रणवीर सिंह के निधन पर विशेष: अस्त हो गया आधुनिक रंगमंच का एक चमकता नक्षत्र

आधुनिक रंगमंच के गहन अध्येता, अभिनेता-निर्देशक, नाट्य आलोचक और नाटककार रणवीर सिंह दुनिया के इस विशाल रंगमंच पर अपनी भूमिका निभाकर, हमेशा के लिए नेपथ्य में चले गए हैं। 23 अगस्त की सुबह जयपुर में उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। 93 वर्षीय रणवीर सिंह की अभी कुछ ही दिन पहले एंजियोप्लास्टी हुई थी। वे लंबी उम्र जिये और इस लंबी ज़िंदगानी में उन्होंने भारतीय रंगमंच और नाटक को समृद्ध किया। 

पारसी रंगमंच पर उनका महत्वपूर्ण काम था। पारसी रंगमंच पर उन्होंने न सिर्फ़ दो अहम किताबें ‘हिस्ट्री ऑफ़ पारसी रंगमंच’ और ‘इंद्रसभा’ लिखीं बल्कि कई नाटकों का पारसी रंगमंच शैली में मंचन भी किया। उन्नीसवीं-बीसवीं सदी के इस प्रमुख रंगमंच के वे आधिकारिक विद्वान थे। साल 1984 में रणवीर सिंह भारतीय जन नाट्य संघ यानी इप्टा से जुड़े और आखिरी दम तक उनका इससे जुड़ाव रहा। साल 2012 में इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एके हंगल के निधन के बाद से ही वे इस ज़िम्मेदारी को निभा रहे थे। 

लगातार दो बार उन्हें इस पद के लिए चुना गया। उनके कार्यकाल में देश के अलग-अलग हिस्सों में इप्टा का विस्तार हुआ। उन्होंने इस देशव्यापी संगठन को सैद्धान्तिक आधार और वैचारिक धार दी। आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर इसी साल अप्रैल-मई महीने में इप्टा ने देश के कुछ राज्यों से एक सांस्कृतिक यात्रा ‘ढाई आखर प्रेम का’ निकाली। अपनी अस्वस्थता के बावजूद वे इस यात्रा के समापन समारोह में इंदौर पहुंचे और पूरी गर्मजोशी से इसमें शिरकत की। देश भर में जहां भी इप्टा के सम्मेलन और कार्यक्रमों का आयोजन होता, रणवीर सिंह अनिवार्य रूप से इनमें शामिल होते थे। अपने आखिरी समय में भी वे कई किताबों पर एक साथ काम कर रहे थे। उनमें ग़ज़ब का जीवट था।                              

राजस्थान के डुंडसाड में 7 जुलाई, 1929 को जन्मे रणवीर सिंह की शुरुआती तालीम मेयो कॉलेज में हुई। बचपन से ही उनकी नाटकों और फिल्मों में दिलचस्पी थी। पढ़ाई के साथ-साथ वे नाटकों में हिस्सा लेते रहे। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से उन्होंने ग्रेजुएशन किया। ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद, साल 1949 में वे मायानगरी मुंबई पहुंचे। 

निर्माता-निर्देशक बीआर चोपड़ा की फ़िल्म ‘शोले’ और ‘चाँदनी चौक’ में उन्होंने अभिनय किया। मायानगरी उन्हें ज़्यादा रास नहीं आई। साल 1953 में वे रंगमंच और नाट्य लेखन के क्षेत्र में कुछ अलग करने के इरादे से अपने गृह नगर जयपुर वापस लौटे। जयपुर लौटते ही उन्होंने अपना एक नाट्य ग्रुप ‘जयपुर थिएटर ग्रुप’ बनाया। इस ग्रुप के बैनर पर रणवीर सिंह ने कई नाटकों में अभिनय और निर्देशन किया। जयपुर में कुछ साल रंगकर्म करने के बाद वे दिल्ली पहुंचे और कमला देवी चट्टोपाध्याय के ‘भारतीय नाट्य संघ’ से जुड़ गए। यह साथ ज़्यादा दिन नहीं रहा। 

