बिहार चुनाव नतीजेः नीतीश की अगली चूक उन्हें पहुंचा देगी हाशिये पर

बिहार चुनाव के नतीजों के बाद नीतीश कुमार के लिए सोचने का समय है कि सोशलिस्ट विचारधारा को त्याग कर भाजपा से हाथ मिलाने का उन्हें कितना नुकसान और भाजपा को कितना फायदा हो रहा है। जदयू के वोट काटने के लिए भाजपा ने ही चिराग पासवान को लगाया था। लोकसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार को अपमान झेलना पड़ा था। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह माना जा रहा था कि जदयू को ठीक-ठाक मंत्रालय मिलेंगे पर क्या हुआ? भाजपा ने नीतीश कुमार को कोई खास तवज्जो नहीं दी। अब जब बिहार में विधानसभा चुनाव हुआ तो भाजपा के नेताओं ने पहले ही कहना शुरू कर दिया था कि यदि उनकी सीटें ज्यादा आईं तो मुख्यमंत्री उनका बनेगा। वैसे भी भाजपा ने अपने बैनरों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही फोटो लगाया था।

चुनावी सभाओं में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक विशेष धर्म के लोगों को घुसपैठियों की संज्ञा देकर बाहर खदेड़ने की बात कहने पर नीतीश को उन्हें अपना भाई कह कर किसी भी कीमत पर न जाने देने की बात कहनी पड़ी। ऐसे में यदि नीतीश कुमार फिर से भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनते हैं या केंद्र में जाकर भाजपा का मुख्यमंत्री बनवाते हैं, तो उन्हें अपना बचा जनाधार भी खोना पड़ेगा।

दरअसल नीतीश कुमार की विचारधारा समाजवादी रही है। नीतीश कुमार भले ही कई बार एनडीए के साथ रहे पर वह भाजपा की कट्टरवादी विचारधारा का विरोध करते रहे हैं। यही वजह थी कि 2012 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद का सबसे अधिक विरोध करने वाले नीतीश कुमार थे। 2015 में राजद के साथ सरकार बनाने के बाद गैर संघवाद का नारा भी नीतीश कुमार ने एक तरह से मोदी के विरोध में ही दिया था। ऐसे में फिर नीतीश का एनडीए के साथ सरकार बनाना उनके संगठन के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है।

बिहार विधानसभा चुनाव की 243 सीटों के परिणाम में भले ही NDA को 125 और महागठबंधन को 110 सीटें मिली हैं। पर नीतीश कुमार को यह देखना होगा कि भाजपा को 74 और जदयू को 43 सीटें ही मिली हैं। यह उनका अपनी विचारधारा और अपने वोट बैंक से विश्वासघात का ही नतीजा माना जाना चाहिए। नीतीश कुमार को यह समझना होगा कि भाजपा के साथ जाने पर उनका खुलकर विरोध करने वाली CPI ML को 12, CPI एवं CPM को दो-दो सीटों पर जीत मिली है।

इन चुनावों में लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव हारकर भी जीते हैं। उन्होंने अपने दम पर अपनी पार्टी को फिर से सबसे बड़ी पार्टी रखा। वे ही इन चुनाव के हीरो माने जा रहे हैं। ये चुनाव परिणाम नीतीश कुमार के लिए एक संदेश लेकर आए हैं कि वे अपनी विचारधारा में लौटें। नीतीश कुमार के एनडीए के साथ चले जाने पर उनकी जगह तेजस्‍वी यादव ने कब्ज़ा ली है। तेजस्वी यादव पिछड़े वर्ग में नेता बन कर उभरे हैं। चुनाव में नीतीश कुमार का वोटबैंक उनसे छिटका है।

एनडीए से अलग रहने पर नीतीश कुमार का चेहरा विपक्ष में सबसे मजबूत माना जाता था। यह माना जा रहा था कि मोदी को टक्कर देने वाले देश में एकमात्र चेहरा नीतीश कुमार हैं। क्या हुआ एनडीए के साथ जाने पर? नीतीश का कद बिहार में भी घट गया। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के नीतीश कुमार के राष्ट्रीय राजनीति में आकर तेजस्वी यादव को आशीर्वाद देने की बात को भले ही मजाक में लिया जा रहा हो पर उनका यह ट्वीट धर्मनिपेक्षता और नीतीश कुमार के साथ ही उनकी पार्टी के हित में है। मोदी ने बड़ी चालाकी से नीतीश कुमार का कद छांटा है।

क्या नीतीश कुमार इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री पद को ससम्मान चला पाएंगे? यह एक अहम सवाल है। मुख्‍यमंत्री बनने के बाद अब उन्हें भाजपा के दबाव में काम करना पड़ेगा। चुनाव का रिजल्‍ट घोषित होने के बाद नीतीश कुमार को भी इस बात का एहसास हो रहा होगा कि उन्‍होंने क्या खोया और क्‍या पाया। भाजपा के कई नेताओं को इस बात का मलाल है कि उनकी सीटें ज्‍यादा होने के बाद भी कम सीटें पाने वाले नीतीश कुमार मुख्‍यमंत्री बन रहे हैं। तब नीतीश कुमार बड़े दल के नेता थे, अब भाजपा उनसे ज्‍यादा सीटें ले आई है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

चरण सिंह
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