उमर ख़ालिद ने अंडरग्राउंड होने से क्यों किया इनकार

दिल्ली जनसंहार 2020 में उमर खालिद की गिरफ्तारी इतनी देर से क्यों की गई, इस रहस्य से मीडिया पर्दा उठाने को तैयार नहीं है। दिल्ली का दंगा फरवरी-मार्च, 2020 में हुआ। उस वक्त शाहीनबाग में महिलाओं का आंदोलन चरम पर था। शाहीनबाग में महिलाओं का आंदोलन शुरू करने की प्रेरणा में जामिया के शिक्षकों के अलावा कहीं न कहीं उमर खालिद का भी हाथ था। यह बात भारत सरकार की खुफिया एजेंसी को पता है। वह उमर खालिद ही हैं, जिन्होंने शाहीनबाग में महिलाओं का आंदोलन शुरू होने की जानकारी सबसे पहले अपने ट्वीट के जरिए दुनिया को दी। तब तक किसी भी मीडिया को शाहीनबाग की भनक नहीं थी।

मुझे मीडिया में तीन दशक हो चुके हैं। शाहीनबाग, जामिया और आस-पास के तमाम लोगों को मैं जानता हूं लेकिन कोई भी मुझ तक वह सूचना सबसे पहले नहीं भेज पाया था। आंदोलन शुरू होने के चार दिन बाद मैं वहां पहुंचा था। तब तक छात्र नेता शारजील इमाम की गिरफ्तारी नहीं हुई थी।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के गेट नंबर 7 पर सीएए-एनआरसी के विरोध में चल रहा आंदोलन मेरी निगाह में था, शारजील इमाम की तमाम कोशिशें और उनके भाषण भी नजर में थे लेकिन उमर खालिद का सरोकार जामिया के गेट नंबर 7 से नहीं था। उनका सरोकार शाहीनबाग और जंतर-मंतर थे। उस दौरान जंतर-मंतर पर हुए बहुत सारे प्रदर्शनों को उमर खालिद ने लीड किया, यह भी भारत सरकार की खुफिया विभाग की जानकारी में है। उमर के घर से निकलते ही उनकी सारी गतिविधियों की जानकारी दिल्ली पुलिस और खुफिया एजेंसियों के पास रहती थी।

हर जगह, हर कार्यक्रम में उमर के एक-एक भाषण को रिकॉर्ड किया जाता, शाम को सारे आला पुलिस और खुफिया अफसर उमर के भाषण को सुनते और फिर अपना सिर पकड़ कर बैठ जाते थे कि आखिर इस लड़के के खिलाफ किन धाराओं में केस दर्ज करें। ऊपर से आदेश था कि जो भी कार्रवाई हो वो पुख्ता हो।

पुख्ता कार्रवाई के चक्कर में छह महीने निकल गए, दिल्ली पुलिस कागज जमा करती रही लेकिन सबूत नहीं जुटा सकी। अभी जब तीन दिन पहले संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने वाला था तो उसकी पूर्व संध्या पर उमर को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे चार दिन पहले उमर पर दबाव बनाया गया कि वह छिप जाए, अंडरग्राउंड हो जाए। लेकिन उसने दिल्ली पुलिस को इस तरह का सहयोग देने और भागने से इनकार कर दिया। दरअसल, अगर उमर खालिद छिप जाते तो 11 लाख पेजों की जो चार्जशीट दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर तैयार की है, उसमें बिखरी फर्जी कहानियां को गोदी मीडिया में प्लांट कराने में आसानी हो जाती। एंकर अब तक गला फाड़कर जमीन आसमान एक कर रहे होते।

बहरहाल, उमर ने दिल्ली पुलिस और खुफिया एजेंसियों की चाल को अपनी सूझ-बूझ से नाकाम कर दिया। सरकार ने योजना यह बनाई थी कि संसद के मॉनसून सत्र में जब विपक्ष बेरोजगारी, चीन से तनाव, हरियाणा में किसानों की पिटाई जैसे मुद्दे उठाने की फिराक में है तो उमर खालिद की गिरफ्तारी और सीताराम येचुरी, योगेन्द्र यादव, अपूर्वानंद आदि का नाम उछालने से विपक्ष सारे मुद्दे भूलकर इस पर फोकस करेगा। इसके लिए गोदी टीवी चैनलों को आदेश दिया गया, वे अपने चैनलों पर उमर खालिद की आड़ में हिन्दू-मुस्लिम बहस चलाना जारी रखें, ताकि जनता का ध्यान वहीं लगा रहे। एक भी गोदी चैनल हरियाणा-पंजाब के किसानों का आंदोलन नहीं दिखा रहा लेकिन उसे उमर खालिद से संबंधित फर्जी पुलिस कहानियों को दिखाने का समय है।

