आखिर सोशल मीडिया से इतनी डर क्यों गयी है सरकार?

नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार सोशल मीडिया के मोर्चे पर पूरी तरह से नाकाम होती दिख रही है। गोदी मीडिया के अपनी साख खोने के बाद खबरों और विश्लेषणों का पूरा दारोमदार सोशल मीडिया पर आ गया। और देश का बड़ा हिस्सा उसी को विश्वसनीय प्लेटफार्म के तौर पर देखना शुरू कर दिया। जिसका नतीजा यह रहा कि सोशल मीडिया ही खबरों का असली प्लेटफार्म बन गया। पिछले कुछ सालों से इस मोर्चे पर सरकार लगातार नाकाम होती दिख रही है। हालांकि बीजेपी और उसके आईटी सेल ने सोशल मीडिया पर अपने वर्चस्व को फिर से कायम करने के लिए कई तरह की कोशिशें की।

इसमें सबसे प्रमुख रहा सोशल मीडिया इन्फ्ल्यूसेंर को अपने पक्ष में करना। इसमें उसे कुछ सफलता भी मिली। मसलन पिछड़ों और दलितों के बीच अपनी पैठ बना चुके पत्रकार दिलीप मंडल जैसे लोगों को अपने पक्ष में कर लिया। इसी तरह से कई और चेहरों को उसने अपने खेमे में लाने में वह सफल रही। लेकिन उसका उसे कोई बहुत ज्यादा लाभ होता नहीं दिखा। केंद्र को जब लगा कि सोशल मीडिया का मुकाबला सामान्य तरीके से नहीं किया जा सकता है तो अब उसने एक दूसरा ही रास्ता अपनाने का फैसला ले लिया है। वह है इन मीडिया प्लेटफार्मों के खिलाफ सीधी कार्रवाई। इस तरह की दो सबसे बड़ी कार्रवाई हुई हैं। पहला आर्टिकल 19 के सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक को बंद कर दिया गया है। और दूसरा वेब पोर्टल बोलता हिंदुस्तान के पहले इंस्टाग्राम एकाउंट और फिर यूट्यूब चैनल को बंद कर दिया गया।

बोलता हिंदुस्तान का यूट्यूब चैनल तो बाकायदा सूचना और प्रसारण मंत्रालय की नोटिस के बाद बंद किया गया है। यूट्यूब की तरफ से दी गयी सफाई में कहा गया है कि हमें सूचना और प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) की तरफ से एक नोटिस मिली है जिसमें आप के चैनल को ब्लॉक करने के लिए निर्देशित किया गया है। जिसका यूआरएल…..है। यह इंफार्मेशन टेक्नॉलॉजी नियम, 2021 के नियम 15 (2) और इंफार्मेशन टेक्नॉलाजी एक्ट 2000 के सेक्शन 69ए के तहत किया गया है। यह नोटिस अपने आप में गोपनीय है। इसलिए इस समय आपके साथ साझा करने में हम सक्षम नहीं हैं। एमआईबी शायद इस पर कोई आखिरी आदेश दे। 

इसके साथ ही इसमें आगे कहा गया है कि ऊपर दिए गए अपने कंटेंट पर आप कोई कानूनी फीडबैक एमआईबी को दे सकते हैं (उसका यूआरएल दिया गया है)। और स्थानीय कानूनों के प्रति अपनी जिम्मेदारी के तहत हम बगैर किसी नोटिस के उस आदेश को लागू करने के लिए बाध्य हैं।

ऊपर दिए गए यूट्यूब के बयान से यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि यह सब कुछ केवल और केवल सरकार के आदेश पर हुआ है। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि अगर कोई भी चैनल या फिर सोशल मीडिया प्लेटफार्म सरकार के खिलाफ जाता है तो सरकार उसको कभी भी बंद करने का आदेश दे सकती है और स्थानीय कानूनों को मानने की बाध्यता के नाम पर वह प्लेटफार्म उसको लागू करने के लिए मजबूर है। इस पूरे मामले में न केवल मीडिया का गला घोंटा जा रहा है। बल्कि उसे अपनी सफाई में कुछ कहने तक का मौका नहीं दिया जा रहा है। अगर आप किसी चैनल के किसी खास कार्यक्रम को किसी कानूनी पहलू से गलत समझते हैं तो सबसे पहले उसे नोटिस देकर उसकी प्रतिक्रिया लेते हैं और सही जवाब न आने के बाद ही आप किसी कार्रवाई में जा सकते हैं।

