धार्मिक सद्भाव और सामाजिक प्रतिरोध का त्योहार लोहड़ी

जहां-जहां पंजाबी समाज है वहां-वहां पूरे देश में लोहड़ी का त्यौहार पूरे जोश-खरोश से मनाया जाता है। पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली और विदेशों, कनाडा अमेरिका, ब्रिटेन आदि में जहां जहां पंजाब के प्रवासी रहते हैं वहां वहां लोहड़ी की ख़ूब धूमधाम होती है। इस मौक़े पर बहुएं बेटियां दुल्ला भट्टी की याद में गीत गाती हैं, गिद्दा डालती हैं।

यह त्योहार होली की ही तरह का है लेकिन एक मार्मिक और धार्मिक सौहार्द के सच्चे किस्से से जुड़ा हुआ हुआ है। यह किस्सा लोक परम्परा लोक साहित्य में मिलेगा लेकिन गोबर पट्टी का मीडिया इस पूरे को बदलने और मिटाने में लगा हुआ है।

यह त्योहार खुशियों का सुकून और इत्मिनान का है, खुशी फसल की है और सुकून और इत्मिनान दुल्ला भट्टी जैसे जांबाजों की शुजाअत-ओ-बहादुरी को याद करने का है। यह दिन सत्ता के खिलाफ प्रतिरोध का भी है। एक विद्रोही के बेहतरीन कारनामे को याद करने का है और उसके एहसानों को अगली पीढ़ी को बताने का है, और कौमी यकजहती धार्मिक सौहार्द की इस शाखबेल और परम्परा को आगे ले जाने का है।

पिछले कुछ सालों से उत्तर भारत की गोबर पट्टी की मीडिया देश के धार्मिक सौहार्द को बर्दाश्त ही नहीं कर रही है। इसलिए मीडिया एक खास एजेंडे के अन्तर्गत ऐसी परम्पराओं, त्योहारों और लोक परम्पराओं को मिटाने और बदलने का काम कर रही है।

लोहड़ी एक मुस्लिम बहादुर दुल्ला भट्टी की जांबाजी को याद करने और उसके एहसान को याद करने का त्योहार है। लोहड़ी के किस्से पांच नदियों की धरती पंजाब में गांव गांव में और जहां जहां पंजाबी समाज रहता है, वहां गाए और सुने जाते हैं।

जिस दौर में लाहौर से मुगलिया सल्तनत ए हिन्द का इक़बाल चलता था उसी दौर में बीकानेर से राजपूत भट्टी परिवार मुसलमान होकर पंजाब के पिंडी भट्ठियां गांव में बस गया था। जिस परिवार के मुखिया हाजी संदल खान को बादशाह हुमायूं के वक्त शेरशाह सूरी की नई नई बनवाई हुई सड़क-ए-आज़म जिसे अब जी टी रोड कहने लगे हैं, पर चुंगी वसूलने का काम शाही फरमान से मिल गया था। काम मिलने पर गुजर हो ही रही थी कि बादशाह के सूबेदार से खां साहब का लगान/टैक्स देने पर झगड़ा हुआ और उसी झगड़े में खां साहब और उनके बेटे को बाड़ी मानकर शाही फौज ने शहीद कर दिया। और उनकी खाल में भूसा भरकर शहर में लटका दिया। इधर बाकी बचे खानदान ने बादशाही क़हर से बचने के लिए उनके पोते अब्दुल्लाह खान भट्टी को उसके ननिहाल चिन्योट भेज दिया गया था, जिसकी पैदाइश इस वारदात के कुछ माह बाद हुई थी, वहीं पर वो जवान हुआ।

बताते हैं कि उस दौरान मुगल दरबार के दो सिपहसलार एक गरीब ब्राह्मण की दो बेटियों को अग़वा कर उन्हें लाहौर किले में ले गए। जिसका जबरदस्त विरोध जब ग्रामीणों ने किया तो सूबेदार की फौज की एक टुकड़ी ने गांव पर हमला कर दिया।

तब उस वक्त का राबिन हुड अब्दुल्लाह भट्टी जिसे बाद में आमफहम ज़ुबान में दुल्ला भट्टी कहा गया, बचाव में आया और उसने अपने गांव में आकर ऐलान किया कि दोनों ब्राह्मण बेटियां सुंदरी, मुंदरी आज से उसकी बेटियां हैं। अपनी इन्हीं बेटियों को छुड़ाने के लिए दुल्ला भट्टी ने लाहौर के किले पर गोरिल्ला हमला करके बादशाह अकबर के हरम की 15 महिलाओं को अग़वा कर लिया, यानि ईंट का जवाब पत्थर से दे दिया।

