ग्राउंड रिपोर्ट: अवैध खनन का खेल रोकने में योगी सरकार फेल

मिर्जापुर। देश की पौराणिक एवं ऐतिहासिक नगरी काशी एवं प्रयागराज के मध्य में स्थित मिर्ज़ापुर का अपना एक धार्मिक, पौराणिक महत्व है। यह तीनों पौराणिक शहर गंगा नदी के किनारे बसे हुए हैं। प्रति वर्ष गंगा कटान के साथ ही अवैध खनन से भी इन्हें जूझना पड़ता है। सर्वाधिक अवैध खनन गंगा नदी के तटवर्तीय इलाकों में हो रहे हैं जिससे न केवल गंगा नदी का आंचल छलनी हो रहा है, बल्कि अवैध खनन में लिप्त लोग देखते ही देखते मालामाल हो रहे हैं। मज़े कि बात है कि जिनके कंधों पर अवैध खनन को रोकने का भार है वह भी गंगा नदी में हो रहे अवैध खनन को रोकने में नाकाम हैं।

कहना गलत नहीं होगा कि खनन माफियाओं का लम्बा सिंडिकेट है जो गंगा नदी से लेकर गंगा की सहायक नदियों में खनन कराने में जुटा है। नदियों में अवैध खनन का खेल कब तक चलेगा? यह बता पाना कठिन ही नहीं बल्कि जटिल भी है। ऐसे में सवाल उठता है कि गंगा नदी के किनारे अवैध खनन आखिर किसकी सह पर हो रहा है? किसकी सह पर गंगा नदी के सीने को छलनी किया जा रहा है? यह सवाल जरूर छोटे हो सकते हैं, लेकिन इसके मायने बड़े व गंभीर हैं। आखिर हो भी क्यों ना गंगा सिर्फ नदी नहीं बल्कि लोगों के लिए जीवनदायिनी जीवनधारा है।

बुंदेलखंड से बिहार तक फैला है खनन माफियाओं का सिंडिकेट

मध्य प्रदेश की सीमा से लगने वाले यूपी के चित्रकूट, बांदा से निकल कर यमुना व अन्य नदियां प्रयागराज में आकर संगम के स्वरूप में परिवर्तित हो जाती हैं। प्रयागराज से आगे बढ़ते हुए गंगा नदी भदोही, मिर्ज़ापुर, वाराणसी, गाजीपुर एवं बलिया जनपदों से होते हुए बिहार राज्य में प्रवेश करती है, जहां गंगा नदी का मिलन कर्मनाशा नदी में होता है। ऐसे में देखा जाय तो बिहार से लेकर बुंदेलखंड तक के तटवर्तीय इलाकों में अवैध खनन का खेल बद्दस्तूर न केवल जारी है, बल्कि खनन माफियाओं का एक लम्बा सिंडिकेट भी काम कर रहा है। जो किसी भी कार्रवाई की पूर्व सूचना देने का काम करता है। जिससे अवैध खनन में संलिप्त लोग बड़े ही आसानी से बच निकलने में कामयाब हो जाते हैं। इनका खौफ इतना कि यह किसी पर हमला भी करने से भी भय नहीं खाते हैं।

अवैध खनन

अखिल भारत रचनात्मक समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष विभूति कुमार मिश्र कहते हैं कि “जनपद मिर्जापुर के दक्षिण में विंध्य पर्वत श्रृंखला और उत्तर में गंगा नदी प्रवाहित हो रही है। विंध्य पर्वत के तलहट में अनवरत विस्फोट के कारण चट्टानें अंदर ही अंदर मैदानी क्षेत्र की तरफ घसक रही हैं, जिसका परिणाम गंगा नदी के प्रवाह पर पड़ने लगा है। गंगा नदी के उत्तरी तट पर रेत का सिल्ट जमता जा रहा है तो दक्षिणी तट पर कटान बढ़ती जा रही है, जो आने वाले समय में कई गांवों को गंगा की धारा में समाहित कर लेगी। ऐसी स्थिति में मनमाने ढंग से बालू खनन का कार्य भी कहीं न कहीं गंगा नदी की धारा को अपना मार्ग बदलने को विवश कर रहा है जो शुभ संकेत नहीं है।”

वैध खनन की आड़ में होता है अवैध खनन

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है। प्रयागराज से बहते हुए गंगा नदी भदोही सीमा से होकर मिर्ज़ापुर की ओर बहती है। मिर्ज़ापुर जिले में तकरीबन 90 किमी का दायरा गंगा नदी का बताया जाता है। जो छानबे की सीमा से होकर नगर क्षेत्र को छूते हुए चुनार क्षेत्र के चुनार किला को स्पर्श कर वाराणसी की ओर बढ़ जाता है। मिर्ज़ापुर जनपद के नदिनी, जोपा, परवा, नौगांव आदि स्थानों पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर जेसीबी और पोकलैंड मशीन लगाकर बालू का अवैध खनन किया जाता है।

