तत्काल प्रभाव से महिला आरक्षण लागू हो, मोदी सरकार खेलना चाहती है चुनावी कार्ड: माले

पटना। पटना में आज एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि महिला आरक्षण बिल तत्काल प्रभाव से लागू होना चाहिए और आगामी लोकसभा चुनाव में महिलाओं को इसका फायदा मिलना चाहिए। लेकिन मोदी सरकार केवल चुनावी कार्ड खेलना चाहती है।

संवाददाता सम्मेलन में उनके अलावा ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, भाकपा-माले के पोलित ब्यूरो के सदस्य धीरेन्द्र झा व स्कीम वर्करों की नेता शशि यादव भी उपस्थित थे।

मीना तिवारी ने कहा कि देश की महिलाएं कम से कम तीन दशकों से महिला आरक्षण की मांग को लेकर संघर्षरत हैं। संसद के नए भवन में कल जो बिल पेश किया गया, वह एक बार फिर महिलाओं को धोखा देने वाला है। यह बिल कब लागू होगा, किसी को पता ही नहीं। दरअसल, महिला आरक्षण को लागू करने की कोई मंशा सरकार की है ही नहीं।

का. दीपंकर ने आगे कहा कि महिला आरक्षण बिल के बारे में कहा गया है कि यह जनगणना और फिर परिसीमन के बाद लागू होगा। महिला आरक्षण बिल का नाम नारी शक्ति वंदन अधिनियम दिया गया है, यह देश व महिलाओं को उल्लू बनाने का काम है। आजादी के 75 सालों बाद भी प्रतिनिधि संस्थाओं में महिलाओं की बेहद कम उपस्थिति है। ऐसे में इसे तत्काल लागू किए जाने की जरूरत थी। लेकिन सरकार ऐसा नहीं कर रही है। अभी भी वक्त है कि संसद में बिल इस तरह पास किया जाए ताकि वह तत्काल प्रभाव से लागू हो सके।

महिला आरक्षण लागू करने के लिए जनगणना की कोई जरूरत नहीं है। यह फैक्ट है कि 50 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। यदि सरकार चुनावी कार्ड नहीं खेलना चाहती तो वह 2024 के चुनाव में ही लागू हो जाता। राज्यसभा, विधानसभाओं को आखिर क्यों बाहर रखा गया है? यह हर जगह लागू होना चाहिए। एक तरफ सरकार हर बात में ओबीसी की बात करती है, लेकिन बिल में इसकी कोई चर्चा नहीं है। तीन तलाक पर पीठ थपथपाने वाली सरकार मुस्लिम महिलाओं के आरक्षण पर कुछ नहीं बोल नहीं रही है। बिल में संपूर्णता में विभिन्न तबकों का प्रतिनिधित्व दिखना चाहिए।

जगनणना आखिर क्यों नहीं हुई? जी 20 की बैठक में शामिल देशों में भारत को छोड़कर कोविड के बाद लगभग सभी देशों ने जनगणना का कार्य करवाया है। पता नहीं भारत में यह कब होगी? आरक्षण को रेशनल बनाने के लिए जाति गणना जरूरी है। मोदी सरकार उससे भी भाग रही है। परिसीमन का सवाल भी बेहद विवादित है। पूरा दक्षिण भारत इससे आशंकित है। आबादी के अनुसार यह परिसीमन किया जाएगा। इससे दक्षिण भारत का प्रतिनिधित्व घट जाएगा। इसको लेकर गंभीर बहसें हैं।

आगे कहा कि मोदी सरकार 2022 का हिसाब नहीं दे सकती, इसलिए 2047 की बात करती है। 2022 तक किसानों की आमदनी दुगुनी होनी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार पांचवीं अर्थव्यवस्था का दावा कर रही है। सवाल यह है कि आज प्रति व्यक्ति आय, बेरोजगारी की दर क्या है, इन मसलों पर संसद के अंदर और बाहर बहस होनी चाहिए।

संसद के नए भवन में प्रवेश के साथ संविधान की प्रस्तावना से सेकुलर व सोशलिस्ट शब्द गायब कर दिया गया है। यह सही है कि ये दोनों पहलू संविधान में बाद में जोड़े गए। संविधान में बहुत सारे एमेंडमेंट हुए हैं, लेकिन केवल सेकुलर व सोशलिस्ट को ही हटाना बेहद चालाकीपूर्ण की गई एक गंभीर साजिश है।

जी 20 के बाद कनाडा हो या आस्ट्रेलिया हर किसी से भारत के रिश्ते बिगड़ रहे हैं। मोदी सरकार के झूठ का पर्दाफाश हो गया है। हमारी मांग है कि सरकार इस पर ध्यान दे और राजनयिक पहलकदमियां बढ़ाते हुए इन रिश्तों में सुधार लाए।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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