पाटलिपुत्र की जंग: ‘जनता के मुद्दे, जनता की सरकार’ के नारे के साथ सामने आया जन घोषणा पत्र

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के बीच राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र से इतर राज्य के 200 से अधिक सामाजिक संगठनों ने मिल कर जन घोषणा पत्र जारी किया है। 2 माह तक जनता के बुनियादी सवालों पर चले ऑनलाइन संवाद व बैठकों के बाद घोषणा पत्र जारी किया गया। जिसको लेकर अब सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता राजनीतिक दलों व उनके उम्मीदवारों के बीच जा रहे हैं।

विधान सभा चुनाव के दौरान यह एक संयोग ही है कि अक्तूबर में तीन दिन पूर्व लोक नायक जय प्रकाश नारायण की पुण्यतिथि मनाई गई वहीं आज जयंती पर याद कर रहे हैं। जन्मदिन पर याद करते हुए कहा जा सकता है कि राज्य की सत्ता व प्रमुख विपक्ष में जेपी की राजनीतिक उपज या उनके विरासत के लोग हैं। इनके सामने ही सामाजिक संगठनों ने जन घोषणा पत्र जारी कर जातीय व उन्मादी राजनीति से अलग हटकर लोगों के बुनियादी सवालों पर बहस की शुरुआत की है।

जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के केंद्र रहे बिहार में एक बार फिर जनता के असली मुद्दों पर विधानसभा चुनाव में बहस कराने के लिए सामाजिक संगठनों के पहल की सराहना की जा रही है।  

घोषणा पत्र को लेकर बनी संयोजन समिति का मानना है कि मौजूदा सरकार ने वर्ष 2005 से ही कई महत्वपूर्ण निर्णय और कार्यक्रम बनाए। जैसे भूमि सुधार आयोग, समान शिक्षा प्रणाली आयोग और महादलित आयोग का गठन। इसके साथ ही  स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार को लेकर कार्यक्रम बनाए गए। लेकिन प्रयासों और कार्यक्रमों को सही तरीके से आगे नहीं ले जाया गया। इसका शासन व्यवस्था और कार्यक्रम का खासकर हाशिए के लोगों की भागीदारी और सरकार को लोकतांत्रिक नियंत्रण की व्यवस्था इत्यादि पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं हुआ। बिहार में आज शिक्षा, खाद्य सुरक्षा कानून और शांति व्यवस्था, स्वास्थ्य, रोजगार कृषि, बाढ़ व आपदा प्रबंधन चिंता का विषय है।

ऐसे में एक बार फिर विधानसभा चुनाव एक ऐसा वक्त है जब सभी राजनीतिक दलों व उनके उम्मीदवारों को जनता के सवालों को लागू करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। घोषणा पत्र में कॉमन स्कूल सिस्टम लागू करने, बाढ़ व आपदा के लिए अलग कैडर बनाने, तटबंधों की समीक्षा करने, शहरी परिवहन में पैदल चलने वालों के लिए आईआरसी गाइडलाइन के अनुसार फुटपाथ बनाने व पॉलिसी बनाने, किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी करने, ग्राम सभाओं को मजबूत करने, लापता कोशी पीड़ित विकास को पुनः सक्रिय कर लगान व सेस खत्म करने, जेलों की दशा में सुधार, एस्बेस्टस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने जैसे सवाल शामिल हैं। 

प्रवासी मजदूरों के पंजीकरण को अनिवार्य करने समेत उनसे जुड़े सवालों को प्रमुखता से उठाया गया है। महिला अधिकार, दलित अधिकार, स्वास्थ्य सुविधाएं और आपदा तथा संपूर्ण न्याय दिलाने जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई है मौजूदा व्यवस्था व रोजगार के अवसर, जल व स्वच्छता समेत लोगों से जुड़े अन्य मुद्दों को भी जन घोषणा पत्र में शामिल करते हुए राजनीतिक दलों से यह उम्मीद की गई है कि संकट के निदान के लिए वह कार्य अपने घोषणा पत्र में इनको शामिल कराते हुए लागू कराएंगे। 

जन घोषणा पत्र को लेकर बनी संयोजन समिति में शामिल रहे महेंद्र यादव का कहना है कि घोषणा पत्र जारी करने के दौरान आयोजित कार्यक्रम में शामिल विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों ने इसे लागू कराने का आश्वासन दिया है।

दूसरी तरफ अब तक का हाल यह रहा है कि राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की घोषणा से लेकर प्रचार के तरीकों में जातीय अंक गणित ही नजर आ रहा है। ऐसे में जन घोषणा पत्र को लेकर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की जताई गई सहमति धरातल पर कितना सही साबित होगी यह समय ही बताएगी।

कोशी अंचल में लग रहा प्रत्याशी मंच

कोशी नवनिर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव का कहना है कि मधेपुरा, सुपौल व मधुबनी के बाढ़ प्रभावित लोगों के पुनर्वास व कोशी तटबंध को लेकर उठते रहे सवाल, कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार के धरातल पर लागू कराने समेत विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए विधानसभा वार उम्मीदवारों का प्रत्याशी मंच कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।

जिसके क्रम में सुपौल जिले के विधानसभा क्षेत्र सुपौल में 27 अक्तूबर को, पिपरा में 28 अक्तूबर को व निर्मली में 30 अक्तूबर को प्रत्याशी मंच लगाया जाएगा। इसके अलावा मधुबनी जिले के फुलपरास विधानसभा क्षेत्र में कोसी तटबंध के मुद्दों व मधेपुरा के बिहारीगंज विधानसभा क्षेत्र में आयोजित प्रत्याशी मंच के कार्यक्रम में मक्का किसानों के सवालों पर विशेषकर चर्चा की जाएगी। सहरसा के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र महिषी में भी ऐसे आयोजन विशेषकर किए जाएंगे।

(पटना से स्वतंत्र पत्रकार जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)

जितेंद्र उपाध्याय
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