“स्मार्टफोन पाने के लिए नहीं किया था आशाकर्मियों ने आंदोलन”

लखनऊ। अगला पड़ाव था मेरा लखनऊ के बीकेटी क्षेत्र में स्थित गांव भीखापुरवा।  भीखापुरवा जाने का मकसद था आशा बहू नीलम से मिलना और नीलम से मिलने का खास मकसद था यह जानना कि जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों उन्हें स्मार्ट फोन दिया गया तो उस समय उनके अहसास क्या थे और क्या वे स्मार्ट फोन मिलने से खुश हैं। नीलम उन दस आशा कर्मियों में से थीं जिन्हें पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान बेहद गर्व के साथ मुख्यमंत्री ने स्मार्ट फोन भेंट किया था। दरअसल आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के बाद प्रदेश भर की आशाओं को स्मार्ट फोन देने की योगी सरकार की योजना है जिसमें सरकार का दावा कि करीब 80 हजार आशाओं को स्मार्टफोन वितरित किया जा चुका है और शेष 80 हजार को दूसरे चरण में वितरित किया जाएगा।

पता पूछते-पूछते आखिर नीलम जी के घर पहुंची। मिलते ही उन्हें बधाई दी तो बिना सवाल किए वे तपाक से बोलीं जानती हूं मैडम जी आप किस बात की बधाई दे रही हैं और तुरंत अपने बेटे को इशारा करते हुए अंदर से कुछ लाने को कहा। नीलम जी के बेटे ने एक पैकेट लाकर अपनी मां को पकड़ा दिया। “अरे अभी तक फोन पैकेट में ही बंद है, इस्तेमाल शुरू नहीं किया?” मैंने आश्चर्य से पूछा तो नीलम ने हंसते हुए कहा, नहीं इस्तेमाल शुरू नहीं किया और करूंगी भी या नहीं कुछ कह नहीं सकती सरकार चाहे तो इसे वापस ले सकती है। आख़िर क्यों? मेरे पूछने पर वे बोलीं हमने आंदोलन एक स्मार्ट फोन पाने के लिए नहीं किया था, हम आंदोलन कर रहे हैं कि सरकार हमें राज्य कर्मचारी घोषित करे, हमारे काम के घंटे तय हों, हमें हमारे काम का सम्मानजनक वेतन चाहिए, हमें न्यूनतम वेतनमान चाहिए, हमें स्वास्थ्य बीमा चाहिए और भी बहुत कुछ। इस तरह बताते हुए नीलम अपनी मांगों को गिनवाने लगीं।

सरोजिनी आशाकर्मी नीलम से बात करती हुईं

नीलम कहती हैं स्मार्ट फोन से कोई भी आशा खुश नहीं है। दो साल से इस करोना काल में अपनी जान की बाजी लगाकर हर आशा अपना काम कर रही है, हमारे तो काम के घंटे तक तय नहीं। अगर रात दो बजे किसी गर्भवती महिला को दर्द शुरू हो जाए तो हमें रात दो बजे उसे अस्पताल ले जाना पड़ता है, वे मायूस होकर कहती हैं जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश का चुनाव नजदीक आता रहा, प्रदेश की आशाओं को उम्मीद थी कि अपने वादों के अनुरूप मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनके पक्ष में एक सशक्त फैसला लेंगे और आशाओं के काम के अनुरूप एक सम्मान जनक वेतनमान लागू करेंगे।

अपने मुख्यमंत्री से यह उम्मीद जगना स्वाभाविक भी थी, क्योंकि न केवल सामान्य दिनों में, बल्कि कोविड काल के भयावह दौर में जब आशाओं ने सुविधाओं के अभाव में भी अपनी जान की बाजी लगाकर काम किया तो मुख्यमंत्री ने उनके काम और जज्बे की सराहना करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी लेकिन जब बात न्यूनतम वेतनमान लागू करने और राज्य कर्मचारी घोषित करने के साथ अन्य मांगों की आई तो योगी सरकार से आशाओं को निराशा ही हाथ लगी। अलबत्ता इस बार फिर मुख्यमंत्री ने मात्र सात सौ पचास रुपए की बढ़ोत्तरी का ऐलान तो किया लेकिन न तो प्रदेश की आशाएं इस वृद्धि से खुश हैं और न ही उन्हें यह विश्वास है कि यह बढ़ी हुई राशि उन्हें मिल पाएगी क्योंकि वे पहले भी इस तरह का धोखा खा चुकी हैं जब 2018 के अंत में योगी सरकार ने साढ़े सात सौ बढ़ाने का ऐलान तो किया था लेकिन लागू कभी नहीं हो पाया। आपको बता दें कि प्रदेश में आशाओं का मानदेय महीने का 2275 रुपए है।

