फिल्म ओपेनहाइमर: प्रतिभा, बलिदान और मानवता की कहानी

दूरदर्शी फिल्म निर्माता क्रिस्टोफर नोलन द्वारा निर्देशित ओपेनहाइमर एक संपूर्ण सिनेमाई उत्कृष्ट कृति है जो दर्शकों को इतिहास, विज्ञान और मानवीयता की जटिलताओं के माध्यम से एक मनोरंजक यात्रा में ले जाती है। पूरे विस्तार के साथ उत्कृष्ट कलाकारी और विचारोत्तेजक कथा में बेहद बारीकी के साथ फिल्म ओपेनहाइमर एक शानदार उदाहरण के रूप में आ खड़ी हुयी है कि कैसे ऐतिहासिक तथ्यों को आधुनिक दर्शकों के साथ जोड़ा जा सकता है।

दूसरे विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर के जीवन का वर्णन है, जिसे अभिनेता कीलियन मर्फी ने शानदार ढंग से चित्रित किया है। फिल्म वैज्ञानिक ओपेनहाइमर की प्रतिभा और परमाणु बम के विकास में उनकी भागीदारी के दौरान उनके सामने आई नैतिक दुविधाओं को सामने रखती है।

राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल की पृष्ठभूमि में,क्रिस्टोफर नोलन की ‘ओपेनहाइमर’ एक मार्मिक और सामयिक कथा के रूप में उभरती है जो मैनहट्टन प्रोजेक्ट में शामिल लोगों के जीवन पर मैकार्थीवाद और सेकंड रेड स्केयर के प्रभावों की पड़ताल करती है। यह फिल्म वैज्ञानिक ओपेनहाइमर को एक जटिल व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है जो सत्ता के द्वारा वैज्ञानिक आविष्कार का दबाव, राष्ट्र के प्रति कर्तव्य की भावना और एक इंसान के रूप में उनकी नैतिक जिम्मेदारी से जूझ रहा है।

उस दौर में मैकार्थीवाद की छाया वैज्ञानिक समुदाय पर मंडरा रही थी। ओपेनहाइमर सहित कई वैज्ञानिकों को उनकी वामपंथियों के साथ सहानुभूति या पिछले संबंधों के कारण जांच और संदेह का सामना करना पड़ा,उनकी पत्नी किट्टी ओपेनहाइमर के वामपंथी झुकाव वाले संगठनों के साथ संबंधों ने उन्हें कम्युनिस्ट संबंधों की जांच और आरोपों का निशाना बना दिया। 

सेकंड रेड स्केयर तीव्र कम्युनिस्ट विरोधी भावना का काल था, जो 1940 के दशक के अंत से 1950 के दशक के मध्य तक पूरे अमेरिका में व्याप्त था। अमेरिकी समाज और संस्थानों में साम्यवाद की घुसपैठ के डर के कारण संदिग्ध कम्युनिस्टों और सहानुभूति रखने वालों की बड़े पैमाने पर तलाश शुरू हो गई थी। सीनेटर जोसेफ मैकार्थी इस दौर में एक ऐसे प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभरे, जिन्होंने वामपंथी, और विध्वंसक समझे जाने वाले व्यक्तियों को दंडित करने के लिए निराधार आरोपों और सार्वजनिक सुनवाई का कुचक्र लाया।

1940 के दशक में  हॉलीवुड फिल्म उद्योग भी मैकार्थीवाद के प्रभाव से अछूता नहीं था। हाउस अन-अमेरिकन एक्टिविटीज़ कमेटी (HUAC) ने हॉलीवुड में कथित कम्युनिस्टों की जांच की, जिसके परिणामस्वरूप वामपंथ से सहानुभूति रखने वाले हॉलीवुड ट्रेन सूची के फिल्म निर्माताओं और पटकथा लेखकों का एक समूह सामने आया, जिन्हें उनकी राजनीतिक मान्यताओं के कारण काली सूची में डाल दिया गया और काम के अवसरों से वंचित कर दिया गया।

इतिहास की गलियों में कुछ कालखंड काले अध्याय के रूप में सामने आते हैं जो हमें भयभीत करते हैं साथ ही बौद्धिकता और नागरिक स्वतंत्रता के खात्मे के खतरों की याद दिलाते हैं। मैकार्थीवाद और सेकंड रेड स्केयर का युग, जिसने 20वीं सदी के मध्य में संयुक्त राज्य अमेरिका की जनता को त्रस्त कर दिया और जनमानस में इस झूठ को स्थापित करने का कार्य किया कि कैसे साम्यवाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कथित तौर पर खतरे, व्यापक उन्माद और अन्याय को जन्म दे सकता है।

नोलन की कहानी कहने की विशिष्ट शैली पूरी फिल्म में दर्शकों को बांध के रखती है। बार बार फ्लैश बैक में ले जाती कथा को वह ओपेनहाइमर के जीवन के लघुचित्रों की एक श्रृंखला में सामने लाता है जो एक मनोरंजक और रहस्यमय अनुभव पैदा करता है। फिल्म की बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी दर्शकों को 1940 के दशक में ले जाती है, जिसमें वैज्ञानिक सफलताओं की भव्यता और युद्ध की मानवीय लागत दोनों को दर्शाया गया है। नोलन का कलात्मक सिनेमैटिक प्रभाव, उस दौर की जीवनशैली के सेटों का उपयोग,हमें दशकों पीछे ले जाकर मंत्रमुग्ध कर देता है।

