बीजेपी फासीवादी और आप है विचार शून्य राजनीतिक पार्टी

गुजरात विधानसभा और दिल्ली नगर निगम चुनाव परिणाम आने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) की राजनीति फिर से चर्चा में है। आम आदमी पार्टी को कोई भाजपा की ‘बी’ टीम तो कुछ लोग कांग्रेस का ‘विकल्प’ बताते हैं। लेकिन इसकी राजनीतिक कार्यशैली को देख कर कहा जा सकता है कि यह एक आदर्शविहीन और बिना किसी राजनीतिक दर्शन के विचारशून्य पार्टी है। आप अपने राजनीतिक फायदे के लिए किसी भी सीमा तक जाकर समझौता कर सकती है। यह मैं किसी पूर्वाग्रह के नहीं कह रहा हूं, बल्कि इसके ठोस कारण और तथ्य हैं, जो आम आदमी पार्टी के पिछले दस वर्षों की राजनीतिक यात्रा के दौरान सामने आए हैं।

यह इत्तफाक है कि गुजरात चुनाव में आप को 5 सीट ही मिली। इसे 50 सीट भी मिलती तो भाजपा को इससे गुरेज नहीं था। गुजरात में यदि भाजपा को 100 सीट मिलने की संभावना होती और आप को 50 सीट मिलती तो भी भाजपा नहीं चाहती कि आप गुजरात में चुनाव न लड़े। इसकी मुख्य वजह यह है कि भाजपा अपना मुख्य दुश्मन आप को नहीं बल्कि कांग्रेस को मानती है औऱ उसका यह मानना सही भी है। क्योंकि संघ-भाजपा एक फासीवादी संगठन है। फासीवाद एक विचारधारा है और विचारधारा का मुकाबला वही पार्टी कर सकती है जिसकी कोई विचारधारा हो। सच तो यह है कि फासिज्म का मुकाबला मार्क्सवाद ही कर सकता है। लेकिन भारत के संदर्भ में बात करें तो यहां मार्क्सवाद सांगठनिक रूप से उतना मजबूत नहीं है, ऐसे में फासिज्म का मुकाबला कोई वैचारिक रूप से संपन्न पार्टी ही कर सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस भाजपा का मुकाबला कर सकती है।

लेकिन देश की राजनीति में वैचारिक-सैद्धांतिक बहसों में बहुत लोग संघ-भाजपा और कांग्रेस के बीच अंतर नहीं मानते, जो कि सही नहीं है। इसे समझने के लिए कांग्रेस और संघ-भाजपा के स्थापना काल और उसके लक्ष्य एवं उद्देश्यों को समझना होगा। कांग्रेस के जड़ की बात करें तो कांग्रेस की स्थापना भले ही एक विदेशी ह्यूम ने की थी लेकिन समय के साथ-साथ उसके आदर्शों की बुनियाद में लोकतंत्र और धार्मिक सहिष्णुता रहा। आजादी के आंदोलन और पार्टी के अंदर मौजूद रहे विभिन्न विचारधारा के लोगों ने कांग्रेस का एक राष्ट्रवादी और समावेशी चरित्र बनाया। भारत जैसे देश में जहां विभिन्न धर्मों के लोग रहते हों, वहां कांग्रेस ने एक समावेशी राजनीति का मार्ग अपनाया।

अब 1925 में स्थापित आरएसएस की बात करें तो उसका घोषित उद्देश्य और लक्ष्य क्या है?  संघ का घोषित उद्देश्य हिंदू अनुशासन के जरिए हिंदुओं का चरित्र निर्माण करना और उनको इस तरह से संगठित करना, जिससे भारत को हिंदू राष्ट्र बनाया जा सके। और संघ-भाजपा उसी विचार को समय-समय पर आगे बढ़ाता रहा है। मतलब दोनों के वैचारिक नींव में ही जमीन-आसमान का अंतर हैं।

मैं अपने बहुत से मित्रों और इस बहस से सहमत नहीं हो पाता हूं कि भाजपा-कांग्रेस में कोई अंतर नहीं है। मोटे तौर पर आप कह सकते हैं कि कोई अंतर नहीं है। लेकिन सैद्धांतिक तौर पर दोनों में फर्क है। भाजपा शुरू से कट्टर हिंदूवादी पार्टी रही और कांग्रेस उदार राजनीतिक पार्टी रही है। कांग्रेस ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए बीच-बीच में सांप्रदायिक कार्ड खेला और भाजपा ने भी अपने फायदे के लिए समय-समय पर सेकुलर कार्ड खेला। लेकिन दोनों की विचारधारा में बुनियादी फर्क है।

