कृषि कानूनों में काला क्या है -1:कृषि क्षेत्र पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में सौंपने की साजिश

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार 05 फरवरी 2021 को राज्यसभा में तीनों कृषि कानूनों पर उठे सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि कृषि कानूनों को काला कहा जाता है, लेकिन मैं हर बैठक में किसानों से पूछता रहा कि इसमें क्या काला है, किसी ने कोई जवाब नहीं दिया । केंद्रीय मंत्री वी के सिंह ने केंद्र के कृषि कानूनों को ‘काला कानून’ बताने के किसानों के आरोपों पर कहा कि इसमें इस्तेमाल होने वाली स्याही को छोड़कर इसमें और क्या काला है?

दरअसल 5 जून 2020 को मोदी सरकार ने तीन अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) जारी किये जो किसानों के आन्दोलन का कारण बने । किसानों ने इसका विरोध किया, शांतिपूर्ण ढंग से अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग ढंग से अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की । लेकिन सरकार का हिडेन एजेंडा था और सरकार ने किसानों की आवाज को अनसुना करके सितंबर 2020 को तीनों अध्यादेश को संसद के सारे नियमों को तोड़कर कानून बना दिए, जिनका देशव्यापी विरोध हो रहा है ।

बढ़ते विरोध को देखते हुए सरकार ने किसानों के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू किया 12 बार हुए वार्तालाप में किसानों ने एक-एक करके अपने कृषि कानून की कमियों और असंवैधानिकता का पूर्ण विवरण दिया फिर भी सरकार कान में तेल डाल कर बैठी रही और लगातार यह कहती रही कि सरकार कानून वापस नहीं लेगी, किसानों की मांगों के अनुरूप उचित संशोधन करने के लिए तैयार है। सरकार किसानों को इस बात की को झुठलाती रही यह तीनों काले कानून है और पब्लिक डोमेन में सवाल उठाती रही कि इन कानूनों में काला क्या है?चलिए हम बता सिलसिलेवार ढंग से बता देते हैं कि इन तीनों कृषि कानूनों में काला क्या है । 

पहला है आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून2020

इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान किया गया था। ऐसा माना जा रहा था कि इस कानून के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा, क्योंकि बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी। बता दें कि साल 1955 के इस कानून में संशोधन किया गया था। इस कानून का मुख्य उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी रोकने के लिए उनके उत्पादन, सप्लाई और कीमतों को नियंत्रित रखना था।

इस कानून के तहत सरकार आलू, प्याज, खाद्य तेल, तिलहन और कुछ अन्य कृषि उत्पादों को आवश्यक वस्तु की कैटेगरी से ही बाहर करने की सोच रही थी। लेकिन किसानों ने ये कहकर इसका विरोध कर किया  कि ऐसा कानून आते ही असाधारण परिस्थितियों में वस्तुओं के दाम में जबरदस्त बढ़ोतरी हो जाएगी। किसानों का ये भी कहना है कि इस कानून की वजह से बड़ी कंपनियां आने वाले समय में उन्हें अपने मन मुताबिक रेट पर बेचने पर मजबूर कर सकती हैं। किसान मानता है कि इस कानून के आने से जमाखोरी बढ़ जाएगी और सरकार को ही इस बात का पता नहीं रहेगा कि कहा कितना अनाज स्टॉक में पड़ा हुआ है।इसकाअसर भी दिखा और जमाखोरी के कारण कई चीजों के दाम आसमान छूने लगे।मन यह गया कि अडानी और अंबानी के खुदरा क्षेत्र में उतरने के कारण उनकी जमाखोरी के लिए मोदी सरकार यह कानून लेकर आई है।सरसों के तेल पर इसका खासा असर है जो अडानी फार्च्यून ब्रांड से बेच रहे हैं ।  

दूसरा है कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून2020

इस कानून के तहत किसान एपीएमसी यानी कृषि उत्पाद विपणन समिति के बाहर भी अपने उत्पाद बेच सकते थे। इस कानून के तहत बताया गया था कि देश में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया जाएगा, जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी के बाहर फसल बेचने का आजादी होगी। प्रावधान के तहत राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही गई थी। साथ ही, मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च कम करने का भी जिक्र था। नए कानून के मुताबिक, किसानों या उनके खरीदारों को मंडियों को कोई फीस भी नहीं देना होती।

