बिहार:लाखों रुपये का चचरी पुल बनाने के लिए क्यों मजबूर हैं बिहार के हजारों गरीब परिवार?

पटना। बिहार सरकार का रूरल्स वर्क डिपार्टमेंट सोशल मीडिया पर रोज एक नई सड़क की तस्वीर देने के साथ लिखता है कि एक भी गांव या टोला सड़क से वंचित नहीं रहेगा। रूरल वर्क डिपार्टमेंट का काम गांव में सड़क बनाना है। काफी हद तक सही भी है। बिहार में सड़क पर पहले की तुलना में बहुत काम हुआ है। लेकिन सरकार का यह दावा बाढ़ ग्रस्त इलाके में ध्वस्त हो जाता है। बिहार के कोसी सीमांचल और मिथिलांचल इलाके में हजारों लोग चचरी पुल के सहारे अपने घर जाते हैं। इस चचरी पुल को बनाने का काम भी उनके द्वारा किया जाता है ना कि सरकार के द्वारा। 

बिहार में विकास पुरुष नीतीश कुमार के शासनकाल में कोसी की तस्वीर भी बदली है। लेकिन आज भी दियारा में निवास करने वाली आबादी के लिए जिंदगी जीना किसी संघर्ष से कम नहीं है। साल के आठ महीने इन्हीं चचरी पुलों से होकर वो इस पार आते हैं।

ग्रामीणों के द्वारा बनाया जा रहा 1200 फीट लम्बा चचरी पुल

बिहार का कोसी इलाका यानी सहरसा, सुपौल और मधेपुरा जिला। इस जिले के 150 से ज्यादा गांव तटबंध के भीतर रहने को मजबूर हैं। जो प्रत्येक साल बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं। सहरसा जिले के नवहट्टा प्रखंड के अन्तर्गत कुल 12 पंचायतें हैं। जिसमें 7 पंचायतों में 24 गांवों के लोग तटबंध के अंदर निवास करते हैं। यहां के ग्रामीण आज भी स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित हैं। मोबाइल इनके पास है लेकिन नेटवर्क नहीं पहुंच पा रहा है। स्कूल बना हुआ है लेकिन शिक्षा नहीं पहुंच पा रही है। 

इसी सात पंचायतों में से एक बकुनिया पंचायत के सत्यम मंडल बताते हैं कि, “तटबंध के अंदर किसी भी पंचायत से दूसरे पंचायत जाने के लिए कोसी नदी की एक से दो धारा पार करनी होती है। इसके लिए हम लोग 13 सालों से सरकार को अर्जी दे रहे हैं। ताकि पक्की पुल का निर्माण होने से हम लोगों को घर पहुंचने में कोई दिक्कत का सामना नहीं करना पड़े। लेकिन अफसोस कि सरकार तक हमारी फरियाद नहीं पहुंच रही। सालों से हम लोग चचरी पुल के माध्यम से घर पहुंच रहे हैं। चचरी पुल का निर्माण 7-8 सालों में एक बार करना पड़ता है।”

ग्रामीणों के मुताबिक कोसी नदी के असेय कैदली घाट पर 12 सौ फीट लंबे चचरी पुल का निर्माण किया गया है। इस पुल को बनाने में आठ लाख रुपये की लागत आयी है। इस चचरी पुल के माध्यम से प्रखंड मुख्यालय से कैदली पंचायत, बकुनिया पंचायत, हाटी पंचायत, डरहार पंचायत, नौला पंचायत, सतौर व शाहपुर पंचायत, कैदली पंचायत तक लोग आसानी से पहुंचेंगे। पुल निर्माण कमेटी के मुताबिक ₹8 लाख से 12 फीट लंबे चचरी पुल का निर्माण आठ सदस्यीय टीमों के सहयोग से कराया जा रहा है। इस क्षेत्र में चंदा से चचरी पुल बनाना नया नहीं है। इससे पहले भी कोसी की मुख्य धारा में राजनपुर-विष्णुपुर, राजनपुर-घोघसम, बेलवारा-कनरिया, आगर-शहरबन्नी, दह-पिपरा घाट पर लोगों ने आपस में चंदा कर चचरी पुल का निर्माण कराया गया है।

रुपया कहां से आता है?

गांव में निवास करने वाले अधिकांश ग्रामीण या तो किसान हैं या मजदूर। फिर लाखों रुपए जमा करने में कितना संघर्ष लगता है। इस सवाल के जवाब में कैदली पंचायत के वार्ड नंबर आठ के वार्ड सदस्य सफ़रुद्दीन बताते हैं कि, “इस पुल से होकर गुजरने के लिए पैदल यात्रियों से 100 से 151 और बाइक से 501 रुपया सहयोग के तौर पर लिया जाता है। इसके अलावा पूरे पंचायत के लोगों से अलग रुपया लिया जाता है। कई स्थानीय एनजीओ भी मदद करते हैं। कुछ नेता और व्यापारियों के द्वारा व्यक्तिगत तौर पर मदद मिलती है। इन लोगों के सहयोग से प्रत्येक साल नाविकों के द्वारा पुल बनाया जाता है।”

वहीं 52 वर्षीय मनोज बताते हैं कि, “अगर पुल नहीं था तो ग्रामीणों के लिए घर का रास्ता काफी दूर था। गांव के लोगों को शहर जाने से पहले सोचना पड़ता था। प्रखंड मुख्यालय से राजनपुर कर्णपुर पथ के माध्यम से जिले के महिषी प्रखंड के बलुआहा पुल पारकर या दो से तीन नदी पार कर 30 से 40 किलोमीटर की दूरी तय कर आना-जाना पड़ता था। इस वजह से ग्रामीणों का आधा से अधिक समय घर पहुंचने में ही बीत जाता था। चचरी पुल बनने से हमारा काम आसान हो जाता है। अगर सरकार पक्का पुल बना दे तो हमारे गांव का भी विकास हो जाएगा।”

लोकसभा में भी गूंजा है दर्द

जनता की यह मांग विधानसभा में पहुंच चुकी है। इसके बावजूद अभी तक कोई सरकारी अधिकारी नहीं आया है। नीतीश और तेजस्वी की सरकार बनने पर तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री अब्दुल गफ़ूर ने विकास पुरुष 

नीतीश कुमार से मिलकर असेय कैदली घाट पर पुल निर्माण की मांग की थी। इससे पहले पप्पू यादव भी लोकसभा में कैदली घाट पर उच्च स्तरीय पुल निर्माण कराने की मांग कर चुके हैं।

(बिहार से राहुल की रिपोर्ट।)

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