महामारी पर वोटरों के गुस्से को सम्मान देगी बीजेपी?

कोरोना से जनता कराह रही है। दुखी भी हैं, क्रोधित भी। क्रोध कोरोना पर नहीं है, केंद्रीय सत्ता और अधिसंख्य प्रादेशिक सरकारों पर काबिज बीजेपी के प्रति यह गुस्सा है। यह गुस्सा खास तौर पर कुंभ के प्रतीकात्मक किए जाने के बाद भी चुनावी रैलियों के जारी रहने बाद पैदा हुआ है। पश्चिम बंगाल के आखिरी तीन चरणों के चुनाव और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के नतीजे इस गुस्से को बयां कर रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या बीजेपी इस गुस्से को महसूस कर पा रही है? क्या बीजेपी इस गुस्से का सम्मान करेगी?

महामारी से कराहती जनता ने निकाला गुस्सा
पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता की आंधी चली और मोदी-शाह की सियासत बंगाल को पार करती हुई बंगाल की खाड़ी में जा गिरी, तो इसकी एक नहीं कई वजह हैं। मगर, कोरोना से निपटने में सरकार के रवैये पर जनता का गुस्सा हरेक चरण में क्रमश: बढ़ता चला गया। जिन शुरुआती तीन चरणों में बीजेपी अपनी बढ़त को लेकर आश्वस्त थी, वहां भी तृणमूल कांग्रेस आधे से ज्यादा सीटें झटक ले गयी। इन सीटों पर लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने बढ़त बनायी थी। मगर, अंतिम तीन चरण में 114 सीटों पर हुए चुनाव में टीएमसी का 90 सीटें झटक लेना बीजेपी के नजरिए से चौंकाने वाली घटना है। यह महामारी को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ जनता की खुली नाराज़गी है।

पश्चिम बंगाल में जहां अंतिम तीन चरणों के चुनाव 22, 26 और 29 अप्रैल को हुए थे, वहीं उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव 15, 19, 26 और 29 अप्रैल को हुए थे। 15 अप्रैल तक दैनिक कोरोना संक्रमण दो लाख पार कर चुका था। 16 अप्रैल को महामंडलेश्वर कपिल देव दास की मौत हुई और सैकड़ों साधुओं के कोरोना संक्रमण की खबर आने लगीं।

निर्णायक हो गये 17 अप्रैल को मोदी के दो संबोधन
17 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने कुंभ को प्रतीकात्मक करने की अपील की। इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आसनसोल में रैली कर बहुचर्चित भाषण दिया था, “मैं दो बार आया था। बाबुलजी के लिए वोट मांगने आया था। पहले एक चौथाई भी न थे सभा में। पर आज ऐसी सभा पहली बार देखी। बताइए, यह मेरी शिकायत मीठी है या कड़वी है? आज आपने ऐसी ताकत दिखाई कि लोग ही लोग दिखते हैं। क्या कमाल कर दिया आप लोगों ने।”

नतीजा यह हुआ कि आसनसोल ही नहीं पूरबा बर्धमान, पश्चिम बर्धमान, बांकुड़ा, पुरुलिया, हुगली समेत मध्य बंगाल में जहां बीजेपी बहुत मजबूत नजर आ रही थी, वहां की 75 में से 52 सीटें तृणमूल कांग्रेस जीत ले गयी।

केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो की टॉलीगंज में 50 हजार से अधिक वोटों से हार हुई। इस हार के बाद उन्होंने ट्वीट किया कि न वो ममता बनर्जी को जीत की बधाई देंगे और न ही यह कहेंगे कि वे जनता के फैसले का सम्मान करते हैं। उन्होंने चुनाव नतीजे को जनता की भूल बताया। इससे पता चलता है कि बीजेपी चुनाव नतीजे को किस तरह से देख रही है।

17 अप्रैल की तारीख देश में नरेंद्र मोदी के उपरोक्त दो बयानों के लिए हमेशा याद रखी जाएगी। ये बयान कथनी और करनी में अंतर के सबूत बन चुके हैं। इन बयानों से नरेंद्र मोदी ने देश भर में जनता का मूड बीजेपी विरोधी कर दिया। सबूत पश्चिम बंगाल में आखिरी तीन चरण और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हैं।

