नगर निकाय चुनावों में सांप्रदायिकता का क्या काम है?

प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। सूबे के दो मुख्य विपक्षी दलों के बड़े नेता ज़मीन पर बहुत सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। वहीं सत्ताधारी भाजपा के लिए तो कहा ही जाता है कि वो हर समय चुनावी मोड में ही रहते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद चुनाव की कमान सम्हाल रखी है। उनके हाव-भाव, भंगिमा, भाषा और स्थान सब, कुछ न कुछ बोल रहे हैं।

पिछले दो दिनों में उन्होंने जनसभा के लिए लगातार दो धार्मिक जगहें चुनीं। सीतापुर-गोरखपुर-लखीमपुर खीरी के नगर निकाय चुनाव में उतरे भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में मुख्यमंत्री ने 28 अप्रैल को लखीमपुर खीरी के मिश्रिख मेला और गोरखपुर के राप्तीनगर स्थित डॉ भीमराव अम्बेडकर जूनियर हाईस्कूल मैदान और जीआईसी मैदान में सभा को संबोधित किया।

सभा को संबोधित करते हुए योगी ने चुनाव को दो पौराणिक खेमे में बांटते हुए इसे देवासुर संग्राम बताया। उन्होंने कहा कि महर्षि दधीचि ने अस्थि दानकर इन्द्र को वज्र प्रदान किया। जिसकी मदद से दैवीय शक्तियों को विजय प्राप्त हुयी। उन्होंने विपक्षी प्रत्याशियों को लक्ष्य करके कहा कि चुनाव में दानव के रूप में भ्रष्टाचारी हैं, दुराचारी हैं और अपराधी प्रवृत्ति के लोग हैं।

उन्होंने कहा कि जनता की मदद से इन्हें दरकिनार किया जा रहा है। और निकाय चुनाव में भी ऐसी ताक़तों को किनारे लगा देना है। वहीं सीतापुर और नैमिषारण्य के इतिहास को सबसे पुराना बताते हुए योगी ने कहा कि काशी संवर चुकी है, अयोध्या अब नई अयोध्या के रूप में विश्व विख्यात हो रही है। विंध्यावासिनी धाम में बड़े परिवर्तन हुए है। मथुरा वृंदावन में काम चल रहा है। अब नैमिषारण्य की बारी है।

इससे पहले 27 अप्रैल को मथुरा जिले के नगर निकाय प्रत्याशियों के प्रचार के लिए योगी आदित्यनाथ मथुरा पहुंचे थे। वहां सेठ बीएन पोद्दार इंटर कॉलेज के खेल मैदान में जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म नगरी मथुरा में 32 हजार करोड़ रुपये की योजनाओं पर काम किया जा रहा है जिनके पूरा होते ही द्वापरकालीन वैभव लौट आएगा।

सीधे धर्म के नाम पर वोट मांगते हुए उन्होंने मथुरा में कहा कि यदि जनता का आशीर्वाद मिला तो काशी विश्वनाथ धाम के पैटर्न पर ठाकुर बांकेबिहारी का भी भव्य धाम बनेगा। अयोध्या की भांति ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा पर जल्द काम शुरू होगा। उन्होंने चुनाव को सांप्रदायिक रंग देते हुए कहा कि साल 2017 से पहले मथुरा-बृंदावन और गोकुल में मांस और मदिरा बिकती थी। हमने कहा दूध दही वाले क्षेत्र की पवित्रता के साथ इस तरह खिलवाड़ नहीं होने देंगे।

नगर निकाय चुनाव में साम्प्रदायिकता का क्या काम?

निगर निकाय चुनाव में लखनऊ सीट से मेयर प्रत्याशी उतारनी वाली अम्बेडकर जनमोर्चा के संयोजक श्रवण कुमार निराला कहते हैं कि चुनाव लोकतंत्र का पर्व होता है। यह एक संवैधानिक व्यवस्था है। अगर योगी आदित्यनाथ ने चुनाव को देवासुर संग्राम कहा तो यह प्रमाणित हो गया कि यह लोग धार्मिक ढोंग पाखण्ड को स्थापित करना चाहते हैं। संविधान विरोधी है पूरी भाजपा।

प्रयागराज के भारद्वाजपुरम से पार्षद प्रत्याशी और पूर्व पार्षद शिव सेवक सिंह कहते हैं कि नगर निकाय चुनाव में धर्म, जाति और क्षेत्रवाद की बात नहीं होनी चाहिए। वो यहां तक कहते हैं कि नगर निकाय चुनाव में पार्टी का चुनाव चिन्ह इस्तेमाल ही नहीं होना चाहिए। सब स्वतंत्र रूप से होना चाहिए। ताकि जनता अपने क्षेत्र के व्यक्ति को उसके काम से चुने न कि पार्टी के निशान से।

नगर निकाय का काम क्या होता है?