यह पूरा अवैध कारोबार जनपद के कई विभागों की शह पर किया जा रहा है। गंगा नदी में खनन पर प्रतिबंध के बावजूद माफिया इसे दिन-रात छलनी करने में जुटे हुए हैं। जहां न तो कोई रोक-टोक है ना ही कोई सवाल-जवाब, खनन माफिया बेखौफ होकर बालू खनन के धंधे में लगे हुए दिखाई दे जाते हैं। कहने को तो बालू खनन को कुछ स्थानों पर वैध बताया जाता है, लेकिन वैध के आड़ में अवैध खनन जोरों पर होता है। तो सवाल उठता है कि भवन निर्माण के बढ़ते कारोबार और उसके लिए मची बालू की लूट के इस माहौल में क्या हम नदियों को बचा पाएंगें?

जेसीबी से अवैध खनन

ओवरलोड ट्रक-ट्रैक्टर से होता है परिवहन

अवैध बालू खनन के खेल में संलिप्त खननकर्ताओं के हाथ लम्बे बताते जाते हैं। दिन के उजाले में बेखौफ खनन होने के साथ-साथ रात के अंधेरे में यह गति पकड़ लेता है। जिले में जिगना एवं विंध्याचल थाना अंतर्गत गैपुरा पुलिस चौकी, नदिनी, अष्टभुजा पुलिस चौकी, विंध्याचल थाना, कटरा कोतवाली थाना अंतर्गत नटवा पुलिस चौकी, शास्त्री सेतु पुलिस चौकी से लेकर चील्ह, देहात कोतवाली थाना क्षेत्र से होकर बालू लदे ट्रक-ट्रैक्टर पास कराये जाते हैं। ट्रक-ट्रैक्टर दिन-रात बालू ढोने में लगे रहते हैं। बालू खनन का अधिकतर काम रात के अंधेरे में होता है। कुछ ऐसे भी क्षेत्र बताते जाते हैं, जहां दिन में भी खनन ज़ारी रहता है। जिसमें दबंग माफियाओं से लेकर सफेदपोश लोगों की भी संलिप्तता बताई जाती है।

कुछ इस तरह होता है बालू खनन का खेल

बालू खनन के बारे में जानकारी रखने वाले सूत्रों की मानें तो बाढ़ के समय गंगा नदी के तराई इलाकों के खेतों में बड़े पैमाने पर बालू जमा हो जाती है। इसके लिए नियम है कि किसान को तीन महीने का लाइसेंस दिया जाएगा। इसके आधार पर किसान खेत से बालू निकलवा सकता है। लेकिन ऐसा होता नहीं है, किसानों के नाम पर खनन माफिया खेल कर जाते हैं। यह किसानों को भरोसे में लेकर पहले तो उनको खनन का लाइसेंस दिलवाते हैं। इसके बाद मनचाही जगह से बालू ले जाते हैं। यदि किसी ने सवाल करने का साहस दिखाया तो लाइसेंस का हवाला देकर चुप करा दिया जाता है। आसानी से समझा जा सकता है कि सिर्फ खनन माफिया ही नहीं बल्कि कितने और चेहरे बालू के अवैध खनन में संलिप्त हैं।

बरसात से पहले खड़े हो जाते हैं बालू के टीले

भदोही जिले का गोपीगंज, औराई थाना, मिर्ज़ापुर ज़िले का जिगना, विंध्याचल, चील्ह, देहात कोतवाली, पड़री और चुनार कोतवाली थाना क्षेत्र प्रमुख हैं, जहां के अलग-अलग इलाकों में बरसात होने से पूर्व ही जेसीबी से बालू के टीले खड़े कर दिए जाते हैं जो बरसात के दिनों में बालू की निकासी न होने पर महंगे दामों पर बेचे जाते हैं। कई टन बालू का ढेर लगा लिया जाता है और जैसे ही बरसात प्रारंभ होने को होती है वैसे ही करोड़ों का खेल शुरू हो जाता है।

बालू लेकर जा रहा ट्रैक्टर

मिर्ज़ापुर के विंध्याचल थाना क्षेत्र में ही कई इलाकों में अवैध खनन किए जाते हैं। यहां खनन माफिया बालू जमा करना शुरू कर दिए हैं। जानकार बताते हैं कि जब बरसात प्रारंभ होगी तो यही बालू सोना उगलने लगेगी। खनन माफिया इसे और ऊंचे दामों पर बेचेंगे। विंध्याचल थाना अंतर्गत कई स्थानों पर खनन माफियाओं ने बालू का अवैध डंपिंग यार्ड बना रखा है। यहां बालू को एकत्र कर बरसात के दिनों में निकासी की जाती है।

