आदिवासियों के विरोध और धारा-144 के बीच पीएम मोदी 31 को करेंगे पटेल की प्रतिमा का अनावरण

बसंत रावत

अहमदाबाद। लौह पुरुष के नाम से याद किए जाने वाले सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा, विश्व की सबसे ऊंची लौह प्रतिमा, जिसका अनावरण 31 अक्तूबर को प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी करने वाले हैं। यह असल में उनके राजनीतिक अहंकार का ही एक मूर्त रूप है। एक तरह से उनकी हाई वोल्टेज ‘लाइट एंड साउंड’ की राजनीति का मूर्त रूप जिसे आस-पास गांवों में बसने वाले ग़रीब विस्थापित आदिवासी विकास के भूत के रूप में देखते हैं।

एक समय में अपने आप को “छोटे सरदार” के नाम से प्रचारित कराने वाले, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री, गांधी वादी बनने से पहले, कोंग्रेस की विरासत हड़पने की कोशिश की थी नेहरु और सरदार के बीच के कथित विवाद को अपने राजनीतिक चश्मे से देख कर, नए तरह से उजागर करने की कोशिश कर। विकास पुरुष बनने और उससे पहले कुछ समय के लिए मोदी जी छोटे सरदार ज़रूर कहलाए। और बहुत हद तक मोदी कामयाब हुए नैरेटिव को मोदी सेंट्रिक, गुजरात गौरव सेंट्रिक बनाने में। यही उनकी कामयाबी का अब तक का राज रहा। महामंत्र कह सकते हैं जिसका किसी के पास अभी तक कोई तोड़ नहीं है। 

अजीब बात है जिस सरदार को गुजरात गौरव बता कर दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा, शायद सबसे महंगी (3000 करोड़ रुपये) और चीन निर्मित, का 31 अक्तूबर को प्रधानमंत्री अनावरण करने जा रहे हैं, उस दिन आस-पास के दर्जनों आदिवासी गांवों के लोग अपने घरों में काले झंडे लगाएंगे, खाना नही पकाएंगे। आदिवासी जब भी मातम मनाते हैं तो खाना नहीं पकाते हैं।

आदिवासी मातम मनाएंगे। यही उनका विरोध का तरीक़ा है। पूरे नर्मदा ज़िले में, जहां प्रतिमा का अनावरण होना है-सरदार सरोवर डैम से क़रीब 3.2 किलोमीटर की दूरी पर- पिछले एक हफ़्ते से धारा 144 लगा दी गयी है। यानि कोई प्रोटेस्ट नहीं कर सकता है। विरोध दर्ज नहीं कर सकता है। 31 अक्तूबर तक यही स्थित बनी रहेगी ज़िले में। नागरिकों के सारे मूलभूत अधिकार स्थगित कर दिए गये हैं। 

सरकार विकास करना चाहती है। कमबख़्त आदिवासी रोड़ा बन जाते हैं हर जगह। विकास के लिय किसी को बलिदान तो देना ही होगा। सरकार सोचती है अगर उनके घर उजड़ते हों तो उजड़े, पर्यावरण बिगड़ता हो तो बिगड़े, वाइल्ड लाइफ़ डिस्टर्ब होती हो तो हो। विकास रुक नही सकता। रुकना नहीं चाहिए। आख़िर टूरिज्म का केंद्र भी बनाना है कि नहीं? श्रेष्ठ भारत भवन, कम से कम एक तीन सितारा होटल, तो बनाना मांगता है विकास के लिए।

प्रतिमा के अलावा कुल प्रोजेक्ट के 15000 करोड़ से भी ज़्यादा पड़ने की सम्भावना है। प्रतिमा ऊंची होगी तो दूर से देख पाएंगे। इस बहाने हमारे विज़नेरी छोटे सरदार के बड़े सपने, बड़े कारनामों को भी जान पाएंगे। मार्केटिंग की राजनीति के दौर में किसी भी रिकोर्ड तोड़ काम के बड़े फ़ायदे हैं।

मोदी जी जल्द गिनाने वाले हैं- विकास, टूरिज़म, रोज़गार। और सबसे ऊपर आदिवासियों का उत्थान, चतुर्मुखी विकास। ‘स्टैचू ऑफ़ यूनिटी’ के आस-पास के गांव वाले पिछले पांच सालों से, जब से भूमि पूजन किया गया, विकास का तांडव देख रहे हैं। विश्व विख्यात पर्यावरणविद रोहित प्रजापति को पांच साल पहले भूमि पूजन के वक्त हाउस अरेस्ट कर दिया गया था अपने अन्य साथियों के साथ। इस बार भी उन पर निगरानी है। और इस बार तो पुलिस बंदोबस्त पहले से ज़्यादा कड़क होने जा रहा है।

