स्वतंत्रता सेनानियों को भुलाकर किया जा रहा आजादी का अमतृ महोत्सव बेमानी है

भारत सरकार आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर पूरे देश में साल भर के लिए आजादी का अमृतमहोत्सव मना रही है। जगह-जगह लाखों रूपये खर्च कर के भव्य कार्यक्रम किये जा रहे हैं। लेकिन इन कार्यक्रमों के बीच स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों, उनके परिवारों और स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में नाम लिखवाने से रह गए अनाम सैनिकों की कोई पूछ-परख नहीं हो रही है। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला की करसोग, पांगना, निहरी जैसी तहसील, उप तहसीलों में हजारों की संख्या में सुकेत राजा के खिलाफ लोगों ने 1948 में विद्रोह किया था। उस में भाग लेने वाले 4000 के करीब लोगों का ब्योरा सरकारों के पास नहीं है। अगर कोई शोधार्थी, परिजन, समाजसेवी खोज कर स्वतंत्रता सेनानियों का नाम सूची में जुड़वाना चाहे तो इसकी भी जानकारी नहीं है। 

सुकेत रियासत पर लंबे समय तक सामंती राजाओं का शासन था। लिखित इतिहास के तथ्यों को देखें तो 1862 से 1948 तक लगातार पांगणा,करसोग च्वासी,मण्डी हिमाचल की जनता ने राजाओं के जुल्मों के खिलाफ विद्रोह किया था। 1948 में हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री रहे यशवंत सिंह परमार के प्रत्यक्ष नेतृत्व में राजा लक्ष्मण सेन के खिलाफ विद्रोह किया गया। सुकेत इतिहास के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार जगदीश शर्मा जी बताते हैं कि पांगणा पर जब सत्याग्रहियों द्वारा कब्जा किया गया तो यहां पर 4000 के करीब सत्याग्रहियों  ने 19 फरवरी 1948 से 22 फरवरी 1948 प्रातः तक 3 दिन  पांगणा में डेरा जमाया था। इस दौरान भारी बारिश हो रही थी तथा अगले निर्देशों तक पागंणा में रुकने की सलाह गृह मंत्री से मिली थी। पांगणा वासियों ने, महिलाओं ने सभी सत्याग्रहियों के पांगणा में  रहने, खाने और सोने का प्रबंध किया था। इस इलाके के सैकड़ों लोग सत्याग्रहियों की सेवा में शामिल थे। 

ऐसे ही एक शख्स थे पांगना गांव के नरसिंह दत्त जी(चिन्गु) अन्य नेतृत्वकारी नरसिंह दत्त (भाऊ लिडर) के दोस्त थे। नरसिंह दत्त के छोटे बेटे ज्ञानचंद (45) ने बताया कि उनके पिता हमेशा राजा के खिलाफ विद्रोह में लगे रहे। वह घर पर कम ही रहते थे। उन्होंने प्रजा मंडल के आंदोलन के संबंध में बिलासपुर, सुंदरनगर, सिरमौर, रामपुर बुशहर आदि जगहों पर यात्राएं की। राजा ने एक बार उनको सुंदरनगर कैद में भी रखा था। बिलासपुर के उनके साथ आंदोलन में रहे लोगों से जब हम  मिले तो उन्होंने भी इसकी तस्दीक की थी। 

वर्तमान में नरसिंह दत्त के परिवार में उनकी बड़ी बेटी मीना (60), टेक चंद (50) और ज्ञान चंद (45) जीवित हैं। उनका कहना है कि सरकार बहुत सारे कार्यक्रम आजादी के लिए करती है लेकिन उनके पिता जी जो लगातार आजादी के लिए लड़ते रहे उनका नाम तक स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की सूची में नहीं है। हमेशा हमें इस बात का बहुत अफसोस होता है। 

ज्ञान चंद ने हमें अपने पिता को हिमाचल सरकार द्वारा जारी किया होमगार्ड का कार्ड दिखाया जिसमें नरसिंह दत्त जी का जन्म 1927 लिखा हुआ है। उनके पिता जी का नाम कृष्ण दत्त था। बटालियन नंबर 956 में उनको 1965 में नौकरी दी गई थी। उनका कहना है कि स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण खुद यशवंत सिंह परमार ने उनको नौकरी दी थी। वह व्यक्तिगत रूप से उनको जानते थे।नरसिंह दत्त उर्फ चिन्गु के सितम्बर 1947 में लिपटी राम सहित रियासत मण्डी से शिमला भागकर भूमिगत होने का वर्णन हिमाचल भाषा,कला संस्कृति अकादमी द्वारा प्रकाशित स्मृतियाँ नामक किताब के 49 पृष्ठ पर भी दर्ज है। लेकिन इसके बाद इस परिवार को पूर्व सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं दी गई है। 

स्वतंत्रता संग्राम के अनाम सैनिकों पर शोध कर रहे मनदीप कुमार का कहना है कि सैकड़ों की संख्या है करसोग और पांगणा में ऐसे लोगों की जिनका नाम सूची में नहीं जुड़ पाया। ऐसे लोगों पर खोज होनी चाहिए और स्थानीय प्रशासन को इसके लिए सहयोग देना चाहिए। भाषा, कला और संस्कृति विभाग को इस की तरफ विशेष जोर देना चाहिए। बहुत सारे लोगों ने सूची में अपने नाम नहीं लिखवाए हैं। इस के कारणों का विश्लेषण करते हुए जगदीश शर्मा जी कहते हैं कि उस समय लोग अनपढ़ थे। सरकार और पुलिस अगर किसी का नाम, कागज पत्र मांगती थी तो डरते थे कहीं किसी मामले में जेल न हो जाए। इस लिए बहुत सारे लोगों ने जो विद्रोह में थे अपने नाम सरकार के पास नहीं भेजे। अभी सरकार को ऐसे लोगों का संज्ञान लेना चाहिए और सुकेत विद्रोह की याद में प्रशासन को चाहिए कि वह पांगणा, करसोग,सुंदर नगर,मण्डी आदि क्षेत्रों में सर्वेक्षण  करवाए और ऐसे लोगों के परिवारों को सम्मानीत करे।

(हिमाचल प्रदेश के मंडी से स्वतंत्र पत्रकार और लेखक गगनदीप सिंह की रिपोर्ट।)

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