दर्द जिंदगी का सच है, वही जोड़ कर रखे हुए है हम सबको

दर्द से मेरा दामन भर दे..!

अजीब सा ख़्याल है ना, लोग देवताओं से दुआ मांगते हैं कि उनका दामन ख़ुशियों से भरा रहे हमेशा, और ये गा रही हैं- ‘दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह’। फिर भी जाने क्यों लता की पुरसोज़ आवाज़ और पीड़ा से लबरेज़ ये पुकार दिल को छू जाती है, एक असर छोड़ जाती है।

मेरी पसंदीदा ये नज़्म, जब भी सुनू दिल उदास हो जाता है। एक बार मित्र मंडली में ये बात उठी तो एक सहेली ने बहुत नाराज़ हो कर उलाहना दिया- ‘क्यूं पसंद है ये नज़्म? भला कोई दर्द भी मांगता है अल्ला से’? पर सच कहूं इंसानी रिश्तों में सबसे अलग महत्व है दर्द के रिश्ते का।

हमारे प्रिय कवि लिख गये हैं- ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान, उमड़ कर आंखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान’।

और महान लेखक टोलस्टॉय  अपनी पुस्तक ‘अन्ना करीना’ का आग़ाज़ ही इन शब्दों से करते हैं- ‘हर खुशहाल परिवार एक जैसा होता है, पर हर दुखी परिवार का दर्द उसका अपना कुछ अलग ही होता है’। यानी दुख या कहें दर्द, उस के अनेक रंग और अनेक ही रूप होते हैं। ये दर्द ही है जो इंसान को इंसान से जोड़े रखता है। दर्द एक नदी है जो जहां से भी गुज़रती है रिश्ते बनाती जाती है।

कल्पना कीजिये एक ऐसे संसार की जहां सभी खुश हैं, कोई पीड़ित नहीं, कोई दर्द से बोझिल नहीं। ऐसे संसार में अनेक संसार होंगे, सबके अपने, अलग थलग, किसी को किसी से कोई सरोकार नहीं। ज़रा सोचिए क्या कभी आपने सूडान या ऐसे अनेक अफ़्रीकी देशों के बारे में, उनके दर्दनाक़ हालात के बारे में दुख जताया है, कोई क़दम उठाया उनकी बेहतरी के लिए? सच तो ये है कि भूगोल के नक़्शे से इतर आपके लिए उसका वजूद ही नहीं रहा।

क्या आपने कभी यूक्रेन के बारे में कोई जिज्ञासा की थी अबतक, और अब आप लंबा समय वहां के हाल जानने में बिता देते हैं। वजह ये कि एक खुशहाल देश के बारे में बात या तो सैलानी करते हैं या भूगोल के अध्यापक। लेकिन जैसे ही एक आपातग्रस्त या युद्ध से पीड़ित देश की खबर आप तक पहुंचती है, दिल उस अभागे देशवासियों के दर्द का सहभागी बन जाता है।

आप उस देश, वहां के निवासियों से एक रिश्ते में बंध जाते हैं, उनका दर्द आपका हो जाता है। विश्वभर में तमाम ऐसी संस्थायें हैं जो इंसानों की ज़िंदगी में आ रही कुदरती तकलीफ़ों को दूर करने में तत्पर रहती हैं। ये संस्थाएं उन्हींने बनाईं जिनके दिल में मानवमात्र के लिए दर्द था।

याद करिए वो दिन जब घर का बेटा विदेश जाकर, या घर से दूर होता और लाख चिरौरी करने पर भी आने का मन नहीं बना पाता। तब उसके पास पहुंचता था एक तार- ‘मां सख़्त बीमार हैं फ़ौरन चले आओ’। ये नुस्ख़ा बरसों से आज़माया जा रहा है और आजतक कारगर है। इसी की बदौलत ऑफिस कर्मचारी, शादियों का आनंद उठाते हैं और दूर दराज़ सपरिवार छुट्टी मना आते हैं। दर्द का तड़का कभी  नाकाम नहीं होता।

