हम पाकिस्तान बनते जा रहे हैं, हमारे देश का कैसे सम्मान होगा अगर हम खुद अपने इतिहास का सम्मान नहीं करेंगे: इरफान हबीब

नई दिल्ली। इतिहास इस रूप में पढ़ा और पढ़ाया जाना चाहिए कि जैसा वह था न कि जैसा उसे होनी चाहिए था। 93 वर्षीय इतिहासकार इरफान हबीब ने यह बात टेलीग्राफ से बातचीत में कही है।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एमिरेट हबीब ने कहा कि दुर्भाग्य से मौजूदा शासन तंत्र न केवल इतिहास के महत्वपूर्ण हिस्से को हटा रहा है बल्कि यह भी साबित करने की कोशिश कर रहा है कि भारतीय आर्य हैं। यह कैसे भारत को प्रभावित करेगा कि हम तमिल या आर्य हैं?

उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी इस बात को साबित करने के लिए मरी जा रही है कि सिंधु घाटी सभ्यता उनसे यानी आर्यों से संबंधित थी। क्या वे इस बात को नहीं समझते हैं कि हम तब भी भारतीय रहेंगे अगर हम द्रविड़ होंगे।

हबीब का मानना है कि भारत ने शिक्षा नीति के मामले में पाकिस्तान की किताबों से लगता है सबक सीखा है।

उन्होंने कहा कि हम पाकिस्तान बनते जा रहे हैं। वहां सिंधु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो है। वहां तक्षशिला में कला है। जहां के बारे में मार्शल का कहना था कि यहां तक कि ग्रीक आर्ट की भी उससे तुलना नहीं की जा सकती है।

वो इसे पाकिस्तान में नहीं पढ़ाते हैं। न ही मोहनजोदड़ो और न ही तक्षशिला। अगर आप अपने इतिहास का सम्मान नहीं करते हैं तो आपके देश का सम्मान कैसे होगा? अब वही स्थिति भारत में है। आप (बीजेपी सरकार) इतिहास की किताबों से अकबर को बाहर करते हैं। पूरी दुनिया कहती है कि भारत उस समय एक सहिष्णु देश था। यूरोप के लोग जिन्होंने उस दौर में भारत का दौरा किया इस बात को देखकर आश्चर्य चकित थे कि हर धर्म के लोग आपस में मेलजोल से रहते थे। लेकिन यह इतिहास अब नहीं पढ़ाया जाएगा।

हबीब ने कहा कि अच्छी बात यह है कि कोई भी गंभीर इतिहासकार उनके साथ नहीं जुड़ा है।

नेहरू और सावरकर

हबीब ने इस बात पर जोर दिया कि कांग्रेस को आज़ादी दिलाए जाने का श्रेय मिलना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हिंदुत्व की ताकतों के पास खुद की तुलना कांग्रेस या फिर वामपंथी दलों से करने का अधिकार नहीं है। कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया के अजय कुमार घोष और ढेर सारे नेता सेलुलर जेल भेजे गए थे लेकिन उन्होंने कोई माफीनामा नहीं लिखा जैसा कि विनायक दामोदर सावरकर ने किया।

आश्चर्यजनक रूप से जेल से रिहा होने के बाद भी ब्रिटिश हुकूमत सावरकर से पाबंदियां नहीं हटाती है। वह उन्हें किसी राजनीतिक कार्यवाही में हिस्सा देने की इजाजत नहीं देती है। यह बांबे में 1937 में बनी कांग्रेस की सूबे की सरकार थी जिसने एक प्रस्ताव पारित किया और उनके खिलाफ लगी सभी पाबंदियों को वापस लिया। लेकिन इस बेकार के आदमी ने अपनी सबसे पहली सभा कांग्रेस के ही खिलाफ की।

अपने ऊपर से पाबंदियों के हटाए जाने के बाद सावरकर ने जल्दी ही हिंदू महासभा ज्वाइन कर ली।

उन्होंने बताया कि जब निचली अदालत ने महात्मा गांधी की हत्या के मामले में सावरकर को बरी कर दिया तो पंडित नेहरू ने उन्हें बचाया। फैसले में कहा गया कि उनके खिलाफ पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं। जज ने इस तरह के प्रमाणों को मांगा लेकिन उन्हें कभी मुहैया नहीं कराया गया।

