इतना तो समझ लेते भाई कि काठ की हांड़ी बार-बार नहीं चढ़ा करती!

प्रायः हर चुनाव के वक्त हिंदू बनाम मुसलमान, श्मशान बनाम कब्रिस्तान या होली बनाम ईद करने वाली भारतीय जनता पार्टी के रहते शायद ही किसी को उम्मीद रही हो कि उसके लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन चुके पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों में उसकी ओर से धार्मिक व सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें व कवायदें नहीं होंगी। इस कारण और कि जनता की सामाजिक-आर्थिक उलझनों को सुलझाने में उसकी सरकारों की विफलता ने उसके पास इस ध्रुवीकरण के अलावा जीत का कोई रास्ता छोड़ा ही नहीं है।

विवादास्पद कृषि कानूनों को लेकर किसान उससे नाराज हैं, तो रोजी-रोजगार के अकाल के कारण युवा, डीजल-पेट्रोल से लेकर सब्जी, मसालों और दालों तक की कीमतों में लगी महंगाई की आग के कारण निचले व साथ ही मध्यवर्ग के लोग और आर्थिक नीतियों का मुँह बड़े उद्योगपतियों की ओर किये जाने से कई वंचनाओं के शिकार छोटे व्यवसायी, जिन पर वह एक समय अपना तकिया रखा करती थी। ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि उसे बाजी अपने हाथ से फिसलती दिखाई दे रही है और चुनावों को इन मुद्दों पर केन्द्रित न होने देने के लिए ‘अतिरिक्त सतर्कता’ बरतते हुए उसने चुनावों से कई महीने पहले ही हिंदू बनाम मुसलमान करना शुरू कर दिया है।

इस क्रम में पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सिपहसालार-ए-खास माने जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह ने उत्तराखंड जाकर ‘शुक्रवार को हाइवे पर नमाज की बात’ छेड़ते हुए यह याद रखना गवारा नहीं किया कि कभी उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहे और अब उसके पड़ोसी बन गये इस राज्य में नमाज पढ़ने वालों की संख्या बेहद नगण्य है, तो उन्हें मालूम था कि उनके मुंह से निकली बात को उनके लोग उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों तक भी पहुंचा ही देंगे। वैसे ही जैसे उनके द्वारा लखनऊ में कही गई इस बात को पहुंचा दिया कि अब उत्तर प्रदेश में माफिया दूरबीन से देखने पर भी नहीं दिखते। यह और बात है कि उनकी पहचान कुछ काम नहीं आयी क्योंकि फौरन पूछा जाने लगा कि दूरबीन से देखने के बजाय अपने बगल में क्यों नहीं देख लेते ? उनका जूनियर मंत्री तो खुद मंत्री बनने से पहले का अपना इतिहास बताता रहता है।

बहरहाल, गृहमंत्री का उत्तराखंड दौरा तो शुरुआत भर था। देश-प्रदेश की कई बड़ी समस्याओं, यहां तक कि किसानों के असंतोष तक पर चुप्पी साधे रखने वाले प्रधानमंत्री ने खुद केदारनाथ जाकर अयोध्या, राम मंदिर, मथुरा और काशी का राग गाया। फिर क्या था, हरियाणा की भाजपा सरकार द्वारा राज्य में कई जगह नमाज पढ़ने के लिए दी गई अनुमति वापस ले लेने से आह्लादित भाजपा व विहिप के नेताओं ने गुड़गांव में उस जगह, जहां नमाज पढ़ी जाती थी, गोवर्धन पूजा मनाई और शाहीन बाग से लेकर पाकिस्तान तक का नाम लेकर भड़काऊ भाषण दिये।

लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपनी जीत के लिए यह सब तो, अयोध्या में चुनाव से पहले की आखिरी दीपावली पर 12 लाख दीयों में, जनता कहें या करदाताओं का पैसा बेदर्दी से फूंक देना भी काफी नहीं लगा। इसलिए वे खुद को हिन्दुओं के लिए सबसे ज्यादा फिक्रमन्दी जताने कैराना जा पहुंचे। पाठकों को याद होगा, कैराना प्रदेश की वह जगह है, भाजपा ने 2016 में अखिलेश की समाजवादी पार्टी सरकार के वक्त जहां से ‘साम्प्रदायिक मुसलमानों के कारण हिन्दुओं के पलायन’ को लेकर खूब शोर मचाया और लाभ उठाया था। हालांकि स्थानीय लोगों के अनुसार वहां सांप्रदायिकता की नहीं, कानून व्यवस्था की समस्या थी।

लेकिन भाजपा ने तब तो उसे अपने राजनीतिक स्वार्थों के अनुसार हिन्दू मुसलमान के नजरिये से देखा ही, अब योगी वहां जाकर दावा कर आये हैं कि उन्होंने कैराना से खौफ का खात्मा कर वहां से पलायित हिंदुओं की घर वापसी करा दी है। फायदा भरपूर हो, इसलिए उन्होंने वहां मुजफ्फरनगर के दंगे का जिक्र करते हुए उसके कारण बेघर-बेदर अल्पसंख्यकों के पुनर्वास की समस्याओं का जिक्र तक नहीं किया। क्यों नहीं किया, समझना कठिन नहीं है। यह भी समझा जा सकता है कि कैराना का चुनावी इस्तेमाल करते हुए उन्होंने क्यों कहा कि वहां से पलायन उनके लिए चुनावी मुद्दा नहीं है। किसी को तो पूछना चाहिए कि चुनावी मुद्दा नहीं है तो वह चुनाव के वक्त ही उन्हें क्यों याद आया है ?