अब इस कानून में सरकार ने सिर्फ इतना कहा था कि किसानों को अपना अनाज बेचने के लिए सिर्फ मंडियों पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है। वे मंडी से बाहर जा भी अपनी फसल को ऊंचे दामों में बेच सकते थे।सरकार तर्क दे रही थी कि ऐसा होने से किसानों के लिए ज्यादा विकल्प खुल जाएंगे और उनकी मंडियों पर निर्भरता भी कम होगी।इस कानून को लेकर किसानों का साफ कहना था कि ऐसा होने पर एपीएमसी मंडियां समाप्त कर दी जाएंगी।निजी खरीदारों के पास ज्यादा ताकत होगी और वो अपनी इच्छा अनुसार अपने दाम पर फसल खरीद सकेंगे।इसका ज्वलंत उदाहरण हिमाचल प्रदेश में दिखा जहाँ अडानी समूह ने एकतरफा सेव के थोक खरीदी दाम कम कर दिए और इससे किसानों की आय पर खासा असर पड़ा। 

तीसरा है कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून2020

इस कानून का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी फसल की निश्चित कीमत दिलवाना था। इसके तहत कोई किसान फसल उगाने से पहले ही किसी व्यापारी से समझौता कर सकता था। इस समझौते में फसल की कीमत, फसल की गुणवत्ता, मात्रा और खाद आदि का इस्तेमाल आदि बातें शामिल होनी थीं। कानून के मुताबिक, किसान को फसल की डिलिवरी के समय ही दो तिहाई राशि का भुगतान किया जाता और बाकी पैसा 30 दिन में देना होता। इसमें यह प्रावधान भी किया गया था कि खेत से फसल उठाने की जिम्मेदारी व्यापारी की होती। अगर एक पक्ष समझौते को तोड़ता तो उस पर जुर्माना लगाया जाता। माना जा रहा था कि यह कानून कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जुड़ने के लिए सशक्त करता है ।

यह कानून कहता है कि आपकी जमीन को एक निश्चित राशि पर कुछ समय के लिए किसी ठेकेदार या कह लीजिए पूंजीपति को दे दिया जाएगा और फिर वो अपने हिसाब से फसल का उत्पादन भी करेगा और बाद में उसे बेचेगा भी । इस कानून में बताया गया है कि किसानों और उस ठेकेदार के बीच एक समझौता किया जा सकेगा, जिससे भविष्य में एक तय दाम में फसल को बेचा जा सके ।

लेकिन किसानों ने सरकार के इस कानून को भी सिरे से खारिज कर दिया उनका तर्क था कि ऐसे समझौतों में हमेशा जमीन खरीदने वाले ठेकेदार या पूंजीपति की ज्यादा बात मानी जाएगी ।.किसानों ने इस बात पर भी जोर दिया है कि अगर इस समझौते के बीच कभी विवाद की स्थिति आती है तो ऐसे में जीत हमेशा पूंजीपति की हो जाएगी, क्योंकि वो महंगे से महंगा वकील ला सकता है, लेकिन किसान बेसहारा रह जाएंगे ।

इनमें काला यह था कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा, जिससे किसानों को नुकसान होगा। इस कानून में यह साफ नहीं किया गया था कि मंडी के बाहर किसानों को न्यूनतम मूल्य मिलेगा या नहीं। ऐसे में हो सकता था कि किसी फसल का ज्यादा उत्पादन होने पर व्यापारी किसानों को कम कीमत पर फसल बेचने पर मजबूर करें। सरकार फसल के भंडारण का अनुमति दे रही है, लेकिन किसानों के पास इतने संसाधन नहीं होते हैं कि वे सब्जियों या फलों का भंडारण कर सकें,प्रकारान्तर से यह भण्डारण अंबानी अडानी जैसे बड़े कार्पोरेट घराने ही करते या अभी भी कर रहे हैं।

अब कानून पास होने के ठीक एक साल बाद राष्ट्र के नाम संबोधन में पीएम नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून बिल वापस लेने की घोषणा कर दी।उन्होंने कहा कि संसद के सत्र में इन कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू होगी।

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह का लेख।)

जेपी सिंह
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