रेसिज़्म के ख़िलाफ़ संघर्ष बने एंटी रेप मूवमेंट का आधार: एंजला इवान डेविस

(प्रसिद्ध अमेरिकी बुद्धिजीवी एंजला इवान डेविस (76) का पूरा जीवन जेंडर, रेस, क्लास, वॉर आदि विभिन्न मुद्दों पर सक्रिय एक्टिविज़्म, लेखन और शिक्षण से जुड़ा रहा है। अपनी इसी सक्रियता के कारण उन्हें कुछ समय जेल में भी गुज़ारना पड़ा। 1985 में लिखे गए उनके इस लंबे लेख के कुछ अंशों का यह हिन्दी अनुवाद भारतीय संदर्भ को, ख़ासकर रेप और जातिगत उत्पीड़न के संबंध और सिलसिले को ध्यान में रखकर भी पढ़ा जा सकता है। लेख में आए रेसिज़्म शब्द को स्थानीय संदर्भ में रेसिज़्म-कास्टिज़्म पढ़ना उचित ही होगा। अनुवाद व प्रस्तुति : अमोल सरोज)

अपने समाज के लिए ख़तरा साबित होने वाली समस्याओं, कुरीतियों या बुराइयों के लिए हम अक्सर उदासीन रवैया अख़्तियार किए रखते हैं। हम तब तक उस समस्या को मानने से इनकार किए रहते हैं जब तक कि वह विकराल रूप धारण न कर ले। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। रेप एक ऐसी ही समस्या है। आज अमेरिका में होने वाले अपराधों में रेप सबसे आगे है। सेक्सुअल असॉल्ट आज की पूंजीवादी व्यवस्था का वह रोग है जिसकी पीड़ित सदियों की यातना, बेवजह के अपराध-बोध और चुप्पी के बाद आज इसके बारे में खुलकर सच बोल रही हैं। अमेरिका में रेप को लेकर आम जनता में जो जागरूकता और चिंता इन सालों में आई है, उसकी वजह से पीड़ित अपने पिछले अनुभवों को बता रही हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शायद ही कोई ऐसी महिला हो जिसने अपनी ज़िंदगी में किसी न किसी रूप में सेक्सुअल असॉल्ट न झेला हो। 

अमेरिका और बाकी पूंजीवादी देशों में रेप के लिए जो कानून बनाए गए वे मुख्यत: अपर क्लास और अपर कास्ट मर्दों के हितों को ध्यान में रखते हुए बनाए गए थे। उनका मकसद अमीर लोगों की `बहू-बेटियों` को बचाना` ही था। वर्किंग क्लास औरतों के साथ क्या हो रहा है, इसके बारे में कोर्ट हमेशा से संवेदनहीन रहा है। यही कारण है कि अमेरिका में गोरे मर्दों द्वारा काली औरतों पर किए गए बलात्कार के केस कोर्ट में कभी टिक नहीं पाए। रेप कानून का शिकंजा हमेशा गरीबों और दलितों (गुनहगार या बेगुनाह) पर ही कसा गया। 1930 से लेकर 1967 तक रेप के आरोप में 455 आदमियों को सजा हुई। उन में से 405 ब्लैक थे। 

अमेरिका में रेप संबंधी फ़र्ज़ी आरोपों को गोरे उत्पीड़कों ने ब्लैक दलितों के खिलाफ रेसिज़्म (जातिवाद) के कारगर हथियार की तरह इस्तेमाल किया है। गोरों ने ब्लैक पुरुषों के नेचुरल रेपिस्ट होने का झूठा मिथ गढ़ा, जिसका इस्तेमाल काले लोगों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा और आतंक को न्यायसंगत ठहराने के लिए किया गया। अभी चल रहे एंटी रेप मूवमेंट में अगर ब्लैक औरतें हिस्सा नहीं ले रही हैं तो उसके पीछे अहम कारण मूवमेंट का काले आदमियों के ख़िलाफ़ झूठे रेप केस के रेसिस्ट एजेंडे पर चुप्पी साधना है। ब्लैक औरतें ऐसे मूवमेंट का साथ क्यों देंगी जिसमें सिर्फ़ निर्दोष काले लोगों को बलि का बकरा बनाया जाएगा और गोरे लोगों के अपराध को जज से लेकर यूनिफ़ोर्म पहने पुलिस वालों तक का समर्थन हासिल होगा।

जब ब्लैक औरतों का बलात्कार होता है तो उन्हें पुलिस वालों से संवेदना की जगह लताड़ मिलती है। कितने ही केस ऐसे हैं जिनमें रिपोर्ट लिखवाने गयीं पीड़ित ब्लैक औरत के साथ पुलिस वाले दोबारा बलात्कार करते हैं। ये सब हालिया बातें हैं। बिल्कुल उस वक़्त की जब सिविल राइट जैसा ताक़तवर आंदोलन चल रहा था। अधिकतर नौजवान एक्टिविस्ट इस बात पर सहमत नजर आती हैं कि ब्लैक औरत को पुलिस से कोई नहीं बचा सकता। 1974 दिसंबर की ही बात है जब एक 17 वर्षीय ब्लैक लड़की का 10 पुलिस वालों ने बलात्कार किया। एक-दो पुलिस वाले सस्पेंड हुए और मामला रफ़ा-दफ़ा हो गया।