इसीलिए तो कि मतदाता उसे जिस रूप में वे और उनकी पार्टी चाहती है, उसी रूप में याद रखें, गरीबी व गिरानी के अपने सारे त्रास दरकिनार कर दें और साम्प्रदायिक नफरत में विवेक खोकर भाजपा की झोली फिर वोटों से भर दें। पांच साल पुराने जख्मों को चुनाव से ऐन पहले उधेड़ने का इसके अलावा और क्या तुक हो सकता है ?

गौरतलब है कि वे दिन कब के हवा हो चुके हैं, जब भाजपा देश के एक या दो प्रदेशों को अपनी प्रयोगशाला बनाया करती थी। अब सारा देश उसकी प्रयोगशाला बना हुआ है। इसीलिए वह त्रिपुरा से लेकर उत्तराखंड और हरियाणा से लेकर उत्तर प्रदेश तक ही इस तरह कुलांचकर संतुष्ट नहीं है।

मध्य प्रदेश के प्रतिष्ठित दैनिक ‘देशबंधु’ ने लिखा है कि इसे साबित करते हुए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से उसकी अलबेली सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने, महात्मा गांधी पर ओछी टिप्पणी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिनके बारे में कहा था कि वे उन्हें क्षमा नहीं कर सकते और इसके बावजूद उनका बाल बाका नहीं हुआ, दीपावली पर ‘गरीब’ हिन्दू बच्चों के साथ पटाखे चलाये। अक्सर व्हील चेयर पर दिखने वाली प्रज्ञा एक जगह बम को चिंगारी लगाती नजर आईं, तो दूसरी जगह कुछ बच्चों के साथ फुलझड़ियां छुड़ातीं। अंदाज ऐसा था कि जैसे यह अनुकम्पा करके वे उन गरीब हिन्दू बच्चों को कृतार्थ किये दे रही हैं। काश, हिन्दू हितैषी होने का दावा करने वाली यह महोदया समझतीं कि अनेक हिन्दू धर्मावलम्बी बच्चों को अमीर व गरीब या हिन्दू मुसलमान में नहीं बांटते, मन के सच्चे, सारे जग की आंख के तारे और ऐसे नन्हें रूप मानते हैं, जो भगवान को प्यारे लगते हैं। 

लेकिन मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को प्रज्ञा के इस दूषित सोच पर नहीं, इस बात पर आपत्ति है कि गांधी परिवार कभी हिंदू त्यौहार मनाते हुए क्यों नहीं दिखता ? जैसे कि कोई परिवार तभी हिंदू कहला सकता है, जब अपने त्यौहारों को निजी आस्था तक सीमित न रखे और भाजपाइयों की तरह उनका राजनीतिक प्रदर्शन कर हिन्दुओं पर नैतिक, धार्मिक और इमोशनल तीनों अत्याचार करे। नरोत्तम की इस आपत्ति को गांधी परिवार से परे करके देखें तो अपेक्षाकृत बड़ा प्रतिप्रश्न पैदा होता है, जिसे ‘देशबंधु’ ने इस रूप में पूछा है : दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी राजनीतिक नेता को लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति समर्पित होना चाहिए या धार्मिक ? जवाब के लिए यह नजीर काफी है कि दुनिया में अब तक धर्म के नाम पर जो भी देश बने, उनकी कट्टरता उन्हें आखिर में बर्बाद ही कर गई।

लेकिन क्या कीजिएगा, भाजपा के नेताओं को ऐसी नजीरें नहीं पचतीं, क्योंकि उनके पितृसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अंतिम लक्ष्य अभी भी ‘हिंदू राष्ट्र’ ही है और सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखने वाला भारत हमेशा उसकी आंख की किरकिरी रहा है। लेकिन वे इतना समझ जायें तो भी अपना व देश दोनों का भला करेंगे कि काठ की हांड़ी बार-बार नहीं चढ़ा करती और विशाल हिन्दू समुदाय को लम्बे समय तक ‘बनाये’ नहीं रखा जा सकता। क्योंकि वह हिन्दू-मुसलमान के नाम पर पोच-सोच, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार वगैरह की अपनी समस्याओं को हमेशा के लिए दरकिनार करता नहीं रह सकता।

(कृष्ण प्रताप सिंह दैनिक अखबार जनमोर्चा के संपादक हैं।)

कृष्ण प्रताप सिंह
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