पश्चिम बंगाल: पैसेंजर ट्रेनों के बंद होने से छोटे व्यापारियों की आफ़त, भरण पोषण के लाले पड़े

पिछले साल के दौरान महामारी में लॉकडाउन की वजह से आयी मुश्किलों से उबर ही नहीं पाएं थे कि सरकार ने एक बार फिर लॉकडाउन लगाकर आम आदमी की कमर तोड़ दी है और ऊपर से बढ़ती महंगाई अलग। अब तो लगता है आने वाले समय में भोजन के निवाले लाले पड़ने वाला है, यह कहना है आसनसोल से हावड़ा रोजाना यात्रा करने वाले संजय जाना का। जो मुख्य रुप से एक छोटे स्थानीय व्यापारी हैं। आसनसोल और उसके आसपास के इलाके की दुकानों में फरमाइश के हिसाब से उन्हें सामान सप्लाई करते हैं। जिसके लिए वह रोजाना सीतारामपुर से कोलकाता की यात्रा करते हैं। ये काम ही उनके आमदनी का एकमात्र साधन है। लेकिन कोरोना महामारी और कुव्यस्था के कारण काली छाया कुंडली मार बैठी है।

संजय का कहना था कि पिछले लॉकडाउन में कमाई पूरे तीन महीने तक बंद रही। अब एक बार फिर चुनाव खत्म होते ही लॉकडाउन लगा दिया गया है। जिसके कारण हम लोगों को बहुत परेशानी हो रही है। उनका कहना है कि जिस ट्रेन से वे लोग जाते थे वह ट्रेने ही बंद कर दी गई है। बची-खुची जो एक्सप्रेस ट्रेन चल रही हैं उसमें सीआरपीएफ ने माल (सामान) लाने-ले जाने से मना कर रखा है, संजय के आरोपों के अनुसार सीआरपीएफ वाले एक्सप्रेस ट्रेन से सामान ले जाने पर रिश्वत के रूप में पैसे भी मांगते हैं। वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि स्थिति ऐसी हो गई है खाने और बुनियादी जरूरतों को पूरा कर पाने में अक्षम होने लगी है। दुकानदार भी उधार देने के लिए मना कर रहे हैं। किसी तरह परिचितों से कर्ज लेकर घर चल रहा है।

पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद लगे अल्प लॉकडाउन को लगभग एक महीने से ज्यादा का समय हो गया है। इस दौरान राज्य सरकार द्वारा लॉकडाउन में धीरे-धीरे करके राहत दी गई है। 14 जून को राज्य सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन में लोगों को उम्मीद थी कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट को पूर्व की भांति सुचारू रूप से परिचालन की अनुमति दी जाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि कोरोना के मामले कम जरूर हुए हैं, लेकिन इस पर नियंत्रण रखा जाए इसलिए अभी कुछ जरुरी प्रतिबंधों को नहीं हटाया जा सकता है।

14 जून को जारी किए गए नोटिफिकेशन में शॉपिंग मॉल, शॉपिग कॉम्पलेक्स, रेस्त्रा और अन्य निश्चित सीमा के अंदर खोले जाने की अनुमति दी गई है। ठीक इसके इतर सामजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक कार्यक्रमों में लोगों को हिस्सा लेने पर पाबंदी लगाई गयी है। वहीं राज्य में किसी भी राजनीतिक कार्यक्रमों में किसी तरह की पाबंदी नहीं दिखाई देती है। पूर्व वर्ष कोरोना काल में लॉकडाउन से पहले मध्यप्रदेश में सरकार पलटने की कहानी तो सभी के जहन में होगी ही, ऐसी ही कहानी पश्चिम  बंगाल में भी हो रही है। जिस वक्त एक आम इंसान किराये भाड़े के अभाव के कारण यात्रा करने में समक्ष नहीं है। उस वक्त पश्चिम बंगाल में मुकुल राय को बीजेपी से टीएमसी में शामिल कराने की प्रक्रिया चल रही थी। इतना ही नहीं जिस वक्त लॉकडाउन को लेकर कई तरह के प्रतिबंध थे उसी वक्त में राजनीतिक रसूख वाले लोग बिना किसी परवाह किये एक फिल्टर के उद्धाटन के लिए अपने समर्थकों के साथ भीड़ लगाये हुए थे। राज्य के कानून मंत्री मलय घटक ने इस दौरान कई ऐसे कई क्रार्यक्रमों में हिस्सा लिया जो महामारी एक्ट के अंतर्गत आते हैं। वहीं दूसरी ओर राज्य की गरीब जनता दो जून की रोटी  के जुगत में परेशान थी।