गंगा के तटवर्तीय इलाकों में सड़कों की खस्ता हालत

एक ओर जहां सरकार द्वारा करोड़ों रुपये लगाकर गंगा के कटान को रोकने से लेकर तटवर्तीय इलाकों में मार्गों को बेहतर बनाने की कवायद की जा रही है तो वहीं दूसरी ओर खनन माफियाओं द्वारा सरकार की मंशा पर पानी फेर मार्गों की बुरी दशा बना दी जा रही है जिस पर पैदल भी चलना जोखिम भरा साबित होता है। आलम यह है कि बालू खनन में संलिप्त ओवरलोड ट्रक-ट्रैक्टर की वजह से नई सड़कें भी देखते ही देखते जर्जर होने लगती हैं। बालू खनन में लगे ओवरलोड वाहनों की वजह से जहां ग्रामीण सड़कें क्षतिग्रस्त हो रही हैं वहीं इनसे दुर्घटना का भी भय बना रहता है।

ग्रामीणों ने बताया कि “ओवरलोड ट्रैक्टर दिन रात इन सड़कों से गुजरते हैं, ऐसे में बच्चों का घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया है। बालू खनन में संलिप्त लोग दबंग व मनबढ़ किस्म के होते हैं, जिन पर माफियाओं का हाथ होने की वजह से कोई इनके खिलाफ न तो कुछ बोलना चाहता है ना ही आवाज उठा पाता है।” नाम न छापे जाने के शर्त पर ग्रामीण बताते हैं कि “जब सरकारी मुलाजिमों को अवैध खनन का खेल नहीं दिखाई पड़ता तो भला वह कैसे व किससे शिकायत दर्ज कराते।”

ओवरलोड के चलते खस्ताहाल हुई सड़क

गंगा किनारे धड़ल्ले से जारी है खनन

नियम-कानून की दुहाई देने वाला खनन विभाग खुद खननकर्ताओं को संरक्षण देता है। जिनमें परोक्षरूप से सफेद पोश लोगों का भी संरक्षण प्राप्त होता है। देहात कोतवाली क्षेत्र खुटहां तथा गंगा उस पार भदोही सीमा क्षेत्र से लेकर विंध्याचल, चील्ह, जिगना थाना क्षेत्रों में गंगा नदी पर बालू खनन जारी है। गंगा किनारे जेसीबी लगा कर कई बीघे में रेत निकालकर खाई बना दी गई है, जहां आसानी से खनन होता रहता है। मज़े कि बात है कि मिर्ज़ापुर विंध्याचल को जौनपुर, भदोही सहित कई राज्यों को जोड़ने वाले गंगा नदी के जर्जर हो चुके शास्त्री सेतु पर भले ही भारी वाहनों का गुजरना वर्जित है, बावजूद इसके ओवरलोड बालू लदे वाहनों को फर्राटा भरते हुए देखा जा सकता है।

अदालती फैसलों का भी नहीं होता है खौफ

पूर्व में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दोहराते हुए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने देश की किसी नदी में लाइसेंस या पर्यावरण मंजूरी के बिना रेत के खनन पर रोक लगा दी थी, बावजूद इसके बालू खनन माफिया खनन जारी रखे हुए थे। ऐसे में सवाल उठता है कि नदियों को बचाने के लिए जनहित याचिकाओं और उस पर दिए गए अदालती फैसले से शुरू हुआ अभियान क्या खनन माफिया के हौसले को रोक पायेगा? सवाल इसलिए भी अहम है कि न्यायापालिका अपने आदेश को लागू करने के लिए उन्हीं अफसरों पर निर्भर है जिनमें कुछ तो भ्रष्ट हैं, कुछ वेतन तो सरकार से लेते हैं लेकिन काम करते हैं खनन माफियाओं के लिए।

प्रशासनिक अधिकारी

अब सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी मुलाजिम खासकर जिम्मेदार विभाग के लोग किस प्रकार से गंगा नदी में खनन रोकने के अभियान को सफल बनाने में मददगार बने हुए हैं। खनन माफियाओं के हौसले बताते हैं कि उनके “आकाओं” के हाथ कितने लम्बे होते हैं जो हर स्थितियों से निपटने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार होते हैं।

पूर्व में मुरैना (मध्य प्रदेश) के आईपीएस अफसर नरेन्द्र कुमार की तरह तनकर जो ईमानदार अफसर खड़े होने का साहस भी करते हैं उन्हें कुचलकर मार दिया जाता है या दुर्गा शक्ति नागपाल की तरह निलंबित कर दिया जाता है। यहां खौफ सरकार का नहीं खनन माफियाओं का देखा जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि तेजी के साथ भवन निर्माण के बढ़ते कारोबार, आसमान छूती निर्माण सामाग्रियों के दाम और उसके लिए मची बालू की लूट के इस माहौल में क्या नदियों को हम बचा पाएंगें?

(उत्तर प्रदेश से संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट)

संतोष देव गिरी
Published by
संतोष देव गिरी