इससे शाही हलकों में तूफान उठ जाता है, लेकिन क्या किया जाए। शाही हरम की महिलाओं की जान ख़तरे में थी। हारकर बादशाह सलामत को समझौता करना पड़ा, और गांव की बेटियां साथ खैरियत के वापस लौट आईं। बाद में दुल्ला भट्टी ने दोनों बेटियों की शादियां उन्हीं के समाज में करवाई और खुद चाचा बनकर कन्या दान की रस्म अदा की। और उस वक्त के सभी नेग दस्तूर पूरे करके और शक्कर वगैरह देकर बेटियों को विदा किया।

लेकिन बादशाही फौज अपनी बेइज़्ज़ती बर्दाश्त नहीं कर पाई। बताते हैं कि इनामों इकराम और मनसबदारी देने का धोखा देकर दुल्ला भट्टी को लाहौर बुलाया गया, जहां उसे शहीद कर दिया गया। लेकिन इससे आमजन में जबरदस्त बग़ावत भड़क गई, तब मुग़ल बादशाह अकबर को लाहौर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

उसी बहादुर दुल्ला भट्टी की याद में, और दुल्ला भट्टी द्वारा कराई गई बेटियों की शादी और उसके सम्मान में हर साल मकर संक्रान्ति को पूरी दुनिया के पंजाबी “लोहड़ी” मनाते है।

यानि कि एक मुस्लिम बहादुर जांबाज राय (अब्) दुल्ला भट्टी की गांव की गरीब बेटियों के लिए दी गई शहादत को समस्त गैर मुस्लिम समाज द्वारा सम्मान देने के लिए समर्पित है यह अनूठा त्योहार।

दूसरी तरफ यह त्योहार किसी गैर इंसाफी और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ जनप्रतिरोध का प्रतीक है यह लोहड़ी का त्योहार, यानि कि जो लोग सत्ता के ज़ुल्म और आतंक के ख़िलाफ़ खड़े होते हैं उनको याद करने का त्योहार है।

अब आप आते हैं गोबर पट्टी के मीडिया के बेईमानी पर, आप गूगल कीजिए और लोहड़ी के बारे में जानने की कोशिश कीजिए! आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि (हिन्दी) मीडिया ने लोहड़ी की इस कहानी में से शातिराना ढंग से इस बात को गायब कर दिया है, (मैंने 4-5 हिन्दी मीडिया के लिंक देखे हैं) यह कि दुल्ला भट्टी मुसलमान था और उसका पूरा नाम अब्दुल्ला भट्टी था। अधिकतर मीडिया स्टोरीज में किस्से से जुड़ा बादशाह अकबर का नाम है, उसके अत्याचार की बात है लेकिन यह नहीं बताया कि जन प्रतिरोध का नायक दुल्ला भट्टी मुसलमान था, जो इस मुहिम में शहीद हो गया था। गोबर पट्टी की मीडिया की बेईमानी सभी जानते हैं लेकिन यह इस क़दर नीचे गिर कर समाज के ताने-बाने को नुक़सान पहुंचा रही है, यह लोगों को पता नहीं होगा।

तो आइए देश के लम्बे समय से सामाजिक सौहार्द और समाजी ताने बाने को बनाए रखने के लिए लोहड़ी मनाएं। लोहड़ी में लकड़ी और गोबर के उपलों को जलाया जाता है, आजकल गोबर पट्टी के गांवों कस्बों और शहरों में महाराज के कर्मों से आवारा जानवरों का गोबर जहां-तहां बिखरा हुआ है। जिससे तमाम तरह की परेशानियां और गंदगियां फैल रही हैं आपको गोबर के उपले मिल भी जाएं तो भी यह उपले इकट्ठा करके गंदगी के प्रतीक जहरीले मीडिया की प्रतीकात्मक रूप से इस लोहड़ी में होली जलाइए और मुहब्बत के नग्में गाते हुए मीठी मीठी रेवड़ियां खाइए और खिलाइए।

(इस्लाम हुसैन लेखक और टिप्पणीकार हैं और आजकल उत्तराखंड के काठगोदाम में रहते हैं।)

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