भाजपा को असली डर अपने वैचारिक शत्रुओं से है। अब देखिए कांग्रेस के इतने कमजोर होने के बावजूद भाजपा राहुल गांधी को ‘पप्पू’ साबित करने के लिए करोड़ों रुपये मेन स्ट्रीम मीडिया और प्रचार माध्यमों पर खर्च कर रही है। भाजपा के नेता और प्रवक्ता सबसे ज्यादा राहुल गांधी पर हमला करते हैं। कांग्रेस अगर मरी हुई अवस्था में दिखे तो भी भाजपा को खतरा बना रहता है।

अब इसके विपरीत आम आदमी पार्टी को देखिए!  ये एकदम विचारशून्य पार्टी है। आप का राजनीतिक उत्थान एंटी करप्शन या भ्रष्टाचार विरोधी नारे के साथ हुआ। पार्टी गठन के समय कोई विचारधारा घोषित नहीं किया गया। अब अगर एक फासीवादी पार्टी का प्रतिद्वंदी विचारशून्य दल हो तो उसे वह कभी भी खत्म कर सकता है। संघ-भाजपा को अरविंद केजरीवाल से कोई डर नहीं है। दीर्घकालिक फायदे के लिए संघ-भाजपा तात्कालिक छोटे नुकसान उठाने को तैयार रहता है।

अब यहां सवाल यह है कि दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा क्यों दिखता है। दोनों के बीच का अंतर्विरोध क्या है? दरअसल, भाजपा का कांग्रेस से मुख्य और आप से गौण अंतर्विरोध है। अब मुख्य विरोधी से निपटने के लिए गौण अंतर्विरोधी से हाथ मिलाया जा सकता है। ऐसा विश्लेषकों का मानना है। भाजपा ऐसे ही नहीं कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दी है। जब तक वो कांग्रेस को पूरी तरह मिटा नहीं लेगी तब तक वह निश्चिंत होकर शासन नहीं कर सकती है, और इस काम काम में गौण अंतर्विरोधी आम आदमी पार्टी उनका साथ दे रही है। आप भाजपा को उतना नुकसान नहीं पहुंचा सकती कि उसके अस्तित्व पर संकट आ जाए, लेकिन कांग्रेस भाजपा के अस्तित्व पर प्रहार कर सकती है। इसलिए भाजपा और आप के बीच यह संबंध बना रहेगा और जहां आप के माध्यम से कांग्रेस को नुकसान पहुंच सकता है वहां पर भाजपा रणनीतिक तौर पर कुछ हानि सहकर भी आप को आगे जाने देगी।

गुजरात में जो चुनाव नतीजे आए हैं उसकी कल्पना भाजपा को भी नहीं थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह से जुटे थे उनकों लगता था कि शहरी क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी की वजह से उसके वोटों में बंटवारा हो जायेगा। भाजपा इसीलिए इतना मेहनत कर रही थी कि उसे कम से कम 100 सीटे मिल जाए। लेकिन भाजपा इस बात से खुश भी थी कि उसका जो नुकसान होगा, कहीं उससे ज्यादा नुकसान उसके मुख्य दुश्मन कांग्रेस को होने जा रहा है। भाजपा का अनुमान था कि आप शहरी क्षेत्रों में उसका और ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस का नुकसान करेगी। लेकिन आप भाजपा का नुकसान नहीं कर पायी और कांग्रेस का नुकसान हो गया। भाजपा कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की शर्त पर अपना भी नुकसान करने को तैयार बैठी थी।

समाजशास्त्री कांचा इलैया ने बहुत पहले एक इंटरव्यू में कहा था कि, भारत के संदर्भ में यदि कोई पार्टी आरक्षण का विरोध करती है और खाप पंचायतों का समर्थन करती है और केवल भ्रष्टाचार हटाने के नाम पर सत्ता में आ जाए तो अंतत: वह सोशल फासिज्म को ही बढ़ावा देगी। इस विश्लेषण के आइने में देखें तो भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच कोई बुनियादी फर्क नहीं है।

अभी हाल की घटनाओं को देखे तो आम आदमी पार्टी की राजनीति को समझा जा सकता है। सीएए के विरोध में  शाहीन बाग में प्रदर्शन, बिलकीस बानो और कोरोना के समय हजरत निजामुद्दीन मरकज मामले में आम आदमी पार्टी की तरफ से कोई बयान नहीं आया। अरविंद केजरीवाल एकदम खामोश रहे। वह कभी कुछ ऐसा नहीं कहते करते कि भाजपा और मोदी सरकार असहज महसूस करें। ऐसी ताकतें ही आरएसएस को फायदा पहुंचाती हैं। आप जनता के बीच यह भ्रम की स्थिति बनाकर रखी है वह भाजपा का विकल्प और विरोधी है, जबकि हर मोड़ पर यह उसके काम आ रही है।