पूर्व पार्षद शिव सेवक सिंह नगर निकाय के मुद्दों और काम को गिनाते हुए कहते हैं कि नगर निगम की जो समस्याएं हैं उन पर और नागरिकों की मूलभूत समस्याओं पर ही बात होनी चाहिए। जैसे कि साफ-सफाई का मुद्दा है। सड़क, गली और नाली की समस्या है। जल निकासी और ड्रेनेज का मुद्दा है। स्कूल और अस्पताल की व्यवस्था और संचालन चुस्त दुरुस्त हो उसका मुद्दा है।

वो आगे कहते हैं कि नगर की व्यवस्था मानक के मुताबिक ठीक है या नहीं है। उसकी साफ सफाई ठीक से हो रही है कि नहीं। तमाम सड़कें क्षतिग्रस्त हैं तो वो बनें ताकि नागरिकों को आवागमन में असुविधा न हो। सड़क किनारे जो खम्भे गड़े हैं उनमें लाइटों की व्यवस्था हो।

बिजली पानी के मुद्दे पर वो कहते हैं कि लोगों को बिना टुल्लू पम्प चलाये पानी मिलना चाहिए। लेकिन लोगों को टुल्लू पम्प चलाना पड़ता है जिससे उनका बिजली का खर्च बढ़ता है। इसका मतलब है कि नगर निगम प्रशासन फेल है। वो अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहा है। यही सब सवाल हैं। जिनके जवाब जनता को प्रत्याशियों से पूछना और खोजना चाहिए। नगर निकाय नागरिकों से टैक्स ले रहा है लेकिन जिस लिए ले रहा वो सुविधा भी तो नागरिकों को दो।

नगर निकाय क्या होता है?

उत्तर प्रदेश में नगर निगम मेयर 17, पालिका परिषद अध्यक्ष 199 और नगर पंचायत अध्यक्ष के लिए 544 सीटों पर चुनाव हो रहा है। 4 और 11 मई को निकाय चुनाव के लिए मतदान होने हैं। अमूमन तीनों के नाम और काम के लोकर लोग भ्रमित हो जाते हैं। आइए जानते हैं विस्तार से…

नगर निगम

उत्तर प्रदेश में नगर निगम सबसे बड़ा निकाय होता है। किसी क्षेत्र को तब नगर निगम बनाया जाता है जब उस क्षेत्र की जनसंख्या 5 लाख से ज़्यादा हो जाती है। नगर निगम प्रमुख को महापौर या मेयर कहा जाता है। नगर निगम का राज्य सरकार से सीधा संपर्क रहता है। लेकिन यहां का प्रशासन जिले के अधीन होता है। यूपी में फिलहाल 17 नगर निगम हैं। शाहजहांपुर, आगरा, बरेली, फ़िरोज़ाबाद, अलीगढ़, अयोध्या, ग़ाज़ियाबाद, गोरखपुर, झांसी, मुरादाबाद, प्रयागराज, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, मथुरा, सहारनपुर, और वाराणसी।

नगर पालिका

एक लाख से ज्यादा और पांच लाख से कम आबादी वाले क्षेत्र को नगर पालिका बनाया जाता है। नगर पालिका के प्रमुख को नगर पालिका अध्यक्ष कहते हैं। वह यहां का प्रशासनिक अध्यक्ष होता है। यूपी में कुल 199 नगरपालिका हैं।

नगर पंचायत

नगर पंचायत सबसे छोटा निकाय होता है। ग्रामीण क्षेत्रों से नगरी क्षेत्र में बदलने वाले इलाकों को नगर पंचायत का दर्ज़ा दिया जाता है। किसी क्षेत्र को नगर पंचायत बनने के लिए उस क्षेत्र की जनसंख्या 30 हजार से 1 लाख के बीच होनी चाहिए। यूपी में कुल 493 नंगर पंचायते हैं। नगर पंचायत के प्रमुख को नगर पंचायत अध्यक्ष या चेयरमैन कहा जाता है।

(प्रयागराज से सुशील मानव की रिपोर्ट)

सुशील मानव
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