अखिलेश मिश्र: सेकुलर योद्धा और अनोखे संपादक

लखनऊ से प्रकाशित हिन्दी अखबार ‘स्वतंत्र भारत’ समेत कई अखबारों के गुजरे जमाने में संपादक रहे गांधीवादी चिंतक एवं सत्य के जुझारू योद्धा अखिलेश मिश्र की आज 101वीं जयंती है। बात पुरानी है जब लोकसभा की लखनऊ सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के खिलाफ सभी सेकुलर पार्टियों की आम सहमति से उम्मीदवार खड़ा करने की चाहत में वहां एक सेकुलर मार्च निकाला गया था। उस मार्च में फिल्मकार मुजफ्फर अली, असगर अली इंजीनियर समेत अनेक गणमान्य नागरिकों ने भी भाग लिया था। पर उसका नेतृत्व अखिलेश मिश्र ने ही किया था।

उस मार्च में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से बस आदि से आई सैकड़ों महिलाओं ने भी भाग लिया था। एक बार अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में 10 दिसंबर को जीपीओ चौराहा से राज्य विधानसभा भवन तक मानव श्रृंखला बनाई गई तो उसकी भी अगुवाई अखिलेश मिश्र ने ही की थी। अखिलेश मिश्र बहुतों के पितातुल्य गुरु थे। उन्होंने असंख्य लोगों को सेकुलर एक्टिविस्ट बनाया और सच्चा पत्रकार होने के लिए जरूरी पाठ पढ़ाए।

अखिलेश मिश्र से सीखी पुरानी भारतीय विधा, बतकही के जरिए ‘मदारी जमूरा खेला’ के अब तक के स्क्रिप्ट पर आधारित एक किताब प्रकाशित हो जाए यही उनके एक शिष्य की श्रद्धांजलि होगी।

बहरहाल, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और अभी स्वतंत्र पत्रकार, लालबहादुर सिंह ने फेसबुक पर वंदना मिश्र के आज सुबह के पोस्ट पर लिखा कि अखिलेश जी एक सच्चे जन-बुद्धिजीवी और रेडिकल डेमोक्रेट थे। वे सत्ता के क्रूर दमन के खिलाफ उत्पीड़ितों के प्रतिवाद के साथ जोखिम लेकर सड़क पर उतरते रहे। वे इंसाफ की हर लड़ाई में योद्धा की तरह डटे लखनऊ के लोकतान्त्रिक संघर्षों की पहचान थे।

दयाशंकर राय ने लिखा अखिलेश जी की प्रेरणादायी स्मृति को सादर नमन। लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष जीवन मूल्यों पर जीवन भर समर्पित रहने वाले और अपने लेखन के जरिये निरंतर उसे मजबूत करते रहने वाले अखिलेश मिश्र जी की स्मृतियों को प्रणाम। वे हम सभी के प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। पत्रकारिता से जुड़े सुभाष राय ने लिखा उनकी‌ स्मृति हमेशा हमारा मार्गदर्शन करती रहेगी।‌ उन्हें प्रणाम। मुंबई के ‘ब्लिट्ज’ अखबार से जुड़े रहे वरीय पत्रकार प्रदीप कपूर ने लिखा: सादर नमन। उनसे जुड़ी यादें हम सबको प्रेरणा देती हैं। महिला एक्टिविस्ट ताहिरा हसन ने लिखा: सादर नमन। उनसे जुड़ी यादें हम सबको प्रेरणा देती हैं।

आशीष अवस्थी ने लिखा: लखनऊ शहर की जीवंत शख्सियत, मूर्धन्य साहित्यकार, चिंतक, भाषाविद ज़मीनी एक्टिवित्त, पत्रकार फक्कड़ी मिज़ाज़ वाले लखनऊ की साझी विरासत के दस्तखत और हम सब के मेंटर और शिक्षक रहे अखिलेश जी की स्मृतियों को नमन। इसी पोस्ट पर परवेज मलिकजादा, भगवान स्वरूप कटियार, हाफिज किदवई, ऋषि श्रीवास्तव ने भी अपनी अपनी श्रद्धांजलि के उद्गार व्यक्त किये।

अखिलेश मिश्र की मंझली बेटी वंदना मिश्र ही नहीं उनकी छोटी बहन और भारत सरकार के आयकर विभाग में कमिश्नर रही अनुराधा भी नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पढ़ी हैं। वंदना मिश्र के पति और लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के रिटायर प्रोफेसर डॉ रमेश दीक्षित, अनुराधा के जीवन साथी और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के रिटायर अधिकारी, शंभूनाथ सिंह जेएनयू में हमारे समकालीन थे। अखिलेश जी की सबसे बड़ी बेटी लखनऊ में चिकित्सक, प्रदीप सिन्हा से विवाहित हैं जो जरूरतमंदों का निशुल्क उपचार करते हैं। उन्होंने मेरा भी लखनऊ मे मेरे घर पर आकर मुफ़्त उपचार किया था जब माह भर से ज्यादा की मियादी बुखार से मेरे बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। उनके पुत्र, अमिताभ मिश्र वहीं पत्रकार हैं।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और विनोबा भावे के सानिध्य में सेवाग्राम वर्धा आश्रम में अरसे तक रहे अखिलेश मिश्र पत्रकारिता और एक्टिविजम में हमारे पिता-तुल्य गुरु थे। सेवा ग्राम आश्रम गांधी जी द्वारा स्थापित दूसरा महत्वपूर्ण आश्रम है। उन्होंने इससे पूर्व साबरमती में आश्रम की स्थापना की थी। ये आश्रम गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रमों एवम राजनीतिक आंदोलन के संचालन का केंद्र हुआ करते थे।

महात्मा गांधी ने वर्धा में बुनियादी तालीम और प्राक्रितिक शिक्षा से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण प्रयोग किये थे जिन्हे गणित, दर्शन शास्त्र के प्रकांड विद्वान अखिलेश मिश्र ने आगे बढ़ाया था। यह आश्रम 1942 के भारत छोडो आंदोलन और उसके बाद तक रचनात्मक कार्य, खादी, ग्रामोद्योग के साथ ही सामाजिक सुधारों के अस्पृश्यता निवारण और अंग्रेजी दासता से अहिंसा के मार्ग से मुक्ति का प्रमुख केंद्र बन गया था।

हमने अखिलेश मिश्र को कभी गुरुदक्षिणा देकर अपने शिष्यत्व धर्म का पालान नहीं किया। उन्होंने भी मुझसे कभी गुरुदक्षिणा नहीं मांगी थी। पर आज वह दिन है जिसने मुझे उनको श्रद्धांजलि स्वरूप अपने संस्मरण लिखने के लिए प्रेरित कर दिया।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

चंद्र प्रकाश झा
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