आगे चलकर जब ‘यात्रिक’ से उनका तालमेल बना, तो इस ग्रुप के साथ उन्होंने अनेक बेहतरीन नाटक ‘पासे’ ‘हाय मेरा दिल’, ‘सराय की मालकिन’, ‘गुलफ़ाम’, ‘मुखौटों की ज़िंदगी’ ‘मिर्ज़ा साहिब’, ‘अमृत जल’, ‘तन्हाई की रात’, ‘सांध्य काले प्रभात फेरी’ और छह अफ्रीकी नाटकों का हिंदी अनुवाद ‘कल इसी वक़्त’ का लेखन और निर्देशन किया। रणवीर सिंह के लिखे कुछ नाटक बेहद चर्चित हुए और आज भी इन नाटकों का कामयाबी के साथ साथ मंचन होता है। 

ख़ास तौर पर ‘हाय मेरा दिल’। अभिनेता-निर्देशक दिनेश ठाकुर का नाट्य ग्रुप ‘अंक’ इस नाटक के ग्यारह सौ से ज़्यादा शो कर चुका है और आज भी जब इस नाटक का प्रदर्शन होता है, तो यह हाउसफुल रहता है। इस तरह की कामयाबी बहुत कम नाटककारों को नसीब हुई है। रंगमंच के क्षेत्र में यह वाक़ई एक करिश्मा है। रणवीर सिंह के नाटकों की ख़ासियत यदि जाने, तो एक सीधा-सादा कथानक और हिंदुस्तानी ज़बान है। जो आम आदमी को भी बिना किसी बौद्धिक उपक्रम के आसानी से समझ में आता है। यही वजह है कि उनके नाटक कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुए और यह नाटक आज भी कामयाबी के साथ खेले जाते हैं।                     

बीसवीं सदी के आठवें दशक में जब इप्टा के पुनर्गठन की कोशिशें तेज़ हुईं, तो इस कवायद में रणवीर सिंह भी शरीक रहे। कैफ़ी आज़मी, एके हंगल, आरएम सिंह, एमएस सथ्यू, राजेन्द्र रघुवंशी, हेमंग विश्वास और रणवीर सिंह जैसे दिग्गजों की कोशिशों का ही नतीज़ा था कि साल 1985 में आगरा में इप्टा का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। जिसमें इस अखिल भारतीय संगठन के भविष्य की नई रूपरेखा तय हुई। आख़िरकार 1986 में दो दशक के लंबे अंतराल के बाद हैदराबाद में इप्टा का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। 

अधिवेशन में कैफ़ी आज़मी को संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और रणवीर सिंह को उपाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। यह ज़िम्मेदारी मिलने के बाद रणवीर सिंह हमेशा इप्टा की केंद्रीय भूमिका में रहे। उन्होंने संगठन की विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए अथक प्रयास किए। संगठन की रहनुमाई की। संगठन को भी उनके रंगमंच के तज़रबात का फ़ायदा मिला।             