यूपी में मोदी-योगी दोनों को जनता ने दिया जवाब
यूपी पंचायत चुनाव में नरेंद्र मोदी के अलावा योगी आदित्यनाथ का कोरोना को लेकर दोहरा व्यवहार भी गुस्से की वजह बना। योगी आदित्यनाथ पंचायत चुनाव के प्रथम चरण से ठीक एक दिन पहले कोरोना पॉजिटिव हो गये। समूचा सचिवालय कोविड के साए में आ गया। जबकि, यही योगी आदित्यनाथ लगातार पश्चिम बंगाल में रैली कर ‘दो गज दूरी मास्क है जरूरी’ की धज्जियां उड़ा रहे थे। नतीजा यह रहा कि पंचायत चुनाव में योगी के गढ़ गोरखपुर तक में बीजेपी का शर्मनाक प्रदर्शन रहा।

योगी-मोदी और उनकी डबल इंजन वाली सरकार का प्रतीक है उत्तर प्रदेश। वाराणसी से प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र मोदी। योगी के गोरखपुर ही नहीं, वाराणसी में भी जनता ने पंचायत चुनाव में बीजेपी की बैंड बजा दी। 40 जिला पंचायत में महज 8 बीजेपी कि हिस्से आईं। अयोध्या, मथुरा जैसी अहम जगहों पर भी जनता ने बीजेपी को नकार दिया।

ऑक्सीजन की कमी से राजधानी लखनऊ में लोग मरते रहे, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सफेद झूठ बोलते रहे कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। बेड के लिए जब लोग तरस रहे थे, योगी ने कहा कि राजधानी लखनऊ में चार हजार बेड तैयार किए गये हैं। बेड की कोई कमी नहीं है। सबसे अधिक दर्द जनता ने तब महसूस किया जब योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर निर्देश दिया कि ऑक्सीजन सिलेंडर व्यक्ति विशेष को नहीं दिए जाएं, केवल संस्थानों को दिए जाएं। जब अदालत तक ने फटकार लगायी तब सीएम योगी को नया निर्देश देना पड़ा कि पुलिस ऑक्सीजन ले जा रहे व्यक्ति विशेष को तंग न करे। कोरोना की मार झेल रही जनता ने इन फैसलों को महामारी के साथ डबल अटैक समझा।

जनता ने बीजेपी का विकल्प ढूंढ़ने की कोशिश दिखलाई
महामारी से बेचैन वोटरों ने साफ संदेश दिया है कि जहां कहीं भी बीजेपी का विकल्प मिले, उसे पकड़ लिया जाए। समाजवादी पार्टी यूपी पंचायत चुनाव के नतीजों में बीजेपी के साथ कमदताल करती हुई सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि समाजवादी पार्टी ने कुछ ऐसा काम कर दिया है कि जनता उससे प्रभावित हो गयी है। इतना जरूर साबित हुआ है कि आने वाले चुनाव में उत्तर प्रदेश में समाजवी पार्टी ही बीजेपी का विकल्प हो सकती है। या फिर, बीजेपी के विरोध अगर कोई गठबंधन होता है तो उसका नेतृत्व समाजवादी पार्टी ही करेगी।

योगी-मोदी की कोरोना काल में सियासत इस तरह अलोकप्रिय हुई कि कांग्रेस भी पंचायत चुनाव में अपनी ताकत दोगुनी कर गयी। जिला पंचायत की 80 सीटों पर उसने कब्जा जमाया। बीएसपी 365 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। मगर, सबसे उल्लेखनीय आंकड़ा निर्दलीय उम्मीदवारों का है। एक हजार से ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवार पंचायत चुनाव में जीते हैं। और, यह समाजवादी पार्टी या बीजेपी की जीती हुई सीटों से ज्यादा है। यह इस बात का प्रमाण है कि लोगों ने बीजेपी को अपनी पहली पसंद रखने की उस आदत को छोड़ दिया है जो उसने लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में दिखलायी थी।

यूपी में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में 50 फीसदी तक वोट हासिल करने वाली बीजेपी से उम्मीद की जा रही थी कि वह पंचायत चुनावों में भी 3051 जिला पंचायत सदस्यों में से 1500 से ज्यादा सीटें जीतकर आतीं, लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। यह बीजेपी के लिए चिंताजनक बात है। ये चुनाव नतीजे महामारी से निबटने में प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री के तौर पर योगी की विफलता का नतीजा है।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

प्रेम कुमार
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