नफरती मीडिया को विपक्ष का सबक

इंडिया गठबंधन द्वारा 14 न्यूज एंकरों का बहिष्कार करने का ऐलान भारत में चल रही पक्षपाती पत्रकारिता की समस्या को रेखांकित करने का काम किया है। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ द्वारा जारी की गई इस सूची में अलग-अलग टीवी चैनलों में काम करने वाले एंकरों के नाम हैं। इनमें लगभग सभी काफी मशहूर हैं और टीवी के अलावा सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोग इन्हें फॉलो करते हैं।

विपक्ष का आरोप है कि ये एंकर अपने कार्यक्रमों में पक्षपात करते हैं और नफरत फैलाने का काम करते हैं, इसलिए अब से विपक्ष के गठबंधन की सदस्य पार्टियां इन एंकरों के कार्यक्रमों में अपने प्रवक्ताओं या प्रतिनिधियों को नहीं भेजेंगी। हालांकि यह सिर्फ एक सांकेतिक कदम है। अभी भी बहुत से गोदी एंकरों का इसमें नाम नहीं है। कितनों का बहिष्कार करेंगे? विपक्ष का अपना तो कोई मीडिया है नहीं। वैसे सत्ता और विपक्ष दोनों पूंजीपति-मालिकों के विरोधी नहीं है। विपक्ष का चरित्र भी कोई क्रांतिकारी नहीं है। उनसे मालिकों के विरोध की उम्मीद नहीं की जा सकती।

अगर कोई एंकर नफ़रत फ़ैलाने वाली बात करता है या उसका रवैया पक्षपाती है, जैसा कि ‘इंडिया’ का आरोप है, तो उनके शो में विपक्ष के नेताओं के शामिल न होने से क्या हासिल होगा? ऐसी स्थिति में एंकर के सामने दूसरे पक्ष से कोई मौजूद नहीं होगा, तो क्या इससे विपक्ष का नुक़सान नहीं होगा?

इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह का कहना है, “एंकरों के बहिष्कार से चैनलों की विश्वसनीयता पर एक तरह का हमला किया गया है। कहा गया है कि तुम पक्षपाती हो और जो कुछ नौ साल से हो रहा था लोग देख रहे हैं। लोग टीवी चैनल से शिफ़्ट कर रहे हैं, मीडिया तो देश से ख़त्म हो चुका है। लोग सोशल मीडिया को देख रहे हैं।”

विपक्षी गठबंधन ने क्यों किया बहिष्कार

कांग्रेस के नेता पवन खेड़ा ने एक बयान में कहा, “रोज शाम पांच बजे से कुछ चैनल्स पर नफरत की दुकानें सजायी जाती हैं। हम नफरत के बाजार के ग्राहक नहीं बनेंगे। बड़े भारी मन से यह निर्णय लिया गया कि कुछ एंकर्स के शोज व इवेंट्स में हम भागीदार नहीं बनेंगे।”

सूची में नामित पत्रकारों पर अपने कार्यक्रमों में सरकार के प्रति पक्षपात करने के और सिर्फ विपक्ष से सवाल करने के आरोप लंबे समय से लगते आये हैं।

भारतीय मीडिया का बदला हुआ स्वरूप

हालांकि विपक्ष के इस कदम ने भारत में बीते कुछ सालों से धड़ल्ले से चल रही पक्षपाती पत्रकारिता की समस्या को रेखांकित करने का काम किया है। यह चलन 2014 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन के साथ ही शुरू हो गया था।