यह बात सही है कि गुजरात में कांग्रेस सही रूप से चुनाव नहीं लड़ी। ग्रामीण क्षेत्रों में आप ने कांग्रेस के आधार में सेंध लगाई है। आम आदमी पार्टी के काम करने तौर-तरीका पूरी तरह से नरेंद्र मोदी वाली है। नरेंद्र मोदी के शासनकाल वाली भाजपा का तरीका संघ के ज्यादा करीब है। संघ झूठ औऱ अफवाह के माध्यम से जनता को सामूहिक मतिभ्रम का शिकार बनाने का प्रयोग करती रहती है।

मनोविज्ञान में एक प्रवृत्ति है सामूहिक मतिभ्रम (COLLECTIVE DELUSIONS) जिसे शासकवर्ग किसी मुद्दे पर मीडिया आदि के माध्यम से बनाने की कोशिश करता है। जिसमें कुछ गलत चीज को लोग सही मानने लगते हैं। संघ-भाजपा सरकार 2014 के बाद एक आपराधिक कृत्य में संलिप्त है, वह है जनता का डीस्कूलिंग करना। पिछले सत्तर साल में जनता के बीच जो आधुनिक, वैज्ञानिक और तार्किक सोच-समझ विकसित हुआ था, संघ-भाजपा सरकार उसे अतार्किक बनाने में लगी है। जनता को प्रतिगमन की तरफ ले जाने में लगी है। समूची जनता को जाहिल बनाने में लगी है जिससे उसे वोट मिल सके।

“अन्ना आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल ने कई मीडिया इंटरव्यू और सार्वजनिक भाषणों में कहा था कि लोग मुझसे मेरी विचारधारा पूछते हैं, मैं न लेफ्ट हूं न राइट। मुझे जहां जो अच्छा मिलेगा उसे ग्रहण कर लूंगा।”

ऐसे में एक फासिस्ट विचारधारा से लैस भाजपा के लिए आम आदमी पार्टी से अच्छा और क्या हो सकता है, जिसकी कोई विचारधारा ही नहीं है। भाजपा अपने तात्कालिक और दीर्घकालिक लक्ष्य के लिए दोस्त-दुश्मन को चिहिंत करके काम करती है। भाजपा को पता है कि संसदीय राजनीति में उसकी मुख्य दुश्मन कांग्रेस है और संसदीय राजनीति के बाहर वैचारिक स्तर पर उनका मुकाबला उन्हीं लोगों से है,जो भीमा-कोरेगांव मामले में जेलों में बंद हैं। उन्हें कम्युनिस्टों से वैचारिक खतरा है। अब आनंद तेलतुंबड़े और सुधा भारद्वाज कोई क्रांति नहीं कर रहे थे। लेकिन संघ-भाजपा कम्युनिस्टों को अपना वैचारिक शत्रु मानती है। आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक गोलवलकर ने “वी, ऑर ऑवर नेशनहुड डिफाइंड के पांचवे अध्याय में हिंदू राष्ट्र के मुख्य दुश्मनों में कम्युनिस्ट, ईसाई और मुसलमानों का जिक्र किया है।

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही गांधी-नेहरू की विरासत पर सबसे ज्यादा हमला कर रहे हैं। यह सही है कि गांधी का विरोध वह सीधे तौर पर नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन नेहरू विरोध के नाम पर वह परोक्ष रूप से गांधी की विचारधारा और विरासत का भी विरोध कर रहे हैं। क्योंकि नेहरू गांधी की विरासत के भी साथ थे।

ऐसे में कांग्रेस-भाजपा को एक बराबर मानने वाले को असली खतरा पहचानने की जरूरत है। संघ-भाजपा न केवल प्रगतिशील, वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण समाज का विरोधी है बल्कि वह वैज्ञानिक चेतना से संपन्न लोगों को भी अपना दुश्मन मानती है। ऐसे में अपने संघ-भाजपा के फासीवादी चरित्र को समझकर उससे राजनीतिक रूप से निपटने की जरूरत है।

(आनंद स्वरूप वर्मा वरिष्ठ लेखक-पत्रकार हैं और यह लेख प्रदीप सिंह से बातचीत पर आधारित है।)

आनंद स्वरूप वर्मा

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  • एक गंभीर लेख जिस पर चर्चा होनी चाहिए
    मैं उनकी राय से सहमत नहीं हूं और aap ko केवल शासक वर्ग द्वारा पोषित बीजेपी की b टीम मानता हूं
    लेकिन ऐसे गंभीर ले ख आनी चाहिए

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आनंद स्वरूप वर्मा