यूपी सरकार आखिर चाहती क्या है? क्या उप्र में अलग कानून चल रहा है?

महामारी के दौर में संसद का बहुप्रतीक्षित सत्र आज सोमवार से शुरू हुआ। यह लोकतंत्र का तकाजा है और संसदीय लोकतंत्र के इतिहास की लंबे अरसे से चली आ रही परंपरा जैसी है कि संसद सत्र के दौरान विशेषकर उसके पहले दिन देश की जनता अपने ज्वलंत सवालों की ओर विभिन्न संगठनों के माध्यम से, शांतिपूर्ण कार्यक्रम आयोजित कर भारतीय लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था अर्थात संसद का ध्यान आकर्षित करती है।

इस बार भी तमाम कार्यक्रम हुए, संसद के सामने जंतर मंतर पर किसानों ने मोदी सरकार के कृषि विरोधी अध्यादेशों के खिलाफ प्रतिवाद किया, लेकिन उत्तर प्रदेश में जब छात्र-युवाओं ने अपने बेरोजगारी के महासंकट को लेकर शांतिपूर्ण ढंग से महामारी के सारे प्रोटोकॉल का पालन करते हुए युवा मंच के बैनर से इलाहाबाद में अपनी बात उठानी चाही तो उनके नेताओं, कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।  ज्ञातव्य है कि इसी हफ्ते एक प्रतियोगी छात्र ने वहां आत्महत्या की है।

इसी तरह बनारस में समाजवादी संगठनों के बैनर तले प्रतिवाद कर रहे नौजवानों पर बल प्रयोग किया गया और गिरफ्तारी हुई। क्या उत्तर प्रदेश में पूरे देश से अलग कोई कानून चल रहा है? एक ऐसे दौर में जब 50-50 लाख नौकरियां एक एक महीने में खत्म हो रही हैं, बेरोजगारी दर 9.1% के अकल्पनीय स्तर पर पहुंच गई है, सरकार रोज नए-नए फरमान जारी करके, सारे सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण करके सारी नौकरियों को खत्म कर रही है, उस समय अगर नौजवान रोजगार का सवाल नहीं उठाएंगे तो कब उठाएंगे? आख़िर उनके जीवन और भविष्य का क्या होगा? उनकी ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे उनके बूढ़े मां-बाप, परिवार का क्या होगा?

क्या हताश-निराश नौजवानों को अवसादग्रस्त होकर खुदकशी के लिए छोड़ दिया जाएगा?

योगी सरकार उन्हें रोजगार तो नहीं ही दे रही है, क्या अब उन्हें लोकतांत्रिक ढंग से रोजगार की मांग करने के अधिकार से भी वंचित कर दिया जाएगा? पुलिस का यह तर्क हास्यास्पद है कि महामारी के कारण सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य सावधानियां न बरतने के कारण कार्रवाई की गई है। सच तो यह है कि नौजवानों को पुलिस वैन में जिस तरह सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते हुए ठूंस कर पुलिस ले जा रही है, उसके लिए Pandemic Act के तहत पुलिस प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए!

इलाहाबाद और बनारस में युवाओं की गिरफ्तारी और बल प्रयोग की प्रत्येक लोकतंत्र पसंद नागरिक भर्त्सना करेगा। सरकार लोकतांत्रिक विरोध के संवैधानिक अधिकार के सारे रास्ते बंद कर नौजवानों को अराजकता की ओर ढकेलने से बाज आए!

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं और आजकल लखनऊ में रहते हैं।)

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