आशाकर्मियों की बैठक

बीते 13 दिसंबर को लखनऊ के इको गार्डन में उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन (सम्बद्ध एक्टू) के बैनर तले प्रदेश स्तरीय एक दिवसीय प्रदर्शन हुआ जिसमें विभिन्न जिलों से हजारों आशायें जुटी थीं और भाजपा सरकार को चेतावनी दी थीं कि यदि हमारी नहीं सुनी गई तो आशायें कार्य के साथ चुनाव बहिष्कार करेंगी। इस गोलबंदी के तहत इलाहाबाद, चन्दौली, रायबरेली, कानपुर, जौनपुर, लखीमपुर, लखनऊ, मुरादाबाद, सीतापुर, बनारस, शाहजहांपुर, बाराबंकी, बस्ती, फैजाबाद, उन्नाव, बरेली, गोरखपुर,  देवरिया आदि से आईं हजारों आशा बहनों ने लखनऊ के इको गार्डेन में अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। आज करो अर्जेंट करो…. हमको परमानेंट करो ….दो हजार में दम नहीं… 21 हजार से कम नहीं…. अब हमने ये ठाना है…. वेतनमान बढ़ाना है…  जो सरकार निकम्मी है वो सरकार बदलनी है….जैसे नारों के साथ पूरा इको गार्डन गूंज उठा था।

पुलिस बंदोबस्ती में भी प्रशासन ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। हालांकि आशाओं की इस गोलबंदी के बाद आचार संहिता लगने से ठीक पहले मुख्यमंत्री ने आशाओं का मानदेय 750 रुपये बढ़ाने का ऐलान किया। साथ ही कहा कि उन्हें कोरोना काल में किए काम के लिए एक अप्रैल, 2020 से 31 मार्च, 2022 तक 24 महीने के लिए अतिरिक्त मानदेय 500 रुपये प्रतिमाह मिलेगा। सीएम ने कहा कि इससे एक लाख 60 हजार आशा बहनें लाभान्वित होंगी। सीएम ने एक कार्यक्रम के मंच से दस आशाओं को स्मार्टफोन दिया। उन्होंने कहा कि पहले चरण में 80 हज़ार आशा को स्मार्टफोन दिया जा रहा है। इसके बाद दूसरे चरण में 80 हजार आशाओं को स्मार्टफोन देंगे। स्मार्टफोन के माध्यम से आशा अपनी सारी जानकारी और काम का डिटेल, उपलब्धि ऑनलाइन अपलोड कर सकेंगी।

पर्चा वितरित करतीं आशाकर्मी

हालांकि इतनी तारीफों और 750 की इस वृद्धि का आशाओं ने कोई स्वागत नहीं किया बल्कि इस वृद्धि को अपना अपमान ही माना। इस घोषणा के बाद नाराज आशाओं के एक प्रतिनिधिमण्डल ने अपने अगले आन्दोलन की रूपरेखा तय करने के मक़सद से हाल ही में लखनऊ में एक बैठक की। यह बैठक उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन (सम्बद्ध एक्टू) के आह्वान की गई थी। इस बैठक में जाने और आशाओं से बात करने का मौका मुझे भी मिला। अपने लिए मिली ढेरों तारीफें,  750 की बढ़ोत्तरी और स्मार्ट फोन के तोहफ़े से क्या इन्हें कोई तसल्ली मिली है तो इस सवाल के जवाब में देवरिया की संगीता पांडेय कहती हैं अगर तसल्ली मिलती तो हम क्यों यहाँ जुटकर आगामी आंदोलनों के बारे में बात करने के लिए जुटते।

अभी जब तक प्रदेश में चुनाव है, नई सरकार का गठन नहीं हो जाता। क्या तब तक आप सब चुप रहेंगे और काम करते रहेंगे इस सवाल पर रायबरेली की सरला श्रीवास्तव का कहना था कि काम तो करते रहेंगे लेकिन इसी बीच प्रदेश भर की अपनी हर आशा बहनों के हाथों तक अपना सशक्त माँग पत्र पहुँचायेंगे, हस्ताक्षर अभियान चलायेंगे,  हस्ताक्षर किये उस माँग पत्र की कॉपी जिलाधिकारी के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री तक पहुंचायेंगे। तत्पश्चात चुनाव संपन्न होने और सरकार गठन के बाद पुनः आंदोलन की ओर बढ़ेंगे और जरूरत पड़ी तो पूर्णतया कार्य बहिष्कार की ओर बढ़ेंगे। साथ ही 23-24 फरवरी को होने वाली ट्रेड यूनियनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल का हिस्सा बनकर एक या दो दिन का कार्य बहिष्कार करेंगे।

