुई रामनवमी पर हिंसा, पक्ष-विपक्ष दोनों नाकाम

 

बिहार। “दंगा मुक्त बिहार बनाना है तो यहां की चालीस की चालीस सीटें मोदी जी को दीजिए, दंगा करने वालों को उल्टा लटका कर सीधा कर देंगे।” बिहार दंगे के बाद रैली में देश के गृह मंत्री अमित शाह ने यह बयान दिया।

बिहार की राजनीति पर कई आर्टिकल लिखने वाले पत्रकार अजय कुमार बताते हैं कि, “बीजेपी जदयू और राजद के बिना कभी भी सत्ता में नहीं आ सकती है। इसलिए ‘साम-दाम-दंड-भेद’ की नीति का पूरा उपयोग बीजेपी कर रही है। बीजेपी चाह रही है कि समाजवाद की बात नहीं हो, इसलिए सांप्रदायिक आधार पर ऐसी स्थिति बनाने की कोशिश कर रही है।”

ये वही बिहार है जहां के नेता लालू प्रसाद ने संसद में बोला था कि “देश और राज्य ‘लुंज-पुंज’ नहीं चलता है। देश और राज्य चलता है तो रौब से चलता है।” इसलिए बिहार की राजनीति भी सांप्रदायिक ताकतों के सीने पर लात रख के सियासत करती है।

वहीं बिहार में हो रहे जातिगत जनगणना ने बीजेपी की राजनीति को कमजोर किया है। इसलिए महंगाई और दूसरे मुद्दों के बजाय लोग हिंदू-मुसलमान करें तो बीजेपी को फायदा होगा। वहीं बिहार में हो रहे किसी भी तरह के धार्मिक दंगों का फायदा बीजेपी को ही मिलेगा।

बिहार की राजधानी पटना से 70 किलोमीटर दूर बिहार शरीफ़ की आबादी क़रीब साढ़े तीन लाख है। जिसमें मुसलमानों की संख्या एक लाख है। शोभा-यात्रा के बाद हुई हिंसा के बाद अब भी यहां के हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। स्थानीय निवासी चंदन कुमार विस्तार से बताते हैं कि, “प्रत्येक साल रामनवमी के मौके पर बिहार शरीफ में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के द्वारा रामनवमी की यात्रा अलग-अलग मोहल्लों में निकलती है।

हिंसा के दौरान जलाई गई बस

सभी यात्राओं का समापन श्रम कल्याण केंद्र के स्टेडियम से होते हुए मणिराम अखाड़े में होता है। इस बार रामनवमी में अजीब भीड़ थी। शोभा यात्रा का शहर के रांची रोड पर ‘गगन दीवान’ का इलाक़ा आते ही माहौल बदल गया था। नालंदा एसपी की मौजूदगी से वहां हालात पर क़ाबू पा लिया गया। लेकिन शहर में आग लगनी थी तो लग गई। दोनों तरफ से पत्थरबाजी हुई है। शहर में उस दिन उसी भीड़ में कई अनजान चेहरे को देखे गए थे। स्थानीय निवासियों ने तो एक-दूसरे की मदद ही की।” वहीं स्थानीय निवासी जाकिर के मुताबिक उन्होंने बिहार शरीफ़ में ऐसी हिंसा कभी नहीं देखी थी‌। भीड़ की तुलना में पुलिस की तैनाती बहुत कम थी।

दंगाइयों ने जला डाला सुनहरा इतिहास

बिहार में हुए दंगे में बिहार शरीफ़ के सबसे पुराने ‘मदरसा अज़ीज़िया’ को 31 मार्च की शाम रामनवमी की शोभायात्रा के साथ चल रहे दंगाइयों के द्वारा आग के हवाले किया गया। अजीजिया मदरसा को बड़ी जागीरदार और समाजसेवी बीबी सोग़रा ने अपने शौहर अब्दुल अज़ीज़ की याद में खोला था। मदरसा अज़ीज़िया के सचिव ने इस पूरी घटना को नालंदा विश्वविद्यालय के जलाये जाने से जोड़ा है। उन्होंने कहा जिस तरह से नालंदा यूनिवर्सिटी के साथ कभी हुआ था, उसका दूसरा रूप लोगों ने मदरसा अज़ीज़िया के साथ किया है।