सामान्य कानून का सिद्धांत यही कहता है। लेकिन यहां कौन कहे नोटिस देने और उसका जवाब लेने के सीधे चैनल को ही बंद करने का निर्देश जारी कर दिया जाता है। अब यह तानाशाही नहीं तो और क्या है? यह बात तो सिर्फ और सिर्फ इमरजेंसी के दौरान होती थी। और यह काम उस समय किया जा रहा है जब देश में आम चुनाव हो रहे हैं और केंद्र में एक कामचलाऊ सरकार है जिसे कुछ भी ऐसा करने का अधिकार नहीं है जिससे वह चुनाव को प्रभावित कर सके। लेकिन दिल्ली में चुनाव मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर स्थित एक मंत्रालय से यह आदेश जारी होता है और चुनाव आयोग उसका संज्ञान भी लेना जरूरी नहीं समझता है। और अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो फिर कहने का मतलब है कि दोनों के बीच किसी तरह की साठ गांठ है। बहरहाल इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आयी हैं। और इसे अभी शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है। आने वाले दिनों में इसकी गाज दूसरे प्लेटफार्मों पर भी गिर सकती है।

जनचौक के यूट्यूब चैनल का मोनिटाइजेशन वापस ले लिया गया है। और उसके पीछे अवैध अभियान चला कर दर्शकों को खींचने का आरोप लगाया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि पिछले तीन महीने में जनचौक ने इस तरह का कोई अभियान ही नहीं चलाया है। इन मामलों के सामने आने के बाद इस बात की पूरी आशंका है कि उसके पीछे भी केंद्र के इसी मंत्रालय का हाथ है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर शिकंजा कसने के लिए सरकार अलग-अलग रास्ते अपना रही है। किसी में वह सीधे हस्तक्षेप कर रही है कहीं किसी दूसरे तरीके से काम चलाया जा रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार और सोशल मीडिया के चर्चित चेहरे अजीत अंजुम ने कहा कि धीरे धीरे आज़ाद आवाज़ों पर ऐसे ही शिकंजा कसा जाएगा। @BoltaHindustan को यूट्यूब से हटाया जाना इसी बात का सबूत है। आज इन्हें बंद किया गया है, कल किसी और को बंद किया जाएगा। मोदी की सत्ता को सबसे बदहजमी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से ही है। बाक़ी तो ज़्यादातर चरण वंदना कर ही रहे हैं। मेरे फ़ेसबुक पेज को भी तीन महीने पहले रेस्ट्रिक्ट कर दिया गया है। अभी तो बहुत कुछ होना बाक़ी है।

कांग्रेस नेता सलमान अनीस सोज ने कहा कि किसी मीडिया चैनल के दायरे को कम करने या फिर उसे बंद करते समय फेसबुक, यूट्यूब और एक्स प्लेफार्मों की ओर से हमें और पारदर्शिता की जरूरत है। कम्यूनिटी के मानकों के उल्लंघन का केवल एक बुनियादी संदेश पर्याप्त नहीं है। हमें बताएं कि आप क्यों इन चैनलों को बंद कर रहे हैं? बहुत जल्द ही भारत में कोई भी स्वतंत्र मीडिया नहीं रह जाएगा। भारत में लोकतंत्र का खात्मा मत होने दीजिए।

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश के रे ने कहा कि यूट्यूब चैनल @BoltaHindustan को सरकार द्वारा बंद कराना निंदनीय है। पहले चैनल के इंस्टाग्राम अकाउंट को भी हटवाया जा चुका है। यह चैनल मेहनती युवा पत्रकारों द्वारा संचालित है। लगभग सारा मीडिया तो गोद में बैठा ही है, तमाम यूट्यूब चैनल भी पास हैं, तब ऐसी स्वतंत्र आवाज़ों से सरकार को क्यों घबराना!

डॉ. लक्ष्मण यादव ने कहा कि सोशल मीडिया की सवाल करती हुई आवाज़ों पर पाबंदी लगाने की शुरुआत हो चुकी है। पहले @navinjournalist द्वारा संचालित आर्टिकल 19 के फ़ेसबुक पेज को बंद कर दिया गया, अब @BoltaHindustan के यूट्यूब चैनल को ही बंद कर दिया गया। ये इशारा है। इसके ख़िलाफ़ सभी को आवाज़ बुलंद करनी होगी।

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