यह कितना शर्मनाक है कि तमाम गोदी चैनलों के पास उमर खालिद के भाषणों के पूरे टेप मौजूद हैं लेकिन इसके बावजूद उसे दिल्ली पुलिस की तैयार की गई कहानियों पर ही भरोसा है। डॉ. कफील खान के मामले में भी यही हुआ था। फासिस्ट योगी सरकार की पुलिस ने डॉ. कफील के वीडियो को मनमाने ढंग से संपादित करके केस दर्ज किया था लेकिन जब हाई कोर्ट ने पूरा वीडियो भाषण सुना तो अलीगढ़ पुलिस की जमकर लानत-मलामत की। अलीगढ़ पुलिस के पास कोई जवाब नहीं था। वही हथकंडा अब उमर खालिद के मामले में भी अपनाया जा रहा है। अदालत जब उमर के सभी भाषण एक-एक कर सुनेगी तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

उमर खालिद के राजनीतिक रूप से जीनियस होने की मुहर इस गिरफ्तारी ने लगा दी है। गिरफ्तार होने से पहले उमर ने अपना अंतिम वीडियो जो रेकॉर्ड किया था, उसे बुधवार को प्रेस क्लब दिल्ली में जारी कर दिया गया, वह सुनने लायक है। उमर ने कहा कि सरकार मुझे क्यों खतरनाक मानती है, क्योंकि मैं कहता हूं कि यह देश जितना मेरा है, उतना सबका है। हम सब एक खूबसूरत भारत में रहते हैं, जहां विभिन्न धर्मों के मानने वाले, विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले, विभिन्न संस्कृतियों के लोग एक साथ रहते हैं। हर कोई इस देश के संविधान और कानून के लिए एक समान है। लेकिन अब इस एकता को तोड़ने की कोशिश हो रही है। हमें बांटा जा रहा है। वो हमें जेलों में बंद कर डराना चाहते हैं। हमारी आवाज दबाना चाहते हैं। इसलिए नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठाइए, डरिए मत।

उमर की गिरफ्तारी से साफ हो गया कि देश में पहली बार एक ऐसी सरकार आई है जो साफ सुथरी राजनीति में यकीन नहीं करती है। उसे वह हर शख्स जेल में चाहिए, जिससे उसके विचार नहीं मिलते। दिल्ली में जिन्होंने दंगे कराये, जिनके वीडियो सबूत मौजूद हैं, वे खुलेआम और भी जहर उगलते फिर रहे हैं लेकिन जो लोग ऐसे दंगाइयों का विरोध करते हैं, उन्हें जेलों में डाला जा रहा है। दरअसल, यह जनता के सब्र का इम्तहान भी है। बिजली, पानी, टूटी सड़क, स्कूल फीस, बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई के बारे में जब जनता सोचेगी, तभी उसे यह भी समझ आएगा कि उमर खालिद की गिरफ्तारी किन नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए की गई है।

जब जनता नाकाम नोटबंदी, डूबती अर्थव्यवस्था के बारे में सोचेगी, तब उसे उमर खालिद की गिरफ्तारी फिजूल लगने लगेगी। दिल्ली फरीदाबाद बॉर्डर पर सूरजकुंड के पास खोरी में जिस तरह दो हजार गरीबों को एक झटके में बेघर कर दिया गया, जब जनता इन टूटे घरों के सामने बने अवैध मैरिज हॉल के बारे में सोचेगी तब उसे उमर खालिद की गिरफ्तारी गलत लगेगी। अभी तो जनता भांग खाकर मस्त है। कंगना रनौत का मनोरंजन मुफ्त में उपलब्ध है ही, जीने को और क्या चाहिए।

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

यूसुफ किरमानी
Published by
यूसुफ किरमानी