का बेहद बारीक और ऑस्कर जीतने लायक प्रदर्शन रहा जो ओपेनहाइमर की प्रतिभा, उनके आंतरिक संघर्ष और उनके मानवीय दृष्टिकोण की छाप छोड़ जाने में सफल रहा है। सभी सहायक कलाकारों ने भी बेहतरीन काम किया है। एमिली ब्लंट ने ओपेनहाइमर की पत्नी किट्टी की भूमिका निभाई, रॉबर्ट डाउनी जूनियर, लुईस स्ट्रॉस के रोल में रहे ये लोग इस कहानी में गहराई और यथार्थ चित्रित करने में सफल रहे। स्क्रीन पर इन लोगों की शानदार केमिस्ट्री सारे घटनाक्रमों को परत दर परत जोड़ती हुयी ओपेनहाइमर के जीवन और चरित्र को पूरा आकार दे डालती है।

फिल्म की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक मैनहट्टन परियोजना में शामिल वैज्ञानिकों की नैतिक दुविधाओं के साथ ही वैज्ञानिक ओपेनहाइमर का आंतरिक संघर्ष कहानी की मूल भावना है। यह फिल्म युद्ध के समय वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी और वैज्ञानिक प्रगति के नैतिकता के बारे में विचारोत्तेजक प्रश्न भी उठाती है।

अपने वैज्ञानिक और ऐतिहासिक पहलुओं से परे, ओपेनहाइमर फिल्म द्वितीय विश्वयुद्ध के उथल-पुथल के समय में मानवीय अनुभव का एक मार्मिक विवरण है। यह फिल्म उस गहन शोध और सहयोग पर प्रकाश डालती है जिसकी परिणति परमाणु बम के निर्माण के तौर पर हुई। इसमें शामिल वैज्ञानिकों के प्रतिभाशाली दिमाग और समर्पण, इतिहास के जरिये भविष्य को एक बेहतरीन संदेश भी है। फिल्म वैज्ञानिकों के बीच सौहार्द और सामूहिक प्रयास को दर्शाती हुयी उस दौर में रही संवेदनशीलता को सामने लाते हुये हमें अकल्पनीय चुनौतियों का सामना करते समय मानवीय भावना की ताकत की याद दिलाती है।

जब दर्शक ‘ओपेनहाइमर’ देखते हैं, उन्हें न केवल गुजरी हुयी ऐतिहासिक घटनायें याद आती है, बल्कि अमेरिकी इतिहास में उस दौर की सत्ता का घृणास्पद चेहरा भी याद आता है। यह फिल्म हमारे लिए एक सतर्क करती कहानी की तरह कार्य तो करती ही है, साथ ही दर्शकों को सुरक्षा की तलाश और नागरिक स्वतंत्रता के खात्मे के खतरों के प्रति जागरूक रहने का आग्रह भी करती है।

ऐसे युग में जब राजनीतिक विभाजन और विचारधाराएं समाज का ध्रुवीकरण कर रही हैं, ‘ओपेनहाइमर’ अनियंत्रित शक्तियों के परिणामों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों की सुरक्षा का पुनर्मूल्यांकन है जो हमें आलोचनात्मक सोच रखने और जहां कहीं भी अन्याय और भय फैलाने की बात हो, उन्हें चुनौती देने का आग्रह करती है।

लुडविग गोरानसन द्वारा रचित फिल्म का संगीत बेहद प्रभावशाली है जो प्रत्येक दृश्य की भावनात्मक लय को बनाए रखता है। लुडविग की बनाई धुनें ओपेनहाइमर की यात्रा में जान फूंकती हैं और दर्शकों पर एक अमिट छाप छोड़ती हैं।

‘ओपेनहाइमर’ एक शानदार वैज्ञानिक की जीवनी से कहीं अधिक है, इसे देखकर हमें याद रखना होगा यदि हम इससे नहीं सीखेंगे,तो इतिहास खुद को दोहराने से नहीं बच पाएगा। अतीत की अंधेरी यात्राओं को याद रखकर, हम वर्तमान की चुनौतियों से निपटने और एक ऐसा भविष्य बनाने के लिए बेहतर ढंग से तैयार हों, जो सभी के लिए न्याय, स्वतंत्रता और करुणा के मूल्यों को कायम रख पाये।

फिल्म ‘ओपेनहाइमर’ सिनेमा प्रेमियों, इतिहास प्रेमियों, प्रतिभा, बलिदान और मानवीय भावना की जटिलता की सराहना करने वाले हर व्यक्ति द्वारा अवश्य देखी जानी चाहिए।

(बालकृष्ण अय्यर रंगकर्म और फिल्मों के गंभीर अध्येता हैं। रायपुर(छत्तीसगढ़) में रहते हैं।)

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