पूरे नर्मदा ज़िले को पहले ही पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया है धारा 144 लगा कर। राहुल गांधी ने स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी को मेड इन चाइना कह कर भाजपा को ज़रूर घेरने की कोशिश की, लेकिन लोकल कोंग्रस के नेता ख़ामोश हैं, यहां तक कि प्रोजेक्ट अफ़ेक्टेड आदिवासियों की तकलीफ़ों को लेकर भी कुछ कहने से क़तराते हैं। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता ने प्रेस कॉन्फ़्रेन्स कर ज़रूर स्टैच्यू ऑफ यूनिटी प्रोजेक्ट को ग़ैर क़ानूनी कह दिया था जिसे भाजपा के प्रवक्ता भरत पण्ड्या ने गुजरात विरोधी मानसिकता कह कर ख़ारिज कर दिया।

मेहता ने जनचौक को बताया कि उन्होंने अध्ययन कर पाया कि मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट गैरक़ानूनी है। एक आम पाटीदार मोदी से कितना ही ख़फ़ा क्यों न हो, सरदार की प्रतिमा बनाने के फ़ैसले से ख़ुश दिखायी पड़ता है। मसलन कभी हार्दिक पटेल की सहयोगी रह चुकी रेशमा पटेल स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी को गुजरात के लिए गौरव की बात मानती हैं। लगभग यही राय इतिहासकार रिज़वान क़ादरी की है। क़ादरी सरदार पटेल पर अथॉरिटी हैं। उनका मानना है कि सरदार एकता के प्रतीक थे। अखंड भारत उन्हीं की देन है।

सरदार के विचारों को सेलिब्रेट करने के लिए ऐसा प्रोजेक्ट होना ही चाहिए। क्योंकि आज देश को और विश्व को एकता और समरसता की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। पर्यावरणविद रोहित प्रजापति, जिसने ग्रीन ट्रियब्यूनल में स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी को चुनौती दी थी, का कहना है कि स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी से लगा एक बड़ा मुद्दा गरूड़ेश्वर रिज़र्व्वायर है जो नर्मदा डैम से 10 मील नीचे है। बीच में सरदार की प्रतिमा, एक चट्टान के ऊपर स्थापित की गयी है। रिज़र्व्वायर बनाने के लिए इम्पैक्ट असेसमेंट नहीं किया गया, पर्यावरण की मंजूरी नहीं ली गयी। सरकार का कहना था गरूड़ेश्वर नर्मदा प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इस पर हमारा कहना था गरूड़ेश्वर डैम बनने से जो 7 गांव डूबने वाले हैं उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए। 

ज़मीन के बदले ज़मीन मिलनी चाहिए। प्रजापति का कहना है कि अब वो चाहते हैं सरदार की प्रतिमा के चारों ओर पानी जिसके लिए गरूड़ेश्वर रिजर्वायर नहीं बना था, पहले तो गरूड़ेश्वर बनाना ही नहीं चाहिए। नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी से स्टैच्यू बनाने के लिय इजाजत लेनी चाहिए थी। इन्वायरॉन्मेंट इम्पैक्ट असेस्मेंट ऑफ़ स्टैच्यू किया जाना चाहिए था। सरदार सरोवर ट्रस्ट का कहना है कि इसकी ज़रूरत नहीं। सरदार सरोवर डैम फ़ॉल्ट लाइन एरिया में है।

फ़ॉल्ट लाइन में डैम की वजह से पहले ही लोड है। डैम से 3.2 किलोमीटर की दूरी पर रॉक्स को डिस्टर्ब करके लोहे की इतनी ऊंची प्रतिमा लगा दी है इसकी स्टडी होनी चाहिए। 15000 लोग हर दिन विज़िट करने वाले हैं। सबसे बड़ा मुद्दा ये है कि उसी से जुड़ी पास में सैंक्चुरी है। चट्टान के ऊपर जब 182 मीटर ऊंची प्रतिमा पर रात भर लाइट पड़ने वाली है, रात भर जगमगाने से सैंक्चुरी में रहने वाले जंगली जनवरों और पक्षियों का क्या हस्र होने वाला है। इसका हम सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं। 

हम जानते हैं वन्य जीव जंतुओं को प्रताड़ित करने वाली स्थितियां पैदा होने वाली हैं। जाने माने बुद्धिजीवी प्रोफ़ेसर हेमंत शाह स्टैच्यू पर होने वाले ख़र्च को विवादित मानते हैं। कमांड एरिया में नहर बनाने का जो पैसा ख़र्च होना था उस पैसे से प्रतिमा और आस-पास सुविधाएं खड़ी की जा रही हैं। यह ग़लत है। भाजपा प्रवक्ता भरत पण्ड्या का कहना है जो लोग सरदार की प्रतिमा को ग़ैर क़ानूनी बता रहे हैं। वे सरदार का अपमान कर रहे हैं, देश का अपमान कर रहे हैं। गुजरात गौरव का अपमान कर रहे हैं, एकता का अपमान कर रहे हैं। देश को अखंड बनाने वाला अकेला सरदार पटेल था। सरदार की प्रतिमा का विरोध करने वाले गुजरात विरोधी शक्तियों से मिलकर साजिश कर रहे हैं। ऐसे लोग आदिवासियों के दुश्मन हैं क्योंकि उनका ऐसे लोग विकास नहीं होने देना चाहते हैं।

(बसंत रावत “दि टेलीग्राफ” के अहमदाबाद में ब्यूरो चीफ रह चुके हैं।)

Janchowk
Published by
Janchowk