रणवीर सिंह एक तरफ़ अलग-अलग थिएटर नाट्य ग्रुप और इप्टा से जुड़कर रंगमंच एवं संगठन की गतिविधियों में मुब्तिला रहे, तो दूसरी ओर लेखन से भी नाता बनाये रखा। आधुनिक रंगमंच के इतिहास के अलावा उन्होंने अनेक नाटक लिखे। रंगमंच इतिहास पर उनका अच्छा अध्ययन और समझ थी। यही समझ का सबब ‘हिस्ट्रोसिटी ऑफ़ सँस्कृत ड्रामा’, ‘वाजिद अली शाह : द ट्रैजिक किंग’, ‘थिएटर कोट्स’, ‘मॉरीशस द की ऑफ़ इंडियन ओशन’, ‘हिस्ट्री ऑफ़ शेखावट्स’, ‘रणथंभौर : द इम्प्रेजनेबल फ़ोर्ट’ जैसी इतिहास और रंगमंच से सम्बंधित बेहतरीन किताबें हैं। लेखन का उनका यह सिलसिला थमा नहीं था। ज़िंदगी की नवीं दहाई में भी वे एक साथ कई किताबों पर काम कर रहे थे। हाल ही में उन्होंने उत्पल दत्त के मशहूर बांग्ला ड्रामे ‘बैरिकेड’ का हिंदी रूपांतरण किया था। यही नहीं पृथ्वीराज रासो की ऐतिहासिकता पर भी एक महत्वाकांक्षी किताब लिख रहे थे। भारत ही नहीं दुनिया भर के थिएटर की उन्हें अच्छी जानकारी थी। भारत और विश्व थिएटर कोष में उन्होंने कई मर्तबा रचनात्मक योगदान दिया।              

रणवीर सिंह ने इंग्लैंड, सोवियत रूस, जर्मनी, फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया, बांग्लादेश, नेपाल और मॉरीशस जैसे देशों में विज़िटिंग प्रोफेसर के तौर पर यात्राएं कीं। रंगमंच और ड्रामे को पढ़ाया एवं वक्तव्य दिये। वे साल 1976 में मॉरीशस में सांस्कृतिक सलाहकार भी रहे। वहां कई हिंदी नाटकों का निर्देशन और मंचन किया। राजस्थान संगीत अकादमी का उपाध्यक्ष पद संभाला। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड के फैलो रहे। जयपुर में आमेर फ़ोर्ट पर जो लाइट एंड साउंड शो होता है, उसकी स्क्रिप्ट रणवीर सिंह की ही है। उन्होंने एक दौर में टेली सीरियल में भी काम किया। 

अमाल अल्लाना के मशहूर नाटक ‘मुल्ला नसरुद्दीन’ और अभिनेता-निर्देशक संजय खान के ‘टीपू सुल्तान की तलवार’ में अदाकारी की। अनेक विदेशी नाटकों का हिंदी रूपांतरण और अनुवाद किया। राजस्थान के इतिहास पर उनके विशेष शोध कार्य हैं। जिसमें किताबों का लेखन भी शामिल है। रणवीर सिंह देश के सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों के प्रति पूरी तरह समर्पित नाटककार थे। थिएटर के विकास के लिए उन्होंने उल्लेखनीय काम किये। नये नाटक लिखे और नई पीढ़ी को रंगमंच में प्रशिक्षित किया। उनकी रहनुमाई में देश भर में इप्टा की सक्रियता बढ़ी। 

रंगमंच की बेहतरी के लिए रणवीर सिंह नये नाटक और रंगमंच-नाटक में नये प्रयोगों को ज़रूरी मानते थे। उनका कहना था, “हमारा थिएटर आम जन से जुड़ा हुआ थिएटर नहीं है। हमें अपने थिएटर को आमजन से जोड़ना होगा। वे कहते थे, दुनिया में भारत को छोड़कर कहीं शौकिया थिएटर नहीं है। वहीं अनुदान की परंपरा को भी वे थिएटर के लिए घातक मानते थे। इस तरह की परंपराओं से मुक्ति के लिए वे प्रोफेशनल थिएटर को अपनाने की वकालत करते थे। नाटककार रणवीर सिंह का अचानक चले जाना, भारतीय रंगमंच के एक चमकते सितारे का अस्त होना है। वे आज भले ही हम से जुदा हो गए हैं, मगर अपनी किताबों और न भुलाए जाने वाले नाटकों में हमेशा ज़िंदा रहेंगे।                                                                   

(जाहिद खान वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल शिवपुरी में रहते हैं।)

ज़ाहिद खान
Published by
ज़ाहिद खान