मदरसे के प्रिंसिपल मौलाना क़ासिम के मुताबिक 4500 से अधिक किताबें जलकर खाक हो गईं। इससे पहले साल 2017 में भी दंगाईयों के द्वारा मदरसा अज़ीज़िया को नुक़सान पहुंचाया गया था। जिसके बाद यहां पर पुलिस को काफ़ी लंबे समय तक तैनात किया गया था। मदरसा अज़ीज़िया में फिलहाल 500 बच्चे पढ़ रहे थे। पढ़ रहे छात्रों की मार्कशीट के अलावा और भी कई जरूरी दस्तावेज जल गए।

मदरसा अज़ीज़िया में जलाई गई किताबें

तारिक अनवर चंपारणी लिखते हैं कि, “नालंदा विश्वविद्यालय का इल्ज़ाम बख़्तियार खिलजी पर डालकर आज मुसलमानों से बदला लिया जा रहा है। हमने तो नालंदा विश्वविद्यालय को जलते हुऐ नहीं देखा है। चंद किस्सों और कहानियों को छोड़कर कोई फुटेज भी नहीं है और कोई साक्ष्य भी नहीं है। लेकिन जबतक दुनिया रहेगी यह तस्वीरें गवाही देती रहेंगी कि मदरसा अजीजिया में आग लगाने वाले कौन थे। यह जलती हुई किताबें और फर्श पर पड़े राख मिटा दिए जायेंगे मगर गूगल पर घूम रही इन तस्वीरों से पीछा कैसे छुड़ाओगे?”

बिहार के महागठबंधन का मौजूदा स्वरूप बीजेपी का मुकाबला नहीं कर सकता है

नालंदा के स्थानीय निवासी रैहान, पटना विश्वविद्यालय में पढ़ रहे हैं। वो बताते हैं कि, “बिहार के बिहार शरीफ में दंगा हुआ। सत्तासीन पार्टी भाजपा और बजरंग दल पर आरोप लगा रहे हैं। लेकिन सवाल सत्ताधीश पार्टी पर भी उठ रहा है।“

बिहार शरीफ नीतीश कुमार का गृह जिला है। इसके बावजूद अभी तक मुख्यमंत्री घटनास्थल पर नहीं पहुंच सके हैं। वहीं लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी भी अभी तक घटनास्थल पर नहीं गए हैं। बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुब्हानी और डीजीपी राजविंदर सिंह भट्टी हैं। जो अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं। इसके बावजूद दंगा साजिश के तहत हो गया। आखिर यह विफलता किसकी है।

आखिर किसे बचाया जा रहा है?

प्रशासनिक विफलता की परिभाषा क्या होती है? पहले दिन घटना घट जाए तो उसे विफलता नहीं बल्कि लापरवाही की संज्ञा दी जाती है। लेकिन यदि दूसरे और तीसरे दिन भी ऐसा होता रहे तो वह प्रशासनिक विफलता ही कही जाती है।

हिंसा के बाद सड़क पर तैनात पुलिसकर्मी

वहीं बिहार शरीफ के ही रूस्तम बताते हैं कि, “नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल के दौरान जीरो टॉलरेंस नीति पर उनके काम ने उन्हें सुशासन बाबू का कहलवाया। लेकिन बिहार में दंगे की लौ चार दिनों तक कैसे दहकती रही? पुलिस चाह ले तो इमरजेंसी ला सकती हैं, दंगा खत्म करना कौन सी बड़ी बात है। बीजेपी को दोष देना अधूरा सच है, लेकिन आधा सच यह है कि नीतीश कुमार पूरी तरह विफल साबित हुए हैं।”

नालंदा मुख्य रूप से बौद्धों की भूमि रही है।

वेबपोर्टल पत्रकार सन्नी कुमार बताते हैं कि “वर्तमान में भी नालंदा जिला की 7 विधानसभा सीटों में से 6 सीटों पर जदयू और राजद के विधायक हैं। नालंदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति जन्मभूमि रही है। जहां उनकी जाति यानी कुर्मियों की संख्या सबसे अधिक है। मुख्यमंत्री ने सबसे ज्यादा विकास नालंदा का किया है। इसके बावजूद भी नालंदा में भाजपा के लोग दंगा कराने में सफ़ल हो गये, जबकि मीडिया के मुताबिक किशनगंज सबसे ‘हॉट-स्पॉट’ था दंगाई राजनीति के लिए। यह दंगा पूरी तरह से नीतीश कुमार के सुशासन सरकार की विफलता को दर्शाता है।”

(बिहार से राहुल की रिपोर्ट।)

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