क्या वे मौत के सौदागर नहीं हैं?

मोदी सरकार बार-बार कहती रही कि उसके पास टीके की कमी नहीं है, लेकिन पिछले दिनों इसकी किल्लत सामने आई और लोगों ने शिकायत की कि उन्हें बिना टीका लिए लौटना पड़ रहा है। मोदी के निर्वाचन क्षेत्र बनारस में कई टीका केंद्र बन गए। स्वास्थ्य मंत्री ने दावा किया कि टीके की कमी नहीं तो फिर पांच माह बाद मोदी सरकार ने कोविशिल्ड बनाने वाली भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट को तीन हजार करोड़ रुपये देने का फैसला किया। कोवैक्सीन की कम्पनी भारत बायोटेक को 1500 करोड़ रुपये देने का निर्णय लिया। जब लोगों की जाने जा रही हैं तो आखिर इतने विलंब से यह निर्णय क्यों? क्या कोई सरकार इतनी लापरवाह और गैरजिम्मेदार हो सकती है और जनता के साथ खिलवाड़ कर सकती है?

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कुछ साल पहले गुजरात में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए वहां दंगों के लिए जिम्मेदार  मुख्यमंत्री को ‘मौत का सौदागर’ बताया था तो उनके इस बयान पर काफी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। भारतीय जनता पार्टी तथा संघ परिवार ने श्रीमती गांधी को उनके इस बयान के लिए आड़े हाथों लिया था। वैसे, तकनीकी रूप से श्रीमती गांधी का बयान पूरी तरह सच न हो क्योंकि अदालत ने श्री मोदी को कभी भी दोषी नहीं स्वीकार किया इसलिए कहा जा सकता है कि श्री मोदी मौत के सौदागर नहीं हैं, लेकिन कई बार अदालती सच, सच भी नहीं होता पर पिछले करीब एक महीने से श्री मोदी जिस तरह पश्चिम बंगाल के चुनाव प्रचार में दिन रात लगे हुए हैं और जिस तरह सीरम इंस्टीट्यूट को 3000 करोड़ की आर्थिक सहायता देने में पांच माह से अधिक समय लग गया, उसे देखते हुए अगर उन्हें ‘मौत का सौदागर’ कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी। वैसे, हमारे जनप्रतिनिधि जब संसद में  शपथ लेते हैं तो सत्य और निष्ठा से काम करने की शपथ लेते हैं, लेकिन अगर कोई जनप्रतिनिधि अपनी निष्ठा का पालन नहीं करता है तो क्या वह संविधान का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।

मोदी बार-बार पश्चिम बंगाल जा रहे हैं और आए दिन रोड शो कर रहे हैं। रैलियां संबोधित कर रहे हैं। उससे यह स्पष्ट हो गया है कि उनकी निगाह में कोरोना से अधिक महत्वपूर्ण है चुनाव। उनके लिए जनता की जान माल की रक्षा करना प्राथमिकता में नहीं है। यह पहला मौका होगा जब प्रधानमंत्री ने किसी राज्य की विधानसभा चुनाव के लिए इतने दौरे किए हों। जब बिहार विधानसभा चुनाव हुआ था, तब प्रधानमंत्री ने इतने  दौरे नहीं किए थे। आखिर क्या कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह बार-बार बिना मास्क लगाए बंगाल का दौरा कर रहे हैं। रोड शो कर रहे हैं। रैलियां कर रहे हैं, और जनता से ये भी नहीं कहते कि आप बिना मास्क लगाए सभा में नहीं आया या इस वक्त रैली में भाग न लें बल्कि हम ऑनलाइन अपनी बात आप तक पहुंचाएंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि भीड़ भरा रोड शो होने दिया। क्या एक प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को इतना गैर जवाबदेह होना चाहिए?

उन्हें कायदे से पहले अपने चुनाव क्षेत्र बनारस का दौरा करना चाहिए था, जहां कोरोना की दूसरी लहर में मौत ने तांडव मचाना शुरू कर दिया है, लेकिन प्रधानमंत्री को इसकी चिंता नहीं है। उनकी तो अर्जुन की तरह आंख उस ‘चिड़िया’ पर लगी हुई है, जिसे आज राजनीति की भाषा में ‘कुर्सी’ कहा जाता है, यानी अर्जुन की ‘चिड़िया’ अब कुर्सी में बदल गई है और अर्जुन की निगाह ‘चिड़िया’ से हटकर ‘कुर्सी’ पर टिक गई है, लेकिन दुख इस बात पर होता है कि देश में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सब तमाशबीन बने हुए हैं। उन्हें कोरोना की  दूसरी लहर में अपनी संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए था लेकिन उन्होंने लगातार अपनी लापरवाही का परिचय दिया और इस लापरवाही की इंतहा तब हो गई जब मोदी सरकार को सीरम इंस्टीट्यूट को 3000 करोड़ देने का फैसला लेने में पांच माह से अधिक समय लग गया।