विशेष रूप से मुख्यधारा के लगभग सभी हिंदी और अंग्रेजी टीवी न्यूज चैनल इस मामले में सबसे आगे रहे। मई 2017 में रिपब्लिक टीवी की शुरुआत के साथ यह माहौल और मजबूत हो गया। इस चैनल के संस्थापक थे अर्नब गोस्वामी और राजीव चंद्रशेखर। चंद्रशेखर उस समय राज्य सभा के निर्दलीय सदस्य थे लेकिन बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के सदस्य भी थे। केरल में वह एनडीए के उपाध्यक्ष थे। बाद में वो बीजेपी में शामिल हो गए और उन्होंने चैनल में अपनी हिस्सेदारी बेच दी। जल्द ही उन्हें केंद्रीय मंत्री भी बना दिया गया।

रिपब्लिक टीवी पर आरोप हैं कि उसने खुले तौर पर बीजेपी और केंद्र सरकार के मुखपत्र की भूमिका अपना ली। चैनल पर केंद्र सरकार और बीजेपी का गुणगान किया जाता है और सिर्फ विपक्ष के नेताओं पर आरोप लगाए जाते हैं। रिपब्लिक की सफलता के बाद कई चैनलों ने यही राह पकड़ ली। विशेष रूप से शाम के प्राइम टाइम स्लॉट में इस एकपक्षीय पत्रकारिता को खुल कर लोगों के सामने रखा गया।

‘गोदी मीडिया’ का जन्म

इसी के साथ-साथ और भी कई बड़े बदलाव हुए। जो चैनल अभी भी सरकार से सवाल पूछ दिया करते थे, उनसे बीजेपी के नेताओं ने बात करना बंद कर दिया। चैनलों को अपनी चर्चाओं में बीजेपी का पक्ष सामने रखने के लिए बीजेपी ‘समर्थक’ जैसे लोगों को शामिल करना पड़ा।

दूसरा बड़ा बदलाव यह हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ चुनिंदा चैनलों और एंकरों को साक्षात्कार देना शुरू किया। ऐसा इस आलोचना का मुकाबला करने के लिए किया गया कि यह दोनों मीडिया के सवालों का सामना नहीं करते।

लेकिन इन चुनिंदा साक्षात्कारों में भी सिर्फ सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी का गुणगान ही किया गया और मोदी व शाह से आलोचनात्मक सवाल नहीं किये गए। सरकारी टीवी चैनल दूरदर्शन ने तो बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार द्वारा मोदी का साक्षात्कार आयोजित करवाया, जिसमें “आप आम किस तरह से खाना पसंद करते हैं” जैसे सवाल पूछे गए।

तीसरी बात, केंद्र सरकार से सवाल करने वाले कई पत्रकारों का उत्पीड़न शुरू हो गया। कइयों की नौकरियां चली गईं, कइयों के खिलाफ बीजेपी शासित राज्यों की पुलिस ने मामले दर्ज किये और कइयों के खिलाफ सोशल मीडिया पर गाली गलौच और फोन कर डराने-धमकाने का एक अभियान शुरू कर दिया गया।

एनडीटीवी में रवीश कुमार के शो का बीजेपी ने बहिष्कार कर रखा था और बीजेपी का कोई भी नेता उनके शो में शामिल नहीं होता था। इनमें से कई एंकरों ने यूट्यूब पर अपने कार्यक्रम करने शुरू कर दिए, लेकिन धीरे-धीरे यूट्यूब पर भी ऐसे लोगों की भीड़ हो गई जो सिर्फ सरकार का गुणगान करते हैं। इनमें से कुछ को अब कई केंद्रीय मंत्री इंटरव्यू भी देने लगे हैं।

कुल मिलाकर मीडिया और बीजेपी एक एक बड़ा पेचीदा रिश्ता जन्म ले चुका है। एक तरफ वो मीडिया है जो सिर्फ केंद्र सरकार की प्रशंसा करता है और केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के एजेंडा को ही आगे बढ़ाता है और दूसरी तरफ चंद पत्रकारों की एक छोटी से जमात है जो अभी भी सरकार से जन-सरोकार के सवाल करती है।

(शैलेंद्र चौहान साहित्यकार हैं और जयपुर में रहते हैं।)

शैलेंद्र चौहान
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