हमारे देश में हर बड़े, छोटों को ये शिक्षा दी जाती है- ‘भले ही परिचित, मित्र या संबंधी के घर सुख में ना जाओ पर कोई दुख, कोई विपदा आन पड़े उन पर तो अवश्य ही उनके साथ रहो’। यानी दर्द इंसान को इंसान से बांधता है। ऐशो आराम की ज़िंदगी जी रहे राजकुमार सिद्धार्थ ने जब संसार में व्याप्त   पीड़ा को देखा तो उन्होंने अपने मन में महसूस किया और निकल पड़े ज्ञान की खोज में। उनका मानना था कि अज्ञानता ही दुख का कारण है।

पुत्रशोक से बेहाल जब एक स्त्री बुद्ध के पास आई और उनसे बेटे को फिर से जीवित करने की विनय की तो उन्होंने उसे एक भिक्षा पात्र पकड़ा कर कहा कि अगर वो एक ऐसे घर से चावल ला कर दे दे, जहां कभी किसी की भी मृत्यु ना हुई हो, तो वे उसके बेटे को जीवित कर देंगे।

ज़ाहिर है महिला असफल लौटी और तब उसे समझ में आया कि मौत और ज़िंदगी का अटूट रिश्ता है, जैसे दुख और सुख का, दिन और रात का। दर्द तकलीफ़ देता है पर सहानुभूति उस दर्द को कम कर देता है कुछ हद तक।

तो अल्ला से दर्द की भीख मांगती गायिका बस इतना ही चाहती है कि वह दुनिया भर के दर्द को महसूस कर सके और उनके साथ बांट सके, जैसे महात्मा गांधी, बाबा साहब आमटे और मदर टेरेसा।

इंसानों की इस दुनिया के भागीदार जानवर भी, ख़ासकर कुत्ते अपने मालिक के दर्द को खूब समझते हैं। उनकी आंखों में आये आंसू भी आपने देखे होंगे। कहते हैं घोड़ा भी बहुत समझता है दुखदर्द और हाथी भी। बंदरों कों तो आपने अक्सर अपने साथी को मुसीबत में देखकर तंग करने वालों को तरह तरह से डरा कर साथी को छुड़ा ले जाते देखा होगा।

ये सच है कि अपना कोई जुदा हो जाय तो आंसू ही तसल्ली देते हैं। जब दर्द टीसता है तो कराहने से सुकून मिलता है। जब आंख के आंसू सूख जाते हैं तो मन पत्थर हो जाता है। जो दिल दर्द से ख़ाली हो  वो दिल नहीं कहलाता। इंसान दर्द के बीच पैदा होता है और ज़िंदगी भर उस थाती को सम्हाल कर रखता है, सांसारिक रिश्ते नातों को बनाये रखने के लिए।

दर्द भरी कहानियां, दर्द भरे गीत, देर तक याद रहते हैं। दर्द भरे गीतों का अपना एक साम्राज्य होता है। ख़ुशी के गीतों की उम्र कम होती है  जबकि दर्द भरे गीत बरसों बरस हमारे होठों पर सजे रहते हैं।

याद करें- ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ या कि अनारकली का अलविदा गीत, या फिर ‘दूर के मुसाफ़िर, हमको भी साथ लेले’ और ‘जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां है’? बरसों बीत गये इनका दर्द अभी भी सुनने वाले को रुला जाता है क्यूंकि अपना कोई दर्द याद आकर इनमें घुल मिल जाता है।

दर्द एक मुकम्मिल एहसास है, हर दिल में जगह है उसकी। कुछ लोग उसे गले से लगाये रखते हैं, कुछ उसे दबा कर चलते रहते हैं। पर दर्द ज़िंदगी का सच है वही जोड़ कर रखे हुए है हम सब को, वरना हम वहशी ही रह जाते।

अब कहें, शायर कुछ ग़लत तो नहीं मांग रहा न लताजी की आवाज़ में- ‘दर्द से मेरा दामन भर दे, या अल्लाह’।

(वरिष्ठ साहित्यकार वीरा चतुर्वेदी का लेख।)

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