विलफुल डिफॉल्टर्सः कहीं भाजपा को इनसे मोटा इलेक्टोरल बांड तो नहीं मिला

एक ओर मोदी सरकार अपनी विफलता के हर मुद्दे का दोष कांग्रेस पार्टी के सिर पर मढ़ती है और बैंकों के एनपीओ पर भी उसका दावा है कि यह उसे कांग्रेस नीत यूपीए सरकार से विरासत में मिला है, लेकिन जब विलफुल डिफॉल्टर का नाम उजागर करने का मामला संसद या उच्चतम न्यायालय में उठता है तो सरकार गोलमोल जवाब देने लगती है।

अब लाख टके का सवाल है कि जब विलफुल डिफॉल्टर कांग्रेस की देन हैं तो मोदी सरकार को उनका नाम उजागर करने में हिचक क्यों है? राजनीतिक और विधिक क्षेत्रों में यह आम धारणा है कि यदि भाजपा अपने टॉप 50 देनदारों का नाम सार्वजनिक कर दे और विलफुल डिफॉल्टर्स का नाम सामने आ जाए तो देश को पता चल जाएगा कि बैंक लूट की हकीक़त क्या है।

बजट सत्र के पहले जारी आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि यदि विलफुल डिफॉल्टर्स द्वारा सार्वजनिक धन का गबन नहीं किया गया होता तो हम सामाजिक क्षेत्रों में लगभग दोगुना राशि खर्च कर सकते थे।

शुक्रवार 31 जनवरी 2020 को वित्‍त वर्ष 2019-20 के लिए संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि देश के विलफुल डि‍फॉल्‍टर्स यानी जानबूझकर बैंकों का कर्ज न चुकाने वालों की वजह से सरकार अपनी सामाजिक योजनाओं पर कम पैसा खर्च कर पाई है। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि यदि विलफुल डिफॉल्‍टर्स द्वारा सार्वजनिक धन का गबन नहीं किया गया होता तो हम सामाजिक क्षेत्रों में लगभग दोगुना राशि खर्च कर सकते थे।

आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि चालू वित्‍त वर्ष के दौरान विलफुल डिफॉल्‍टर्स ने 1,36,000 करोड़ रुपये की चोरी की है। यदि यह पैसा सरकार के पास होता तो सामाजिक योजनाओं पर सरकार और ज्‍यादा धन खर्च करने में सक्षम होती।

इसके बावजूद सरकार विलफुल डिफॉल्टर्स का नाम नहीं बताकर उनसे दोस्ती निभा रही है और उनके खिलाफ संशोधित बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के तहत वसूली की कोई कार्रवाई भी नहीं कर रही है। रिज़र्व बैंक के अनुसार मार्च 2013 में कुल एनपीए 205 हज़ार करोड़ था। मार्च 2019 में यह बढ़कर 1,173 हज़ार करोड़ हो गया।

इस दृष्टि से मार्च 2019 में 237 हज़ार करोड़ राइट ऑफ़ कर दिए गए। मोदी सरकार के बीते पांच सालों के दौरान बैंकों ने 660 हज़ार करोड़ रुपये राइट ऑफ़ कर दिया। यह पूरी राशि कुल एनपीए के तक़रीबन 50 फीसदी से ज्यादा है। 

यस बैंक संकट के बीच राहुल गांधी ने लोकसभा में पूछा कि पीएम बताएं कि देश के 50 टॉप डिफॉल्टर कौन हैं? लेकिन सरकार से जवाब नहीं मिला। लोकसभा में राहुल गांधी ने बैंकों की हालत और बैंक लोन डिफॉल्टर के मुद्दे को लेकर मोदी सरकार को घेरा।

उन्होंने कहा कि पीएम मोदी कहते हैं कि जिन लोगों ने बैंकों से चोरी की है उनको मैं पकड़-पकड़ कर वापस लाऊंगा। तो मैंने मोदी सरकार से ऐसे 50 लोगों के नाम पूछे हैं पर कोई जबाव नहीं मिल रहा है। अनुराग ठाकुर सवाल के जवाब में आय बांय बकने लगे तो लोकसभा में हंगामा हो गया।

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अर्थव्यवस्था और बैंकों की खस्ता हालत का मुद्दा लोकसभा में उठाया। राहुल गांधी ने कहा कि अर्थव्यवस्था की हालत बेहद खराब है। बैंकों की हालत खराब है। मुझे लगता है कि इस माहौल में आने वाले दिनों में कुछ और बैंकों की हालत खराब होगी।

सदन से बाहर आकर राहुल गांधी ने मोदी सरकार को घेरते हुए कहा कि मैंने एक आसान सवाल पूछा कि जो विल-फुल डिफॉल्टर हैं उनका क्या नाम है लेकिन मुझे उनका नाम नहीं मिला, लंबा भाषण मिला। मेरा जो संसदीय अधिकार है, सेकेंडरी सवाल पूछने का वो मुझे स्पीकर जी ने नहीं दिया। इससे मुझे काफी चोट पहुंची, ये सांसद होते हुए मेरे अधिकार पर चोट है। ये बिल्कुल गलत है।

लोकसभा में राहुल गांधी ने कहा, “भारतीय इकॉनमी बहुत बुरे दौर से गुजर रही है। हमारी बैंकिंग व्यवस्था काम नहीं कर रही है। बैंक फेल हो रहे हैं, और मौजूदा वैश्विक हालात में और भी बैंक डूब सकते हैं। इसका मुख्य कारण है, बैंकों से पैसों की चोरी होना।