नेहरू सरकार चाहती तो आदेश को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकती थी। लेकिन उन्होंने कहा कि अगर वह अपील करते हैं तो लोग उन पर सावरकर के पीछे जान बूझ कर पड़ने का आरोप लगाएंगे। इसे नेहरू की सदिच्छा कहिए या फिर दयालुता जिसके चलते वह छूट गए। लेकिन ये लोग नेहरू के इस योगदान की कभी सराहना नहीं करते हैं।

सेकुलरिज्म

हबीब ने कहा कि आज़ादी की लड़ाई में आंदोलनों के दौरान सभी धर्मों और जातियों को शामिल करने का फैसला किया गया था और इसी ने देश में सेकुलरिज्म की नींव रखी।

उन्होंने कहा कि सेकुलरिज्म का मतलब है कि किसी भी धर्म का प्रभाव नहीं रहेगा केवल बुद्धि और विवेक का प्रभाव होगा। दुर्भाग्य से कुछ महत्वपूर्ण संस्थाओं ने सेकुलरिज्म की परिभाषा बदल दी और कहा कि सभी धर्मों का प्रभाव रहेगा। यह बकवास है क्योंकि इस तरह की स्थिति में केवल वर्चस्वशाली धर्म का ही सिक्का चलेगा।

हमारे संविधान की विरासत केवल भारतीय संस्कृति नहीं है। हमारे संविधान की विरासत दुनिया भर में लोकतंत्र की विरासत से आती है। अमेरिकी संविधान में धर्म शब्द नहीं है। फ्रांस की क्रांति और फ्रांस का संविधान भी इसका जिक्र नहीं करता है।

इतिहास का पुनर्लेखन

हबीब ने कहा कि आप बीए के नये पाठ्यक्रम को देखिए: यह कहता है कि जाति प्रथा भारत में मुस्लिम शासकों के आने के बाद आयी। पाठ्यक्रम मनुस्मृति को भी पढ़ने की सलाह देता है। एक पाठक क्या करेगा? मनुस्मृति पूरी जाति से भरी हुई है और उसके बाद आप कह रहे हैं कि मुस्लिम शासकों के प्रवेश के पहले जाति प्रथा नहीं थी।

अकबर को पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया है। अशोक वहां हैं लेकिन उनका परिचय गायब है। वो कह रहे हैं कि आर्य भारतीय थे। और वहां से दूसरे देशों में गए। आप बताइये यह कैसे अलग होगा?

मानव कंकाल के अध्ययन से यह बात सामने आती है कि मानव की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई। तो इस बात का क्या मतलब होगा कि हम अफ्रीका से नहीं आए हैं बल्कि केवल भारत से आए हैं।

नामों में परिवर्तन

बीजेपी नेताओं द्वारा अलीगढ़ के नाम को हरिनगर किए जाने के संदर्भ में हबीब कहते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जहां आज स्थापित है वहां कभी कैंटोनमेंट हुआ करता था। मराठा उसे अपने समर्थक नजफ अली खान के नाम पर अलीगढ़ कह कर बुलाया करते थे। क्या वो अपने खुद के इतिहास को मिटाना चाहते हैं?

कच्चाथिवु

हबीब ने कहा कि श्रीलंका और भारत दोनों ब्रिटिश हुकूमत के तहत थे। न ही तमिल और न ही श्रीलंका के लोग कच्चाथिवु द्वीप पर रहते थे। बाद में उस दौर की ब्रिटिश हुकूमत ने द्वीप को श्रीलंका (उस समय सीलोन) को दे दिया।

उन्होंने कहा कि मछुवारे वहां लगातार जाते रहे मछली मारने के लिए नहीं बल्कि मछली मारने के बाद आराम करने के लिए। इस समझौते पर इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान मुहर लग गयी। इस हिस्से की जमीन भारत द्वारा श्रीलंका को नहीं दी गयी।

उन्होंने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान के एक हिस्से में आरोप लगाया है कि कांग्रेस सरकार ने भारत के एक हिस्से को श्रीलंका को दे दिया।

हबीब ने कहा कि हमें जो बात परेशान करती है वह यह कि हम अपने पड़ोसियों के साथ अपने रिश्तों को बहुत तेजी से बर्बाद कर रहे हैं। अब वो इस मुद्दे पर श्रीलंका को नाराज करना चाहते हैं। पाकिस्तान और चीन से विवाद पहले से ही चला आ रहा है। क्या हम शांति से नहीं रह सकते हैं?

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