जन्मदिन पर विशेष: मौत के बाद भी जिंदा रहने का नाम है चे

एक नाम है चे ग्वेरा। चे का आज जन्मदिन है। चे मिसाल हैं कि जीकर ही नहीं मरकर भी जिंदा रहा जा सकता है। चे के लिए दुनिया सरहदों में बंटी नहीं थी। इसीलिए 9 अक्तूबर, 1967 में बोलीविया के जंगल में पकड़े गये चे से अमेरिकी सैन्य अधिकारी सेलिश ने जब पूछा, ‘तुम क्यूबाई हो या अर्जेण्टीनी तो चे का जवाब भुलाये नहीं भूलता। चे ने कहा, ‘मैं क्यूबाई हूं, अर्जेण्टीनी हूं, मैं पेरू का हूं, इक्वाडोर का हूं दुनिया में जहां कहीं भी साम्राज्यवाद मानवता को रौंद रहा है, मैं वहां-वहां उस मुल्क की सरहद पर हूं।’

चे सम्पूर्ण मानवता के लिए थे, तभी तो पल भर में क्यूबा के मंत्री पद को त्याग कर अपने चुनिन्दा साथियों के साथ बोलिविया में जबरन हो रही अमेरिकी घुसपैठ को खदेड़ने चल दिए। क्यूबा से जाने से पहले चे ने अपने संघर्ष के साथी क्यूबा के राष्‍ट्रपति फिदेल कास्त्रो को जो पत्र लिखा, वो उन लोगों के लिए धरोहर है, जो इंन्सानियत के हक में खड़े हैं या फिर खड़े होने का हौसला बांध रहे हैं। पत्र का एक-एक शब्द प्यार और संवेदनाओं से भरा है, चे ने लिखा, ‘फिदेल मेरे दोस्त, अब मेरी विनम्र सेवाओं की विश्‍व के दूसरे भागों को आवश्‍यकता है और मैं वह कर सकता हूं। … तुम समझो इस समय मैं सुख-दुःख दोनों का अनुभव कर रहा हूं। आधिकारिक रूप से क्यूबा से मेरा कोई संबंध नहीं है, परन्तु अन्य संबंध जो अलग तरह के हैं, उनको पदों की तरह से नहीं छोड़ा नहीं जा सकता। मैं उन लोगों से विदा लेता हूं जिन्होंने मुझे अपने बेटे के रूप में स्वीकार किया। इससे मुझे दुःख हो रहा है। मैंने आप लोगों को बहुत चाहा परन्तु इसका दिखावा नहीं कर सका। मैं अपने क्रियाकलापों में बिल्कुल सीधा एवं स्‍पष्‍ट हूं। यदि मेरा अंतिम समय आ जाएगा और मैं दूर रहूंगा तो मेरा ख्याल इस देश के लिए और खासकर तुम्हारे लिए होगा। समय-समय पर बीसवीं सदी के इस मामूली सैनिक को याद करते रहिएगा।’

इस पत्र पर फिदेल की टिप्पणी थी- ‘वे लोग जो क्रान्तिकारियों को हृदय विहीन जड़वत प्राणी समझते हैं। यह पत्र उदाहरण पेश करता है कि एक क्रान्तिकारी के हृदय में कितनी पाकीजगी और प्रेम पाया जा सकता है। लोगों से निश्‍छल प्रेम करने वाले चे आज भी करोड़ों दिलों में न सिर्फ जिन्दा हैं बल्कि इन लाखों अनजाने चेहरों की आखों में सपनों की तरह हैं, जो इस पूरी दुनिया को हैवानियत से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।’ ‘चे’ के शब्दों को ले लें तो हम सच में जीने वाले लोग हैं, हम उसका ख्वाब देखते हैं।

…पाश ने कहा है।

धूप की तरह धरती पर खिल जाना,

और फिर आलिंगन में सिमट जाना,

बारूद की तरह भड़क उठना,

और चारों दिशाओं में गूंज जाना,

जीने का यही सलीका होता है,

प्यार करना और जीना उन्हें कभी नहीं आयेगा,

जिन्होंने जिदंगी को बनिया बना दिया है।

(भाष्कर गुहा नियोगी पत्रकार हैं और आजकल वाराणसी में रहते हैं।) 

भास्कर सोनू
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