इसलिए मैंने सवाल पूछा था कि देश में बैंकों के सबसे बड़े 50 डिफॉल्टर कौन से हैं, लेकिन में मुझे जवाब नहीं दिया गया। प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि जिन लोगों ने देश के बैंकों के पैसे की चोरी की है, उन्हें पकड़ पकड़कर लाऊंगा, लेकिन मेरे द्वारा पूछे गए 50 डिफॉल्टरों के नाम सरकार ने नहीं बताए।

राहुल गांधी के इस सवाल का जवाब देने के लिए वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर उठे और कई आंकड़े देने की कोशिश की। अनुराग ठाकुर ने कहा कि वेबसाइट पर विलफुल डिफॉल्टर्स के नाम मिल जाएंगे, इसमें छिपाने वाली कोई बात नहीं है। अनुराग ठाकुर ने यस बैंक संकट पर कहा कि इस बैंक का हर डिपॉजिट सुरक्षित है।

राहुल गांधी ने कहा कि एक सांसद होने के नाते उन्हें सदन में सवाल करने का अधिकार है, लेकिन सरकार ने उनके सवाल का जवाब नहीं दिया। सरकार मुद्दों से पीछे हट रही है। लोकसभा में राहुल गांधी के ये सवाल थे कि वर्तमान में जो 50 विलफुल डिफॉल्टर हैं, राशि डिटेल के साथ उनके नाम बताएं? 

लोन को रिकवर करने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं? जो भी डिफॉल्टर हैं, किससे कितनी रिकवरी की गई है, इसकी डिटेल जानकारी दें? बैंकों के साथ धोखाधड़ी के माcलों का तुरंत पता चल जाए, इसे लेकर क्या सरकार द्वारा कोई कदम उठाए गए हैं?

सरकार ने राज्यसभा में डूबे कर्ज़ से जुड़े आंकड़ों की जानकारी इसी तीन मार्च को देते हुए बताया है कि वित्त वर्ष 2019-2020 में सबसे ज्यादा 1,59,661 करोड़ रुपये का एनपीए भारतीय स्‍टेट बैंक (SBI) का है। पंजाब नेशनल बैंक 76,809 करोड़ के साथ दूसरे और बैंक ऑफ बड़ौदा 73,140 करोड़ रुपये के साथ तीसरे नंबर पर है। बैंक ऑफ इंडिया का 61,730 करोड़ रुपये का कर्ज डूब गया है। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का एनपीए 49,924 करोड़ रुपये हो चुका है।

अब जरा राजनितिक दलों को चंदे का फंडा भी समझ लें। 2018-19 में भाजपा को मिला 800 करोड़ रुपये का चंदा। कांग्रेस जुटा सकी सिर्फ 146 करोड़ रुपये। भारतीय जनता पार्टी ने एक अप्रैल, 2018 से 31 मार्च, 2019 के बीच चंदे में 800 करोड़ रुपये जुटाए। यह चंदा लोकसभा चुनावों से ठीक पहले जमा हुआ। इस चंदे में सबसे बड़ा 356 करोड़ रुपये का हिस्सा टाटा ग्रुप की सहायता प्राप्त प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट की तरफ से आया।

चुनाव आयोग के पास पार्टियों द्वारा जमा कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, भाजपा की तुलना में कांग्रेस सिर्फ 146 करोड़ रुपए की चंदे के तौर पर जुटा सकी। पार्टी को सबसे बड़ा चंदा प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट की तरफ से 55 करोड़ रुपए का मिला।

कांग्रेस द्वारा जुटाए गए 146 करोड़ रुपये के चंदे में 98 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड्स से आए। भाजपा को इलेक्टोरल ट्रस्टस से 470 करोड़ रुपये हासिल हुए। भारती एयरटेल, डीएलएफ और हीरो समूह के प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने भाजपा को 67 करोड़ रुपये का चंदा दिया और कांग्रेस को 39 करोड़ रुपये दिए। आदित्य बिड़ला के जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट ने भाजपा को 28 करोड़ रुपये और कांग्रेस को दो करोड़ रुपये दिए।

द वायर ने चुनाव आयोग से मिली जानकारी के अनुसार खुलासा किया था कि भारतीय जनता पार्टी ने एक ऐसी कंपनी से चंदे की बड़ी राशि ली है, जिसकी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) आतंकी फंडिंग के संबंध में जांच कर रहा है।

1993 मुंबई बम धमाकों के आरोपी इकबाल मेमन उर्फ इकबाल मिर्ची से संपत्ति खरीदने और लेनदेन के मामले में ईडी इस कंपनी की जांच कर रही है। 2014-2015 में आरकेडब्ल्यू ने भाजपा को 10 करोड़ रुपये का चंदा दिया था। यह कंपनी दिवालिया हो चुकी दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) से जुड़ी हुई है।

इस बारे में कोबरा पोस्ट ने जनवरी 2019 में बताया था। भाजपा नियमित तौर पर कई चुनावी ट्रस्टों से बड़ा चंदा लेती रही है। ये ट्रस्ट कई कॉरपोरेट घरानों से जुड़े हुए हैं। किसी भी अन्य कंपनी ने भाजपा को इतनी धनराशि नहीं दी है, जितनी आरकेडब्ल्यू ने दी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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