सूफीवाद का पैगाम ही मोहब्बत है!

पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ में इन दिनों दसवां इंटरनेशनल लिटरेचर फेस्टिवल चल रहा है। इसमें बड़े पैमाने पर मुस्लिम बुद्धिजीवी, अदीब और विद्वान भी शिरकत कर रहे हैं। पहले दिन दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया दिल्ली के गद्दीनशीन पीरजादा सैयद अल्तमश निजामी, राणा साफवी, राशिद किदवई और अफ्फन येसवी ने पंजाबी-हिंदी और उर्दू के अन्य विद्वानों के साथ मंच पर अहम बातें कहीं। जिनकी हाजिर तमाम लोगों ने खूब प्रशंसा की।        

पीरजादा सैयद अल्तमश निजामी ने कहा कि आज के बंटे हुए माहौल में दरगाहें तमाम क़ौमों को एक मंच पर लाने का पुख्ता माध्यम हैं। यहां सभी मजहब, जाति और समुदाय से वाबस्ता लोग और उनके रहनुमा आपस में बैठकर प्रासंगिक मसलों पर तार्किक बात कर सकते हैं। पंजाबी के मशहूर कवि सुरजीत पातर तथा अन्य अदीबों की चर्चा से पूरी तरह इत्तेफाक रखते हुए उन्होंने कहा कि दरगाहें सदैव एवं अतीत काल से ही धार्मिक सद्भावना और प्रेम-प्यार का जरूरी संदेश अलग-अलग रूपों में देती आईं हैं। गौरतलब है कि कार्यक्रम में तमाम वक्ताओं ने सूफीवाद के समकालीन दौर में शानदार प्रासंगिकता अथवा भूमिका का जिक्र-ए-खास किया। सिख फलसफे और सूफी मत में गहन रिश्ते हैं, जिन पर खुलकर बात की गई और नए सिरे से महत्वपूर्ण रोशनी डाली गई।                                        

विश्व विख्यात दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया दिल्ली के गद्दीनशीन पीरजादा सैयद अल्तमश निजामी ने सार वक्तव्य में कहा कि सूफियों का पैगाम ही मोहब्बत है। वे हमेशा से आपसी प्यार और सद्भाव का पैगाम देते आए हैं और यह परंपरा आज एवं अब भी कायम है तथा रहती दुनिया तक रहेगी। उन्होंने कहा कि 750 वर्षों से दरगाहों में बाकायदा बसंत मनाई जाती है, जबकि इसे एक हिंदू त्यौहार के तौर पर जाना जाता है। यही तो सूफी मत से हासिल एक अहम सबक है कि कौमी एकता से बढ़कर कुछ नहीं और विभिन्न समुदायों व जातियों के लोग आपसी अमन से रहें।                          

सूफीवाद से प्रभावित पंजाबी बुद्धिजीवी और कवि डॉक्टर सुरजीत पातर।

इस मौके पर राणा साफवी ने कहा कि सूफीवाद अविभाजित भारत में पंजाब की धरती पर पहले पहल आया। बाबा गंज बक्श तब इसके रहनुमा और अहम पैरोकार थे। यह वह वक्त था जब दक्षिण में ऐतिहासिक भक्ति आंदोलन चल रहे थे। आगे जाकर सूफीवाद और भक्ति आंदोलन एक-दूसरे के साथ हो गए। इसलिए भी कि दोनों का अवामी विचारधारात्मक धरातल एक था। उन्होंने तथ्यात्मक हवाले देते हुए कहा कि नाथ योगी और सूफी संत बाकायदा आपस में मिलते-जुलते थे। प्रामाणिक इतिहास है कि सूफियों ने योगियों से योग सीखे। सूफी और संत दूसरों के लिए जीते थे और इसीलिए उन्हें बेतहाशा सवाब मिला।                                               

जग प्रसिद्ध नामवर पंजाबी कवि और सूफी मत से प्रभावित बुद्धिजीवी डॉक्टर सुरजीत पातर ने मंच से कहा कि सूफी धारा से पंजाबी साहित्य की सवेर (सुबह) हुई है। निर्विवाद सत्य है कि पंजाबी के पहले कवि बाबा शेख फरीद हैं और इसीलिए उनकी कर्मभूमि रहे फरीदकोट में उनके नाम पर बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें देश-विदेश से लाखों लोग शामिल होने आते हैं। बाबा फरीद सवेर हैं तो बाबा बुल्लेशाह दोपहर की मुख्य शिखरधारा हैं।

पातर ने सूफी कवियों को रेखांकित करते हुए कहा कि सूफीवाद में कवियों ने लिखा है कि “मोहब्बत मेरी किस्मत नहीं थी, इबादत से गुजारा कर रहा हूं”। सूफी और संतमत का संयुक्त संदेश है कि चार नैन घुल-मिल जाएं तो बिचौलिए की क्या जरूरत और उसका क्या काम। डॉक्टर पातर ने कहा कि हमारे पांच दरिया हैं और पांचों की मूल धाराएं अदबी की हैं। इनमें फोकलोर धारा, सूफी धारा, गुरमुखी धारा, किस्सा-कव्वाली और वीर काव्य शुमार हैं। इनमें सूफीवाद की भूमिका बेहद महती है।                         

मुस्लिम बुद्धिजीवियों, लेखकों और दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया दिल्ली के गद्दीनशीन पीरज़ादा अल्तमश सयैद ने इस विचार से खुली सहमति जाहिर की और एकमत में कहा कि सूफीवाद का पैगाम ही मोहब्बत है! इसीलिए हम दरगाहों में बसंत मनाते हैं। 

(अमरीक सिंह पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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