हालिया एंटी रेप मूवमेंट के शुरुआती दौर में कुछ प्रगतिशील फेमिनिस्ट थियरिस्ट ने रेप पीड़ित ब्लैक औरत के हालात पर गंभीर रिसर्च की। वे सब इस बात पर सहमत थीं कि ब्लैक औरत के साथ बलात्कार और ब्लैक आदमी पर झूठे रेप के आरोप एक ही जातिवादी सिक्के के दो पहलू हैं। जब-जब ब्लैक औरतों ने अपने ऊपर हो रहे बलात्कार और शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है, तब-तब उन्होंने ब्लैक मर्दों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो रहे रेप के झूठे आरोपों का भी पर्दाफाश किया है। 

ग्रेडा लर्नर उन चंद गोरी फेमिनिस्ट में से हैं जिन्होंने ब्लैक औरत के साथ होने वाले रेसिस्ट और सेक्सिट अपराधों की गहराई से जांच की। ग्रेडा ने लिखा- 

“गोरी औरतों में ब्लैक रेपिस्ट का मिथ और बुरी काली औरतों का मिथ दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों का इस्तेमाल ब्लैक कम्युनिटी के शोषण को न्यायसंगत ठहराने के लिए किया जाता है। ब्लैक औरतों ने इस जातिवादी-रेसिस्ट सम्बंध को बहुत पहले पहचान लिया था। ब्लैक मर्दों की लिंचिंग के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों मे ब्लैक औरतें सबसे आगे थीं।

सेक्सुअल अपराधों को रेसिज़्म ने हमेशा एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया है। इस से रेसिज़्म को ताकत मिलती रही है। भले ही ब्लैक औरतें इसका स्वाभाविक टार्गेट रही हैं पर बलात्कार की मानसिकता वाले मर्द को किसी भी कलर से परहेज नहीं होता है। यही कारण है कि गोरे मर्दों के अत्याचार का शिकार गोरी औरतों को भी होना पड़ रहा है। जब एक बार गोरे मर्द को इस बात पर यक़ीन हो गया कि वह बिना किसी रोक-टोक के ब्लैक औरतों के साथ बलात्कार कर सकता है तो वह गोरी औरतों के साथ बलात्कार को भी अपना हक़ मानने लगता है। रेसिजम (जातिवाद) ने हमेशा बलात्कार को बढ़ावा दिया है। रेसिज़्म द्वारा फैलाई गई इस घिनौनी आग से गोरी औरतें भी अछूती नहीं हैं। यह उन बहुत से तरीक़ों में से है जिनसे रेसिज़्म सेक्सिज्म को पालता पोसता है जिसे गोरी औरतों को भी सहना पड़ता है।

वियतनाम की लड़ाई अपने आप में एक और उदारहण है कि कैसे रेसिज़्म (और जातिवाद) बलात्कार को बढ़ावा देता है। अमेरिका के सैनिकों के दिमाग़ में चूंकि यह बात बैठा दी गई थी कि वे एक इन्फीरियर रेस से लड़ाई करने जा रहे हैं तो उस रेस की औरतों के साथ बलात्कार करना, उनकी एक जरूरी मिलिट्री ड्यूटी है। वियतनाम की औरतों के साथ बलात्कार को बढ़ावा देना अमेरिकन मिलिट्री की अलिखित पॉलिसी थी क्योंकि बलात्कार आतंकवाद का अचूक साबित हथियार रहा है। पर जब हज़ारों-हज़ार अमेरिकन सैनिक वियतनाम से वापस आए तो वे अपने साथ बलात्कार करने का अनुभव भी साथ लेकर आए। औरतों के लिए उनका नज़रिया किस हद तक गिरा होगा, इस बात की कल्पना ही की जा सकती है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अमेरिकन सैनिक जो घिनौने अनुभव अपने साथ लेकर अमेरिका लौटे, उनको आज अमेरिका की औरतें सहन कर रही हैं।

रेप को इतिहास और सामाजिक जटिलता से दूर करके, उसका एक अलग-थलग अपराध की तरह विश्लेषण करना हमें कहीं लेकर जाने वाला नहीं है। अगर हम रेप जैसे अपराध को जड़ से मिटाना चाहते हैं तो रेसिज़्म (और जातिवाद) की जड़ों पर हमला करना पड़ेगा। रेसिज़्म (जातिवाद) के ख़िलाफ़ संघर्ष एंटी रेप मूवमेंट का आधार होना चाहिए।

एंजला डेविस।
अमोल सरोज।

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