संजय का कहना था कि धनबाद और हावड़ा के बीच चलने वाली ट्रेनों में डेली पैसेंजर आते-जाते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद काम जारी रहे इसलिए हम लोगों ने सोचा कि मुंबई मेल से जाएंगे, लेकिन संभव नहीं हो सका। पहले हम लोग एमएसटी (मासिक टिकट पास) एक बार ही ले लेते थे। लेकिन पिछले लॉकडाउन के बाद प्रतिदिन रिजर्वेशन करवाना पड़ता है। उसके बाद हम लोग प्रतिदिन दस रुपए भाड़ा देकर हावड़ा स्टेशन से बाजार जाते थे लेकिन अब सब कुछ बंद है तो टैक्सी से 80-90 रुपए का भाड़ा देना पड़ रहा है। अब हम लोगों की कमाई इतनी कम हो गई है तो इतना खर्चा कहां से देगें। ऊपर से ट्रेन से ज्यादा सामान लाने- लेजाने की अनुमति भी नहीं है। अब ऐसी स्थिति में गरीब इंसान करे तो क्या करें।

अन्य डेली पैसेंजर कौशल कुमार साह का कहना है कि मेरा कुछ भी काम धंधा नहीं चल रहा है। मैं कॉस्मेटिक और साड़ी का व्यापार करता हूं। लेकिन अब घर बैठने को मजबूर हूं। बहुत ही ज्यादा दिककतों का सामना करना पड़ रहा है। हमें तो ये भी नहीं पता है कि हम किसके सामने जाकर अपनी परेशानी को बताएं और उसका हल निकाले।

कौशल बताते हैं कि रोजाना 200 से 300 डेली पैसेंजर एक ही ट्रेन ही में यात्रा करते हैं, जबकि यहां से लगभग तीन से चार ट्रेन हैं जो इन्हें लेकर जाती है, इसके अलावा लोकल ट्रेनें भी हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो लगभग 1000-2000 तक डेली पैसेंजर बंदी के कारण अपने कामकाजी लोग अपने घरों में बंद हैं, जिसमें कुछ नौकरी करने वाले हैं कुछ तो कुछ बिजनेस करने वाले।  

रेलवे के एक कर्मचारी से बात करने पर जानकारी मांगी गई तो नाम न बताने की शर्त पर उनका कहना था कि चुनाव खत्म होने के बाद से ही कई ट्रेनों का परिचालन बंद कर दिया गया है। कुछ ही ट्रेन चल रही है। स्टेशन का हाल देखकर ही आप समझ जाएंगी कि कितनी ट्रेन चल रही है। कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच राज्य सरकार ने कई एक्सप्रेस और लोकल ट्रेनों के परिचालन को अगले आदेश तक बंद रखने का आदेश दिया था। जब उनसे पूछा गया कि क्या ट्रेनों के परिचालन को बंद करने में रेलवे का भी हाथ है क्या, तो उन्होंने कहा कि ट्रेनों को परिचालन को बंद का निर्णय सिर्फ राज्य सरकार का है।  

आपको बता दें धनबाद-हावड़ा और आसनसोल हावड़ा के बीच धनबाद-हावड़ा (कोलफिल्डस एक्सप्रेस), हावड़ा-धनबाद (ब्लैक डायमंड एक्सप्रेस), आसनसोल-हावड़ा (विधान एक्सप्रेस) का परिचालन मुख्य रुप से डेली पैसेंजर के लिए किया जाता है। जिसमें कई सरकारी, गैर सरकारी, छोटे व्यापारी, स्टूडेंट्स आना जाना करते हैं। पिछले साल से कोरोना के बाद हुए लॉकडाउन के कारण इन ट्रेनों के परिचालन को बीच-बीच में कई बार बंद किया गया है।

(पूनम मसीह स्वत्रंत पत्रकार है और पश्चिम बंगाल में रहती है)

पूनम मसीह
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