जौनपुर: महिला जन संवाद में गूंजा ‘हमार माटी, हमार स्वाभिमान, हमार अधिकार’ का नारा

जौनपुर। यही कोई 45 बरस पहले ब्याह कर ससुराल आईं तेतरा देवी उम्र के 60वें पड़ाव को पार करने को हैं, इस बीच उन्होंने जीवन में तमाम उतार चढ़ाव के साथ उन दुश्वारियों को भी सहा है जो असहनीय रही हैं। चाहे वह हक़ अधिकार से जुड़ा मसला रहा हो या मान-सम्मान, स्वाभिमान, अस्मिता और अधिकार की बात रही हो, तेतरा देवी ने खुली आंखों से देखा और महसूस भी किया है। लेकिन कहने और बोलने की मनाही होने के नाते, यूं कहें कि घुट-घुट कर जीवन को जिया है, लेकिन कुछ कहा नहीं है।

इन 60 सालों में पहली बार जब हक़ अधिकार को लेकर बोलने और अपनी बात को कहने की बात उठी थी तो उनके मन मस्तिष्क पर बरबस ही बीते दिनों की यादें ताजा हो उठीं जो चुभन देती आई हैं। यह दर्द और चुभन सिर्फ तेतरा देवी का ही नहीं है, बल्कि उन तमाम महिलाओं का है जो घर की ड्योढ़ी से बाहर निकली ही नहीं हैं या अपने अधिकार को लेकर सजग और जागरूक ही नहीं हैं। लेकिन बदलते दौर के साथ ही उन्हें अपनी बात को कहने और पुरूषों से कदमताल मिलाते हुए अपने हक अधिकार को जानने-समझने की भी इच्छा शक्ति जागृत हुई है।

दरअसल, जौनपुर में दिशा फाउंडेशन ने ‘विश्व ग्रामीण महिला दिवस’ के अवसर पर महिलाओं के हक-अधिकार, मान-सम्मान, स्वाभिमान व अस्मिता को लेकर जन संवाद का आयोजन किया। वैसे तो भारत में हर वर्ष 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो यह दिन अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

ये आयोजन महज खानापूर्ति तक ही सीमित रह गये हैं। आयोजन के नाम पर कोरम पूरा किया जाता है। ऐसे में ग्रामीण महिलाओं की बात महज इस दिवस तक ही सीमित रह जाती है। आधी आबादी को तो इस दिवस के बारे में कोई जानकारी ही नहीं होती है।

‘विश्व ग्रामीण महिला दिवस’ अवसर पर दिशा फाउंडेशन द्वारा जन संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया जो 15 अक्टूबर से प्रारंभ होकर पूरे एक पखवाड़े तक विभिन्न क्षेत्रों में ग्रामीण शोषित-वंचित, दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के साथ ही साथ पीड़ित और न्याय से वंचित होती आ रही महिलाओं को जागरूक करने के उद्देश्य से भरा रहा है।

जौनपुर के करंजाकला ब्लाक के पतहना ग्राम सभा के रेघवापुर में और मुफ़्तीगंज ब्लाक के मुरारा ग्राम सभा में “हमार माटी, हमार स्वाभिमान, हमार अस्मिता और हमार अधिकार” महिला जन संवाद कार्यक्रम में दोनों ब्लाकों से सैकड़ों की संख्या में महिलाओं के साथ-साथ पुरुष और किशोरियों ने हिस्सा लिया।

मुरारा गांव में आयोजित जन संवाद कार्यक्रम में आई महिलाओं ने खुल कर अपनी बात रखते हुए महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार और शोषण के रोकथाम से लेकर कार्रवाई के संदर्भ में जानकारी प्राप्त की। जन संवाद कार्यक्रम में हिस्सा लेने आईं सुमन कहती हैं, “भले ही देश में महिला दिवस से लेकर महिलाओं के हक-अधिकार मान-सम्मान और स्वाभिमान के लिए बड़े-बड़े मंचों से लंबे-लंबे भाषण दिए जाते हैं, लेकिन बात जब न्याय दिलाने की होती है तो उन्हें भटकना पड़ता है, खासकर ग्रामीण महिलाओं की उपेक्षा बराबर होती आई है जो कहीं-कहीं असहनीय हो जाती है।”

तेतरा देवी कहती हैं, “महिलाओं को आज भी दबाया जा रहा है, इसका डटकर प्रतिकार होना चाहिए। वह ग्राम पंचायतों में महिलाओं की मजबूत भागीदारी होने के बाद भी उनके पद के अधिकारों पर पुरूषों की पकड़ होने पर सवाल उठाती हैं। वो कहती हैं कि जब महिलाएं पंचायत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुनी गई हैं तो कमान पुरुषों के हाथ में क्यों है?