श्री मोदी ने इस इंस्टीट्यूट का 28 नवम्बर को दौरा किया था और उन्होंने वादा किया था उसे 3000 करोड़ दिए जाएंगे। कोविशिल्ड बनाने वाली इस कंपनी के सीईओ ए पूनावाला ने कुछ दिन पहले फिर यह मांग की थी, लेकिन उसके 15 दिन बाद मोदी सरकार जागी और उसने यह राशि देने का निर्णय लिया। क्या यह आग लगने पर कुआं खोदने जैसी बात नहीं। कल मीडिया में खबर आई कि मोदी सरकार सीरम को तीन हजार करोड़ तथा बायोटेक कंपनी को 1500 करोड़ रुपये देगी, ताकि टीके का उत्पादन बढ़ाया जा सके।

फिलहाल सीरम इंस्टीट्यूट अभी छह करोड़ से सात करोड़ टीके का उत्पादन हर माह कर पा रहा है, जबकि उसे 10 करोड़ टीके  का निर्माण किए जाने की जरूरत है, तभी दूसरी लहर के दौरान टीके लगाने की बढ़ती मांग की पूर्ति की जा सकेगी। अभी तक केवल 12 करोड़ लोगों को ही टीका दिया जा सका है और अब सरकार ने यह घोषणा की है कि पहली मई से 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को भी टीका लगाया जाएगा। जब इतने बड़े देश में लोकसभा के चुनाव महीने भर में हो सकते हैं तो क्या तीन माह में टीकाकरण नहीं हो सकता है। दरअसल इस सरकार की प्राथमिकता में पटेल की मूर्ति बनाना, राम मंदिर बनाना, कुंभ कराना, नया सांसद भवन बनवाना है अस्पताल का निर्माण कराना नहीं है। ऑक्सीजन की व्यवस्था करना नहीं है। 

जब बार-बार सरकार का ध्यान दिलाया गया कि अस्पतालों में तो टीके उपलब्ध नहीं हैं और लोगों को बिना टीका लिए लौटना पड़ रहा है तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने दावा किया कि देश में टीके की कोई कमी नहीं है, लेकिन उनके दावे और हकीकत में जमीन आसमान का अंतर दिखाई दिया। जब दूसरी लहर ने  भयंकर तबाही मचानी शुरू कर दी तब जाकर सरकार की नींद टूटी और जब इतनी फजीहत हुई तो उसने सीरम को जो वादे किए थे, उसे पूरा करने के लिए कदम उठाया। इससे आप देख सकते हैं कि मोदी सरकार की यह लापरवाही उन्हें ‘मौत का सौदागर’ सिद्ध करती है, लेकिन हमारे देश में रेल दुर्घटना के लिए ड्राइवर को लापरवाही की सजा दी जाती है पर हुक्मरानों के लिए कोई सजा नहीं है। वे आपको मौत के कुएं में धकेल सकते हैं और आप न्याय की गुहार भी नहीं कर सकते हैं।

आज हजारों लोग बिस्तर, ऑक्सीजन तथा दवाइयों के अभाव में अपनी जान गंवा चुके हैं। चारों तरफ चीख पुकार मची है, लेकिन इसकी तबाही की जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं है। इस लापरवाही को देखते हुए अगर मोदी सरकार को ‘मौत का सौदाग’ कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी, भले ही तकनीकी रूप से इस मौत के लिए मोदी जिम्मेदार न हो, लेकिन सच केवल अदालत की भाषा में नहीं होता है वह अदालत की कानूनी किताबों से परे भी होता है। चाहे नोटबंदी हो या जीएसटी या अब लॉकडाउन या टीकाकरण, मोदी सरकार ने हर बार तुगलकी फैसले किए।

देश की जनता इस नीरो को कभी माफ नहीं करेगी जो रोम के जलने पर बांसुरी नहीं बजा रहा था बल्कि वह चुनावी भाषण दे रहा है। नीरो का यह मुहावरा भारतीय संदर्भ में एक नया अर्थ व्यंजित कर रहा है। उम्मीद है जनता अपने बादशाह के चेहरे पर लगे मुखौटों को पहचान लेगी और जब उसे अपने फैसले सुनने का वक्त मिलेगा वह उचित निर्णय लेकर इस सौदागर को सजा देगी। सबको अब दो मई का इंतजार है।

(विमल कुमार वरिष्ठ पत्रकार और कवि हैं। आप आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

विमल कुमार
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