सेना का राग अलापने वाले मोदी बजट के नाम पर सैन्य क्षेत्र को थमाते रहे हैं ढेला

आज पूरे भारत में कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है। आज ही के दिन 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में भारत को विजय मिली थी, इसमें भी प्रधानमंत्री मोदी अपनी ब्रांडिंग से बाज नहीं आए, ट्विटर पर अपनी तस्वीर डालते हुए उन्होंने कहा, ‘साल 1999 में करगिल युद्ध के दौरान मुझे करगिल जाने और हमारे बहादुर सैनिकों के साथ एकजुटता दिखाने का अवसर मिला”।

ये तो ठीक है मोदी जी! पर आप ये बताइये आपने अपने पिछले 5 साल के कार्यकाल में सेना के लिए क्या किया? सेना के आधुनिकरण की दिशा में आपने कौन से कदम उठाए? मोदी शासन काल में पहला बजट 2014-15 में आवंटित किया गया था। उसके बाद रक्षा क्षेत्र में लगातार कटौती की जा रही है।
दरअसल 1988 में रक्षा क्षेत्र पर जीडीपी की 3.18 फ़ीसदी राशि आवंटित की गई, लेकिन उसके बाद से लगातार गिरावट देखने को मिली है।

यदि पड़ोसी देशों से ही तुलना की जाए तो भारत की तुलना में चीन ने अपनी जीडीपी का 2.1 फ़ीसदी हिस्सा रक्षा पर खर्च करने के लिए आवंटित किया तो पाकिस्तान ने 2.36 फ़ीसदी लेकिन भारत जीडीपी का महज 1.58 फीसदी ही रक्षा पर खर्च कर रहा।

25 जुलाई, 2018 को बीजेपी के सांसद डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी ने कहा था, “जीडीपी का 1.56 प्रतिशत हिस्सा रक्षा पर खर्च किया जा रहा है। साल 1962 में चीन से युद्ध के बाद से यह सबसे निचले स्तर पर है। भारत जैसे बड़े देश के लिए रक्षा बजट बहुत अहम होता है।

इस साल वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश किए गए बजट में आवंटित 3.18 लाख करोड़ रुपये 2019-2020 के संभावित जीडीपी का केवल 1.5 प्रतिशत है जो 1962 में चीन से युद्ध के दौरान के बाद सबसे कम आंकड़ा है। इस बार सुरक्षा बजट के लिए जो 3.18 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, वो पिछले वित्तीय वर्ष से केवल 6.87 प्रतिशत ज्यादा है और यह बढ़त केवल मुद्रास्फीति के आधार पर की गई है। पिछले बजट में भारत की कुल जीडीपी का 1.6 फ़ीसदी हिस्सा रक्षा पर खर्च करने के लिए आवंटित किया गया था जबकि वैश्विक स्तर यह मानक दो से 2.25 फ़ीसदी है। भारत सरकार इस समय देश की सुरक्षा पर न्यूनतम खर्च कर रही है।

चीन ने सेना में आधुनिकीकरण अभियान को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हुए पिछले साल रक्षा खर्च में 8.1 प्रतिशत की वृद्धि करके 175 अरब डॉलर कर दिया यह भारत के हालिया रक्षा बजट का करीब-करीब चार गुना है।

2 साल पहले बीजेपी सांसद मेजर जनरल बीसी खंडूरी की अध्यक्षता वाली रक्षा पर बनी संसद की स्थायी समिति ने संसद में अपनी 41वीं रिपोर्ट पेश की थी इसमें समिति ने अफसोस जताते हुए कहा था कि सेना के आधुनिकीकरण के लिए 21,338 करोड़ रुपये दिए गए हैं (29,033 करोड़ की तो उसकी तय देनदारी है)। रिपोर्ट में 17,757 करोड़ रुपये की कमी का जिक्र किया गया है। समिति ने कहा कि इससे सेना के कामकाज पर बुरा असर पड़ेगा।
2017 में रक्षा बजट की स्टैंडिंग कमेटी प्रमुख मेजर जनरल बीसी खंडूरी (रिटायर्ड) का कहना था कि रक्षा बजट में कटौती की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए क्योंकि यह पहले ही 3 प्रतिशत के जरूरी मानक से कम है। सुरक्षा बलों के समुचित संचालन के लिए जीडीपी का 3 प्रतिशत रक्षा खर्च में दिया जाना जरूरी है। रक्षा मंत्रालय को इस दिशा में ध्यान देना चाहिए।

लेफ्टिनेंट जनरल शरदचंद ने मेजर जनरल बीसी खंडूरी की अध्यक्षता वाली संसद की स्थाई समिति से कहा है कि सेना का 68 प्रतिशत साज़ो-सामान विंटेज श्रेणी का, यानि कि जरूरत के लिहाज से काफी पुराना पड़ चुका है। उन्होंने संसदीय समिति से कहा है कि 123 जारी परियोजनाओं और आपातकालीन खरीद के लिए 29,033 करोड़ रुपये दिए जाने हैं, ऐसे में आधुनिकीकरण के लिए 21,338 करोड़ रुपये का आवंटन नाकाफी है। वाइस चीफ ने समिति से कहा है कि चीन से सटी सीमा पर सड़कों और ढांचागत सुविधाओं के लिए सेना की मांग से 902 करोड़ रुपये कम मिले हैं।

मॉडर्न मिलिटरी के पास सामान्य तौर पर उसके हथियारों और उपकरणों का 30 प्रतिशत स्टेट-ऑफ-द-आर्ट टेक्नॉलजी कैटेगरी, 40 प्रतिशत करेंट टेक्नॉलजी और 30 प्रतिशत विंटेज कैटेगरी का होना चाहिए। चिंता की बात यह है कि 12 लाख जवानों से भी बड़ी भारतीय सेना के पास 8% स्टेट-ऑफ-द-आर्ट, 24% करंट और 68% विंटेज कैटेगरी के हथियार मौजूद हैं, जबकि सेना को पाकिस्तान से लगातार फायरिंग और घुसपैठ का सामना करना पड़ रहा है। रक्षा मामलों की संसदीय समिति के सामने सेना के उपप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल शरत चंद ने कहा, ‘2018-19 के बजट ने हमारी उम्मीदों को धराशायी कर दिया।

और इस बार 2019 -20 में तो पिछली बार से भी कम रकम मिली है।

पिछले साल जब भूटान में डोकलाम सीमा पर भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने थे तभी सीएजी ने भारतीय सेना की क्षमता पर गंभीर सवाल उठाए थे, सीएजी ने यहां तक कह दिया था कि भारतीय सेना के पास 10 दिनों तक लड़ने के लिए ही गोला-बारूद है।

यह है असली स्थिति सेना की। लेकिन जब सारा पैसा सेना के बजाए मीडिया पर खर्च किया जाता है तो वह यही बताता है कि मोदी जी के राज में सेना बहुत मजे में है। यही पिछले 5 सालों में हुआ है और अभी भी यही हो रहा है। जनता मूर्खों के स्वर्ग में रह रही है।

(लेखक गिरीश मालवीय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और आजकल इंदौर में रहते हैं।)

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