तेतरा देवी के सवालों का समर्थन करते हुए भानुमती देवी भी किसी एक को नहीं बल्कि समूची व्यवस्था को कटघरे में खड़े करते हुए बोलती हैं, “दरअसल, महिलाओं को भले ही अधिकार प्राप्त हैं लेकिन कहीं न कहीं अशिक्षा, अज्ञानता, रूढ़िवादी व्यवस्थाएं और जागरूकता का अभाव उनके पैरों की बेड़ी बने हुए हैं जिससे बाहर निकलने की जरूरत है।”

माटी और जीवन के जुड़ाव पर चर्चा

जन संवाद कार्यक्रम में माटी के साथ महिलाओं का क्या रिश्ता है- पर विस्तार से ‘महिलाओं की कहानी- उन्हीं की जुबानी’ के तौर पर चर्चा हुई। चर्चा के दौरान महिलाओं ने माटी से जुड़े हुए तमाम गीत सुना कर शादी से लेकर अंतिम संस्कार तक किस तरह से माटी उनके जीवन में जुड़ी हुई है, इस पर अपने अनुभवों को साझा किया। हमारी धरती, हमारे खेत, हमारे घर आंगन को सरकारों द्वारा साजिश के तहत कैसे लूटने की कोशिश की जा रही है इस पर भी महिलाओं ने खुलकर बात की।

जन संवाद में बाबूराम, संदीप, मनोज कुमार समेत कई पुरुषों ने भी अपने विचार रखते हुए माटी के महत्व और कामगारों, मजदूरों से लेकर शोषित वंचित वर्गों को लूटने की साज़िश पर चर्चा की।

जन संवाद का मुख्य उद्देश्य

महिला जन संवाद का मुख्य उद्देश्य था, यह बताना कि महिलाओं का खेती-बाड़ी, खेत-खलिहान, घर-आंगन के साथ किस तरह का संबंध है, वह कैसे इस माटी से प्यार करती हैं और इस माटी को बचाने के लिए वह कैसे हर कुर्बानी देने के लिए तैयार रहती हैं। महिलाएं बताती हैं कि “जब हमारे यहां शादी के समय ‘मन की चोरियां’ होती हैं तो हम लोग माटी का गीत गाते हुए पोखरे-तालाब से माटी लाते हैं और मड़वा में उसको रखते हैं। इतना ही नहीं इस माटी से शादी विवाह में चूल्हे बनाए जाते हैं। चूल्हा बनाते वक्त महिलाएं मिलकर गीत गाती हैं।” 

इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि कैसे हल्दी के दिन हम अपने खेत से माटी लाकर मंडप में रखते हैं और उस माटी की कैसे पूजा करते हैं। पुरातन माटी से जुड़े प्रसंगों की चर्चा के साथ ही महिलाओं ने यह प्रण लिया कि “यदि सरकार या कोई भी व्यक्ति हमारी धरती को हमसे अलग करने की कोशिश करेगा तो हम हर कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं। हम अपनी जान दे देंगे, लेकिन अपनी माटी को नहीं देंगे।

महिलाओं ने सुनाए संविधान और अधिकारों के गीत

कार्यक्रम में महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर “हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे; एक खेत नहीं, एक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।” गीत सुनाते हुए जन संवाद में कहती हैं कि “माटी हमारा स्वाभिमान है, हमारा गुरूर है। जिस प्रकार से हमारे मांग का सिंदूर हमारा गुरूर होता है, उसी तरह से हमारा आंगन, हमारा घर, हमारी धरती, हमारा गुरूर है हमारा सम्मान है।”

महिलाएं कहती हैं कि हमारे घर कोई लड़की वाला शादी करने आता है तो सबसे पहले यही पूछता है कि आपके पास खेत कितना है, कितनी जमीन है? जिसके पास जमीन नहीं होती है उसका सर झुक जाता है। वहीं जिसके पास जमीन होती है तो वह कहता है कि हम जमीन वाले हैं, खेती वाले हैं। माटी का जो रिश्ता है वह इस तरह का रिश्ता है जैसे हमारा चोली और दामन का रिश्ता होता है।