देवरिया में पर्चा वितरण

बैठक में शामिल होने रायबरेली से आये एक्टू के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय विद्रोही कहते हैं जरूरत पड़ी तो आगामी समय में हम दिल्ली भी कूच करेंगे क्योंकि आख़िरकार यह है तो केन्द्र की योजना इसलिए इनके विषय में सोचना केन्द्र की भी जिम्मेदारी है। वे कहते हैं जो योजनायें केन्द्र और राज्य सरकार मिलकर चलाती हैं उसमें जब पैसा बढ़ाने की बात आती है तो राज्य कहता है कि हमने अपना हिस्सा बढ़ा दिया अब केन्द्र जाने, केन्द्र राज्य पर बात टाल देता है लेकिन यहाँ तो केन्द्र और राज्य में एक ही सरकार है तब भी सुनवाई नहीं।

दरअसल प्रदेश में आशा कर्मी भयानक गुलामों जैसी परिस्थितियों में कार्य कर रही हैं, उनके किये गये कामों का न तो उन्हें कोई उचित पारिश्रमिक मिलता है न ही कोई पारितोषित ही दिया जा रहा है, अनगिनत काम लिए जा रहे हैं, उनमें किसका कितना प्रतिफल है इसकी कोई पारिदर्शिता नहीं है। काम के बोझ से 24 घंटे दबी आशा/संगिनी न अपने परिवार पाल पा रही हैं और न खुद का ही जीवन चला पा रही हैं, इनके कार्य भार का निर्धारण करने का का क्या वैज्ञानिक मानक है? ज़िन कार्यों का कोई परितोषित नहीं उन कामों में नियोजन क्यों? आदि प्रश्न लगातार आशाओं द्वारा उठाये जाते रहे हैं किंतु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनके इन सवालों को निरंतर अनसुना किया जाता रहा है। उनको सिर्फ नित नये कार्य के बोझ से लादने, केन्द्रों पर उत्पीड़ित करने, उनके किये गये काम के पैसों का बन्दर बांट करने के सिवा कुछ भी नहीं हो रहा है ,यही नहीं मानदेय के लिहाज से भी उत्तर प्रदेश देश के सभी प्रांतों में सबसे कम भुगतान करता है।

बैठक में हरदोई से आयी रजनी का कहना था कि “जिन विपरीत परिस्थितियों में  भी उन्होंने रात दिन एक करके काम किया और लगातार कर रही हैं उसमें भी पेमेंट कभी समय से नहीं मिलता महीनों मानदेय लटका रहता है, जिन कार्यकर्मों का पैसा सरकार ने निश्चित किया है उनका भी भुगतान महीनों लटका रहता है कुल मिलाकर बिना छुट्टी लिए महीने भर खटने के बाद कभी किसी महीने खाते में पांच सौ कभी हजार बारह सौ भर आ जाता है बस वो भी हर महीने नियमित आता ही रहेगा यह बिलकुल निश्चित नहीं”।

चंदौली की ज्योति ने बताया कि “लादने को हम पर आज की तारीख में पचासों काम लाद दिये हैं लेकिन पैसा पाँच काम का भी तय नहीं जो तय भी है तो उसका भुगतान कभी समय से मिलता ही नहीं। यह मामूली भर वृद्धि और स्मार्ट फोन सरकार अपने पास रखे और हमारी जो मूल मांगे हैं उसे पूरा करे। वे कहती हैं सरकार कोई भी आये हम अपनी ठोस मांगों के लिए लड़ते रहेंगे और इतना कहकर वह अपना माँगपत्र दिखाने लगीं”।

जिसमें सभी आशा/ संगीनियों कर्मियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने, सभी के लिए 21,000/ मासिक वेतन तय करने, सवेतन मातृत्व अवकाश तथा मेडिकल अवकाश, बकाया कोरोना भत्ता, टीकाकरण, कोविड सर्वे सहित सभी कार्य जो लिए गये उनका तुरन्त भुगतान करने समेत 15 मांगें शामिल थीं।

(लखनऊ से स्वतंत्र पत्रकार सरोजिनी बिष्ट की रिपोर्ट।)

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