समझदार इंसानों से भी ज्यादा संवेदनशील निकले ‘आवारा कुत्ते’

सड़क पर बहुधा भूखे डोलने वाले कुत्ते, उतने कुत्ते नहीं होते, जितना उन्हें समझा जाता है। कई बार देखा है, वे आदमी से ज्यादा आदमी होते हैं। आपकी स्मृति में भी ऐसे कई उदाहरण होंगे, जब वे मनुष्य से अधिक मनुष्य साबित हुए हैं। और उन्होंने मनुष्यों की मनुष्यता को नंगा कर दिया लेकिन मनुष्य इतना मनुष्य कहां कि उसे अपने नंगेपन पर शर्म आए! वह उसी हालत में भी सड़क पर निकलकर बताने लगता है कि वह कितना मर्द है या वह कितनी भरपूर औरत है।
आप इसे कविता न समझें, यह ठेठ अखबारी खबर से उपजा विशुद्ध गद्य है। मैं और भी गद्यात्मक होते हुए उस खबर पर आता हूं, जो मैंने अखबार में पढ़ी।

यह उन कुत्तों के बारे में है, जिन्हें हममें से ज्यादातर लोग ‘आवारा’ कहते हैं, जैसे हमने तो उन्हें अच्छी तरह पालने -पोसने की कोशिश की थी मगर बदकिस्मती हमारी कि वे आवारा निकल गए और मरते दम तक आवारा ही रहे। कभी पलटकर हमारी तरफ एक नजर देखा भी नहीं। देखा कि हम पर क्या गुजर रही होगी! क्यों ऐसा ही है न! गलत तो नहीं कह रहा हूं वरना मेरे कान पकड़ लेना और दंड-बैठक लगवाना।

तो इन्हीं ‘आवारा’, हां आवारा कुत्तों ने उस नवजात बच्ची की जान बचाई, जिसे पोलीथिन की थैली में लपेटकर उसकी मां ने नाले में फेंक दिया था। उसका रोना सुनकर इन आवारा कुत्तों ने मिलकर न जाने कैसे उसे बाहर निकाला होगा, ताकि उसकी, एक इंसान की, एक मासूम बच्ची की, जान बच जाए। इतना ही उनके बस में था मगर नहीं इसके बाद भी कुछ उनके वश में था। वे मिलकर जोर-जोर से भौंकने लगे, ताकि लोगों का ध्यान उनकी तरफ यानी उस बच्ची की तरफ जाए। लोगों ने देखा कि कीचड़- गंदगी से सनी एक बच्ची जमीन पर पड़ी है मगर लोगों में वह ताब कहां कि उस बच्ची की जान बचाने के लिए बहुत धीमे से, बहुत ऐहतियात से उस पर लगा कीचड़-गंदगी पोंछकर उसे तुरंत अस्पताल ले जाते! उन्होंने इतना जरूर किया कि पुलिस को इसकी सूचना दे दी। पुलिस उसे अस्पताल ले गई। बच्ची की हालत खबर में नाजुक बताई गई है। पता नहीं अब तक उसका क्या हुआ होगा। आगे कौन बताने वाला है और कौन पूछने वाला!

यह घटना हरियाणा के कैथल की है। सीसीटीवी कैमरे में वह औरत, वह मां दर्ज है, जिसने इसे फेंका था।सवाल कई हैं कि क्या इन कुत्तों को धन्यवाद दिया जा सकता है और क्या कोई माई का लाल कुत्तों को- और वह भी ‘आवारा’ कुत्तों को- धन्यवाद देना चाहेगा?और दे ही दिया मान लो,तो क्या वे समझ पाएंगे?कभी उन्होंने किसी से कभी इशारे से भी कहा कि उन्हें इस या उस बात के लिए हमारी ओर से धन्यवाद देना बनता है वरना वे बुरा मान जाएंगे ?

उन्हें धन्यवाद देने का एक तरीका यह हो सकता है कि हम अगर देसी कुत्तों को पाल न सकें, उस हालत में न हों, तो इन देसी कुत्तों को ‘आवारा’ कहना-मानना बंद करें, उनके प्रति जो जन्मजात नफरत हममें भर दी जाती है, उससे मुक्ति पाने की कोशिश करें। वैसे जिन्हें कुत्ते पालने का शौक है, उनमें से भी ज्यादातर को विदेशी नस्ल के कुत्ते पालने का शौक होता है, क्योंकि ऐसे कुत्ते के पालने से आपका-हमारा स्टेटस पता चलता है।देसी कुत्ता पालने से स्टेटस गिर जाता है! वैसे विदेशी नस्ल के कुत्तों के लिए भी अच्छा होगा कि हम उन्हें मुक्ति दें। हमारे यहां के तापमान आदि में रहना-जीना उनके लिए मुश्किल होता है।

देसी कुत्ते आपकी इस मेहरबानी के लिए भी आपको धन्यवाद नहीं देंगे, हमारी तरह धन्यवाद देना उन्हें आता नहीं मगर धन्यवाद मिलने की आशा के बगैर भी तो कुछ किया जा सकता है या इतना भी असंभव है? क्या हम इतने मनुष्य हैं कि हम धन्यवाद लिए बगैर किसी के लिए कुछ कर न सकें? शायद नहीं, शायद हां।

वह मां भी अब तक पहचानी -पकड़ी जा चुकी होगी। उसे जलील करने से पहले जरा उस औरत से एक बार पुलिस या हम-पुलिस से पहले हम-सहानुभूति से बात करें कि उसने आखिर ऐसा किया क्यों? असली दोषी वह नहीं, उसका परिवार,  उसकी ससुराल के लोग, उसका समाज है। और दोषी पूरा हरियाणा, पूरा देश और हम सब हैं लेकिन हम सबको इसकी सजा देने का कोई प्रावधान है नहीं! हम तो पतली गली से निकल लेंगे! सजा उस मां को मिलेगी,  इस पर हम ताली बजाएंगे कि अपनी नन्ही बेटी की हत्यारिन को आखिर सजा मिल ही गई,न्याय हो ही गया!

(विष्णु नागर वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह लेख उनकी फेसबुक वाल से साभार लिया गया है।)

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