महिलाएं बताती हैं कि ‘हर जगह हमें जमीन और माटी की जरूरत पड़ती है। चाहे हम अपने किसी रिश्तेदार, परिवार के किसी सदस्य के किसी भी मामले में देख सकते हैं। यहां तक कि कोर्ट कचहरी से लेकर हर दस्तावेज के तौर पर भी जमीन और माटी का जुड़ाव और उपयोगिता महत्वपूर्ण बनी हुई है जिसे कहीं से भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है।

महिलाओं को अधिकारों के प्रति किया गया सजग

विश्व ग्रामीण महिला दिवस पखवाड़ा के तहत चलाए गए जन संवाद कार्यक्रम के तीसरे दिन माटी की भूमिका के बारे में ग्रामीण महिलाओं को जागरूक किया गया। बताया गया कि ‘माटी का जो रिश्ता है वह हमारी अस्मिता, हमारे सम्मान और हमारी पहचान का सवाल है। इस पहचान को हम यूं ही नहीं जाने देंगे। तकरीबन तीन से चार घंटे चले महिला जन संवाद कार्यक्रम में महिलाओं ने खुलकर हिस्सा लिया।

कार्यक्रम को दिशा फाउंडेशन, कबीर पीस केंद्र और अवध यूथ कलेक्टिव की तरफ से संयुक्त रूप से चलाया गया। जन संवाद कार्यक्रम के तहत दिशा फाउंडेशन की टीम ने गांव-गांव में जाकर महिलाओं, किशोरियों को जमीन, अधिकार, और संविधान बचाने के संघर्ष लिए जागरूक किया। टीम ने संविधान बचाने के लिए उन्हें सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित किया।

दिशा फाउंडेशन के संस्थापक सदस्य लाल प्रकाश ‘राही’ कहते हैं कि “जब तक हमारे पास जीने लायक रोजगार नहीं है और हमारे लिए एक वर्ष के लिए अनाज पैदा करने के लिए अगर धरती नहीं है तो हम किसी भी तरह के न्याय को पाने में असक्षम होते हैं।” वह कहते हैं, “शांति की स्थापना भी भूख की शांति के साथ होती है, स्वाभिमान के साथ होती है और अस्मिता के साथ होती है। यदि हमारी अस्मिता ही नहीं होगी, अगर हमारा स्वाभिमान ही नहीं होगा और हमारा अधिकार ही नहीं होगा, तो हम शांति और सामाजिक सद्भाव की पहल भला कैसे कर सकते हैं?”

उन्होंने कहा कि “हम जानते हैं कि बराबरी का अधिकार बिना लड़े, बिना संघर्ष किये नहीं मिल सकता। इसलिए फाउंडेशन के कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर महिलाओं, किसानों, मजदूरों, राजगीरों, रिक्शा चालकों को अपने अधिकारों के लिए, सामाजिक न्याय के लिए, शिक्षा के लिए जागरूक कर रहे हैं, उनको प्रशिक्षित कर रहे हैं, कैडर कैंप कर रहे हैं, ताकि वंचित समाज को एक वैज्ञानिक समाज की ओर ले जा सकें। और एक ऐसा समाज बन सके जहां प्यार मोहब्बत हो, भाईचारा हो और संविधान का राज हो।

जन संवाद कार्यक्रम में महिलाओं, किशोरियों की भरपूर भागेदारी यह बताने के लिए जहां काफी रही कि महिलाएं अपने हक अधिकार को लेकर जागृत हो रही हैं। कार्यक्रम में सीमा कुमारी, अंबिका, सुषमा, उजाला, करिश्मा, रजिया, सुनीता, मीरा, शशिकला सहित कई महिलाओं-किशोरियों ने खुल कर अपने विचार रखे।

जन संवाद कार्यक्रम की संयुक्त रूप से अध्यक्षता करते हुए रेखा व सुनीता देवी ने ‘जनचौक’ को बताया कि, “दरअसल इसके आयोजन के पीछे का मुख्य मकसद ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं-किशोरियों को न केवल जागरूक करना रहा है, बल्कि हासिए की जिंदगी जीती आई महिलाओं को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना भी रहा है।

संचालन करते हुए सीमा कुमारी कहती हैं “कई मामलों में आज भी महिलाओं के अधिकारों की खुली अनदेखी की जाती है ऐसे में जरूरत इस बात की है कि इस तरह के अभियान समय-समय पर चलते रहना चाहिए।

(जौनपुर से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट।)

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